Drishyam, ek chudai ki kahani-8

This story is part of the Drishyam, ek chudai ki kahani series

    हेल्लो दोस्तों, अब आगे की कहानी पढ़िए!

    इधर अर्जुन को उस दिन वह मौक़ा मिला जिसकी उसे हफ़्तों से तलाश थी। जब वह घर पहुंचा तो चाचा चाची खाना खा कर अपने बैडरूम में जा चुके थे। अर्जुन ने रोशनदान से जब छुप कर देखा तो पाया की चाचा और चाची दोनों नग्न हालत में बिस्तर पर लेटे हुए थे।

    चाचा चाची की चूँचियों से खेल रहे थे और चाची चाचाके लण्ड को हिला रही थी। चाचा फिर उठ खड़े हुए और चाचीजी की टाँगें फैला कर उसकी टाँगों के बिच में अपना मुंह घुसा कर चाचीजी की चूत को चाटने लगे। यह देख कर अर्जुन भी अपना लण्ड निक्कर से निकाल कर सीढ़ी पर बैठ कर हलके से हिलाने लगा।

    चाचीजी की चूत को अच्छी तरह चाटने और चाचीजी को काफी गरम करने के बाद चाचाजी चाचीजी के ऊपर सवार हो गए और अपना लण्ड चाचीजी की चूत में घुसेड़ कर उन्हें चोदने लगे। चाचाजी की भरी हुई गाँड़ अर्जुन अच्छी तरह से देख सकता था।

    चाचीजी की दोनों टाँगें चाचा जी के कन्धों पर रखी हुई थीं। अर्जुन जहां था वहाँ से उसे चाचीजी ठीक से नहीं दिख रहीं थीं पर चाचाजी का लण्ड चाचीजी की चूत में अंदर बाहर होते हुए उसे भली भाँती दिख रहा था।

    चाचा चाची की अच्छी तरह से चुदाई देखते हुए अर्जुन भी अपना लण्ड जोर से हिला कर अपना माल निकाल रहा था। जब तक चाचाजी चाचीजी की चुदाई कर चुके थे तब तक अर्जुन भी अपना माल निकाल चुका था।

    जब चाचा चाची की चूत में अपना माल डाल चुके थे और थकान के मारे धीरे से चाची के गोरे बदन पर लुढ़क कर लेट गए थे तब अचानक अर्जुन को ध्यान आया की सिम्मी तब तक आयी नहीं थी। दूकान से लौटते हुए एक बार अर्जुन ने देखा था की कालिया की मिनी ट्रक वहीँ से निकली थी

    अचानक अर्जुन के दिल में भयावह ख्याल आया की कहीं कालिया दूकान पर तो नहीं गया और सिम्मी को अकेला पाकर उसको परेशान तो नहीं कर रहा था।

    मन में ऐसा ख्याल आते ही सीढियाँ से छलाँग मार कर उतर कर बाहर का दरवाजा हलके से बंद करके एकदम अर्जुन दूकान की और भागा। जब वह दूकान के करीब पहुँचने वाला ही था तब दूरसे उसने कालिया को ट्रक में बैठ कर ट्रक को दूकान से दूसरी और तेजी से भगाते हुए देखा।

    अर्जुन को यकीन हो गया की उस दिन उसकी बहन के साथ जरूर कालिया ने कुछ गलत किया था। भागता हुआ अर्जुन दूकान पर पहुंचा और शटर उठा कर दुकान के अंदर घुसा। अर्जुन ने जब दीदी को काउंटर पर नहीं देखा तो वह कुछ घबरा सा गया। कालिया जो सामन की डिलीवरी लेकर लाया था वह सामान काउंटर के सामने ही रक्खा हुआ था।

    उतने में ही बेसमेंट में से अर्जुन को दीदी की कराहें सुनाई दी। फ़ौरन वह जब सीढ़ियां कूद कर निचे पहुंचा तो दीदी बेहाल नंगी गद्दे पर आधी लेटे हुए और आधी बैठी हुई पड़ी थी। दीदी का नग्न गदराया हुआ बदन अर्जुन ने पहेली बार देखा। सिम्मी के मदमस्त स्तनों को बिना ढके हुए अर्जुन ने पहली बार देखा था।

    दीदी का नंगा बदन देख कर कुछ पल के लिए तो अर्जुन का मन किया की वह दीदी को अपनी बाँहों में लपेट ले और उसकी चूँचियों को खूब मसले, दबाये और रगड़े। पर दीदी बेहाल हालत में बैठी हुई थी। दीदी का हाल देख कर वह घबरा गया।

    दीदी का निचला हिस्सा खून से लिपटा हुआ था। गद्दे पर भी खून के दाग थे। दीदी पुरे होश में नहीं थी। अर्जुन ने जब थोड़ी दूर से “दीदी, दीदी” कह कर पुकारा तब दीदी अर्जुन की आवाज सुनकर कुछ चौंक सी गयी और धीरे से दीदी ने आँखें खोलीं। अर्जुन ने देखा तो दीदी मदहोश से हाल में थी।

    अर्जुन ने दीदी के कपडे उठाये और उन्हें दीदी के बदन पर फेंकते हुए दूसरी और देखते हुए अर्जुन बोला, “दीदी, यह कपडे पहन लो। लगता है वह साले कालिया ने आप के ऊपर जबरदस्ती की। मुझे आपको अकेले छोड़ कर नहीं जाना चाहिए था। दीदी मैं उसको छोडूंगा नहीं। मैं उसे मार डालूंगा।”

    सिम्मी ने अर्जुन की बात सुनकर टूटेफूटे शब्दों में कहा, “वह सब बाद में सोचना। पहले मुझे कपडे पहन लेने दे।

    दीदी बोलने की हालत में नहीं थी यह जान कर अर्जुन ने आगे बढ़ कर दीदी का हाथ पकड़ा और दीदी के नंगे बदन की और ना देखते हुए दीदी को कहा, “दीदी मैं घर जाकर फ़टाफ़ट साइकिल ले कर आता हूँ। आप घर तक शायद ही चल पाओ। मैं आपको साइकिल पर बिठा कर घर ले जाऊँगा। आप तब तक कपडे पहन कर तैयार हो जाओ।”

    यह कह अर्जुन छलांग लगाता हुआ घर की और भागा और फ़ौरन अपनी साइकिल निकाल कर वापस पहुंचा। दीदी कपडे पहन कर शटर बंद कर दूकान के बाहर खड़ी अर्जुन का इंतजार कर रही थी।

    घर में एकदम शान्ति थी। चाचा चाची सो चुके थे। दबे पाँव से अर्जुन और सिम्मी सीढ़ियां चढ़ते हुए सिम्मी के कमरे की और पहुंचे। घर पहुँचते ही अर्जुन ने दीदी से पूछा, “दीदी, बताओ ना, क्या हुआ? कालिया ने ही आपके साथ यह घटिया हरकत की है ना? मुझे बताओ दीदी। मैं उसे ज़िंदा नहीं छोडूंगा।”

    घर पहुँचने पर भी सिम्मी का हाल बुरा था। सिम्मी का रोना बंद नहीं हो रहा था। सिम्मी ने अर्जुन का हाथ थाम कर कहा, “तू रहने दे। तू क्या मुकाबला करेगा कालिया का? अब तुम चुप रहो। अभी किसीसे कुछ मत बोल। बदनामी तो मेरी ही होगी ना? अब तुम जाओ। मुझे आराम करने दो।” यह कह कर सिम्मी ने अर्जुन को विदा किया।

    अर्जुन जब अपने कमरे में आया तो उसके मन में घमासान चल रहा था। अर्जुन भली भाँती जानता था की दीदी की बात गलत तो नहीं थी। वह कालिया का मुकाबला कभी नहीं कर सकता था। पर फिर वह चाचा और चाचीजी से क्या कहेगा? यह सोचते सोचते वह कब सो गया उसे पता ही नहीं चला।

    इधर सिम्मी घर पहुँचते ही बाथरूम में जाकर नहायी। जैसे नहाने से सारा किया हुआ ख़तम हो जाएगा। सिम्मी का पुरे बदन में दर्द हो रहा था। उससे ठीक से चला ही नहीं जा रहा था। जैसे तैसे वह पलंग पर पहुंची और ढेर बनकर पलंग पर गिर पड़ी। थकी हुई सिम्मी को कुछ ही देर में गहरी नींद ने घेर लिया।

    सिम्मी पता नहीं कितने घंटे सोई होगी पर चाची की आवाज सुन कर उठ गयी। जब उठी तो चाची उसको हिलाकर जगा ने की कोशिश कर रही थी। सिम्मी ने आधी नींद में ही आँख खोली तो पाया की उसकी जाँघों के बिच में खून चिपका हुआ था उसके धब्बे हलके से कपड़ों के ऊपर दिख रहे थे। चाची ने जब वह धब्बे देखे तो चाची की आँखें फटी की फटी रह गयीं। चाची ने प्यार से सिम्मी के बालों में उंगली फिरते हुए पूछा, “सिम्मी बेटी, क्या बात है? क्या हुआ?”

    चाची की नजर सीम्मी की जाँघों के बिच में टिकी हुई थी। सिम्मी चाची के गले से लिपट गयी और सुबक सुबक कर जोर से रोने लगी। चाची को समझने में देर नहीं लगी की सिम्मी के साथ जरूर कुछ गंभीर अनहोनी घटी है। चाची ने सिम्मी को गले लगाते हुए बड़े प्यार से पूछा, “क्या बात है? मेरी बच्ची, क्या चाची को जो सब कुछ हुआ वह नहीं बताएगी?”

    चाची के प्यार भरे शब्द जैसे सिम्मी सुन ही नहीं पा रही थी। सिम्मी ऐसी लग रही थी जैसे कोई पत्थर की मूर्ति हो। चाचीजी ने सिम्मी को काफी हिलाया, काफी झकझोरा और सिम्मी की बेहोश सी दशा में से बाहर लाने की कोशिश की पर आँखें खुली होते हुए भी सिम्मी जैसे कुछ देख ही नहीं पा रही थी।

    काफी कोशिश करने के बाद चाची को रोना आ गया। सिम्मी का हाल चाचीजी से देखा नहीं जा रहा था। जैसे ही चाचीजी के रोने की आवाज सिम्मी के कानों में पड़ी, तो सिम्मी भी चाचीजी के साथ साथ रोने लगी।

    चाचीजी ने सिम्मी को होश में आते हुए देख कर सिम्मी को फिर से गले लगा लिया और फिर से बड़े प्यार से सिम्मी के बालों में उंगलिया फिराते हुए प्यार से पूछा, “बेटी, बेझिझक तुम मुझे जो कुछ हुआ उसे कहो। मैं तुम्हारी माँ जैसी हूँ।”

    चाचीजी के प्यार भरे वचन सुनकर कर सिम्मी का रोना और भी तेज़ हो गया। वह डरती हुई चारों और देख कर बोली, “मैं जब दूकान में थी तब वह कालिया ने मेरे साथ गलत काम कर दिया।”

    चाची समझ गयी की कालिया ने सिम्मी का चुदाई किया था। चाची ने कुछ भी ना बोलते हुए सिम्मी के पलंग पर बैठ गयी। सिम्मी को अपने साथ बिठा कर सिम्मी का सर अपनी गोद में लिया और सिम्मी के घुंघराले बालों में अपनी उंगलियां फिराते हुए चुपचाप बैठी रही।

    चाचीजी के मन में बड़ा मंथन चल रहा था। हर औरत जानती है की किशोरावस्था पार करते हुए उसे कभी ना कभी कुछ ना कुछ जबरदस्ती सेक्सुअल अनुभव होते रहते हैं।

    आसपास वाले या फिर पराये मर्द किशोरियों के बदन के साथ कुछ ना कुछ हरकतें करते ही हैं। कुछ लडकियां ऐसे अनुभवों को एन्जॉय करती हैं पर ज्यादातर लड़कियों को इसके कारण मानसिक त्रास और हीनता का अनुभव होता है।

    गोद में लेटी हुई सिम्मी के गालों पर अपनी उंगलियां प्यार से फिराते हुए कुछ देर के बाद चाचीजी ने कहा, “देखो बेटी, मैं जानती हूँ की तुम्हारे साथ क्या हुआ। हर औरत को कहीं ना कहीं, कभी ना कभी कुछ हद तक सेक्सुअल ज्यादती का सामना करना पड़ता है।

    कुछ औरतों के साथ चुदाई होता है तो कुछ औरतों के बदन को मर्द लोग जबरदस्ती छू लेते हैं या उसे परेशान करते हैं। यह सच है की जिंदगी में सेक्स एक हकीकत है जिसे हम नकार नहीं सकते। हर पुरुष और स्त्री हवस का शिकार होते हैं। अपनी मर्जी से सेक्स किया जाय तो वह सुखदायक होता है।

    अगर जबरदस्ती की जाए तो वही सेक्स त्रासदायक लगता है। पर यह होता रहता है। मानव में पशु भाव होता है। ऐसे पशुओं से बचने के लिए हमें ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए। पर अगर ऐसा कुछ हो जाता है जिंदगी तो बर्बाद नहीं करनी चाहिए ना? तुम शांत हो कर सोचो की अब तुम्हें क्या करना है।”

    सिम्मी ने अपना सर उठाकर जब प्रश्नात्मक दृष्टि से चाचीजी की और देखा तो चाचीजी ने कहा, “तुम्हारे पास दो विकल्प हैं। पहला यह की हम अभी ही पुलिस में जाएँ और शिकायत करें और कालिया को पकड़वा दें। कालिया को सजा होगी और वह जेल में भी जा सकता है। पर इसके लिए तुम्हें कोर्ट जाना पडेगा, केस चलेगा, वकील लोग सौ तरह के उलटे पुल्टे सवाल पूछेंगे, लोग तरह तरह की बाते करेंगे, कई तरह की टिका टिपण्णी करेंगे तुम्हारे पीछे अखबार वाले पड़ जाएंगे और और समाज में, कॉलेज में और हर जगह तुम्हारी फजीहत होगी…

    दुसरा विकल्प यह है की जो हुआ वह हुआ। तुम कालिया से दूर रहो और अगर वह जबरदस्ती तुम्हारे करीब आने की कोशीश करे तो फिर हम पुलिस में जा कर उसे पकड़वा सकते हैं। तब भी उसे छेड़खानी और पीछा करने के लिए भारी सजा हो सकती है। अब तुम कहो की तुम्हें क्या करना है? गुस्से की ज्वाला में जलने की बजाय शान्ति से सोचो।”

    सिम्मी चाचीजी की बात सुनकर चुप रह कर सोचने लगी। उसे चाचीजी की बात में काफी वजन लगा। चाचीजी सच ही कह रही थीं। शायद उन्हें भी अपने समय में यह सब झेलना पड़ा होगा। पर उससे भी बड़ी बात कुछ और थी।

    उसे बड़ा ही अजीब सा लगा की कालिया के इतनी जबर्दस्ती चुदाई करने के बावजूद भी सिम्मी के मन में कालिया के प्रति पहले जैसी नफरत नहीं महसूस हो रही थी।

    सिम्मी ने जरूर अपने आप को अपमानित हुए महसूस किया पर जो घृणा और तिरस्कार सिम्मी को पहले कालिया के प्रति था वह भाव अब सिम्मी के जहाँ में नहीं रहा था।

    पढ़ते रहिये कहानी आगे जारी रहेगी!

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