पड़ोसन बनी दुल्हन-58

This story is part of the Padosan bani dulhan series

    जब जेठजी मेरे स्तनों को प्यार करते थे तो मेरी चूत का बुरा हाल होता था। मेरी चूत में से मेरा पानी रिसने लगता था। मेरे जेठजी की बाँहों में होते हुए मैं अपनी चूत कैसे सम्हालूं? यह मेरी समस्या थी। पर ना चाहते हुए भी मेरा हाथ मेरी जाँघों के बिच में चला जाता था।

    जेठजी को महसूस हुआ की मेरी चूत काफी गीली हो रही थी और काफी पानी छोड़ रही थी। जेठजी ने अपना हाथ मेरे घाघरे के नाड़े पर रखा और और खिंच कर मेरे घाघरे का नाडा खोल दिया। फिर अपना मुंह निचे की और सरकाते पहले मेरे पेट को चाटने और चूमने लगे और फिर नाभि पर अपनी जीभ की नोंक को मेरी नाभि में कुरेद कुरेद कर मुझे और ज्यादा उत्तेजित कर रहे थे।

    जेठजी इस कार्यकलाप से मेरा बुरा हाल हो रहा था। मैं जेठजी के नीची लेटी हुई मेरे बदन को इधर उधर करते हुए मचल रही थी। मेरी चूत में इतनी जबरद्त हलचल हो रही थी की मुझे लग रहा था की मैं जल्दी ही झड़ने वाली थी। जेठजी ने एक हाथ सरका कर मेरी पैंटी को निचे की और खिसका दिया।

    उन्होंने अपनी उँगलियों से मेरी चूत की पंखुड़ियों से कुछ देर खेलने के बाद मेरी जाँघों के बिच मेरी तिकोनिया दरार पको बड़े ही प्यार से सहलाने लगे। बिच बिच में वह अपनी उँगलियों से मेरी पंखुड़ियों को खोल कर मेरी चूत की दरार को बेपर्दा कर देते थे।

    उनकी उँगलियों से खेलने के कारण मेरी उत्तेजना इतनी बढ़ने लगी की मेरे लिए अपने आप को सम्हालना नामुमकिन हो गया। एक ऐसा जुवार आया की मैं उछल पड़ी और मेरे जेठजी को मेरी बाँहों में मैंने जकड कर पकड़ा और मैं झड़ पड़ी। मेरे झड़ ने क्रिया कुछ सेकंडों तक चलती रही।

    मैं “ओह…… हाय…… आअह्ह्ह्हह…….” सी हलकी सिसकारियां भरती हुई कुछ देर के लिए निढाल हो कर पलंग पर शिथिल होकर शांत हो गयी।

    जेठजी मेरे झड़ने से कहाँ रुकने वाले थे? बल्कि उसके कारण तो उनमें जोश और भी बढ़ गया। मेरी उत्तेजना की चाभी मेरे जेठजी के हाथ लग गयी थी। जेठजी ने मेरी चूत में अपनी दो उंगलियां डालकर उन्हें अंदर बाहर करना शुरू किया। साथ ही साथ झुक कर कभी वह मेरे होंठों को तो कभी मेरी निप्पलोँ को चूस लेते थे।

    जैसे ही मैंने मेरे जेठजी की उँगलियों को मेरी चूत में महसूस किया तो बापरे, मैं अपने आप पर कण्ट्रोल नहीं रख पायी। मैं पलंग पर उछल पड़ी। मेरी उत्तेजना देख कर जेठजी और भी उत्साहित हुए। जेठजी ने अपनी उंगली मेरी गाँड़ की दरार में भी डाल दी।

    जेठजी की कामुक करतूतों से मैं अपना आपा खो रही थी। अभी तो मेरी चुदाई भी शुरू नहीं हुई थी और मैं दो या तीन बार झड़ चुकी थी। जेठजी को जब भी मौक़ा मिलता, मेरी गाँड़ के गालों को दबाते और सहलाते रहते थे।

    मेरे लिए वह रात मेरी जिंदगी की सबसे यादगार रात साबित हो रही थी। मेरे पति के साथ मेरी पहली सुहाग रात अब तक की मेरी सबसे यादगार रात थी। पर मेरे जेठजी के साथ मेरी सुहागरात उससे भी ज्यादा रोमांचक और उन्मादक साबित होने जा रही थी।

    अचानक मैंने मेरे जेठजी की जीभ की नोंक को मेरी चूत की दरार को कुरेदते हुए पाया। जेठजी अपनी जीभ से वह कर रहे थे जो अब तक उनकी उंगलियां कर रहीं थीं। जीभ एक काम और कर रहीं थीं जो उंगलियां नहीं कर पा रहीं थीं। जेठजी की जीभ मेरे स्त्री रस को चाट रही थी।

    जेठजी के सर को मेरी जाँघों के बिच में घुसने देने के लिए मुझे मेरी टांगें काफी फैलानी पड़ रहीं थीं। मेरी चूत की दरार में अपनी जीभ डालकर मेरे रिसते हुए स्त्री रस को ऐसे चाट रहे थे जैसे वह शहद को चाट रहे हों।

    मेरे जेठजी मुझे इतना सुख देंगे उसकी मुझे कल्पना भी नहीं थी। मैं तो मेरे जेठजी की वह कामुक मस्त हरकतों से बिंदास मचलती हुई मेरी हवस के चरम को बार बार अनुभव कर रही थी और बार बार झड़ रही थी।

    जेठजी मुझे अपनी जीभ से चाट कर ऐसे पागल कर रहे थे की मुझ से रहा नहीं गया। मैं मेरे जेठजी का लण्ड मेरी चूत में डलवाना चाहती थी। मैं जानती थी की उनका लण्ड जब मेरी चूत में घुसेगा तो अगर वह मेरी चूत फाड़ ना भी दे पर मुझे मेरी नानी की याद जरूर दिला देगा। पर यह भी सच है की हर औरत का यह ख्वाब होता है की कभी ना कभी एक बार ही सही उसे ऐसे बड़े तगड़े लण्ड से चुदने का मौक़ा मिले। मुझे यह मौक़ा मिल रहा था।

    मैं उस समय मेर जेठजी से चुदवाने के लिए बेबस हो रही थी। पर साथ साथ मैं मेरी चुदाई को कुछ हद तक कम दर्द भरी बनाने के लिए फिर से एक बार मैंने बैठ कर जेठजी की जांघों के बिच अपनी जगह बना ली और आखिर में एक बार फिर मेरे जेठजी का महाकाय लण्ड चूसते हुए उस पर मेरी लार की चिकनाहट लपेटना शुरू किया।

    मेरे जेठजी शायद मेरी उलझन समझ गए थे। वह शायद जो फॉर्मूला माया के साथ अपनाते होंगे (माया ने यह मुझे नहीं बताया था) उन्होंने वही किया। मैंने देखा की मेरे जेठजी ने अपने गद्दे के निचे अपना हाथ डाल कर टटोल कर एक छोटी सी बोतल निकाली। वह बोतल उन्होंने मेरा हाथ थाम कर मुझे पकड़ा दी। मुझे समझते देर नहीं लगी की वह शहद की बोतल थी।

    मैंने उसे थामा और मैंने आगे बढ़कर मेरे जेठजी को चुम लिया। मेरे जेठजी मेरी उलझन समझ गए थे। मैंने उस शहद को जेठजी के लण्ड के ऊपर अच्छी तरह से चिपकाया। साथ में मं झुक कर उस शहद से चिपडे हुए लण्ड को चूसा भी। मुझे तब काफी तसल्ली हुई की मैं जेठजी से जरूर चुदवा लुंगी।

    मैंने जेठजी का सर पकड़ा और उन्हें मेरे ऊपर खींचा। मैंने उनका लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा और मेरी चूत के पास ले आयी ताकि वह समझ जाएँ की मैं उनसे चुदवाने के लिए कितनी चुदासी हो रही थी। मैंने उन्हें उनका लण्ड हिला कर इशारा किया की वह मुझ पर सवार हों, मेरी चूत से अपना लण्ड रगड़ें और मेरी चुदाई की शुरुआत करें। जेठजी जान गएँ की मैं उनसे चुदवाने के लिए कितनी बेबस थी।

    मेरे जेठजी भी मेरी बेबसी समझ रहे थे। वह फ़ौरन मुझ पर सवार हुए। मैंने अपनी टांगें चौड़ी की और मेरे जेठजी को मेरी टांगों के बिच में आने दिया। मैंने अपनी टांगें ऊँची की। जेठजी अपने लण्ड को अपने एक हाथ में पकडे हुए उसे हिलाते उसे मेरी चूत के पास लाने की कोशिश करने लगे। क्योंकी उनकी आँखों के ऊपर पट्टी बंधी थी इस लिए वह ठीक से अपने लण्ड को पोज़िशन नहीं कर पा रहे थे।

    मैंने उनका लण्ड अपनी हथेली में पकड़ा और प्यार से धीर से खिंच कर उसे मेरी चूत के केंद्र बिंदु के पास ले आयी। मेरे हाथ के खिंचाव से मेरे जेठजी भी खींचते हुए मेरी अद्धर चौड़ी की हुई टांगों के बिच में आ गए।

    आप उस समय की मेरी मनोदशा को शायद ही समझ पाएंगे। एक बहु जो अपने जेठजी को अपने पिता या ससुर से भी ऊंचा दर्जा देती हो पर जिसके मन के कोई अँधेरे कोने में एक ऐसी अभिलाषा छिपी हो जो हर कोई कामुक स्त्री किसी अत्यंत हैंडसम, वीर्यवान, मन पसंद पुरुष को देख कर अपने मन में अनायास ही पालती हो; उसे जब उसी पुरुष से चुदवाना के मौक़ा मिले तो उसकी मनोदशा क्या होगी? वही मनोदशा उस समय मेरी थी।

    इसे एक पुरुष के लिए समझना मुश्किल है और शायद एक औरत ही उसे समझ सकती है। मैं उस समय उम्मीद कर रही थी की हमारे करीब खड़ी माया जो मेरे नंगे बदन को बड़ी ही लोलुपता से देख रही थी, वह जरूर उस समय के मेरे मन के भाव समझ रही होगी।

    मैंने जब नम आँखों से माया की और देखा तो माया ने हलकी सी सहानुभूति भरी मुस्कान दे कर मुझे आश्वस्त किया की मैं जो करने जा रही थी वह सदा सर्वदा योग्य था और मुझे अपने आप को उसके लिए लेशमात्र भी दोषी या गुनेहगार समझने की आवश्यकता नहीं थी।

    मैंने देखा की माया भी जैसे कोई कामी लम्पट पुरुष किसी खूबसूरत नंगी औरत के बदन की तस्वीर या मूरत देख कर लोलुपता से प्लावित हो कर उस मूरत को अपने चेहरे पर असहायता का भाव लेकर उसे घूरता रहता है (क्यूंकि वह उस मूरत को कुछ कर नहीं सकता) वैसे ही भाव मुझे माया के चेहरे पर नजर आ रहे थे।

    शायद माया के मन में भी कहीं ना कहीं मेरे कमनीय नग्न बदन से खेलने की और उसे एक औरत जैसे भी भोग सकती है वैसे भोगने की प्रबल इच्छा उस समय पनप रही होगी। मैंने मन ही मन यह तय किया की मैं माया की उस इच्छा को मौक़ा मिलते ही जरूर पूरी करुँगी। मेरे लिए यह मेरा कर्तव्य था और माया का अधिकार भी था।

    मैंने अपना एक हाथ लंबा कर माया का एक हाथ थामा और मेरे मुंह से उसे चूम कर माया को मेरी कृतज्ञता का इजहार किया। माया ने भी थोड़ा करीब आ कर मेरी करारी जाँघ पर हाथ रख कर उसे प्यार से सेहला कर मूकदशा में ही मेरी सुंदरता और कामुक बदन की प्रशंशा की।

    उस समय मेरे जेठजी मेरी चूत से अपना लण्ड हलके से रगड़ कर उसे चिकना करने की कोशिश कर रहे थे। वैसे ही जेठजी का लण्ड उस समय अपने पूर्व रस से लथपथ चिकना था और हलकी रौशनी में चमक रहा था।

    मैंने जेठजी का लण्ड दुबारा अपनी उँगलियों से सही जगह पर रख कर मेरी चूत की पंखुड़ियों को अलग कर उस पर रगड़ कर और हल्का सा अपनी और खिंच कर उसे मेरी चूत की गहराइयों में प्रवेश करने की जैसे इजाजत देदी। मं आगे जो होने वाला था उसे आतंकित नहीं थी यह कहना गलत होगा।

    पर मैं उस मीठे जबरदस्त दर्द को झेलने के लिए मानसिक रूप से तैयार थी। मैं जानती थी ऐसे मोटे तगड़े और महाकाय लण्ड से चुदने में दर्द तो होता है पर वह दर्द भी अपने आपमें एक ऐसा उन्मादभरा आनंद देता है वह कोई स्त्री जिसे ऐसा अनुभव नहीं हुआ हो वह समझ नहीं सकती। पुरुष के लिए तो खैर वह समझना नामुमकिन ही है।

    उसी समय मेरे जेठजी ने कुछ ऐसा किया जिसे अनुभव कर मेरे धैर्य का बाँध टूट गया। जेठजी ने मेरा लण्ड मेरी चूत की सुरंग में थोड़ा घुसा कर, झुक कर मुझे अपनी बाँहों में कस कर जकड़ लिया और मेरे होँठों पर अपने होँठ कस कर भींच दिए और मेरे मुंह में अपनी जीभ डालकर मेरी लार को चूसने लगे।

    फिर अपने होँठों को मेरे कानों के करीब ला कर मेरे कानों में फुसफुसाते हुए बोले, “मेरी कमसिन खूबसूरत छाया, काश मैं तुम्हारे इस कमसिन, खूबसूरत नंगे बदन को दख पाता। तुमने मेरी आँखों पर यह पट्टी बाँध कर मेरे साथ बड़ा अन्याय किया है। पर फिर भी मैं यह कहना चाहता हूँ की तुमने आज मेरे साथ यह सुहागरात मनाकर मुझे जो सुख दिया है उसके लिए मैं तुम्हारा आजीवन ऋणी रहूंगा। मैं इस एहसान को चुकाने के लिए क्या करूँ यह मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।”

    मैंने कुछ ना बोलते हुए, मेरे जेठजी के होँठों से फिर अपने होँठ सख्ती से कस कर मिलाये और उनके मुंह में अपनी जिह्वा डालकर उनके मुंह की लार मैं चूसने लगी। मैंने उनका सिर ऐसे ताकत से पकड़ा जैसे मैं उसे आजीवन नहीं छोड़ने वाली थी। कुछ पलों के लिए मेरे जेठजी भी मेरी इस अचानक प्रतिक्रया से स्तब्ध और भावुक हो गए।

    उन्होंने एक हल्का सा धक्का मार कर अपना लण्ड मेरी चूत में कुछ और घुसेड़ा और बोले, “छाया आज तुम्हारी चूत गजब की सख्त और साथ साथ में लचीली महसूस हो रही है। मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम्हारी चूत तुमसे भी ज्यादा खूबसूरत और प्यारी है।

    मैंने पहले इतनी प्यारी सी चूत नहीं महसूस की।” मेरे जेठजी की बात सुन कर मेरी जान मेरी हथेली में आ गयी। कहीं उन्हें इस बात का अंदाज तो नहीं हो गया की मैं वाकई में माया नहीं दूसरी औरत थी?

    मैंने अपना सिर हिलाते हुए जैसे मेरे जेठजी की प्रशंषा को स्वीकार किया। जेठजी का लण्ड घुसने से मेरी चूत में असह्य पीड़ा हो रही थी।  पर जेठजी के प्यारे शब्द और उनका प्यार भरा चुम्बन मुझे ऐसे मदहोश बना रहा था की जैसे मैं उस दर्द को दर्द नहीं उन्माद भरा मीठे स्वाद सा अनुभव कर रही थी।

    जैसे कोई मरीज ऑपरेशन थिएटर में एनेस्थेसिया के इंजेक्शन के प्रभाव से अपने आपको मदहोश दशा में पाता है और उसकी चमड़ी को काटती हुई तेज छुरी से जो दर्द उसे वास्तव में हो रहा है उसे अनभिज्ञ वह उस उन्माद को अनुभव कर एक अजीब सी आनंद भरी दशा का अनुभव करता है; शायद मेरा भी उस समय वैसा ही हाल था। हालांकि ना चाहते हुए भी मरे मुंह से हलकी चीखें निकल रहीं थीं।

    मैंने मेरे असह्य दर्द से यह अनुभव किया की मेरे जेठजी का महाकाय लण्ड मेरी चूत के आखिरी कोने में घुस चुका था और शायद मेरी बच्चेदानी को ठोकर मार रहा था। मैंने थोड़ा सा ऊपर उठकर देखा तो पाया की मेरे जेठजी का अजगर सा लण्ड तब भी मुझे आधा बाहर दिख रहा था।

    बापरे अगर मेरे जेठजी ने अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसेड़ने की कोशिश की तो मेरी चूत का फटना या मेरी बच्चेदानी का तहस नहस हो जाना तय था। मैं मन ही मन प्रार्थना कर रही थी की मेरे जेठजी मेरी इस करुणा भरी दशा को समझेंगे और उतना ही लण्ड मेरी चूत में रख कर मुझे धीरे धीर चोदेंगे।

    जेठजी ने जरूर मेरी मनोदशा को भाँप लिया होगा, क्यूंकि उन्होंने उसके बाद अपना लण्ड धीरे से मुझे प्यार करते हुए वापस खिंच लिया और उसके कारण मुझे कुछ राहत का अनुभव हुआ। उन्होंने अपने दोनों हाथ में मेरे दोनों स्तनोँ को ऐसे जकड़ कर पकड़ रखा था जैसे अगर वह उन्हें छोड़ देंगे तो वह कहीं गायब ना हो जायें।

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