पड़ोसन बनी दुल्हन-29

This story is part of the Padosan bani dulhan series

    सेठी साहब ने जैसे इसे सूना तो मारे उत्तेजना के वह अपने वीर्य को रोक नहीं पाए और एक गहरी सांस लेकर बोल पड़े, “टीना, मैं अब मेरा माल छोड़ रहा हूँ। इसे अब सम्हालना तुम्हारा काम है। ओह……. आह्हः…….” की आवाजें करते हुए सेठी साहब ने अपने लण्ड में से गरमा गरम वीर्य का फव्वारा मेरी चूत में छोड़ दिया।

    मेरी चूत की पूरी सुरंग एकदम गरम हो गयी। कहीं ना कहीं मुझे ऐसा लगा की मेरी बच्चा दानी में सेठी साहब के किसी ना कसी अणु ने मेरे अणु से मिल कर उसे फलीभूत कर ही दिया था। मुझे भरोसा हो गया की सेठी साहब के इस वीर्य से मैं जरूर बच्चे का गर्भ धारण करुँगी।

    जब भाभी सा ने देखा की सेठी साहब ने चुदाई रोक दी है और अपना लण्ड मेरी चूत में रखे हुए उन्होंने मुझे कस कर अपने बाहुपाश में ऐसे लिया है की अगर वह मुझे और जोर से दबाएंगे तो मेरी हड्डियों का तो कचुम्बर ही निकल जाएगा और मेरी चूत की सुरंग में अपना गरमागरम वीर्य फव्वारे सा छोड़ कर मेरी चूत को लबालब भर दिया है तब वह बड़ी खुश हुई और तालियां बजा बजा कर गाने लगी,

    “लण्ड जकड़ गयो चूत में छोड़के अपणो माल, कहत अबीर लुगाई के होगो तगड़ो बाल।”

    इसका मतलब की जब कोई लण्ड किसी औरत की चूत में एकदम फिट बैठ जाए (जो छूटा ने की कोशिश करने पर भी ना छूटे – जैसे कुत्ता कुतिया चुदाई करते हुए चिपक जाते हैं वैसे) और फिर फिट ही रहते हुए वह अपना माल उस चूत के अंदर छोड़ दे तो समझना की वह औरत एक तगड़े बच्चे को जनम देगी। राजस्थान का यह अश्लील गलियारों में काफी प्रचलित दोहा मेरी परिस्थिति में बिलकुल फिट बैठ रहा था।

    मेरी चूत में सेठी साहब ने जब अपना पूरा अंडकोष में भरा हुआ वीर्य खाली कर दिया तब उन्होंने मेरी आँखों से आँख मिलाई और मुस्कुरा कर मेरे होँठों से अपने होँठ मिलाये। कुछ देर प्यार भरा चुम्बन करने के बाद सेठी साहब अपना सिर थोड़ा ऊपर कर बोले, “मुझे लगता है की हमारे बच्चे की आत्मा ने तुम्हारे पेट में प्रवेश कर बालक रूप ले लिया है। अब तुम वाकई में ना सिर्फ मेरी पत्नी बन गयी हो, अब तुम मेरे बच्चे की माँ भी बनोगी।”

    मैंने सेठी साहब की नज़रों से कुछ पल नजरें मिलायीं फिर नजरे नीची कर कहा, “मैं यही तो चाहती हूँ।”

    सेठी साहब के अपना वीर्य मेरी चूत में पूरी तरह से खाली कर देने के बाद फिर हम ने चाय का अल्पविराम रखा। अब तो भाभी बस मुझे ही सेठी साहब से चुदवाने पर आमादा थी। वह चाहती थी की सेठी साहब मुझे बार बार चोदे और अपना वीर्य बार बार मेरी चूत में उँडेले।

    कहीं न कहीं कभी ना कभी तो उनका कोई शुक्राणु मेरे अणु से मिल कर उसे फलीभूत करेगा। उस रात भाभी ने सेठी साहब से तीन बार मेरी चूत में वीर्य स्खलन करवाया। अब मेरी भाभी ऐसे करने लगी जैसे उन्होंने ने मुझे सेठी साहब से गर्भवती बनाने की ठान ही ली हो।

    उस रात मेरी तीन बजे तक चुदाई हुई। मैं क्या बताऊँ, सेठी साहब का लण्ड तो कहर ढा ही रहा था मेरी चूत पर, पर भाभी भी कुछ कम नहीं थी। भाभी बार बार सेठी साहब को जोश दिलाती, कभी उनके लण्ड के इर्दगिर्द अपनी दोनों हथेलियों की उँगलियों से रिंग बना कर सेठी साहब के अंदर बाहर हो रहे लण्ड को और उत्तेजित करना तो कभी चुदाई के चलते मेरी चूत की पंखुड़ियों को सहलाते रहना।

    भाभी ने मुझे दो बार तो घोड़ी बनवाया और सेठी साहब से चुदवाया। जब मुझे घोड़ी बनायी तब खुद ही बोलती की सेठी साहब मेरी गाँड़ नहीं मारेंगे क्यूंकि उनको माल चूत में डालना है, गाँड़ में नहीं। साथ में सेठी साहब को मेरी तरफ से यह भी वचन दे दिया की मैं सेठी साहब से जरूर गाँड़ मरवाउंगी पर एक बार मेरा गर्भ रह जाए। जब मैं घोड़ी बन के सेठी साहब से चुदवा रही थी तो भाभी मेरे आगे लेट कर मुझसे अपनी चूँचियाँ चुसवा रही थी और मेरी चूँचियों को जोर से मसल रही थी।

    भाभी ने मुझसे चुदवाते हुए कई बार यह बोलते हुए अपनी चूत चुसवाई की “ननद सा, सेठी साहब से चुदवाने के सारे मजे तो आप ले रहे हो तो मुझे कुछ मजे तो लेने दो।”

    उस रात मैंने कई बार कोशिश की की भाभी सेठी साहब से चुदवाये पर भाभी इसी जिद पर अड़ी थी की जैसे ही मैं सेठी साहब से गर्भवती होने का पक्का पुष्टिकरण कर दूंगी फिर भाभी सेठी साहब से इतना चुदवाएगी की मेरा नंबर भी नहीं लगने देगी। भाभी ने सेठी साहब से भी इसके लिए समर्थन पा लिया।

    मैंने भी भाभी को सेठी साहब से चुदाई करवाते हुए बहुत प्यार किया। सेठी साहब बेचारे को हम लोगों के स्तनोँ को सहलाने का बहुत कम मौक़ा मिला क्यूंकि या तो मैं भाभी के स्तनों को चूस, सेहला, मसल और काट रही थी या तो भाभी मेरे। भाभी को भले ही सेठी साहब ने उस रात बादमें चोदा ना हो, पर मैंने भाभी की चूत में उंगलियां डालकर उनको कई बार झड़ने का मौक़ा दिया।

    मेरी उंगली चोदन से भाभी कई बार झड़ गयी। मैं एक औरत होने के नाते जानती हूँ की जब मैं भाभी की चूत को मेरी उँगलियों से चोद रही थी तब भाभी को सेठी साहब के तगड़े लण्ड से चुदवाने का कितना ज्यादा मन हुआ होगा।

    पर उन्होंने गज़ब का संयम रखा और ना सिर्फ एक बार भी मुंह से बोला की वह चुदवाना चाहती है बल्कि जब भी मैंने या सेठी साहब ने इच्छा जताई की भाभी की बारी है सेठी साहब से चुदवाने की तो भाभी एकदम गुस्सा करती हुई उन्होंने उस रात सेठी साहब को मजबूर किया की वह ना सिर्फ मुझे तगड़े से चोदे बल्कि बार बार अपना माल मेरी चूत में उंडेलते रहें। मेरी भाभी का यह एहसान मैं जिंदगी भर भूल नहीं सकती।

    तीन बजे सोने के बाद भी भाभी सुबह छे बजे अपना काम करने के लिए तैयार हो कर निचे पहुँच गयी। मुझे उन्होंने कहा की मैं तभी नीच उतरूं जब वह बुलाये। भाभी पुरे दिन घर के काम में लगी रही और मुझे निचे नहीं बुलाया। मैं दिन में काफी सोती रही। दो तीन बार मेरे पति राज का फ़ोन आया तो मैंने उन्हें सब बात संक्षिप्त में समझाई।

    पता नहीं कैसे पर मुझे पिछली रात यह तसल्ली हो चुकी थी की सेठी साहब ने मुझे गर्भवती बना दिया था। मैंने तय किया था की आखरी रात मैं भाभी को सेठी साहब से खूब चुदवाउंगी और मैं उन दोनों के बिच में नहीं आउंगी।

    तीसरी और आखिरी रात में जब भाभी सारा काम निपटा कर ऊपर आयी तब मैंने भाभी की एक ना सुनी और जिद पकड़ी की आज की रात भाभी को ही सेठी साहब से चुदवाना है। इस मामले पर काफी झंझट हुई। काफी कश्मकश और गरमागरम बहस के बाद यह तय हुआ की सेठी साहब पहले भाभी को चोदेंगे और फिर बादमें मुझे चोदेंगे।

    सेठी साहब ने यह वचन दिया की वह अपना वीर्य सिर्फ मेरी चूत में ही डालेंगे। उस रात सेठी साहब काफी फॉर्म में थे। उस रात उन्होंने मुझे और भाभी को चार चार बार लम्बे अरसे तक चोदा। मुझे समझ में नहीं आया की सेठी साहब इतने लम्बे अरसे तक बिना वीर्य छोड़े भाभी को करीब एक घंटे तक अलग अलग पोजीशन में कैसे चोदते रहे।

    उसके बाद जब उन्होंने मुझे चोदना शुरू किया तो उनका लण्ड पहले की ही तरह तगड़ा, कड़क, सख्त लोहे के छड़ की तरह खड़ा हुआ था। उसके बाद मुझे भी सेठी साहब चोदते रहे। सेठी साहब ने भाभी की तरह मुझे भी ऊपर से, पीछे से, साइड में से और ऊपर चढ़ा कर चोदा। आखिर में जब मैंने सेठी साहब से कहा की मेरी चूत में सूजन हो सकती है, तब कहीं जा कर सेठी साहब ने अपना वीर्य मेरी चूत में छोड़ा।

    उस रात सेठी साहब के साथ हमारी चुदाई करीब करीब पूरी रात चली। सुबह के चार बजे तक सेठी साहब हमें बारी बारी चोदते रहे। पर मैं अगर यह कहूं की हम तीनों में से कोई भी एक मिनट के लिए थका या बोर नहीं हुआ।

    हालांकि मुझे मेरी चूत में सूजन महसूस हो रही थी और जब सेठी साहब ने कहा की चार बजने वाले हैं और उन्हें काम पर जा कर मीटिंग अटेंड करनी है तब जा कर मैंने सेठी साहब से कहा की मेरी चूतमें भी सूजन महसूस हो रही थी और वह अपना वीर्य मेरी चूत में डालकर उस रात की चुदाई को संपन्न करें, तब सेठी साहब ने अपनी मर्जी से उनका वीर्य मेरी चूत की सुरंगों में छोड़ा।

    जब सब काम हो चुका तब भाभी ने मेरे कान पर एक बात आ कर कही जिससे मैं चौक गयी। भाभी ने कहा, “ननद सा, मैं क्या कहुँ, मुझसे एक भारी गलती हुई गयी।”

    मैंने भाभी का हाथ थाम कर कहा, “भाभी सा, एक तो क्या, आज के दिन आपकी सौ गलतियां माफ़ हैं, चाहे वह कितनी ही बड़ी क्यों ना हो।”

    फिर भाभी ने मेरे कान में जो कहा, उसे सुन कर मैं पूरी की पूरी सुन्न रह गयी। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे पाँव के निचे से जमीन फट गयी। ऊपर से आसमान टूट पड़ा। मैंने भाभी से कहा, “भाभी सा, आपने यह क्या किया? अरे मुझ से तो पूछ लिया होता।”

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