पड़ोसन बनी दुल्हन-33

This story is part of the Padosan bani dulhan series

    पता नहीं यह अजीबोगरीब ख़याल मेरे मन में क्यों आया। मेरे मन में ख़याल आया की कभी ना कभी मैं टीना या सुषमा को मेरे सामने किसी और मर्द या फिर सेठी साहब से ही चुदवा कर देखूं। पर सेठी साहब के साथ में ऐसा करना तो संभव ही नहीं था क्यूंकि एक बार जिसे सेठी साहब ने चोद दिया फिर वह औरत उस समय किसी और से चुदवाने के काबिल ही नहीं रहती। मैंने कुछ झुक कर मेरे ही लण्ड को सुषमा की चूत में चोदते हुए देखना चाहा। पर एकड़ झलक के सिवाय उसे साफ़ साफ़ देख नहीं पा रहा था।

    सुषमा के बेड पर मचलने से मैं यह समझ पा रहा था की सुषमा मेरे लण्ड से चुदने से काफी उत्तेजित लग रही थी। मेरे चुदाई के धक्के से सुषमा का पूरा बदन हिलने लगा था। सुषमा की चूँचियाँ अपनी उद्दंडता को भूल कर इधर उधर फ़ैल कर जैसे उड़ रहीं थीं। मैंने मेरे हाथ से उनको पकड़ कर सम्भाला।

    मुझे चुदाई करते हुए मेरे पार्टनर की चूँचियाँ मसलने में बड़ा ही उत्तेजना का अनुभव होता है। मैंने भी जो मेरे निचे लेट कर चुद रहीं थीं उन महिलाओं से भी सूना था की उन्हें भी चुदाई होते समय अपनी चूँचियाँ सेहलवाने, मसलवाने में बड़ी ही उत्तेजना का अनुभव होता है। मैं सुषमा की चूत में एक के बाद एक धक्के मार कर अपना लण्ड पेले जा रहा था।

    सुषमा इस लण्ड के धक्कों को खाने के लिए पता नहीं कितने महीनों से इंतजार में थी। कल की हमारी चुदाई से लगता था सुषमा को पूरी तरह संतुष्टि नहीं हुई थी। आज भी चुदाई में सुषमा उतनी ही या यूँ कहिये की और भी आक्रमक नजर आ रही थी। मेरे पुरे बदन में चुदाई करने के कारण जो वीर्य रस दौड़ रहा था उसका वर्णन करना मुश्किल था।

    मेरे बदन का एक एक स्नायु सख्ती से खींचा हुआ था। सुषमा की चूत हमारे रस से पूरी लबालब चिकनाहट से परिपूर्ण हो चुकी थी। मेरे लण्ड पेलने से “फच्च…. फच्च…” की आवाज हमारे दिमाग को घुमा रही थी।

    मैंने सुषमा को चोदते हुए उसके गाँड़ के गालों को चूँटी भरना शुरू किया। सुषमा बार बार अपनी गाँड़ पलंग ऊपर से उत्तेजना की दशा में हिला रही थी। जब भी में एक तगड़ी तीखी चूँटी भरता तो सुषमा के मुंह से “आह….. ” निकल जाती। वैसे भी सुषमा अपने मुंह से हर एक धक्के बाद “आह…. ओह….. है…..” करती रहती थी।

    सुषमा को चोद ने की मेरी बहुत महीनों से छिपी हुई अभिलाषा था जिसके कारण उसको चोदते हुए मेरा पूरा बदन उत्तेजना से सख्त हो रहा था। मेरे अंडकोष में मेरा वीर्य फुंफकार रहा था।

    मने अपने लण्ड को सुषमा की चूत में टेढ़ा मेढ़ा करना शुरू किया। इससे सुषमा को और तेज उत्तेजना का अनुभव होने लगा। साथ ही साथ में मैंने सहमा की चूँचियों को इतने जोर से दबाया की सुषमा कराहने लगी। मैंने फिर सुषमा की गाँड़ के गालों में भी फिर से जोर से तीखी चूँटी भरना शुरू किया। एक साथ यह तीनों काम से सुषमा काफी उन्मादक अवस्था में आ गयी। मैंने जब चुदाई की रफ़्तार और तेज कर दी तो सुषमा उसे झेल ना सकी और कुछ ही पलों में वह झड़ गयी। सुषमा के झड़ जाने पर मैंने उसको चोदने की रफ़्तार कम की।

    झड़ ने के बाद भी सुषमा का चुदाई का जोश बिलकुल कम हुआ हो ऐसा लग नहीं रहा था। मैं जैसे सुषमा की चूत में दुबारा से अपना लण्ड पेल रहा था तो सुषमा उससे दुगुने जोश से मेरे पेलने के जवाब में अपनी कमर और उसके निचे का बदन उछाल कर उसी मात्रा में जवाब दे रही थी। हमारी जुगल बंदी कुछ समय चली।

    अब झड़ ने की बारी मेरी थी। पुरुष और स्त्री के झड़ ने में एक बहुत बड़ा फर्क है। पुरुष अगर झड़ जाए तो अंडकोष में भरा उसके वीर्य का भण्डार भी खाली हो जाता है। अक्सर पुरुष के लण्ड का जोश उसके वीर्य की मात्रा से ही होता है। हाँ कई पुरुष कम मात्रा में वीर्य होने के बावजूद भी काफी तगड़ा चोदने की क्षमता रखते हैं।

    बल्कि कई बार उनके चोदने की क्षमता झड़ने के बाद बढ़ जाती है। पर ज्यादातर मर्द लोग झड़ने के बाद ढेर हो कर गिर पड़ते हैं और फिर बाद में ना तो उनमें चोदने की क्षमता रहती है ना ही इच्छाशक्ति। मैं भी उनमें से एक था।

    मैं जानता था की जैसे ही मैं झड़ गया, उसके बाद मैं सुषमा को चोदने की क्षमता नहीं जुटा पाउँगा। तो मुझे ब्रेक लगाना ही पडेगा ताकि मैं अभी ना झडूं, अगर मुझे सुषमा को ज्यादा देर चोदना है तो। शायद सुषमा को भी इस का अंदाज था। तो मैंने जैसे हीसुषमा को चोदना रोक दिया तो सुषमा समझ गयी की मैं झड़ ने के कगार पर हूँ और अभी झड़ना नहीं चाहता।

    सुषमा ने कहा, “चालु रखो राज साहब, झड़ना है तो झड़ जाओ मेरी चूतमें। रुको मत। बेशक दुसरा सेशन हो या ना हो पर मैं तो यही कहूँगी की हमारा पहला सेशन झकास रहा।”

    सुषमा की बात सुन कर मैं ने अपने अंडकोष पर लगाया हुआ प्रतिबन्ध खोल दिया और मेरे वीर्य का नलका खुल गया। जैसे ही मैंने दो तीन धक्के पेले, मेरे लण्ड के छिद्र में से वीर्य का फव्वारा सुषमा की चूत में सब तरह फैलने लगा।

    मुझे और सुषमा को भी मेरे वीर्य का उष्ण तापमान सुषमा की चूत की सुरंगों में महसूस हुआ। सुषमा मेरे वीर्य को उसकी चूत के सुरंगों में बहता महसूस कर मुझसे लिपट गयी और मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछने लगी, “सच बताओ राज, क्या तुम्हारे वीर्य के शुक्राणु मेरे अण्डों को फलीभूत कर पाएंगे? क्या मैं तुम्हारे वीर्य से माँ बन पाउंगी?”

    मैंने सुषमा को दिलासा देते हुए उसके नंगे बदन पर हाथ फिराते हुए कहा, “सुषमा, टीना मुझे कभी कंडोम के बगैर चोदने नहीं देती। जब जब भी पहले हम ने टीना के पीरियड के टाइम टेबल के अनुसार सलामत समय देख कर बगैर कंडोम के चुदाई की तब तब टीना विपरीत टाइम होने पर भी फटाक से गर्भवती हो गयी और हमें फ़ौरन बिना देर लिए उसका गर्भ निवारण करना पड़ा। सुषमा यही कहती है की मेरा वीर्य फटाक से स्त्री के अण्डों को पकड़ लेता है।

    इसी लिए वह कई बार मुझे मजाक में कहती है की मैं अगर किसी और स्त्री को चोदूँ तो खबरदार, कंडोम लगा कर ही चोदूँ, वरना वह बेचारी के बारह बज जाएंगे और अगर वह शादीशुदा हुई तो अपने पति को और अगर कंवारी हुई तो अपने रिश्तेदारों को जवाब देने लायक नहीं रहेगी। तुम निश्चिन्त रहो तुम मुझ से माँ बनने वाली हो। यह हमारी चुदाई बेकार नहीं जायेगी।”

    सुषमा को हर हालात में माँ बनना था। और मेरे वीर्य से ही माँ बनना था। यह उसने अपने मन में तय कर रखा था। उसके लिए मुझसे उसको चाहे जितनी चुदाई करवानी पड़े वह तैयार थी। मुझे उससे कोई शिकायत नहीं थी। उस रात मैं दुसरा सेशन करने के मूड़ में या यूँ कहिये की जोश में नहीं था।

    एक बार मेरे वीर्य का भण्डार खाली होने के बाद मुझमें वह क्षमता नहीं रही थी की मैं दुसरा सेशन कर सकूँ। पर सुषमा थोड़ी ही मानने वाली थी? सुषमा ने मेरे लण्ड को मुंह में ले कर इतनी दक्षता और प्यार से इतना चूसा की मेरा लण्ड खड़ा हो गया।

    पाठक मानेंगे नहीं पर दूसरे सेशन में मैंने सुषमा को घोड़ी बनाकर इतना तगड़ा चोदा की शायद उसे उस बार सेठी साहब की याद आयी होगी। यह मेरा मानना है। सुषमा चुदवाते जिस तरह सिसकारियां मार रही थी, मुहे कोई शक नहीं था की वह मेरी चुदाई को पूरी तरह से एन्जॉय कर रही थी।

    जब हम चुदाई से फारिग हुए तब सुषमा फ्रेश होने के लिए वाशरूम में गयी। कुछ देर सुषमा के निकलने का इंतजार कर सुषमा के निकलने के बाद मैं भी वाशरूम गया और कुछ स्वस्थ होकर पलंग के पास पहुंचा। मेरे पलंग पर पहुँच कर तकिये के सहारे बैठने पर सुषमा सिमट कर मेरी बाँहों में आ कर मुझसे छोटी बच्ची की तरह लिपट गयी और बोली, “कैसा रहा राज साहब? क्या मैं आपकी उम्मीद के मुकाबले ठीक रही की नहीं?”

    मैंने कुछ खिसियाने स्वर में कहा, “यह सवाल तो मुझे तुमसे पूछना चाहिए।”

    सुषमा ने कुछ शरारती अंदाज में जवाब देते हुए कहा, “अगर आप पूछ ही रहे हो तो मैं यह कहूँगी की सेशन ठीक ही रहा।अब देखिये मैं सेठी साहब की बीबी हूँ और उनकी चुदाई की आदि हो चुकी हूँ, तो जाहिर है की कुछ तो कमी महसूस होगी। पर खैर अगर मैं तुमसे माँ ही बन गयी तो मेरा मकसद पूरा हो जाएगा।”

    मैंने जिद करते हुए पूछा, “खैर मैं मानता हूँ की मैं सेठी साहब के मुकाबले खरा नहीं उतर सकता। पर तुम्हें खुश होने के लिए मेरे जैसे आम आदमी से तुम्हें क्या चाहिए? यह तो बताओ?”

    सुषमा ने कुछ झिझक के साथ कहा, “कैसे बताऊँ राजजी? मुझे चुदाई में कुछ नयापन चाहिए। ऐसा कुछ जो आजतक हमने किया ना हो।”

    मैंने सर खुजलाते हुए पूछा, “चुदाई में हर तरह का नयापन तो हमने किया। और हम क्या कर सकते थे? कोई काले बड़े ही तगड़े लण्ड से चुदवाना चाहती हो? वह तो तुम्हारे घरमें ही है। और क्या कर सकते हैं? क्या दो मर्दों से चुदवाना है? यह हमने नहीं किया।”

    सुषमा मेरी बात सुनकर एकदम खिल उठी और बोली, “क्या यह हो सकता है?”

    मैंने कहा, “क्यों नहीं हो सकता? मैं और सेठी साहब तुम्हें चोद सकते हैं।”

    सुषमा ने कहा, “बापरे बाप! सेठी साहब खुद तीन मर्दों के बराबर हैं। ऊपर से तुम। जब चार मर्दों से चुदवाना होगा तब सोचूंगी। अभी तो दो मर्द ही ठीक रहेंगे।”

    सुषमा की बात सुनकर मेरा माथा ठनक गया। इन औरतों का दिमाग तो भगवान ही जाने उन्होंने कैसा बनाया है। सेठी साहब की चुदाई बहुत ज्यादा तगड़ी लगती है। मेरी चुदाई उतनी तगड़ी नहीं लगी सुषमा को शायद। अब वह शायद सोच रही है दो मर्दों से चुदवाए। अब यह दुसरा मर्द कहाँ से लाऊँ?

    खैर, रात क करीब एक बजे मैं सुषमा से इजाजत ले कर अपने घर चला गया।

    मुझे पक्का भरोसा था की दो दिन की चुदाई से सुषमा की मेरे वीर्य माँ बनने की प्रमुख जरुरत तो पक्की पूरी होगी। पर अब माँ बनने से भी आगे सुषमा को कुछ नयापन लाना था चुदाई में।

    मुझे भरोसा था की मैं जिस किसी मर्द को पसंद कर लूंगा तो शायद सुषमा उससे चुदवा लेगी। सुषमा को मुझे पर इस बात के लिए तो पूरा यकीन था। पर ऐसे वैसे इंसान को ऐसे निजी मामले में कैसे पसंद किया जाए? इंसान भरोसे का होना चाहिए। ऐसा भी ना हो जो बाद में वह आदमी सुषमा को चुदाई के लिए या फिर पैसों के लिए परेशान करता रहे। उसे ब्लैक मेल करे।

    आखिर में सुषमा से अलग होते हुए मैंने सुषमा को जब पूछा, “क्या तुम्हें सिर्फ नयापन ही चाहिए या मैं रात को आऊं?”

    तब सुषमा ने नाराज होते हुए कहा, “अरे नयापन की बात तो मैंने वैसे ही कह दी थी। सेठी साहब और टीना ने हमें तीन दिन दिए हैं। तीन दिन तो हम मिल कर तगड़ी चुदाई करेंगे यह तो पक्की बात है। इसमें नयेपन की बात कहाँ से आयी? कहीं तुम मुझसे बोर तो नहीं हो गए?”

    मैंने कुछ रक्षात्मक ढंग में कहा, “नहीं यह बात नहीं। मुझे लगा तुम नयेपन पर कुछ ज्यादा ही जोर दे रही थी।”

    सुषमा ने मेरे गाल पर हलकी सी टपली मार कर कहा, “अरे नहीं, मेरे भोले राजा। शामको आ जाना मैं तुम्हारा इंतजार करुँगी।”

    सुषमा की यह बात सुनकर मैंने राहत की साँस ली। दो मर्दों से चुदवाना सुषमा के लिए भी मुश्किल होगा और किसी और अनजान पराये मर्द के सामने अपने आप को नंगा करना मेरे लिए भी अजीब होगा। आखिर समाज में मेरा अपना भी एक स्टेटस था। सुषमा और मेरे पास बस एक ही शाम तो बची थी। अगले दिन टीना और सेठी साहब वापस आ जायेंगे। एक शाम तो हम चुदाई में निकाल देंगे। फिर देखते हैं क्या कुछ हो सकता है।

    हालांकि मैं ऑफिस में काफी काम में उलझा हुआ था पर बार बार मेरे मन में सुषमा की वह नएपन की बात जाती नहीं थी। खैर जैसे तैसे मैंने वह दिन निकाला और शाम को मैं पहले अपने घर जाकर जो कुछ काम घरमें करना था किया और फ्रेश हो कर मैं सुषमा के घर पहुंचा।

    मैंने दरवाजे की घंटी बजायी। जब दरवाजा खुला तो मुझे लगा जैसे मेरे पाँव के निचे से जमीन खिसकने लगी थी। मेरी आँखें शायद ठीक से देख नहीं पा रहीं थीं। क्यूंकि मेरे सामने मेरे साले साहब खड़े थे। मुझे यह समझ में नहीं आया की साले साहब कब आये और सुषमा के घर कैसे पहुंचे? कुछ झिझकती हुई आवाज में मैंने पूछा, “साले साहब, आप यहां? आप तो कहीं टूर पर गए थे ना?”

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