पड़ोसन बनी दुल्हन-40

This story is part of the Padosan bani dulhan series

    सुषमा मुझे और साले साहब को स्तब्ध, निशब्द मंत्रमुग्ध से उसको नाचते हुए देख कर मुस्कुरायी। पर बिना रुके सुषमा ने कई तरह के अलग अलग स्टाइल में धीर ले बढ़ संगीत के साथ एक दक्ष नृत्यकार की तरह कामुक और रोमांचक डांस किये।

    इससे पहले मैंने क्लबों में और पार्टियों में कई बार कैबरे नृत्यांगनाओं को डांस करते हुए देखा था। कई बार सुषमा होने उपर डाली हुई ओढ़नी कभी ओढ़ती फिर धीरे धीरे अपने बदन से एक के बाद एक अंग को दिखाती हुई मचलती उस अंग के ऊपर से वह ओढ़नी हटा कर अपने अंग का प्रदर्शन करती बड़ी ही कामुक और उत्तेजक लग रही थी।

    उसके साथ साथ अपने कूल्हों, जांघें, चूँचियाँ और अपनी चूत को भी कभी मसलना, कभी हिलाना और कभी बड़े ही कामुक अंदाज से सहलाना कर हमारी उत्तेजना का पारा तेजी से बढ़ा रही थी। सुषमा ने अपनी बाँहें लम्बी कर मुझे और साले साहब को अपने साथ नाचने के लिए बुलाया। साले साहब ने शायद कभी डिस्को फ्लोर में या शादी में कभी कुछ हाथ पाँव टेढ़े मेढ़े किये होंगे।

    उनका तो मुझे पता नहीं पर मैंने तो जिंदगी में कभी भी नाचना तो दूर, नाचने की कोशिश भी नहीं की थी। सुषमा संगीत की लय में खोयी हुई एक बैलेरिना की तरह बड़ी ही सरलता से संगीत की लय के साथ अपने खूबसूरत पारदर्शी ओढ़नी से और कामुकता से उजागर हो रहे नग्न बदन को लचकाती लहराती हमारे पास आयी।

    सुषमा ने हमारे दोनों की जाँघों के बिच में हाथ डालकर हमारे लण्ड पकडे और हमें खिंच कर वह हमें उसके ड्राइंगरूम में ले गयी। अपने थिरकते पाँव के साथ बड़ी ही दक्षता से नृत्य करती सुषमा ने हमें भी उसके साथ नाचने पर मजबूर किया। जब हम दोनों के पाँव नाचने की कोशिश करते हुए लड़खड़ाने लगे तो हँसते हुए सुषमा ने हमें छोड़ दिया।

    पर फिर सुषमा ने वह किया जिसकी मुझे कल्पना तक नहीं थी। सुषमा ने थोड़ा सा कूद कर पहले अपनी एक टाँग ऊपर उठाकर मेरी कमर पर रक्खी। फिर मेरी गर्दन के इर्दगिर्द अपनी बाँहों का बाहुपाश बनाकर और अपने दोनों पाँव से मेरी कमर को सख्ती से जकड़ कर अपना हल्का फुल्का बदन मेरे बदन से चिपका कर वह कूदकर मुझसे इस तरफ लिपटी की उसकी रसीली चूत मेरे चिकनाहट से लथपथ लण्ड के साथ रगड़ने लगी।

    नंगी खूबसूरत सुषमा मेरी कमर को अपनी टांगों में जकड़े हुए मुझे उसे हवा में मेरे गले से लटक कर मुझे चोदने का आह्वान कर रही थी।

    मेरा सख्त लण्ड सुषमा की चूत के छूते ही फनफना उठा। मेरे लण्ड की रक्त पेशियों में मेरा वीर्य एक बार फिर दौड़ने लगा। मेरा गोरा चिट्टा चिकनाहट से लथपथ लण्ड सुषमा की चूत के संपर्क में आते ही उसे छिन्नविच्छिन्न करने पर जैसे आमादा हो गया।

    सुषमा ने मेरी गर्दन का बंधन जरासा भी ढीला ना करते हुए एक हाथ से मेरे लण्ड को पकड़ा और उसे अपनी चूत की पंखुड़ियों के निकट ला कर उन से रगड़ा और दो पंखुड़ियों को अलग कर मेरे लण्ड को ऊसके प्यार भरे छिद्र में प्रवेश करने के लिए द्वार खोल दिया।

    मैंने अपने पेंडू से ऊपर की और जब एक धक्का मारा तब सुषमा ने भी अनायास ही मेरी गर्दन की पकड़ कुछ ढीली कर अपनी चूत को थोड़ी नीची कर मेरे लण्ड को उसकी चूत में प्रवेश करने में सहायता की। मेरे एक ही धक्के में मेरा लण्ड सुषमा की चूत में दाखिल हो गया। सुषमा के चेहरे की भावभंगिमा देख कर मैं समझ गया की सुषमा मेरे लण्ड को अपनी चूत में बड़े ही अच्छी तरीके से महसूस कर रही थी।

    सुषमा चाहती थी की मैं उसे मेरी कमर पर जकड़े हुए रख कर उसे हवा में ही रखते हुए चोदूँ। शायद सुषमा ने इस तरह की चुदाई किसी विदेशी कपल को किसी पोर्न साइट पर करते हुए देखा था और वह चाहती थी की हम दोनों भी सुषमा की चुदाई उसी तरह करें।

    मैंने इससे पहले कभी की टीना या किसी और औरत की चुदाई इस तहा से नहीं की थी ना ही मैंने कभी कल्पना की थी की मैं कभी किसी औरत की चुदाई इस तरह जोरदार तरीके से कर पाउँगा। पर पता नहीं सुषमा की चूत में क्या जादू था और उसके सर पर कैसा जूनून सवार था की मैं एक के बाद एक जोरदार धक्के मार कर उस हालात में भी सुषमा की चूत को अद्धर हवामें चोदने लगा।

    जैसे जैसे मेरा लण्ड सुषमा की चूत में घुसता, सुषमा “हाय… ओह…. हम्म्म…. चोदो…. वाह……. आह…. ओह… ” कराहती हुई मेरी चुदाई का भरपूर आनंद ले रही थी। जब किसी औरत की मन मर्जी और ख़ुशी से चुदाई होती है तो वह औरत उस चुदाई का भरपूर आनंद लेती है। उस समय उसकी कराहटें और सिसकारियाँ मर्द को भी और जोश से भर देतीं हैं और मर्द का भी चोदने का जोश बढ़ जाता है। सुषमा की कराहटें और कामुकता भरी सिसकारियों ने पुरे कमरे को कामुकता भरी आवाजों से भर दिया था।

    मैंने सुषमा की चूत की ठुकाई करते हुए साले साहब की और देखा तो साले साहब अपने लण्ड को सहलाते हुए उसे शायद आश्वासन दे रहे थे की उसकी भी बारी जल्द ही आएगी जब सुषमा उसको भी अपनी चूत में दाखिल हो कर चोदने देगी।

    हालांकि मैं कोई सेठी साहब या मेरे साले साहब की तरह कोई अभ्यस्त कसरतबाज तंदुरस्त आदमी नहीं था, पर सुषमा की चूत के जादू ने मुझे भी सुषमा को उस पोजीशन में चोदने की वह शारीरिक शक्ति दी जो मैंने कभी सोचा भी नहीं था की मुझ में है। मैंने उस हाल में सुषमा को करीब पंद्रह मिनट तक चोदा होगा।

    उस हालात में पंद्रह मिनट तक खड़े हो कर इतना वजन उठाते हुए चोदना कोई आसान काम नहीं होता। पर उस रात की उत्तेजना ही कुछ और थी। पर खैर मेरी भी अपनी शारीरिक क्षमता की मर्यादाएं थीं।

    मैं कुछ ही देर में सुषमा को हवामें उठाकर चोदते हुए थक गया। मेरा सर और पूरा बदन पसीने से तरबतर हो गया। जब सुषमा ने यह देखा तो मुझे इशारा किया की मैं उसे निचे उतार दूँ। उस पोजीशन में चुदवाते हुए सुषमा तो कई बार झड़ चुकी थी पर मेरा वीर्य स्खलन होना बाकी था।

    सुषमा मेरे वीर्य को अपनी चूत में फिर से लेना चाहती थी। सुषमा फ़ौरन मेरा और साले साहब का हाथ थाम कर हमें फिर से बैडरूम में ले आयी। सुषमा पलंग पर चढ़ कर लेट गयी और उसने मुझे उसके ऊपर चढ़कर उसे चोदने का मुझे इशारा किया।

    जैसे ही मैं सुषमा के ऊपर सवार हुआ और सुषमा की टाँगे चौड़ी कर मेरा लण्ड उसकी चूत में डालने लगा तब सुषमा ने मुझे कहा, “अब मुझे खूब चोदो और अपना सारा वीर्य मेरी चूत में उंडेल दो।”

    फिर सुषमा ने अपनी दोनों चूँचियाँ अपने दोनों हाथों में पकड़ कर ऊँची की और उसे जोर से दबाते हुए मुझे और साले साहब को अपनी चूँचियाँ दबाने, मसलने, चूसने और काटने का इशारा किया। साले साहब भी पलंग पर चढ़ कर सुषमा की दूसरी और लेट गए।

    मैं सुषमा की चुदाई करते हुए सुषमा की चूँचियों को मसलने में भी कार्यरत हो गया और साले साहब सुषमा की चूचियों पर अपने होँठ चिपका कर उन्हें जोशखरोश के साथ चूसने, चाटने और काटने में लग गए। मेरे लण्ड की नसपेशियों में मेरा गरम वीर्य उफान में था।

    जैसे ही मैं सुषमा के ऊपर चढ़ कर उसे जोर से धक्के पेल कर चोदने लगा की मेरा वीर्य भी मेरे लण्ड में से बाहर निकल कर सुषमा की चूत की सुरंगों में दाखिल होने के लिए जैसे बेताब हो रहा था। सुषमा भी मेरे एक के बाद एक तगड़े धक्कों से ऊपर निचे हिलती हुई “आह….. हाय रे! मार दिया रे! और चोदो रे! क्या चोदते हो! ओह….”

    इस तरह कराहटें लगा कर वह खुद आनंद ले रही थी और साथ में मुझे और जोर से चोदने के लिए प्रोत्साहित कर रही थी। मेरी जांघ के सुषमा की जाँघों के बिच में लगते हुए जोरदार थपेड़ों की “फच्च…. फच्च….. और थप्प…. थप्प…..” की आवाज से सारा कमरा गूंज उठा।

    आखिर में जब एक धमाके साथ मेरे दिमाग को शून्य करता हुआ मेरा वीर्य जब मेरे लण्ड के छिद्र से निकल कर एक गरमागरम फव्वारे की तरह सुषमा की चूत की गुफाओं में दाखिल हुआ तो मुझे यह महसूस हुआ की सुषमा भी एक साथ ही झड़ने लगी।

    सुषमा का पूरा बदन भी पलंग पर मचलने लगा और वह भी मुझे अपनी बाँहों में जकड कर “हाय…… क्या चोदा है रे! मजा आ गया…… मर गयी रे!” कहती हुई कराहने लगी। सुषमा ने मुझे झड़ते हुए इतनी ताकत से अपनी बाँहों में जकड लिया की सुषमा का पूरा बदन जैसे मेरे बदन से चिपक ही गया। उसी समय मैंने साले साहब से वह दोहा सूना जो टीना की भाभी ने सेठी साहब से चुदाई के बाद प्यार से टीना सेठी साहब से चिपकी हुई थी तब गाया था।

    वह दोहा था

    “लण्ड जकड़ गयो चूत में छोड़के अपणो माल, कहत कबीर लुगाई के होगो तगड़ो बाल।”

    साले साहब ने सुषमा के होंठों को चूमते हुए कहा, “सुषमा, मैं तुम्हें गारंटी के साथ कहता हूँ की जीजू ने कल नहीं तो आज पक्का तुम्हारे पेट में हमारे छोटे सेठी साहब का बीजरोपण कर ही दिया है। भले ही वह जीजू साहब के वीर्य से बना हो, पर वह कहलायेगा भी और होगा भी तो छोटा सेठी साहब ही।”

    सुषमा साले साहब की बात सुन मुस्कुराई। खुद झड़ने के बाद हम दोनों अलग हुए। सुषमा को साले साहब से भी जिस तरह मैंने सुषमा को चोदा था उसी तरह चुदवाने की कामना रही होगी; क्यूंकि मेरे सुषमा के ऊपर से हटते ही सुषमा उठ खड़ी हुई और पलंग से निचे उतर कर जैसे मुझसे लिपट गयी थी।

    उसी तरह साले साहब की कमर को अपनी टांगों से जकड़ कर साले साहब की गर्दन पर अपनी बाँहों का हार बना कर उनके बदन से सख्ती से लिपट गयी और अपनी चूत को साले साहब के लण्ड से रगड़ कर साले साहब को चोदने के लिए तैयार होने का इशारा किया। साले साहब तो इसी का इंतजार कर रहे थे।

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