बड़ी बहन के साथ छुप-छुप कर बदन की आग बुझाई-4 (Badi behan ke sath chhup chhup kar badan ki aag bujhayi-4)

पिछला भाग पढ़े:- बड़ी बहन के साथ छुप-छुप कर बदन की आग बुझाई-3

भाई-बहन सेक्स कहानी अब आगे-

स्नेहा दीदी काम के लिए बैंगलोर चली गई और अचानक सब कुछ बदल गया। जब आपकी बड़ी बहन जिसके बदन से आप किसी भी वक्त खेल सकते हैं, वह आपसे दूर चली जाती है तो सब उदास लगने लगता है।

मैं अकसर उन पलों को याद करता रहता था, जब घर में कोई नहीं होता था। मैं चुपके से दीदी के पास जाकर कुछ सेकेंड के लिए उनके उभरे हुए सीने को दबा लेता था। उनके होंठों पर हल्की-सी चोरी से चुम्मी ले लेता था। कभी-कभी उनकी ब्रा और पैंटी को हाथ में लेकर अपने अंदर की भूख निकाल देता था। उनकी ड्रेस के नीचे से झलकती गहरी क्लीवेज मुझे पागल कर देती थी, और मैं घंटों उन्हीं ख्यालों में खोया रहता था।

वह सब कुछ अब बदल चुका था। हम फोन पर बहुत देर तक बात नहीं कर पाते थे, क्योंकि उनके काम का बोझ ज़्यादा था। लेकिन फिर भी दीदी ने मुझे पूरी तरह कभी नहीं भुलाया। उन्हें पता था कि बिना उन्हें देखे, उनका छोटा भाई उदास हो जाता है। इसलिए वह कभी ना कभी किसी बहाने से मेरी आवाज़ सुन लेती, और यह एहसास दिला देती कि वह अब भी मेरी थी।

रविवार उनके लिए छुट्टी का दिन होता था, और उसी दिन वह खास तौर पर मुझे समय देती थी। हर रविवार मेरे लिए किसी सरप्राइज से कम नहीं होता था। हम फोन पर गंदी बातें करते, और कभी-कभी वह अपने उभरे हुए सीने की तस्वीर मुझे भेज देती। उसके जवाब में मैं भी अपना लंड दिखा देता था। यह सब शायद हमारे लिए काफी नहीं था, लेकिन फिर भी मोबाइल पर अपनी बड़ी बहन के बड़े-बड़े उभरे हुए स्तन देख लेना मुझे पागल कर देने के लिए काफी था।

एक रविवार की रात हमने पहली बार वीडियो कॉल शुरू की। मैं ज़िद कर रहा था कि मैं सिर्फ उनकी आवाज़ ही नहीं, उनका चेहरा भी देखना चाहता था। जैसे ही स्क्रीन पर उनका चेहरा आया, मेरी धड़कनें तेज़ हो गई। उन्होंने उस रात एक ढीली-सी नाइटी पहन रखी थी, जिसकी गहरी नेकलाइन से उनकी क्लीवेज साफ झलक रही थी। रोशनी में उनका गोरा गला और मुलायम गर्दन चमक रही थी।

नाइटी के कपड़े के नीचे उनके गोल-मटोल स्तन भारी होकर ऊपर की ओर उभरे हुए दिखाई दे रहे थे। जब वह हल्का-सा कैमरे के करीब झुकी, तो उनके सीने की लहरें और भी गहरी हो गई। उनकी गर्दन से लेकर सीने तक फैली नर्मी देख कर मैं बस स्क्रीन को छू लेना चाहता था। यह सब मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था।

थोड़ी देर बाद दीदी ने अपने बैंगलोर की ज़िंदगी के बारे में बताना शुरू किया। वह अपने काम, ऑफिस और अकेलेपन की बातें कर रही थी। लेकिन मेरा ध्यान कहीं और था, मैं उनकी बातों से ज़्यादा उनके खुले गले और उभरे हुए स्तनों पर नज़र गड़ाए बैठा था। मैं बस यही सोच रहा था कि काश इस वक्त मैं वहां होता और उनके सीने को छू पाता।

दीदी ने अचानक नोटिस किया कि मेरी आँखें बार-बार नीचे की ओर जा रही थी। वह हल्की-सी शर्मा गई और मुस्करा कर बोलीं, “कहां देख रहे हो? तुम्हारी आँखें मेरी आंखों में क्यों नहीं टिक रहीं?”

मैंने हिचकिचाते हुए धीरे से कहा, “दीदी, मैं आपको बहुत मिस करता हूँ… आपका बदन छूने की आदत थी, अब सब खाली लगता है। मुझे आपकी बहुत याद आती है।” मेरी बात सुन कर वह और भी शरमा गई। उनकी सांसें तेज़ हो गई और कुछ पल चुप रही। फिर धीमी आवाज़ में बोली, “तो क्या तुम चाहते हो… अपनी दीदी के बूब्स देखना?”

यह कहते ही उन्होंने कैमरे के सामने धीरे-धीरे अपनी नाइटी की स्ट्रैप खिसकानी शुरू की। उनकी हर हरकत में झिझक भी थी और एक अजीब-सी मिठास भी। पहले कंधे से कपड़ा फिसला, फिर गर्दन और सीने के पास से ढीला पड़ने लगा। उनकी त्वचा धीरे-धीरे स्क्रीन पर और साफ दिखने लगी। कुछ ही पलों में नाइटी उनकी कमर तक खिसक गई और उनके गुलाबी रंग की ब्रा साफ दिखाई देने लगी।

वह हल्की मुस्कान के साथ बोली, “बस इतना ही काफी है क्या?” और फिर अचानक दोनों हाथों से अपनी ब्रा की हुक खोल दी। ब्रा ढीली पड़ते ही उनकी भारी, गोल-मटोल छातियाँ खुल कर बाहर आ गई। कैमरे के सामने उनके उभरे हुए स्तन की गोलाई, उनकी हल्की-सी कांपती नोकें इतनी साफ दिख रही थी कि मेरी सांस थम-सी गई। मैंने महसूस किया जैसे पहली बार उन्हें असल में देख रहा हूँ। स्क्रीन के उस पार दीदी के खुले हुए स्तन देख कर मैं पागलपन की हद तक उत्तेजित हो चुका था।

मैंने कांपती आवाज़ में कहा, “दीदी… प्लीज़, क्या आप इन्हें दबा सकती हैं मेरे लिए?” मेरी बात सुन कर वह और भी लाल हो गई। होंठ दांतों के नीचे दबा लिए और कुछ पल कैमरे से नज़रें चुराई। फिर धीरे-धीरे दोनों हाथों से अपनी छातियों को थामकर हल्के-हल्के दबाना शुरू किया।

उनके होंठों पर अनजानी कराह और आंखों में गहरी शर्म झलक रही थी। स्क्रीन पर उनके गोल-मटोल बूब्स का यूं दबना देख कर मेरा लंड पत्थर जैसा सख्त हो गया। वह धीरे-धीरे अपने होंठ चबाती रही और हाथों से अपने स्तनों को दबाती हुई मुझे और पागल कर रही थी।

फिर अचानक उनकी आवाज़ में हल्की कराह मिली, “क्या ऐसे दबाने से तेरा खड़ा हो रहा है, गोलू? बता ना… दीदी के दूध से भरे बूब्स देख के तुझे कितना मज़ा आ रहा है?” वह अपने निप्पल को उंगलियों से मरोड़ते हुए मुस्करा दी।

मैं हांफते हुए बोला, “दीदी… काश अभी मेरे यही हाथ आपके बूब्स पर होते, तो मैं आपको निचोड़-निचोड़ कर पागल कर देता।” मेरी बातें सुन कर वह और गीली आवाज़ में बोली, “तो देख, तेरा सपना पूरा कर रही हूँ… बस स्क्रीन के उस पार से ही।” यह कहते हुए वह और ज़ोर से अपनी छातियों को दबाने लगी, और मैं दीवानों की तरह उन्हें घूरता रहा।

अचानक उन्होंने अपने हाथ रोक दिए और कैमरा थोड़ी दूरी पर रख दिया। फिर धीरे-धीरे अपनी नाइटी नीचे खिसका कर पूरी तरह उतार दी। उनकी गोरी टांगें चमक रही थी। इसके बाद उन्होंने धीरे से अपनी पैंटी भी उतार दी और कैमरे के सामने आकर बैठ गई। अब उनकी नंगी देह पूरी तरह मेरे सामने थी।

कैमरा उनकी जांघों के बीच गया और मैं पहली बार अपनी दीदी की चूत साफ देख रहा था। हल्की गुलाबी और थोड़ी गीली, ऊपर छोटे-से बालों की लकीर और बीच में लाल सी प्यारी दरार। उनकी चूत की नमी रोशनी में चमक रही थी। मैंने स्क्रीन के पार से ही महसूस किया जैसे गर्माहट मेरी सांसों तक पहुँच रही है। मैं पागल होकर बस घूरता ही रह गया।

फिर उन्होंने शरारती अंदाज़ में कैमरा थोड़ी दूर रख दिया और अपने बीच की जगह खाली छोड़ दी, जैसे मुझे आमंत्रण दे रही हो। अचानक वह हल्का-सा हंसीं और अपनी बीच की दो उंगलियां कैमरे के सामने उठाई। फिर उन उंगलियों को अपने मुंह पर रख कर धीरे-धीरे गीला करने लगी। होंठों से निकली लार उनकी उंगलियों पर चमकने लगी। उन्होंने जैसे ही उन गीली उंगलियों को अपनी चूत पर रगड़ना शुरू किया, उनकी आँखें बंद हो गई। चेहरे पर गहरी मस्ती और बदन में सिहरन की लहर दौड़ गई।

उनके मुंह से हल्की कराहें निकलने लगी,‌ “म्म्म… आह्ह… गोलू… तेरी दीदी की चूत कितनी गीली हो रही है…” उनकी आवाज़ में वह नशा था जो मुझे पागल कर रहा था। हर बार जब उनकी उंगलियां चूत पर घूमती, उनका बदन हिल जाता और कराहें और गहरी हो जाती। स्क्रीन के इस पार बैठा मैं अपने लंड को पकड़ कर हिलाने लगा, और उधर मेरी दीदी अपने ही उंगलियों से अपनी प्यारी चूत को मल कर पागल हो रही थी।

उनकी सांसें तेज़ हो गई थी। कैमरे से साफ़ सुनाई देने लगा कि जब भी वह अपनी उंगलियां अपनी चूत के अंदर डालती, तो चप-चप की आवाज़ कमरे में भर जाती। उनकी कराहें और ज़ोर से आने लगी,‌ “आह्ह…म्म्म… गोलू…”। कभी-कभी वह रुककर अपनी उंगलियां बाहर निकाल लेती, और उन्हें मुंह में डाल कर ऐसे चूसती जैसे अपना ही स्वाद चख रही हो। फिर होंठों से गीलापन ले, वही उंगलियां फिर से चूत पर रख कर और भी तेज़ी से रगड़ने लगती। कैमरे पर उनका चेहरा और उनकी कराहें मुझे पागल बना रही थी, मानो मैं उनके बिल्कुल पास बैठा सब देख और सुन रहा हूँ।

मैं अब और चुप नहीं रह सका। मोबाइल के सामने हाँफते हुए मैंने उनसे गंदी बातें करना शुरू कर दिया, “दीदी… काश ये उंगलियां मेरी होती, तो अभी तुम्हारी चूत को फाड़ डालता… तुम्हारे इन मुलायम से बूब्स को अपनी पकड़ में लेकर मसल देता… तुम्हारे रस का हर कतरा पी जाता…”। मेरी आवाज़ सुन कर वह और ज़्यादा कराहने लगी, होंठ काटते हुए कैमरे में देखती और अपनी उंगलियां और तेज़ी से चलाती। उनकी आंखों में शरारत और चेहरे पर पिघली हुई शर्म सब कुछ साफ़ दिख रहा था।

कुछ ही देर में उनका पूरा बदन कांपने लगा। उनकी कराहें चीख में बदल गई और वह ज़ोर से थरथराते हुए कैमरे के सामने ही झटके खाने लगी। उसी पल मैं भी अपनी हद पार कर गया, और कराहते हुए फ़ोन पर ही फूट पड़ा। दोनों तरफ़ से भारी सांसों और चरमसुख की आवाज़ें कमरे में गूंज रही थी।

वह पसीने से भीगी और थकी हुई स्क्रीन पर मुस्कराई। फिर धीरे-धीरे अपनी उंगलियों से अपनी चूत पर फैला हुआ अपना पानी उठा कर कैमरे के सामने ले आई। उनकी आंखों में शरारती चमक थी, जैसे यह उनका तोहफ़ा हो, सिर्फ़ मेरे लिए।

उस रात के बाद यह हम दोनों के बीच का सबसे गहरा राज़ बन गया। जब भी हमें समय मिलता, हम वही करने लगते। कभी तस्वीरें भेज कर, कभी वीडियो कॉल पर अपने जिस्म को छू कर स्नेहा दीदी मुझे पागल बनाती। मेरे लिए यह पल उसे अपने पास महसूस करने जैसा था, मानो मैं सच में उसे छू रहा हूँ। लेकिन मेरे दिल का एक कोना जानता था कि यह सब मेरे लिए कभी पूरा नहीं होगा। हर बार दीदी को देख कर मेरा लगाव और प्यास और गहरी हो जाती थी।

और फिर, जैसे मेरा सपना अचानक सच होने लगा हो, एक दिन दीदी ने घर पर फ़ोन किया। उन्होंने बताया कि अपने जन्मदिन पर उन्होंने ऑफिस से छुट्टी मैनेज कर ली है। यह बहुत लंबी छुट्टी नहीं थी, मगर कुछ दिन के लिए ही सही, वह घर वापस आने वाली थी। मेरी धड़कनें तेज़ हो गई, सोच कर ही कि अब मैं उन्हें सामने देख पाऊँगा, उनका जिस्म पास से महसूस कर पाऊँगा।

आख़िर वह दिन आ ही गया। आठ महीने बाद जब मैंने दीदी को घर में कदम रखते देखा तो मेरी सांसें थम-सी गई। उनकी गर्दन पर हल्की-सी लकीरें और झलकती नर्म त्वचा मानो मुझे छूने के लिए पुकार रही थी। उनके गले से झांकती हुई गहरी क्लीवेज कपड़े के नीचे से साफ़ दिख रही थी। रेशमी कुर्ते के अंदर उनके गोल और भारी स्तन हिलते हुए दिल को मदहोश कर रहे थे।

उनका पतला पेट कपड़े से चिपका था, और हल्के से उभरे नाभि के निशान रेशम के कपड़े में से झलक रहे थे। पूरे जिस्म की नरमी और गहराई देख कर मेरी आँखें उनसे हट ही नहीं पा रही थी।

वह भारी बैग ज़मीन पर रख कर सीधी मेरी तरफ़ बढ़ी। बिना कुछ कहे उन्होंने मुझे अपनी बाहों में भर लिया। उनका गर्म और नरम सीना सीधे मेरे सीने से दब गया। उनके भारी स्तन मेरे सीने पर ऐसे दब रहे थे कि जैसे मेरी सांसें रोक लेंगे। उनके बदन की खुशबू और सीने का दबाव मेरे होश पूरी तरह से छीन रहा था।

उस पल मैं चाहता था कि उन्हें होठों से चूम लूं, उनके रेशमी कपड़े फाड़ कर उनके गोल स्तनों को अपने हाथों में महसूस करूं। मगर मां और पापा की नज़रों के सामने खड़ा होने की वजह से मैंने खुद को रोक लिया। गहरी सांस लेकर बस हल्के से मुस्कराते हुए पूछा, “कैसा रहा सफ़र, दीदी?”। उन्होंने मेरी आंखों में देखा, हल्की मुस्कान दी और बोली, “अच्छा था।” फिर मुझे छोड़कर मां और पापा को बारी-बारी से गले लगा लिया।

उस रात कुछ ख़ास नहीं हुआ। दीदी सफ़र से थकी हुई थी। हम बस बैठ कर बातें करते रहे, बैंगलोर, उनकी नौकरी, मेरा कॉलेज और दोस्तों के बारे में। देर तक बातें करने के बाद सब अपने-अपने कमरों में सोने चले गए।

लेकिन अगले ही सुबह मेरी आंख बहुत जल्दी खुल गई। उत्साह से दिल धड़क रहा था। आठ महीने बाद दीदी घर में थी, और मैं उन्हें सामने देखने के खयाल से ही पागल हो रहा था। खुश मन से मैं ड्रॉइंग रूम में पहुंचा तो देखा कि सब लोग साथ में नाश्ता कर रहे थे। पापा अख़बार पढ़ते हुए चाय की चुस्कियां ले रहे थे, मां गरम पराठे परोस रही थी और दीदी हल्की-सी मुस्कान लिए मेज़ पर बैठी थी। उनका चेहरा सुबह की धूप में और भी चमक रहा था।

मैं धीरे से उनकी कुर्सी के पास जाकर बैठ गया। जैसे ही मैं पास पहुंचा, उनकी खुली जुल्फ़ों से आती ताज़गी भरी ख़ुशबू सीधी मेरी सांसों में भर गई। उनके बालों में नहाने के बाद की हल्की नमी थी, और उनके पूरे बदन से उठती ताज़ी खुशबू ने मेरा दिल और बेचैन कर दिया।

मैंने मुस्कराते हुए धीरे से कहा, “हैप्पी बर्थडे दीदी।”

उन्होंने भौंहें उठा कर मेरी तरफ़ देखा और हंसते हुए बोली, “तोहफ़ा कहां है?”

मैंने उनकी आंखों में झांक कर जवाब दिया, “आप जो मांगेंगी, वही दूंगा।”

वह कुछ पल चुप रही, फिर हल्की मुस्कान के साथ बोली, “ठीक है… जब समय आएगा, मैं तुमसे अपना परफ़ेक्ट गिफ़्ट मांग लूंगी।”

उस रात जब सब लोग इकट्ठा हुए, तो मैंने केक लाकर मेज़ पर रखा। सबने मिल कर ताली बजाई और उनका जन्मदिन मनाने लगे। दीदी हंसते हुए सामने आई और मोमबत्ती बुझाने के लिए झुक गई। उसी पल उनकी ढीली कुर्ती का गला और नीचे खिसक गया। मेरी आंखों के सामने उनका गहरा क्लीवेज खुल कर उभर आया।

उनके भीतर की ब्रा का कप साफ़ दिखने लगा था,‌ हल्का गुलाबी रंग, पतली लेस से ढका हुआ, जो उनके उभरे और भरे स्तनों को कस कर थामे हुए था। जैसे ही वह झुकी, उनके गोल और कसे हुए स्तन उस ब्रा में उछलते और हिलते दिख रहे थे। तंग कपड़े के अंदर उनकी ब्रा की हर सिलाई उनके स्तनों के गोलाई को और उभार रही थी। उनकी भरी हुई छाती के बीच का गहरा कट और ऊपर से झांकता मुलायम गोश्त मेरी सांसें रोक रहा था।

मैं ताली बजाता रहा, मगर नज़रें उनकी झुकी हुई देह और कस कर थमी हुई ब्रा से हट ही नहीं पा रही थी। दीदी के चेहरे पर मासूम मुस्कान थी, लेकिन उनकी छाती का वह नज़ारा मेरे लिए किसी नशे से कम नहीं था।

उसके बाद जब दीदी ने केक काटा तो मां और पापा ने उन्हें एक छोटा-सा तोहफ़ा दिया। वो था एक नाज़ुक-सा गले का चैन। दीदी ने उत्साहित होकर उसे उठाया और गले पर रखने लगी। लेकिन पीछे की कुंडी लगाने में उन्हें परेशानी हो रही थी। वो मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखी और बोली, “ज़रा मदद करोगे ना?”

मैंने चैन अपने हाथ में लिया और धीरे से उनके पीछे खड़ा हो गया। जैसे ही मेरी उंगलियां उनके गले के पास पहुंची, मुझे उनकी गर्दन की गर्माहट और मुलायम त्वचा का एहसास हुआ। उनकी नाज़ुक गर्दन मेरी उंगलियों के बीच कांपती सी लग रही थी। मैं सावधानी से चैन की कुंडी मिलाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसी दौरान उनकी सांसें मेरी उंगलियों से टकरा रही थी और मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा।

उनके खुले बाल हल्के-हल्के मेरे हाथों से छूते जा रहे थे। उस पल उनकी महक, उनकी गरम त्वचा और उनकी गर्दन की कोमलता ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया। मैं जानता था कि मुझे बस चैन लगाना है, मगर मेरी उंगलियां उस स्पर्श को देर तक महसूस करना चाह रही थी।

चैन पहनाने के बाद हम सब खाने के लिए साथ बैठे। खाने की मेज़ पर सबके चेहरे पर हंसी थी, सब मज़ाक कर रहे थे और जन्मदिन का माहौल घर को और भी रौशन कर रहा था। लेकिन मेरे अंदर दीदी की गर्दन का एहसास बार-बार लौट रहा था। उनके झुकने पर दिखती हल्की सी क्लीवेज, और उनकी सांसों की गर्मी मेरे मन में बार-बार तैर रही थी।

उस पल मुझे और भी गहराई से उन्हें महसूस करने की चाह हो रही थी। मगर मैंने खुद को रोका। आज उनका जन्मदिन था और मुझे पता था कि इस दिन अपनी ख्वाहिशें उन पर थोपना ठीक नहीं होगा। इसलिए मैंने अपने दिल की बेचैनी दबाई और सबके साथ खाना खा कर अपने कमरे में चला गया। रात को नींद आते वक्त भी उनकी गर्दन और मुस्कुराहट मेरी आंखों के सामने घूम रही थी।

रात धीरे-धीरे गहराती गई। मैं अपने कमरे में बिस्तर पर लेटा था, लेकिन नींद मेरी आंखों से कोसों दूर थी। दीदी का चेहरा, उनकी मुस्कान और उनकी गर्दन का एहसास बार-बार मेरे मन में घूम रहा था। तभी अचानक मेरे दरवाज़े पर हल्की-सी दस्तक हुई।

मैं चौंका, और धीरे से उठ कर दरवाज़ा खोला। सामने दीदी खड़ी थी। उनकी आंखों में हल्की थकान थी, लेकिन चेहरा किसी चांदनी रात जैसा दमक रहा था। उन्होंने हल्का-सा ढीला नाइट सूट पहन रखा था, जिस पर छोटे-छोटे फूलों की प्रिंटिंग थी। कपड़े की मुलायम सिल्क जैसी सतह उनके शरीर से चिपकी हुई-सी लग रही थी।

नाइट सूट का ऊपरी हिस्सा उनके सीने पर ढीला होकर गिरा हुआ था, जिससे उनकी उभरी हुई गोलाई साफ़ झलक रही थी। कपड़े के नीचे उनकी सांसों की लय के साथ उनका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था। उनके खुले बाल बिखरे हुए कंधों पर पड़े थे और उस वक्त उनकी महक कमरे तक फैल रही थी।

उनकी पतली कमर और ढीले कपड़ों से झलकती कूल्हों की हल्की बनावट मुझे पागल करने लगी। नाइट सूट के कपड़े के नीचे उनके शरीर की गर्मी और नरमी साफ़ झलक रही थी।

मैंने हड़बड़ाते हुए धीमे स्वर में पूछा, “दीदी… आप इस वक्त… मेरे कमरे में?”

वो मुस्कुरा दीं, उनकी आंखों में कुछ गहरा और अनकहा चमक रहा था। उन्होंने धीरे से दरवाज़ा पीछे से बंद कर दिया और अंदर आ गई। उस पल मेरा दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था कि जैसे बाहर निकल आएगा।

वो धीरे-धीरे मेरी तरफ बढ़ी और बिना कुछ कहे मेरे पास आकर खड़ी हो गई। फिर हल्के से मुस्कुराई और मेरा हाथ पकड़ कर धीरे-धीरे अपने सीने की तरफ ले गई। जैसे ही मेरी हथेली उनकी गोलाई पर पड़ी, नाइट सूट के मुलायम कपड़े के पीछे से उस गर्म और नरम अहसास ने मुझे पूरी तरह से कांपा दिया।

उनकी आंखों में शरारत और चाहत एक साथ चमक रही थी। होंठों पर हल्की मुस्कान थी। फिर बहुत धीरे से उन्होंने कहा, “याद है ना तुमने कहा था, गिफ़्ट क्या चाहिए… अब मैं वही लेने आई हूँ।” अगला पार्ट चाहिए, तो [email protected]
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