संस्कारी शिवानी बनी रंडी-1 (Sanskari Shivani bani randi-1)

रामपुर का वह छोटा-सा शहर, जहाँ सुबह की पहली किरणें भी लगता है शर्माती हुई चली जाती हैं। हमारा घर शहर के किनारे पर था, एक पुरानी हवेली जैसी जगह, जहाँ चारों तरफ हरियाली और शांति बसी हुई थी। पापा का ट्रांसफर हो चुका था, वो दिल्ली चले गए थे, और मम्मी उनके साथ। अब घर में सिर्फ मैं, गोविंद, और मेरी छोटी बहन शिवानी। मैं 22 साल का था, इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर चुका था और घर पर ही एक छोटी-सी जॉब कर रहा था। लेकिन असली कहानी तो शिवानी की थी।

शिवानी, मेरी वो प्यारी बहन, जिसकी उम्र अभी-अभी 19 की हुई थी। कॉलेज की पहली कक्षा में एडमिशन हो गया था उसका, रामपुर के ही गवर्नमेंट गर्ल्स कॉलेज में। वो हमेशा से ही बहुत सादी-सादी रही। लंबे काले बाल, जो कमर तक लहराते थे, बड़ी-बड़ी आँखें जो हमेशा नीची रहतीं, और वो मुस्कान जो देखने वाले को शरमा दे।

घर में वो हमेशा सलवार-कमीज पहनती, कभी जींस-टॉप जैसा कुछ नहीं। संस्कारी, शर्मीली, और इतनी सीधी कि कभी किसी लड़के की तरफ नज़र उठा कर भी नहीं देखती। मम्मी-पापा की प्यारी बेटी, और मेरी वो रक्षा करने वाली बहन। लेकिन अब कॉलेज जाना था। नई दुनिया, नई दोस्तियाँ, और वो सब कुछ जो एक लड़की के जीवन में बदलाव लाता है।

सुबह का समय था। मैं किचन में चाय बना रहा था जब शिवानी नीचे आई। उसकी नई यूनिफॉर्म पहन कर – सफेद शर्ट और नीली स्कर्ट, जो कॉलेज की ड्रेस थी। बालों में रिबन बाँधा हुआ, और चेहरे पर वो हल्की-सी घबराहट। “भईया,” उसने धीमी आवाज में कहा, “कॉलेज जाना है आज। तुम ड्रॉप कर दोगे ना?”

मैंने मुस्कुराते हुए चाय का कप उसके हाथ में थमा दिया। “अरे हाँ यार, क्यों नहीं? तू तो मेरी राजकुमारी है। चल, तैयार हो जा।” वो शरमाई, कप नीचे करके बोली, “भईया, ये स्कर्ट… थोड़ी छोटी लग रही है ना? घर में तो सब ठीक था, लेकिन बाहर…”

उसकी आँखें नीची हो गई। मैंने उसकी तरफ देखा। स्कर्ट घुटनों के ऊपर तक थी, जो उसके लंबे पैरों को थोड़ा उजागर कर रही थी। शिवानी का शरीर अब किशोरावस्था से निकल कर युवावस्था में आ चुका था। पतली कमर, उभरी हुई छाती जो शर्ट के नीचे हल्की-सी सिल्हूट बना रही थी। लेकिन वो इतनी अनजान थी इन सब बातों से।

“अरे कुछ नहीं, कॉलेज में सब यही पहनती हैं। तू चिंता मत कर,” मैंने कहा, लेकिन मन ही मन सोचा – आज से मेरी छोटी बहन बड़ी हो रही है। रास्ते में स्कूटर पर हम दोनों निकले। शिवानी पीछे बैठी, अपनी बाहें मेरी कमर पर हल्के से लपेटे हुए। हवा के झोंके उसके बालों को उड़ा रहे थे, और कभी-कभी उसके गाल मेरी पीठ से छू जाते। “भईया, कॉलेज में लड़के भी तो होंगे ना? मैं तो घबरा रही हूँ,” उसने कान में फुसफुसाया। मैं हँसा, “घबराने की क्या बात? तू तो इतनी सुंदर है, सब तेरी फैन हो जाएँगी। बस, अपनी संस्कृति मत भूलना।”

कॉलेज पहुँच कर मैंने उसे गेट पर उतारा। वो घूम कर बोली, “शाम को जल्दी आना, भईया। घर अकेला लगेगा।” मैंने उसके माथे पर हाथ फेरा, “हाँ रानी, आऊँगा। पढ़ाई पर ध्यान देना।” वो मुस्कुराई और अंदर चली गई। मैं वहीं खड़ा रहा, उसे जाते देखते हुए। उसके कदमों की धीमी गति, स्कर्ट का हल्का फड़कना… कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। घर लौटते हुए मन में एक ख्याल आया – शिवानी अब बदलने वाली है। और शायद, ये बदलाव हमारे रिश्ते को भी छुएगा।

शाम को वो लौटी तो थकी-थकी सी। “भईया, आज क्लास में एक लड़का था, नाम राहुल। वो तो घूरता ही रहा मुझे। मैं तो शर्मा गई,” उसने बताया, चाय पीते हुए। मैंने हँस कर कहा, “अरे, घूरने दो। तू अपनी राह चल।” लेकिन अंदर ही अंदर जलन सी हो रही थी। मेरी शिवानी, किसी और की नजरों में? रात को सोते समय, मैंने सोचा – कल से क्या होगा? कॉलेज की वो दुनिया उसे कैसे बदलेगी?

कॉलेज के पहले ही दिन से शिवानी की जिंदगी में हलचल मच गई थी। मैं, गोविंद, भी उसी कॉलेज में था – बी.टेक का फाइनल ईयर। रामपुर का ये गवर्नमेंट कॉलेज पुराना था, लेकिन स्टूडेंट्स की भीड़ हमेशा गुलजार रखती। लड़के-लड़कियाँ, हँसी-मजाक, और वो छिपी हुई नजरें जो नई-नई आई लड़कियों पर टिक जातीं। शिवानी को मैंने पहले ही चेतावनी दे दी थी – “दूर रहना उनसे जो गलत नजर रखते हैं।” लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था।

दूसरे दिन कॉलेज पहुँचते ही मुझे पता चला। कैंटीन के बाहर, मेरे दोस्तों ने घेर लिया। “गोविंद, सुना तेरी बहन आई है? वाह यार, क्या माल है! लेकिन सावधान, राहुल की नजर पड़ी है उस पर।” राहुल – वो नाम सुनते ही मेरी भौंहें सिकुड़ गई। राहुल सिंह, कॉलेज का वो गुंडा टाइप का लड़का, जिसकी फैमिली शहर में पैसे और रसूख की मालकिन थी। लंबा-चौड़ा कद, टैटू से सजा शरीर, और वो घमंडी मुस्कान जो किसी को भी डरा दे।

साल भर पहले हमारी लड़ाई हुई थी। एक पार्टी में उसने मेरी एक दोस्त को छेड़ा था, मैंने बीच में आकर उसे धक्का दिया। सबके सामने अपमानित हुआ वो, लेकिन उस वक्त कुछ ना बोला। बस, आँखों में वो आग सुलगा ली जो अब धीरे-धीरे भड़कने वाली थी।

मैंने दोस्तों को टाल दिया, “बकवास मत करो। शिवानी को कुछ मत बोलना।” लेकिन मन में बेचैनी हो रही थी। क्लास के बाद मैंने शिवानी को ढूँढा। वो लाइब्रेरी में थी, किताबों के बीच बैठी, नोट्स बना रही। उसके चेहरे पर वो मासूम चमक थी, शर्ट की बटन ऊपर तक बंद, स्कर्ट सलीके से घुटनों पर। मैं उसके पास बैठा, “कैसा रहा आज? कोई परेशानी?” वो मुस्कुराई, “नहीं भईया, सब अच्छा। बस, वो राहुल… आज फिर क्लास में मेरे पास आया। बोला, ‘हाय शिवानी, नया एडमिशन? मैं हेल्प कर दूँगा।’ मैंने नजरें नीची कर लीं, लेकिन वो हँसा और चला गया।”

मेरा खून खौल उठा। राहुल? मेरी बहन के पास? मैंने कहा, “उससे दूर रहना। वो ठीक नहीं है।” शिवानी ने आश्चर्य से पूछा, “क्यों भईया? तुम जानते हो उसे?” मैंने कुछ ना कहा, बस उसके हाथ थामे। उसके हाथ कितने नरम थे, उँगलियाँ पतली और ठंडी। “हाँ, जानता हूँ। बस, वादा कर, अकेले ना जाना कहीं।” वो सिर हिलाई, लेकिन उसकी आँखों में एक हल्की सी जिज्ञासा थी, वो नई दुनिया का रोमांच, जो एक संस्कारी लड़की को भी छू लेता है।

शाम को घर लौटे तो शिवानी थकी हुई थी। डिनर के बाद वो अपने कमरे में चली गई। मैं लिविंग रूम में बैठा टीवी देख रहा था, लेकिन मन कहीं और था। रात के 11 बज गए। अचानक दरवाजे की घंटी बजी। मैंने झाँका तो बाहर राहुल खड़ा था – जींस और टी-शर्ट में, सिगरेट का धुआँ उड़ाते हुए। “गोविंद भाई, मिलना था। अंदर आऊँ?” उसकी आवाज में वो झूठी मिठास। मैंने दरवाजा खोला, लेकिन अंदर ना आने दिया। “क्या बात है? इतनी रात को?”

वो मुस्कुराया, “बस, तेरी बहन के बारे में। कॉलेज में देखा उसे। बहुत क्यूट है ना? संस्कारी टाइप। लेकिन यार, कॉलेज में सब बदल जाते हैं। मैं तो बस हेल्प करना चाहता हूँ।” उसके शब्दों में वो छिपा हुआ व्यंग्य था। मैंने गुस्से से कहा, “दूर रहना उससे। वरना…” वो हँसा, “वरना क्या? याद है ना, लास्ट ईयर वाली बात? अब बदला लेने का टाइम है। तेरी वो संस्कारी बहन… मैं उसे अपनी कुत्तिया बना लूँगा। देखना, वो मेरी गोद में लेटेगी, तेरी तरह चिल्लाएगी।” उसके शब्द जैसे चाकू थे। मैंने झपट्टा मारा, लेकिन वो भाग गया, हँसते हुए। “अभी तो शुरुआत है, भाई। कल से मजा आएगा।”

रात भर नींद ना आई। शिवानी सो रही थी, बेखबर। मैं उसके कमरे के बाहर खड़ा रहा, सोचता रहा – कैसे बचाऊँ इसे? लेकिन कहीं ना कहीं, एक गलत ख्याल भी आया। राहुल की बातें… शिवानी का वो बदन, जो अब खिल रहा था। क्या वो भी कभी… नहीं! मैंने सिर झटका। सुबह उठ कर मैंने फैसला किया – आज से शिवानी को कड़ी निगरानी में रखूँगा। लेकिन कॉलेज पहुँच कर पता चला, राहुल ने अपना जाल बिछाना शुरू कर दिया था।

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