Nayi Dagar, Naye Humsafar Episode 3

This story is part of the Nayi Dagar, Naye Humsafar series

    अब तक के सारे प्रयास विफल हो चुके थे। मैं अपने बॉस को मेरी तारीफ़ करने के लिए मजबूर नहीं कर पा रही थी।

    धीरे धीरे मुझे कोफ़्त होने लगी थी। एक दिन सुबह तैयार होते वक़्त सोचा आज तो वो मिनी स्कर्ट पहन ही लेती हु। पर मन में कही एक डर भी था अगर इससे भी राहुल नहीं पिघला तो ख़ामखा दूसरे मर्दो को जरूर मजा मिल जायेगा।

    इतने समय में मेरा राहुल से अच्छा सामंझस्य हो गया था और उसका मेरे पर भरोसा भी बढ़ गया था। ये सोचते हुए एक दूसरा धांसू प्लान मेरे दिमाग में आया।

    मैं अपना सफ़ेद पतला टाइट शर्ट पहना मगर अंदर अपना ब्रा नहीं पहना। उस शर्ट का एक बटन खोला और फिर दो बटन खोल कर देखे, दो में कुछ ज्यादा ही क्लीवेज दिखने लगा था तो मैंने एक बटन ही खुला रखा और प्लान के मुताबिक एक चेन से लगा पेंडेंट पहन लिया।

    मैंने वो स्कार्फ़ पहन अपना सीना ढक दिया और ऑफिस पहुंच गयी। राहुल के ऑफिस पहुंचते ही इंतजार करने लगी कब वो काम से मुझे बुलाये। उसका बुलावा आया भी। मैंने अपना स्कार्फ़ निकाला और शर्ट का ऊपर का एक बटन खोल दिया। शर्ट को वहा से थोड़ा हटा कर अपना थोड़ा सा क्लिवेज दिखाया और थोड़ा कांपते हुए उसके केबिन में दाखिल हुई .

    पता था हमेशा की तरह वो मेरी तरफ ध्यान नहीं देगा। मैं फाइल समझने के लिए उसकी कुर्सी के पास गयी और काम ख़त्म होते ही मैंने अपना प्लान शुरू किया।

    मैं: “राहुल, आपको कुछ दिखाना हैं। ”

    वो मेरी तरफ बिना घूमे ही फाइल में देखते हुए बोला “क्या?”

    मैं: “फाइल में नहीं इधर देखो।”

    वो कुर्सी पर बैठा था और मैं खड़ी थी तो उसकी तरफ झुकते हुए मैंने अपनी दो उंगलियों में अपना पेंडेंट पकड़ा। वो मेरी तरफ घुमा और मेरे हाथ के इशारे के अनुसार मेरे सीने पर नजर गयी।

    मैं: “मेरे हस्बैंड ने मुझे ये पेंडेंट गिफ्ट दिया हैं, कैसा लगा?”

    पहली बार उसकी नजर मेरी आँखों के अलावा मेरे शरीर के किसी और हिस्से पर दो सेकण्ड्स से ज्यादा रही थी। उसकी आँखें थोड़ी बड़ी हुई। शायद मेरे झुकने से मेरे शर्ट के खुले हिस्से से उसको मेरे बिना ब्रा के मम्मे की हलकी सी झलक मिल चुकी थी। पुरे पांच सेकण्ड्स के बाद उसकी नजरे वहा से हटी।

    राहुल: “नाइस, अच्छा हैं। कल की मीटिंग की तैयारी कर लेना। ”

    ये बोल कर वो फिर अपने लैपटॉप लगा। मैं वापिस अपने क्यूबिकल में लौट आयी।

    मुझे नहीं पता मैंने अपना जो अंगप्रर्दशन किया वो ठीक था या नहीं, मेरे ऊपर बस ये भूत सवार था कि मैं राहुल की उस तपस्या को भंग करना चाहती थी। इतने दिनों के प्रयास के बाद आखिर मैंने उसको विचलित कर ही दिया था । इसके लिए मुझे भले ही अनुचित तरीके का उपयोग करना पड़ा।

    मैं अपनी जीत पर बहुत खुश हुई। पर कही ना कही मेरे दिमाग में दो विरोधी बातें चल रही थी। एक ये कि मैंने जो भी किया वो गलत तरीका था, एक छल था। दूसरा ये कि उसने अभी भी मेरी खूबसूरती या कपड़ो की तारीफ़ नहीं की थी पर मेरे पेंडेंट की तारीफ की थी। वो तो उसको अच्छा नहीं लगा होता तो भी करता क्यों कि मैंने ही तो उसको पूछा था। तारीफ़ तो वो होती हैं जो सामने वाले से बिना पूछे मिल जाये।

    कही राहुल को पता तो नहीं चल गया होगा कि मैं ऐसी हरकत क्यों कर रही हु। अगर पता चला होगा तो मेरे लिए बहुत बुरा होगा। मेरी अच्छी बनी बनाई इमेज ख़राब हो जाएगी।

    मैंने ठरकी बॉस से बचने के लिए ये वाली नौकरी चुनी थी मगर अब मैं खुद राहुल जैसे सीधे इंसान को भ्रष्ट बनाने में लगी थी। मैंने फैसला कर लिया कि मैं अब और ऐसे प्रयोग नहीं करुँगी।

    मैंने जो कपड़े ख़रीदे थे उनको पहनना जारी रखा पर बटन हमेशा बंद और स्कार्फ़ हमेशा सीने को ढके रहता था। जो चल रहा था मैंने उसी में सब्र कर लिए था। इस तरह कुछ समय और निकल गया गया और राहुल पहले की तरह जितनी बात करनी होती उतनी ही करता, उस पैंडेंट वाली घटना से उस पर कोई असर नहीं हुआ लगता था जो मेरे लिए भी ठीक था।

    दो महीने बाद ऑफिस में एक हलचल होनी शुरू हो गयी थी। पता चला कंपनी का सालाना उत्सव होने वाला हैं। मेरे लिए तो ये पहली बार था पर बाकी के सहकर्मी काफी उत्साहित थे। बार बार इस चीज का जिक्र निकल ही आता था। हर बार की तरह इस बार भी ये उत्सव राहुल के फार्महाउस पर होनेवाला था।

    मुझे बाकी लोगो की उत्सुकता देख थोड़ी हैरानी हुई, शायद काम के बाद एक मुफ्त की पार्टी और मजे करने को मिले तो लोग खुश ही होते हैं। हालांकि मुझे इस उत्सव से कोई लेना देना नहीं था और न ही कोई उत्साह था, शायद राहुल के साथ काम कर कर के मैं भी उसके जैसी वर्कहोलिक बन गयी थी।

    उस पार्टी में अभी भी कुछ दिन बचे थे और बाकी लोग ये जानने में व्यस्त थे कि कौन कौन अपनी फॅमिली ला रहा हैं क्यों कि फॅमिली को भी ला सकते थे। पार्टी के दो दिन पहले रात को मेरे मन में एक और ख्याल आया और मेरा पुराना शरारती दिमाग फिर दौड़ने लगा। मैं जब भी राहुल से मिली हु तो ऑफिस में या फिर किसी क्लाइंट मीटिंग में जाते हैं तो भी ऑफिस के काम से। ये पहला मौका होगा जब राहुल बिना ऑफिस के काम के हमसे मिलेगा ।

    मैंने सोचा शायद यही सबसे अच्छा मौका हो, जब राहुल काम के बारे में ना सोच थोड़े हलके मूड में होगा और उसके मुँह से मेरी तारीफ़ निकल जाए। मेरे मन में एक आशा की लहर जागी, जिस चीज की उम्मीद खो कर मैंने कोशिशे बंद कर दी थी उसका शायद सही वक्त आ गया था।

    मैंने सोच लिया कि मैं अपने पति अशोक को पार्टी में साथ लेकर नहीं जाउंगी। मुझे क्या पहनना हैं और क्या बात करनी योजना बनाने लगी। ये मेरे लिए आखिरी मौका हो सकता हैं, वरना अगली सालाना पार्टी के लिए फिर एक साल इंतज़ार करना होगा।

    आखिर वो शुक्रवार की पार्टी की रात भी आयी। अशोक को पहले ही बोल दिया था कि आज रात घर में खाना नहीं बनेगा तो वो बच्चे को लेकर अपनी मम्मी के यहाँ चला गया। मैं सब मनचाहे कपडे पहन सकती थी, हालाँकि अशोक की तरफ से कोई पाबंदी नहीं थी मेरे कोई भी कपड़े पहनने को लेकर।

    मैंने गुलाबी साड़ी निकाली और नूडल स्ट्रैप वाला ब्लाउज निकाला जिसका वी शेप का गला बहुत गहरा था और मेरे मोटे मम्मो का क्लिवेज दिख रहा था। ब्लाउज आगे और पीछे काफी खुला था तो उसमे ब्रा भी नहीं पहन सकते थे। साड़ी को नाभी से चार इंच नीचे बांधा।

    आज मैं कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहती थी, मुझे आज वो तारीफ़ लेनी ही थी उस इंसान से जिसने मुझे इतने महीनो से तड़पाया था एक तारीफ़ सुनने के लिए। मैंने दसियो बार अभ्यास किया कि मुझे कितनी साड़ी पेट और सीने से हटानी हैं कि सामने वाला कुछ देख कर मेरी तारीफ़ कर पाए।

    राहुल के साथ साथ मुझे दूसरे पुरुषो का भी सामना करना था तो थोड़ा ध्यान भी रखना था। दिखाने की चीज सिर्फ राहुल के लिए थी बाकी समय मुझे पूरा ढक कर रहना था। मैंने साडी दोनों कंधो पर डाल अपने दिखाऊ सीने और नंगी पीठ को ढक लिया था और साड़ी को पेट पर खिंच कर ढक लिया था।

    कितना भी ढक लू पर मेरे साड़ी में लिपटे पतले सेक्सी फिगर को कोई अनदेखा कैसे कर सकता था। पार्टी में पहुंचते ही जैसे सारे मर्द मेरी ओर ही देख रहे थे। जो सामने आया मेरी साड़ी और खूबसूरती की तारीफ़ कर रहा था। पर मुझे ऐसी सौ तारीफों की परवाह नहीं थी, इसके बदले मुझे बस वो एक तारीफ़ मिल जाये राहुल के मुँह से।

    इतनी भीड़ में राहुल शुरुआत में कही दिखाई नहीं दिया। तेज संगीत बज रहा था और सभी लोग खाने पीने और नाचने के मजे ले रहे थे। मेरी नजरे लगातार भीड़ में राहुल को खोज रही थी।

    जो पुरुष सहकर्मी शादीशुदा थे और बीवियों के साथ आये थे वो दूर से ही मुझे देख तरस रहे थे पर जो कुंवारे थे या बीवियों को घर रख आये थे वो आ आकर मेरे साथ नाचने का प्रस्ताव बड़ी उम्मीद से रख रहे थे। पर मैंने उन सब को मना कर दिया।

    थोड़ी देर में संगीत अचानक बंद हो गया और राहुल की आवाज माइक पर सुनाई दी। सब लोगो की नज़रे राहुल की तरफ गयी। उसने टीशर्ट और जीन्स पहना था और बहुत रिलैक्स लग रहा था।

    पहली बार उसको केजुअल कपड़ो में देख एक सुखद अहसास हुआ। हमेशा उसको ऑफिस में सुटेड बूटेड देखने की आदत थी तो आज अलग ही आकर्षक लग रहा था।

    पढ़ते रहिये.. क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी..

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