Nayi Dagar, Naye Humsafar – Episode 1

This story is part of the Nayi Dagar, Naye Humsafar series

    जब एक पत्नी का भरोसा अपने पति से उठ जाता है तो एक बहुत बड़े बदलाव की जरुरत महसूस होती हैं। मैंने भी फैसला कर लिया कि मुझे अपनी ज़िन्दगी खुद जीना सीखना होगा इसके बजाय कि पति पर निर्भर रहु।

    कल का क्या भरोसा, मुझे मेरा पति छोड़ कर किसी और के साथ शादी कर ले या मेरा इस्तेमाल कर अपना मतलब निकाले। मुझे अपनी ज़िन्दगी की एक नयी पारी शुरू करनी थी और मैंने अपने लिए नौकरी ढूढ़ना शुरू कर दिया।

    मेरे पति अशोक ने मेरी नौकरी ढूंढने में मदद देने की कोशिश की पर मैंने मना कर दिया, मुझे अपनी योग्यता से बिना सिफारिश की नौकरी चाहिए थी।

    मुझे ऐसी जगह नौकरी चाहिए थी जहा मुझे मेरी खूबसूरती को देख कर काम नहीं दिया जाये, कोई भी ठरकी बॉस मेरे सेक्सी फिगर को देख कर मुझे काम दे सकता था पर मुझे अब किसी का शिकार नहीं बनना था।

    सेक्रेटरी के जॉब के लिए मेरी शैक्षिक योग्यता देखे बिना सिर्फ मेरे शरीर को देखते ही दो तीन जगह नौकरी मिल भी गयी, पर उन ठरकी बॉस और मैनेजर की नीयत उनकी आँखों में ही दिख गयी और मैंने वहा काम ना करना ही ठीक समझा।

    छोटे शहर में महिला बॉस मिलना बहुत मुश्किल था। मैंने कुछ बड़े ऑफिस में काम ढूंढना भी जारी रखा, थोड़ा समय और लग गया और मुझे वो जगह शायद मिल गयी जो मेरे मुताबिक थी।

    मेरे साथ कुछ और उम्मीदवारो को भी लिखित परीक्षा से होकर गुजरना था, जिसके बाद साक्षात्कार का राउंड होने वाला था। जगह सिर्फ एक खाली थी और उम्मीदवारी थे कई।

    मैंने अपनी मेहनत में कोई कमी नहीं छोड़ी थी और दो लोग़ जिनको साक्षात्कार राउंड के लिए चुन लिया गया उनमे मैं भी थी। साक्षात्कार कंपनी का बॉस राहुल खुद लेने वाला था जिसके लिए सेक्रेटरी चाहिए थी।

    मेरे साथ जो लड़की चुनी गयी थी वो एक कुंवारी लड़की थी जो दिखने में अच्छी खासी थी और छोटे कपड़े पहन कर आयी थी। मुझे लग गया कि अगर ये भी दूसरे ठरकी बॉस जैसा होगा तो मेरा चुना जाना मुश्किल हैं।

    हम दोनों को एक साथ इंटरव्यू के लिए अंदर बुलाया गया।

    राहुल एक पच्चीस तीस की उम्र का नौजवान था, मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतनी कम उम्र का बॉस भी हो सकता हैं। बॉस शब्द सुनते ही मुझे एक अधेड़ उम्र का ठरकी मर्द ही दिमाग में आता हैं।

    राहुल की पिछली सेक्रटरी अचानक काम छोड़ कर चली गयी थी और उसको तुरंत किसी की जरुरत थी। पुरे साक्षात्कार के दौरान उसने एक नजर भी हम दोनों नारियो पर नहीं डाली बस हमारे दस्तावेज़ देखता रहा और सवाल पूछता रहा।

    मेरे लिए ये बहुत अलग अनुभव था जब कोई मर्द खूबसूरत औरत को नहीं देख रहा था। मुझे भी ऐसी ही जगह पर काम की तलाश थी पर बीच का रौड़ा वो लड़की थी जो मेरी प्रतियोगी थी।

    राहुल को हम दोनों की शैक्षिक योग्यता पर कोई शक नहीं था उसने हमसे सिर्फ हमारी महत्वकांक्षा पूछी और हम ये जॉब क्यों करना चाहते हैं। मेरा लक्ष्य साफ़ था कि मुझे अपने पैरो पर खड़ा होना हैं और बहुत आगे जाना हैं क्यों कि ज़िंदगी में बाकी सब तो वैसे भी पा लिया हैं।

    मेरे साथ वाली उम्मीदवार के साथ ये समस्या था कि वो एक दो साल से ज्यादा प्रतिबद्धता नहीं दे सकती थी क्यों कि उसकी शादी होने वाली थी और फिर अपने होने वाले पति के साथ उसे काम छोड़ कर दूसरे शहर जाना था।

    ये बात मेरे पक्ष में आ गयी और मुझे वो नौकरी दे दी गयी। मैं बहुत खुश हो कर घर आयी, अशोक को इतना फर्क नहीं पड़ा। मुझे खुश देख उसने मुझे बधाई जरूर दी। उसके लिए तो अच्छा ही था, दिन भर मेरे घर पर नहीं होने से उसको मौका मिल जायेगा अपनी किसी महिलामित्र को घर ला अपने अरमान पुरे करने का।

    मुझे इस सब से अब जैसे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था, ये उसकी ज़िन्दगी हैं वो कैसे भी जीए पर मुझे अपनी ज़िन्दगी अपनी शर्तो पर जीनी थी।

    मैंने ऑफिस में पहनने के हिसाब से कपड़ो की शॉपिंग कर ली और जल्द ही ऑफिस ज्वाइन कर लिया। वहा के महिला स्टाफ से मेरी पहले ही दिन अच्छी खासी बात हो गयी और मैंने अपना काम भी समझ लिया था।

    मेरी सुन्दरता देख जरूर पुरुष कर्मचारी मुझसे बात करना चाह रहे थे पर मैंने शुरू से ही ऐसी अपेक्षा बना दी थी कि मैं किसी के झांसे में फंसने वाली नहीं हु।

    एक दो बार राहुल के केबिन में जाने को भी मिला पर वो सिर्फ एक पल के लिए अपना सर उठा कर देखता कि कौन हैं और फिर नीचे टेबल पर अपना काम करता हुआ बात करता था जैसे सामने वाले की तो कोई औकात नहीं हैं।

    या तो वो अपना बॉस होने का रौब दिखा रहा था या काम में सचमुच बिजी था या मुझे नया आया देख मुझे इम्प्रेस करने की कोशिश कर रहा था।

    पर मेरे लिए तो अच्छा ही था, मैंने जो अपने लिए नयी ज़िन्दगी चुनी थी मुझे ऐसा ही बॉस चाहिए था। उसके जो भी इरादे हो मैं उससे पटने वाली नहीं थी।

    दूसरे सहकर्मियों से पता चला कि पहले कंपनी का बॉस राहुल के पिता थे, उनकी तबियत ख़राब रहने लगी तो राहुल ने कम उम्र में ही उनका सारा कारोबार संभाल लिया था। उसके आने के बाद बिज़नेस और अच्छा चलने लगा था।

    मुझे भी गर्व हुआ कि मैं ऐसे बॉस की सेक्रटरी हु, हम दोनों ही बहुत महत्वाकांक्षी थे। धीरे धीरे समय गुजरते हुए दो महीने हो गए पर राहुल के बर्ताव में कोई फर्क नहीं आया।

    वो अब भी नज़रे उठा कर बात नहीं करता था। जब कोई बात समझानी होती थी तब भी सिर्फ मेरी आँखों में देखता था जरा भी नीचे की तरफ मेरा फिगर देखने की कोशिश नहीं की।

    मुझे वो एक सामान्य मर्द नहीं लगा, वरना मुझ जैसी अच्छे फिगर वाली नारी को एक बार देख कर उसको निहारता ना रहे ये मुमकिन नहीं था। मुझे लगा जरूर इसकी बीवी बहुत खूबसूरत होगी इसलिए दूसरो की तरफ नजर नहीं डालता।

    मेरी गलतफ़हमी जल्द ही दूर हो गयी जब पता चला उसकी अभी शादी नहीं हुई हैं। मुझे लगा फिर जरूर कोई खूबसूरत गर्लफ्रेंड होगी उसकी जो उसे किसी ओर की तरफ देखने से मना करती होगी।

    वहा काफी सालो से काम करने वाली एक अधेड़ महिला सुधा आंटी ने बताया कि राहुल एक लड़की को चाहता था पर उस पर अपने पिता के बिज़नेस का भार आ पड़ा और धीरे धीरे दोनों अपनी महत्वाकांक्षा के साथ धीरे धीरे दूर हो गए।

    अब थोड़ा समझ में आया कि राहुल के लिए उसका बिज़नेस और महत्वकांक्षाए उसकी ज़िन्दगी में लड़कियों से कही ज्यादा महत्त्व रखती हैं। इसलिए लड़कियों के प्रति उसका आकर्षण ही ख़त्म हो गया हैं।

    समय इसी तरह गुजरता रहा और मैंने अपने आप को ऑफिस में स्थापित कर लिया था। राहुल का भरोसा मैंने जीत लिया था और वो ज्यादा जिम्मेदारी के काम सौपने लगा। शिकायत थी तो बस ये एक कि जब भी वो बात करे पुरे समय मेरी तरफ देख कर तो बात करे।

    कही ना कही उसकी ये मुझे ना देखने की आदत मेरे अहम को चोट पंहुचा रही थी। एक खूबसूरत महिला जो अच्छे फिगर की मल्लिका हैं वो कम से कम अपनी ख़ूबसूरती की तारीफ़ की हकदार तो बनती हैं।

    मुँह से ना सही कम से कम आँखों के इशारे से तो तारीफ़ कर दे पर वो भी नहीं। मुझे जब ढंग से देखता ही नहीं तो तारीफ़ क्या करेगा। जब भी मैं उसके केबिन में जाती एक आशा के साथ जाती कि आज तो वो मुझे देखेगा या मेरी तारीफ़ करेगा पर हमेशा खिसियाते हुए निराश हो कर ही बाहर आती।

    ऐसी बात नहीं थी कि वो मेरी तारीफ़ नहीं करता था पर सिर्फ काम की तारीफ़ करता था। जिसकी मैं हकदार भी थी पर मेरी खूबसूरती की तारीफ़ कर देगा तो कौनसा उसकी इज्जत कम हो जाएगी या उसके उसूल टूट जायेंगे।

    इसी तरह छह महीने बीत चुके थे और दिन पर दिन मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। मैं कोई भी कसर नहीं छोड़ती कि मैं अपने आप को उसके सामने प्रस्तुत करू पर वो हमेशा मुझे इग्नोर करता ही रहा।

    अपनी जिंदगी में हमेशा ऐसे मर्दो से पाला पड़ा था जिन्होंने हमेशा मेरे शरीर को पाने की कोशिश की थी, मुझे घूरते हुए मेरे कपड़ो के अंदर झाँकने की कोशिश पर ये बिलकुल अलग था। मेरे लिए ये अब एक मिशन बन चूका था, ये मिशन था अपने बॉस के अंदर के मर्द को बाहर निकालने का या अपनी खूबसूरती की सत्ता राहुल के दिल पर जमाने का।

    ऐसा नहीं था कि मैं उसके साथ सोना चाहती थी, बस मेरे ईगो को चोट पहुंची कि मुझे मेरे हिस्से की तारीफ़ राहुल से मिलनी ही चाहिए। ये मेरी अब जिद बन चुकी थी।

    मैं अब क्या कर सकती थी, जिससे उसका ध्यान बात करते वक़्त मेरी आँखों के सिवाय मेरे शरीर पर भी जाये और तारीफ़ के बोल तो फूटे। क्या मुझे अपना पहनावा बदलना था!

    अब तक मैं पूरा बदन ढक कर रखती थी, पैंट और पूरी बांह के शर्ट, या कभी कभी लंबी स्कर्ट के साथ। बिच में कभी कभी पूरा ढका हुआ कुर्ता। हमेशा सीने के उभार को ढकता हुआ एक स्कार्फ़।

    शायद मैं ऐसा कुछ दिखाती ही नहीं जिससे राहुल मेरी तरफ देखे। पर इन्ही कपड़ो के बावजूद बाकी के पुरुष कर्मचारी तो मुझे घूरते रहते हैं। दोष कपड़ो का नहीं शायद नीयत का हो। पर फिर भी मुझे कोशिश तो करनी ही थी।

    अगले ही वीकेंड पर मैंने नयी शॉपिंग की और ऑफिस वियर के ऐसे कपडे चुने जो तंग हो और थोड़ा शरीर भी दिखाए। पता नहीं मुझे पर कैसा भूत चढ़ गया था, जिन चीजों से मैं बचने का प्रयास करना चाहती थी वो ही मैं कर रही थी।

    फिर अपने आप को समझाया कि एक बार की ही तो बात हैं। बस एक बार अपनी तारीफ़ सुन लू, राहुल का व्रत तोड़ दू तो मेरा काम हो जायेगा और फिर मैं अपने उसूलो पर लौट आउंगी।

    पढ़ते रहिये, क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी!

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