Drishyam, ek chudai ki kahani-39

This story is part of the Drishyam, ek chudai ki kahani series

    ना डरना ओ मेरे राही अगर राहों में भटके हो। यदि हो चाह मंजिल की तो रास्ते मिल ही जाते हैं।
    ना हो मुश्किल जो राहों में सफर का क्या मज़ा साहिल, लगादें जान जो अपनी वही मंजिल को पाते हैं।

    यदि आपके दिल में कोई काम करने की जबरदस्त लगन है, तो छोटीमोटी अड़चनों को पार करने के रास्ते तो निकल ही आते हैं। सवाल यह है की आपके इरादे मजबूत होने चाहियें। अपनी समस्याओं को हल करने के लिए क्या करना चाहिए यह सिद्दत से सोचने के लिए दिमाग लगाना पड़ेगा। अर्जुन मेरी बात सुनंने के लिए बड़ा ही बेताब था। उसने पूछा, “क्या रास्ता है सर?” अर्जुन मुझे कभी अंकल तो कभी सर कह कर बुलाता था।

    मैंने लिखा, “एक विवाह का और तरिका है, उसे कहते हैं गन्धर्व विवाह। तुमने शायद पढ़ा होगा की सदियों पहले राजा दुष्यंत ने शकुंतला से ऐसा ही विवाह किया था। इसी विवाह के आधार पर तो एक प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा गया था जिसका नाम है “अभिज्ञान शाकुंतलम”

    अर्जुन, “हाँ सर, दुष्यंत और शकुंतला के बारे में तो पढ़ा जरूर है। पर ज्यादा कुछ याद नहीं।”

    मैंने लिखा, “मेरी बात ध्यान से सुनो। ऐसी शादी मैंने भी मेरे शादीशुदा होते हुए भी मेरी मेहबूबा के साथ की है। वह भी शादीशुदा थी। जब एक मर्द और एक औरत एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं और एक दूसरेसे सम्भोग माने चुदाई करना चाहते हैं, पर सामाजिक या कोई और कारणवश शादी नहीं कर सकते और एक दूर से जायज सम्बन्ध रखना चाहते हैं तब उन दोनों का गन्धर्व विवाह करने को शास्त्रों में मान्यता दी गयी है। ऐसी शादी सच्चे प्यार का प्रतीक मानी जाती है…

    पत्नी को सिर्फ पति से और पति को सिर्फ अपनी पत्नी से ही प्यार हो यह जरुरी तो नहीं। ऐसे हाल में कई बार शादीशुदा प्रेमी प्रेमिका अपने प्यार को सिर्फ वासना के लिए ही ना मानते हुए चुदाई करने की कामवासना को एक औपचारिकता का जामा पहनाने के लिए ऐसा विवाह करते हैं जिसको सामाजिक वैधता नहीं है, पर यह एक औपचारिकता का स्वांग जरूर है। गन्धर्व विवाह कैसे करना यह सब मैं तुम्हें बता दूंगा। फिलहाल तुम आरती से कोई बात मत करो। मैं आरती से चैट कर सब ठीक कर दूंगा।”

    अर्जुन ने लिखा, “सर, अगर आपने यह कर दिया तो मैं जिंदगी भर आपका ऋणी रहूंगा। आप जो कहेंगे वह आपकी सेवा मैं करूंगा।”

    मैंने लिखा, “मुझे तुमसे कोई सेवा नहीं करवानी। पहले मुझे यह काम करने तो दो।”

    तुम सबने मिलकर मुझे एक पंडित का काम करने पर मजबूर कर दिया है यार।”

    अर्जुन ने मजाक करते हुए लिखा, “अंकल आप तो हमारी कहानी के सूत्रधार हो। अब आप विधाता का रोल कर रहे हो। हमार जिंदगी का भविष्य आप लिख रहे हो।”

    मैंने जवाब दिया, “अब मेरी टाँगें ज्यादा मत खींचो। मैं वैसे ही काफी लंबा हूँ।”

    मैं अर्जुन से चैट कर रहा था की मेरी मैडम की जोर से चिल्लाने की आवाज आयी, “अजी कंप्यूटर पर ही लगे रहोगे की खाना भी खाओगे? पता नहीं किसका भला करने में लगे हुए हो? अरे जितना समय आप दूसरों की चौधरीगिरि करने में लगाते हो उससे आधा ही समय अपने बिज़नेस में लगाते तो हम अब तक अरबपति बन गए होते। अब आ जाओ। खाना ठंडा हो रहा है।” मेरी दशकों की जीवन संगिनी नीना यह जानती थी की मेरे नेट पर कई दोस्त हैं और वह मुझसे कुछ न कुछ अपनी समस्याओं के बारे में राय लेते रहते हैं। मैं कहीं ना कहीं किसी ना किसी का भला करने के चक्कर में जुटा रहता हूँ। यह तो भगवान् ही जाने की मैं उनका भला कर रहा था या बुरा?

    श्रीमतीजी के वाक्यबाण के एक ही झटके से मैं सितारों की दुनिया से मिटटी पत्थर की दुनिया में आ गिरा। वैसे मेरी समाज में, मेरे दफ्तर में, और मेरे पाठकों में अच्छीखासी इज्जत है। जहां भी मैं जाता हूँ, मुझे लोग बड़े आदर सम्मान से पेश आते हैं और मेरी काफी तारीफ़ बगैरह करते रहते हैं। कई बार मैं सोचता हूँ की इतनी सारी प्रतिष्ठा मिलने के बावजूद भी मुझ में कोई घमंड या मिथ्याभिमान क्यों नहीं है? तब मुझे मेरी श्रीमतीजी का मेरी जिंदगी में कितना अहम् रोल यह है इसका एहसास होता है…

    अगर वह मेरी जिंदगी में ना होतीं, तो मैं अपने आपको सुपरमैन ही समझने लग गया होता। पर वह बार बार यह कह कर की, “तुम कुछ नहीं जानते। अगर मैं ना होती तो तुम्हारा क्या होता? तुम्हें कुछ भी नहीं आता।” बगैरह बगैरह कह कर मुझे यह महसूस कराती है की मैं कोई सुपरमैन नहीं कच्ची मिटटी का बना हुआ एक साधारण इन्सान ही हूँ।

    दूसरे दिन आरती मेरे मेसेज का इंतजार कर रही थी। मैंने जब नेट खोला तो आरती का मेसेज देखा। आरती ने लिखा था, “अंकल, अब मुझसे यह बर्दाश्त नहीं होता। रमेशजी मेरा सर खा रहे हैं। अर्जुन बार बार मुझसे पूछ रहा है, रमेशजी कब आएंगे? अब जल्दी आप मुझे अपना फैसला सुनाओ।”

    मैंने लिखा, “मेरी अर्जुन से काफी लम्बी चैट हुई है। देखो आरती, तुम्ही ने मुझसे कहा था ना की तुम कोई ऐसीवैसी औरत नहीं हो जो हरकिसी से चुदवायेगी? मतलब तुम कोई छिनाल औरत नहीं। सही है या गलत?”

    आरती ने जवाब दिया, “हाँ सही है।”

    मैंने लिखा, “अर्जुन भी यही कहता है। दरअसल अर्जुन तुम्हारी शादी के लिए कह रहा है इसके दो कारण हैं। पहला यह की अर्जुन कहता है की रमेश तुम्हें एक इज्जतदार औरत का दर्जा देना चाहता है। पत्नी को चोदने में कोई बुराई नहीं। वैसे ही तुम्हें भी जब तुम्हारी रमेश से शादी होगी तो रमेश से चुदवाने में कोई गलत, पाप या अपराध करने का भाव नहीं होगा। दूसरा और यह बात मेरी तुम ध्यान से सुनो की अर्जुन तुम्हें नईनवेली दुल्हन के रूप में किसी और से चुदवाते हुए देखना चाहता है। यह उसके दिमाग का एक फितूर है। यह मेरा निष्कर्ष है। क्या मेरी बात गलत है?”

    आरती ने कुछ झिझक से साथ लिखा, “हाँ अंकल आपकी दोनों बातें सही हैं। मैं भी कोई छिनाल नहीं हूँ जो जिस किसीसे चुदवाऊं। और यह भी सही है की अर्जुन के दिमाग में यह फितूर बचपन से ही है जब अर्जुन ने पड़ोस के लड़के की बीबी को गहनों से लदी हुई, सोलह श्रृंगार किये हुए उसके पति से चुदती हुई छुप कर देखि थी। पर अंकल यह सब तो ठीक है, पर मैं एक शादीशुदा हूँ और एक साथ दो पति से कैसे शादी कर सकती हूँ? क्या यह पाप नहीं है? कानूनन भी यह गलत है और समाज क्या कहेगा?”

    मैंने जवाब दिया, “इसका भी एक इलाज है मेरे पास।”

    फिर मैंने आरती को भी गन्धर्व विवाह के बारे में लिखा जो मैंने अर्जुन को लिखा था। मैंने आरती को लिखा की गंधर्व विवाह से विवाह होगा भी और नहीं भी होगा। उसके उपरांत मैंने आरती से एक और बात भी कही। मैंने लिखा, “आरती गन्धर्व विवाह ही नहीं सामाजिक रीती रिवाज से भी ख़ास परिस्थितियों में एक से ज्यादा पुरुषों से स्त्री का विवाह हुआ है।”

    आरती ने लिखा, “अंकल, मैंने आपको बता दिया है की वाकई में असली शादी तो मुझे करनी नहीं। मेरे लिए एक धर्मसंकट और भी है। अब रमेशजी आ गए हैं, तो मेरी तो बजायेंगे ही। मेरे पति अर्जुन ना सिर्फ मुझे रमेश से चुदवाना चाहते हैं। बल्कि वह मेरी रमेशजी से चुदाई होती हुई देखना भी चाहते हैं। यह मुझे हरगिज़ मंजूर नहीं…

    अब आप ही ऐसा रास्ता निकालिये की सांप भी मरे और लाठी भी ना टूटे। मतलब रीतिरिवाज से भी शादी हो पर ऐसी शादी हो जो शादी ना गिनी जाए। दुनिया के कोई भी कोने में कहीं भी ऐसा रिवाज हो तो चलगा। बस आप उन रीतिरिवाज को हमारे हिन्दुस्तानी ढाँचे में ढालदो और जो भी श्लोक बगैरह हों उन्हें आप अपने तरीके से सुनाना, ताकि वह विधिवत लगे…

    मैं चाहती हूँ की आप ही उस रीतिरिवाज को वीडियो कोंफेरिंसिंग करके पूरा करना। और रमेशजी से मेरी चुदाई हो तो अर्जुन मेरे सामने ना हो। अर्जुन को कैसे भी मनालो जिससे की उसे शिकायत ना हो। अब आप कैसे करोगे यह सब यह मैं नहीं जानती। आप ही जानो अब क्या करना है।”

    ऐसा कह कर आरती ने अपनी मुसीबत मेरे गले में डाल दी। मैं क्या करता? ने लिखा, “आरती, तुम चिंता मत करो। मैं कुछ ना कुछ सोचता हूँ और कुछ रास्ता निकालता हूँ।”

    इसके बाद मैंने इंटरनेट पर और शहर की लायब्रेरी में काफी रिसर्च की। सारी दुनिया की शादियां, गन्धर्व विवाह और एक स्त्री दो पुरुष से शादी कैसे करती है बगैरह के बारे में काफी छानबीन की। तक़दीर से दक्षिण पूर्व पेसिफ़िक क्षेत्र में पोलीनेसिअन टापुओं में एक छोटी सी प्रजाति है जो “वाहु” नाम से जानी जाती है। इस प्रजाति में स्त्री पुरुष की शादी के बारेमें कुछ अलग से रीतिरिवाज प्रचलित हैं, उनको मैंने पढ़ा तो मुझे लगा की वह रीतिरिवाज करने से शायद यह मामला समाधान की और जा सकता है। मैंने फिर तसल्ली से बैठ कर रमेश और आरती की शादी के बारे में जो सोचा था उसकी रूपरेखा लिखी।

    जब आरती को मैंने मेरे आइडिया के बारे में बताया तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। उसने कहा, “अंकल यह बेस्ट है। बस इसे ही आप अमली पजामा पहना कर हमारा विवाह कराओ। यार मानना पडेगा। आप गजब हैं! आपके पास हर सवाल का जवाब है। आप ऐसे आइडिया कहाँ से लाते हो?”

    मैंने कहा, “सोचना पड़ता है। मेहनत करनी पड़ती है। आखिर मैं फीस किस चीज़ की लेता हूँ?”

    शायद मेरी बात से आरती चौंक गयी। उसने पूछा,, “फीस? अंकल आप हम से फीस लेंगे? क्या फीस लेंगे, अंकल?”

    मैंने लिखा, “जब मिलेंगे तो तो तुम मुझे गाल पर किस करना। बस वही मेरी फीस होगी।”

    आरती ने लिखा, “गाल पर क्यों अंकल आपको तो मैं आप जहां कहोगे किस करुँगी। पर आप ने तो अब मुझे अपनी बेटी बनाया है तो मैं और क्या कर सकती हूँ?”

    मैंने जवाब दिया, “बस गाल पर एक पप्पी देना। और कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं हैं बेटी। अब तुम बेधड़क निश्चिन्त हो कर रमेश को घर आने दो। तब तक क्या करना है यह मैं अर्जुन को समझा दूंगा।”

    आरती ने नेट के दूसरे छोर पर जरूर राहत की साँस ली होगी। आरती ने लिखा, “ओके अंकल। आप बहुत ही अच्छे हो। आपने तो मेरे मन में जो सबसे बड़ी दुविधा थी उसे सुलझा दिया। अब मुझे रमेशजी को बुलाने में कोई झिझक नहीं रहेगी।”

    मैं कहा, “यह कहो की अब अब तुम्हें रमेश से चुदवाने में भी कोई झिझक नहीं होगी। बोलो।”

    आरती शायद उस वक्त जरूर मुस्कुरा रही होगी। उसने जवाब दिया, “हाँ हाँ अंकल। मैं मानती हूँ की अब मुझे रमेशजी से चुदवाने में कोई झिझक नहीं होगी। मैं तैयार रहूंगी रमेशजी से चुदवाने के लिए। बस अब तो आप खुश? अब मैं चलूँ? बाई।”

    मैंने लिखा, नहीं आरती, इतनी जल्दी नहीं। थोड़ा रुको।”

    आरती, “अब क्या है अंकल?”

    मैंने कहा, “देखो, प्यार और चुदाई का मजा तब आता है जब उसमें कुछ रुकावट हो। अगर तुमने रमेश से सीधा सीधा हाँ कह दिया तो उसे वह मजा नहीं आएगा जो आखिरी लम्हों में कुछ रुकावट पार करेगा तो आएगा। अब जब तुम तैयार हो ही गयी हो तो थोड़ा मजा लेते हैं। रमेश की थोड़ी उत्तेजना और उत्सुकता बढ़ाते हैं।”

    मुझे लगा की आरती की उत्तेजना भी यह सुन कर काफी बढ़ गयी होगी। उसने फ़ौरन जवाब दिया, “हाँ अंकल, बात आपकी सही है। पर उसके लिए क्या करना होगा?”

    मैंने लिखा, “तुम रमेश को मेसेज करो की अभी तुम रमेश के बारे में कुछ भी तय नहीं कर पा रही हो। तुम्हें सोचने के लिए कुछ वक्त चाहिए। ऐसा लिखने से रमेश एकदम अधीरा हो जाएगा। वह अब तुम्हारे बगैर रह नहीं सकता। वह दिन रात तुम्हें चोदने के सपने देखता रहता है। अब वह तुमसे गिड़गिड़ायेगा। काफी गिड़गिड़ायेगा तब फिर तुम लिखना,ओके ठीक है आ जाओ। थोड़ा ड्रामा करना अच्छा है।”

    पढ़ते रहिये, यह कहानी आगे जारी रहेगी..

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