पड़ोसन बनी दुल्हन-14

This story is part of the Padosan bani dulhan series

    सेठी साहब से चुदवाते हुए आँखें मूंदे हुए भी भी चोरी से पलकोँ के एक कोने से जब सेठी साहब मेरे अंदर अपना वह जबरदस्त लण्ड पेल रहे थे तब मैं सेठी साहब के चेहरे के भाव भाँपने की कोशिश कर रही थी। मुझे सेठी साहब के निचे लेटे हुए भी जब सेठी साहब अपना लण्ड सम्हाल कर घुसेड़ना निकालना यह कर रहे थे उनके चेहरे पर एक अजीब से उन्माद की छाया नजर आ रही थी।

    मेरे लिए उनके जहन में जो प्यार था वह उनके चेहरे के भाव से स्पष्ट दिख रहा था। पुरुष और स्त्री के बिच की यह चुदाई की प्रक्रिया भी भगवान ने अजीब पैदा की है। जब तक चुदाई ना हो तब तक पुरुष और स्त्री एक दूसरे को मिलने के लिए तिलमिलाते रहते हैं। जब चुदाई शुरू हो जाती है तो फिर चुदाई के अलावा कुछ भी नहीं दिखता।

    मैंने पहली बार किसी गैर मर्द से चुदवाया था। गैर मर्द से चुदाई के बारे में ज्यादा अनुभवी ना होने के कारण मैं यह तो नहीं कह सकती की सेठी साहब की वह चुदाई दूसरे मर्दों के मुकाबले कैसी थी, पर जो कुछ भी मैंने महसूस किया मैं इतना जरूर कह सकती हूँ की शायद ही कोई मर्द मुझे इतना आत्मसंतोष दे पाता जितना सेठी साहब ने मुझे उस पहली चुदाई में और उसके बाद हुई अनेकानेक चुदाईयों में दिया।

    सेठी साहब के लण्ड घुसाने के फ़ौरन बाद जब मैं उस शुरू के तीखे मीठे दर्द से उभरी, तो मैंने महसूस किया की मैं झड़ चुकी थी। उस चुदाई के दरम्यान मैं सेठी साहब के लण्ड को थोड़ा सा भी महसूस करती और मेरा छूट जाता। उस रात सेठी साहब ने पहले राउंड में मुझे बिना रुके शायद आधे घंटे तक चोदा होगा। उस बिच मैं कम से कम चार बार झड़ चुकी थी।

    पर सेठी साहब थे की थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। मुझे सेठी साहब का यह टेम्पो बहुत ही भाया। मेरे पति तो एक बार शुरू करते तो फिर उन्हें खतम होने में समय नहीं लगता था। हर बार जब जब मैं झड़ती तो सेठी साहब रुक कर झुक कर अपना लण्ड मेरी चूत में से ना निकालते हुए मुझे खूब सारा लाड और प्यार करते। मुझे सेठी साहब से चुदवाने में जो गर्व और स्त्री होने का अभिमान महसूस हुआ मैं उसके लिए सेठी साहब की सदा सर्वदा ऋणी रहूंगी।

    आधे घंटे के बाद भी सेठी साहब ने अपना वीर्य जस के तस ही रखा हुआ था। मेरी नजर अनायास ही कमरे में दिवार पर टंगी घडी पर जा पहुंची। रात के बारह बज रहे थे।

    सेठी साहब ने मुझे घडी की और देखते हुए पकड़ लिया। उन्होंने ने मेरे चेहरे से देखा की मैं कुछ थक चुकी हूँ। सेठी साहब की पूरी चुदाई के दरम्यान जो एक बात हमेशा मौजूद थी वह थी उनकी आँखों में मेरे लिए अद्भुत प्यार के भाव।

    अक्सर जब औरत एक मर्द से चुदवाती है तो मर्द और औरत, दोनों का ध्यान अपने लिंगों पर होता है। दोनों अंगों के बिच में चमड़ी के घर्षण से पैदा होता हुआ उन्माद का अधिक से अधिक आनंद वह दोनों उठाना चाहते हैं। ऐसा होना भी चाहिए। हम दोनों के दरम्यान भी ऐसा ही था।

    पर सेठी साहब की प्यार भरी आँखें पूरी चुदाई के दरम्यान मेरी आँखों को बड़े प्यार से और अपनेपन से ताकती रहतीं थीं। उनकी आँखें मुझे पूरी चुदाई के दरम्यान शायद यह एहसास दिलाना चाहतीं थीं की वह सिर्फ मेरे बदन को नहीं पर मेरी पूरी हस्ती को बेतहाशा प्यार करते हैं।

    मुझे थकी हुई महसूस कर वह बोले, “चलो थोड़ी देर आराम कर लो। चाय पीते हैं।”

    मैंने यह दिखाने की कोशिश भी नहीं की की मैं थकी नहीं हूँ। मैंने कुछ बहादुरी का स्वांग करते हुए कहा, “सेठी साहब आज रात मुझे पूरी रात ही आपके साथ गुजारनी है। मैं एकदम तैयार हूँ। पर चलिए अगर आपकी चाय पिने की इच्छा है तो यह ही सही।”

    मुझे बिना बताये मेरी भाभी ने पहले से ही सेठी साहब के कमरे के कोने में एक छोटे से प्लेटफार्म पर गैस स्टोव पर चाय का सारा सामान और कुछ बिस्कुट रखे हुए थे। मेरी भाभी बड़ी ही समझदार थी। पता नहीं पर शायद उसने ताड़ लिया होगा की सेठी साहब के साथ मेरी क्या सेटिंग थी।

    जब हम सब रात का खाना खा कर फारिग हुए तब भाभी ने मुझे बाजू में बुला कर मेरे कानों में कहा, “ननदजी, तुम्हारे सेठी साहब कुछ उखड़े उखड़े से लगते हैं। तुम ऊपर जाओ और उन्हें मनाओ, वरना सुबह उठते ही कहीं वह भागने का ड्रामा शुरू ना कर दें। मैंने सेठी साहब के कमरे में चाय नाश्ते का भी इंतजाम कर रखा है। क्या पता शायद रातमें तुम्हें उन्हें मनाते हुए चाय बनाकर पिलानी ही पड़ जाए।”

    भाभी की यह बात सुन कर मुझे बड़ा ही झटका सा लगा। मैं डर गयी की कहीं मेरी भाभी को मेरे और सेठी साहब के सम्बन्ध के बारे में पता ना चल जाए।

    पर भाभी ने मेरे कन्धों पर हाथ रखते हुए मेरे कानों में कहा, “ननदजी, फ़िक्र ना करो। घर में किसी को कुछ भी पता नहीं है और ना ही पता चलेगा। मैं जो तुम्हारे साथ हूँ। अरे यही मौक़ा होता है हम वफादार बीबियों को मौके पे चौका लगानेका। वरना तो रोज वही मर्द, वही बिस्तर, दो धक्के मारे और सो गए। वही सब कुछ। समझ गयी ना? अभी आपको मौक़ा है, पूरी तीन रात। जाओ लगाओ मौके पे चौका। मैं जानती हूँ सब, तुम बिलकुल फ़िक्र ना करो। मैं भी तुम्हारी जात की ही हूँ। जब मौक़ा मिले तो चौका मारने से कतराती नहीं हूँ। अभी तुम्हारा मौका है, जाओ।”

    मेरी भाभी की बात सुन कर मैं ठिठुर कर रह गयी। उस समय मुझे पता नहीं था की भाभी के कहने का क्या मतलब था। पर हाँ, मुझे यह यकीन तो हो गया की सब कुछ जानते हुए भी भाभी मेरे और सेठी साहब के बारे में कुछ नहीं बोलेगी। कहीं ना कहीं वह उलटा मुझे इशारा कर रही थी की मुझे क्या करना चाहिए। जब मैं चुप रही तो मुझे ऊपर भेजते हुए धक्का मारते हुए बोली, “हायरे! कितने हैंडसम हैं सेठी साहब! भाभी, आप कमालकी नजर रखती हो। मानना पडेगा! क्या हाथ मारा है!”

    फिर भी मैं जब ना हिली तो कुछ तंग सी आकर भाभी झुंझलाहट में बोली, “आप जाती हो या आपकी जगह मैं चली जाऊं? आप के भाई को मैं समझा दूंगी। जरुरत पड़ी तो आजकी रात तुम्हारे भैया अकेले सो जाएंगे। फिर यह मत कहना की मैंने तुम्हारे मुंह से निवाला छीन लिया।” फिर मेरी और मुस्कुराती हुई नजर कर बोली, “अब ज्यादा ड्रामा मत करो, जाओ और फ़तेह करो। जाकर देखो कहीं मियाँ गुस्से में लाल पिले ना हो रहे हों की अब तक क्यों नहीं आयी?”

    भाभी से बात करने के बाद मेरा इरादा और पक्का हो गया। भाभी ने मेरी हिम्मत बढ़ा दी थी। भाभी ने बातों ही बातों में इशारा कर ही दिया की शायद भाभी की भी कहीं ना कहीं अपनी सेटिंग चल रही थी। तब कहीं जा कर माँ और पापा से बात कर मैं मुन्ने को लेकर जब ऊपर की मंजिल की सीढ़ियाँ चढ़ने लगी तो मैं पूरी तरह से अभिसारिका बन चुकी थी।

    मैं अपने पीया से मिलने के लिए बेताब हो रही थी। मैं सेठी साहब से चुदवानेका पहला सोपान पार कर चुकी थी। भाभी की बात सुन कर मुझे लगा की मैं भी मेरी भाभी की टोली में शामिल होने जा रही थी।

    एक शादीशुदा औरत ही जान सकती है की ऐसा सपोर्ट मिलने पर एक औरत जो किसी और मर्द से चुदवाने के लिए अपना मन बना रही हो उसे कितनी तसल्ली मिलती है। दूसरे दिन सुबह जब मैं अपनी भाभी से मिलूंगी तो वह मुझे चोरीछुप्पी मेरी रात की चुदाई के बारे में जरूर पूछेगी तब मैं उनको क्या कहूँगी, यह सोच कर ही मैं परेशान हो रही थी। आधी रात को चाय बनाते हुए यह सब खयालात मेरे जहन में दौड़ रहे थे।

    चाय बनाने के लिए मैं जब उठ खड़ी हुई तो मैंने बिस्तरे के कोने में रखी मेरी साड़ी खिंच ली और आननफानन में अपने नंगे बदन के इर्दगिर्द लपेट ली। सेठी साहब चाहते थे की मैं नंगी ही उनके लिए चाय बनाऊं।

    पर आखिर में उन्होंने मुझे साड़ी लपेटने दी। पर चाय बनाना और ऊलजलूल लिपटी हुई साड़ी को सम्हालना दोनों काम एकसाथ करने काफी मुश्किल होते हैं। मेरी साड़ी भी तो फिसलन वाली थी। कई बार मेरा पल्लू खिसक जाता और मेरे स्तन नंगे हो जाते।

    सेठी साहब पलंग के एक छोर पर बैठे बैठे मेरी यह जद्दोजहद मुस्कुराते हुए देखते ही रहे। एक बार तो मेरी साड़ी मेरी कमर से खिसक कर पूरी निचे गिर गयी और मैं नंगी सेठी साहब के सामने खड़ी हो गयी। सेठी साहब ने उठ कर मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया और फिर से कुछ पलों के लिए प्यार करते रहे। पुरे नंगधंडंग सेठी साहब और उनका हवा में लहराता हुआ वह डरावना लण्ड जिसके ऊपर सेठी साहब ने मुझे अपनी गोद में बिठाया। यह सब मेरे लिए एक सपने के समान था। आज जब मुझे वह पल याद आते हैं तो मेरे रोंगटे रोमांच से खड़े हो जाते हैं।

    चाय पिने के बाद सेठी साहब कुछ रोमांटिक मूड में दिखे। मैंने चाय बनाते हुए जो साडी आननफानन में मेरे नंगे बदन पर लपेटी हुई थी उस आधे नंगे बदन के हालात में मुझे अपनी लाज छिपाने की कोशिश करते हुए देख वह काफी उत्तेजित हो उठे।

    मुझे पलंग पर खिंच सेठी साहब ने मुझे अपनी गोद में बिठा दिया और मुझसे अठखेलियां करने लगे। मेरी लिपटी हुई साडी के अंदर हाथ डाल कर वह मेरे स्तनोँ को प्यार से सहलाने लगे। स्तनों को सहलाते हुए मेरी आँखों में आँखें डालकर बोले, “टीना, मैं सच कह रहा हूँ, मैं तुमसे कभी दूर नहीं रह पाउँगा। सुषमा मेरी जान है पर तुम ने मुझे ऐसा प्यार दिया है की मुझे तुमने अपना ग़ुलाम बना दिया है।”

    मैंने सेठी साहब के लण्ड को अपने हाथों में सहलाते हुए उनके होठों पर एक हलकी सी चुम्मी देकर कहा, “सेठी साहब, मैं आपकी दूसरी बीबी हूँ। सुषमाजी का आप पर पहला हक़ है। मेरे लिए और मेरे पति के लिए भी आप और सुषमाजी दोनों हमारी जान हैं। अभी जब हम दोनों यहां एक दूसरे से प्यार कर रहे हैं तो क्या पता सुषमाजी और राज भी शायद यही कर रहे हों?”