बड़ी बहन के साथ छुप-छुप कर बदन की आग बुझाई-7 (Badi behan ke sath chhup chhup kar badan ki aag bujhayi-7)

पिछला भाग पढ़े:- बड़ी बहन के साथ छुप-छुप कर बदन की आग बुझाई-6

इंडियन फैमिली सेक्स कहानी अब आगे-

स्नेहा दीदी फिर एक बार बैंगलोर काम के लिए चली गई, और मैं अकेला रह गया। उनके बिना सब कुछ एक-दम आम सा लगने लगा। पहले हमारी बात-चीत मोबाईल के जरिए होती थी, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने मुझे जवाब देना कम कर दिया।

कभी मैं कॉल करता तो वह बिजी होने का बहाना बना देती, और मैसेज का जवाब घंटों बाद आता। पहले जो मुस्कान और अपनापन उनकी आवाज़ में झलकता था, वह अब गायब था। धीरे-धीरे मैंने महसूस किया कि वह मुझे नज़र-अंदाज़ करने लगी हैं।

मैं अक्सर सोचता कि अगर उस दिन मैंने उनकी मर्ज़ी के बिना कुछ करने की कोशिश ना की होती, तो शायद आज वह अब भी मुझसे वैसे ही बात करती। यह पछतावा मेरे मन में हमेशा बना रहा और हर बार उनकी दूरी को महसूस करते हुए और भी गहरा हो जाता।

दो महीने बीत गए और मैं खुद को रोक नहीं पाया। मैंने तय किया कि अब मुझे उनसे मिलना ही था। मैंने मम्मी-पापा से कुछ नहीं कहा, बस इतना बोला कि मैं दोस्तों के साथ ट्रिप पर जा रहा था।

कुछ देर इंतज़ार के बाद मैंने दरवाज़े पर दस्तक दी। हल्की आहट हुई और दरवाज़ा खुला। सामने स्नेहा दीदी खड़ी थी। दो महीने बाद उन्हें देख कर दिल जैसे थम गया। चेहरे पर वही हल्की मुस्कान थी, लेकिन आँखों में गहराई और अपनापन और भी बढ़ गया था। उनके खुले बाल कंधों पर बिखरे हुए थे और हल्की रोशनी में उनकी खूबसूरती और निखर रही थी।

मैंने देखा कि उन्होंने हल्का गुलाबी रंग का नाइट ड्रेस पहन रखा था। कपड़ा पतला और ढीला था, जिससे उनका बदन साफ झलक रहा था। नाइट ड्रेस के अंदर उनका उभार साफ दिखाई दे रहा था, जैसे कपड़े पर हर हल्की हरकत का असर पड़ रहा हो। उनकी छाती का आकार ड्रेस के भीतर दबा हुआ भी था और उभरा हुआ भी, मानो कपड़े उनकी खूबसूरती को छिपाने की बजाय और उभार रहे हो। चलते समय उनके स्तनों में हलकी-सी लय पैदा हो रही थी, जो मेरी नजरें उनसे हटा ही नहीं पा रही थी।

दो महीने बाद उन्हें इस तरह सामने देख कर दिल बेकाबू हो रहा था। मैं बस चुपचाप खड़ा उन्हें देखता रहा, जैसे मेरी आँखें उनसे भर ही नहीं पा रही थी। उस नाइट ड्रेस में उनकी हर हल्की झलक मुझे भीतर तक बेचैन कर रही थी, और मैं यह सोच ही नहीं पा रहा था कि आखिर दो महीने बाद यह पल कितना खास बन गया था।

उन्होंने हल्की हैरानी के साथ पूछा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

उनके सवाल का जवाब देने की बजाय मैंने अचानक आगे बढ़ कर उन्हें अपनी बाँहों में भर लिया। मेरी बाहों की पकड़ में उनका बदन सिमट आया। उनकी छाती मेरे सीने से इतनी मजबूती से लगी थी कि उनके स्तनों की गोलाई और नरम-पन सीधे मेरी धड़कनों से टकरा रहे थे। उस नाइट ड्रेस की पतली परत के पार उनकी गर्माहट महसूस हो रही थी, मानो मेरे सीने में धड़कते दिल को उनका हर स्पर्श और भी तेज कर रहा हो।

उनके स्तन मेरी छाती से दब कर फैलते हुए और उभरते हुए से महसूस हो रहे थे, जैसे उनकी हर हल्की हरकत मेरी साँसों को और भारी बना रही हो। उनके बदन की खुशबू मेरे नथुनों में भर गई और उस पल मैं सब कुछ भूल गया। बस, उनका सीना मेरे सीने से लगा हुआ और वह मुलायम अहसास जिसने मुझे पूरी तरह से जकड़ लिया था।

उनकी साँसें भी तेज़ हो गई थी, मैं महसूस कर रहा था कि उनके स्तनों की हर धड़कन मेरी धड़कनों के साथ तालमेल बना रही थी। वह पल इतना गहरा और लम्बा था कि लगता था समय वहीं थम गया है।

कुछ पल बाद मैंने धीरे से उन्हें अपनी बाहों से अलग किया। उनके हाथ में फूल रख कर मैंने धीमी आवाज़ में कहा, “सॉरी दीदी… पिछली बार जो हुआ, उसके लिए। लेकिन सच कहूँ तो मैं आपके बिना जी ही नहीं पा रहा हूँ।”

उन्होंने फूल तो ले लिए, लेकिन चेहरे पर अब भी नाराज़गी झलक रही थी। उनकी आँखों में गुस्सा और उदासी दोनों का मिला-जुला भाव था। उन्होंने बस इतना कहा, “अंदर आओ।”

मैं धीरे से कमरे में दाख़िल हुआ और जाकर सोफ़े पर बैठ गया। दीदी फूलों को टेबल पर रखने झुकी तो मेरी नज़र अपने आप नीचे खिंच गई। नाइट ड्रेस के ढीले गले से उनका गहरा क्लीवेज साफ दिखाई दे रहा था। उनके उभार बीच से दबे हुए से लग रहे थे और उस दरार में उनकी ब्रा की हल्की झलक भी दिख गई।

वह झुकने का पल जैसे लंबा हो गया। उनकी छाती की गहराई मेरी आँखों में उतर रही थी। ब्रा का किनारा और उनके स्तनों का मुलायम-पन मिल कर ऐसा पल बना रहे थे जिससे नजरें हटाना नामुमकिन हो गया। वह दरार इतनी गहरी और भरी हुई थी कि मुझे लगा जैसे पूरा कमरा उसी नज़ारे से भर गया हो। उनकी हरकत के साथ वह क्लीवेज और भी उभर कर सामने आया, जिसने मेरी साँसों की गति और तेज़ कर दी।

मैं सोफ़े पर जड़-सा बैठा बस उनकी झलक देखता रह गया, जैसे मेरे सामने किसी ने छुपा हुआ राज़ खोल दिया हो और मैं उसमें डूबता जा रहा था।

मैंने अपनी आँखें झट से हटाई और तुरंत महसूस किया कि दीदी ने देख लिया कि मैं उनके क्लीवेज पर नज़रें गड़ा रहा था। उन्होंने अपने नाइट ड्रेस से अपने स्तनों को ढकते हुए कहा “तुम्हें कॉफी चाहिए?”

मैंने हाँ में सिर हिलाया। वह रसोई की तरफ बढ़ी और मैं भी धीरे-धीरे उनका पीछा करते हुए रसोई में गया। दीदी ने पानी गरम किया और कॉफी बनाने लगी। जैसे ही वह बर्तन के पास झुकी, मैं उनके पीछे जाकर उन्हें कस कर गले लग गया। मेरी बाहों में उनका बदन सिमट गया।

दीदी ने घबरा कर कहा, “तुम क्या कर रहे हो?”

मैंने धीमे स्वर में कहा, “मैंने तुम्हें बहुत मिस किया, दीदी।”

मेरे हाथ उनकी छाती तक पहुँच गए और मैंने धीरे-धीरे उनके स्तनों को दबाना शुरू कर दिया। दो महीनों की दूरी के बाद जब मेरी हथेलियों में उनकी मुलायम गोलाई महसूस हुई, तो मेरा पूरा शरीर सिहर उठा। जैसे सारी बेचैनी, सारी कमी उस स्पर्श में उतर आई हो। उनके स्तनों की गर्माहट और उनका भारीपन मेरी हथेलियों में भर कर मुझे पागल कर रहे थे। मैं हर दबाव के साथ और भी डूबता जा रहा था, मानो यही वो लम्हा था जिसकी कमी मुझे दो महीने से तड़पा रही थी।

दीदी की साँसें तेज़ हो गई। शुरू में उन्होंने हल्की सी कराह के साथ मेरे दबाव को सहा, लेकिन कुछ ही देर बाद उनके हाथ धीरे-धीरे मेरे हाथों को रोकने लगे। वह हौले से सिमटती और मुझे पीछे हटाने की कोशिश करती। उनके शरीर की नर्मी अब भी मेरी उंगलियों में धड़क रही थी, लेकिन उनका हल्का इनकार मुझे यह एहसास दिला रहा था कि वह अभी भी उलझन में थी।

मैं उनकी नर्मी में डूबा हुआ था। उनके स्तनों को छूते ही जैसे दो महीने का इंतज़ार एक पल में उमड़ आया। मगर जैसे ही मैंने अपना हाथ उनके नाइट ड्रेस के अंदर सरकाने की कोशिश की, उन्होंने अचानक सख़्त लहजे में कहा “स्टॉप।”

उनकी आवाज़ में चेतावनी साफ़ थी, लेकिन उस वक़्त मेरे कान जैसे बंद हो गए थे। मैंने उनकी बात को नज़र-अंदाज़ किया और भी बेबाकी से उनके सीने की ओर बढ़ा। मेरी उंगलियाँ फिर से उनके स्तनों को पकड़ना चाहती थी।

तभी उन्होंने पूरे ज़ोर से मुझे धक्का दिया। मैं पीछे की ओर लड़खड़ा गया। उनका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। उन्होंने एक पल भी देर न की और मेरे गाल पर ज़ोरदार थप्पड़ मारा। उस एक वार ने कमरे की हवा को जैसे जला दिया।

उनकी आँखों में गुस्सा और दुख दोनों झलक रहे थे। उन्होंने काँपती लेकिन बेहद कठोर आवाज़ में कहा, “मैं तुम्हारी बड़ी बहन हूँ… तुम्हारी रखैल नहीं। यह बात याद रखना।”

उनके शब्द मेरे कानों में हथौड़े की तरह गूँजे। मैं सुन्न खड़ा रह गया, दिल की धड़कनें बेकाबू थी, और मुझे एहसास हुआ कि मैंने एक सीमा लाँघ दी थी जो शायद कभी पार नहीं करनी चाहिए थी।

मैंने सिर झुका कर धीरे से कहा, “सॉरी दीदी।” और बिना कुछ और बोले धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर चल पड़ा।

मेरे कदम भारी थे, जैसे हर कदम पर पछतावे का बोझ हो। तभी पीछे से उनकी आवाज़ आई “कहाँ जा रहे हो?”

मैंने पलट कर देखा, आँखें नम थी। मैंने धीमे स्वर में कहा, “घर… अब मुझे जाना चाहिए।”

टेबल पर रखे वे फूल, जिन्हें मैंने लाकर दिया था और जिन्हें उन्होंने अनदेखा कर वहीं छोड़ दिया था, मेरी नज़र में चुभने लगे। मुझे लगा अब उनकी कोई अहमियत नहीं रही। मैंने उन्हें उठाया, और पास पड़े डस्टबिन में डाल दिया।

दिल में टीस उठी कि शायद अब उन्हें मेरी ज़रूरत नहीं, बल्कि वह मुझसे नफ़रत करने लगी थी। मैंने आख़िरी बार कमरे पर नज़र डाली, और फिर दरवाज़ा खोल कर उनके अपार्टमेंट से बाहर निकल गया। गलियारे की ठंडी हवा मेरे चेहरे पर लगी, जैसे किसी सज़ा का अहसास कराती हो।

मैं नीचे सड़क पर आया और एक टैक्सी पकड़ी। टैक्सी की खिड़की से बाहर शहर की रोशनियाँ धुंधली-सी लग रही थी। थोड़ी दूर जाकर मैंने ड्राइवर से गाड़ी रोकने को कहा। दिल नहीं मान रहा था सीधे घर जाने का। मैंने टैक्सी से उतर कर बस-स्टॉप पर जाकर बेंच पर जगह ले ली।

वहाँ बैठा-बैठा आधा घंटा बीत गया। ठंडी हवा चल रही थी, और मैं खामोश सोचों में डूबा था। दिमाग़ में पुराने दिन घूम रहे थे, वो पल जब दीदी मुझे अपने मुँह से खुश कर देती थी, जब उनका सीना मेरे सीने से लगता था, जब उनकी नर्मी में मैं डूब जाता था। उनकी जाँघों और पिछवाड़े की वह गर्माहट, जिनसे मुझे सुख मिला था। सब यादें मेरे सीने पर चोट करती रहीं।

अब लगा जैसे वह सब बीते ज़माने की बातें हों। शायद आज के बाद वह मुझसे नफ़रत करने लगी थी। शायद मैंने ही एक बड़ी भूल कर दी थी। दिल में डर और अपराधबोध दोनों जगह बना रहे थे।

मैं बेंच पर झुका, माथा हथेलियों पर टिका कर सोच में डूबा ही था कि अचानक किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। मैंने सिर उठा कर देखा तो वो दीदी थी। उन्हें सामने देख कर मैं एक-दम से खड़ा हो गया। मेरी आँखों में हैरानी थी, क्योंकि मैंने सोचा था अब वो मुझसे बात तक नहीं करेंगी।

लेकिन अब उनका रूप अलग था। उन्होंने अपना नाइट ड्रेस बदल लिया था। अब वो एक ढीली टी-शर्ट और छोटे शॉर्ट्स में थी। उनकी खुली टाँगें हल्की स्ट्रीटलाइट में चमक रही थी और टी-शर्ट के अंदर उनके सीने का आकार साफ़ दिख रहा था।

मैंने काँपती आवाज़ में पूछा, “दीदी… आप यहाँ? आप क्या कर रही हो?”

उन्होंने कुछ नहीं कहा। बस मेरी आँखों में सीधे देखते हुए और क़रीब आ गई। मेरे होंठ आधे खुले थे, सवालों से भरे, लेकिन उनके कदम मुझे किसी और ही जवाब की ओर ले जा रहे थे।

बिना कुछ बोले वो मेरे बिल्कुल सामने खड़ी हो गई। फिर उन्होंने अचानक अपना चेहरा मेरे पास लाकर अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए।

उस पल मेरी साँसें थम गई। दो महीने की सारी दूरी, दर्द और पछतावा जैसे उस छुअन में पिघल गया। दीदी के नरम होंठ मेरे होंठों पर कस कर दबे हुए थे। उनके होंठों की गर्माहट और मिठास ने मेरे पूरे जिस्म को हिला दिया।

मेरे भीतर तूफ़ान सा उठ रहा था। मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि ये सपना है या हक़ीक़त। दीदी ने किसी तरह का डर या हिचक नहीं दिखाया। यहाँ तक कि बस-स्टॉप पर लोग मौजूद थे, पर उन्हें कोई परवाह नहीं थी।

वो मुझे ऐसे चूम रही थी जैसे मैं उनका छोटा भाई नहीं बल्कि उनका पति या प्रेमी हूँ। उनकी साँसें मेरी साँसों में घुल रही थी। मैंने आँखें बंद कर ली और खुद को पूरी तरह उस पल में खो दिया।

मेरे दिल की धड़कनें इतनी तेज़ थी कि लगता था बाहर सुनाई देंगी। उनके हाथ मेरी पीठ पर कसते चले गए और मेरा पूरा शरीर उनकी पकड़ में खोता चला गया। उस चूमने में गुस्से का कोई निशान नहीं था, बस चाहत, अपनापन और एक अनकही तड़प थी, जो मेरे अंदर गहराई तक उतरती चली गई।

दीदी ने होंठ अलग किए तो उनकी आँखों में नमी थी। उन्होंने कांपती आवाज़ में कहा “सॉरी गोलू…” और उनके होंठ फिर से मेरे होंठों पर आ टिके। वह लगभग रो रही थी, पर उनके चूमने में इतनी गहराई और सच्चाई थी कि मेरा दिल पिघल गया।

मैंने तुरंत उनके होंठों को और कस कर पकड़ लिया, अपने होंठों की ताक़त से उन्हें दिखाना चाहा कि मैं उनसे नाराज़ नहीं था, बस उन्हें चाहता था। मेरी ज़रूरत वही थी। मेरा ग़ुस्सा, मेरा दर्द, सब कुछ उसी पल उनके होंठों में बह गया।

धीरे-धीरे हमारे होंठ एक लय में चलने लगे। कभी वो मुझे दबाती, कभी मैं उन्हें। हमारी साँसें तेज़ होकर एक-दूसरे से मिलती जा रही थी। उनकी सिसकियाँ और मेरी चाहत मिल कर एक नये जुनून में बदल रही थी।

हर चूमने के साथ लग रहा था जैसे हम दो महीने की दूरी को मिटा रहे हों। मेरी उँगलियाँ उनकी पीठ पर कस कर जमी थी और उनका हाथ मेरी गर्दन पर। हम दोनों एक-दूसरे में खो चुके थे। वो मुझे ऐसे चूम रही थी जैसे डर गई हों कि कहीं मैं उन्हें छोड़ ना दूँ। और मैं उन्हें ऐसे चूम रहा था जैसे बताना चाहता हूँ कि वो मेरी पूरी दुनिया थी।

कुछ देर बाद दोनों धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए वापस उनके अपार्टमेंट की ओर लौटे। जब हम कमरे में पहुँचे तो मेरी नज़र टेबल पर गई, वहीं फूल रखे थे जिन्हें मैंने गुस्से में डस्टबिन में फेंक दिया था। पता नहीं कब और कैसे, पर वो फिर से टेबल पर सजे हुए थे, जैसे हमारी दूरी को मिटाने का इशारा कर रहे हो।

दीदी आगे-आगे चल रही थी और मैं उनके पीछे। उनकी टी-शर्ट और शॉर्ट्स में झूलती चाल देख कर मेरा मन बेकाबू हो रहा था। मैंने खुद को रोकना चाहा लेकिन चाहत ने कदमों पर क़ाबू पा लिया। मैंने अचानक पीछे से उन्हें पकड़ने की कोशिश की। लेकिन जल्दबाज़ी में मेरा पैर फिसला और मैं सीधे ज़मीन पर गिर पड़ा। गिरते हुए मैं उन्हें भी साथ खींच लाया। पल भर में उनका शरीर मेरे नीचे दब गया।

हम दोनों फर्श पर थे, मेरी छाती उनकी छाती पर कस कर दब रही थी। उस दबाव में उनके स्तनों की गर्माहट और नरमी मेरे सीने से चिपक गई। हमारी साँसें तेज़ थी और उनकी आँखें मेरी आँखों के बिल्कुल सामने।

मैंने धीरे से फुसफुसाया, “दीदी… कहीं चोट तो नहीं लगी?”

उन्होंने गहरी साँस लेते हुए सिर हिलाया “नहीं… मैं ठीक हूँ।”

उनके शब्द सुन कर मेरे भीतर फिर से चाहत उमड़ आई। मैं झुका और एक बार फिर उनके होंठों को अपने होंठों से थाम लिया। इस बार चूमना और गहरा था, और मेरी ज़ुबान उनकी ज़ुबान से मिलने लगी। हमारे होंठों का टकराव अब बेक़ाबू हो चुका था। मैं उन्हें ऐसे चूम रहा था जैसे उन्हें अपने भीतर समा लेना चाहता हूँ। दीदी की साँसें तेज़ थी, उनकी उँगलियाँ मेरी पीठ पर कस रही थी।

इसी दौरान मेरा हाथ धीरे-धीरे नीचे खिसकता चला गया। मैं उनके शॉर्ट्स की ओर बढ़ा। उनकी गरम जाँघों पर मेरी उँगलियाँ फिसली और मैंने अपना हाथ उनके शॉर्ट्स के अंदर सरकाना शुरू कर दिया। दीदी हल्की-सी काँपी, उनकी साँसों में घबराहट और चाहत दोनों थी। लेकिन मैंने उनके होंठों को और कस कर थाम लिया, मानो उन्हें यक़ीन दिला रहा था कि मैं उनसे दूर नहीं होने दूँगा। उस पल फर्श पर लेटे हुए हम दोनों चाहत की आग में पूरी तरह डूब चुके थे।

मैं आखिरकार उनकी पैंटी तक पहुँच गया। बड़ी सावधानी से, मैंने धीरे-धीरे अपनी उँगलियाँ उनके पैंटी के अंदर फिसलाई। मेरी उँगलियाँ उनकी नर्मी और गर्माहट को महसूस कर रही थी। हर हल्की हरकत पर वह कांप उठती, उसकी साँसें तेज़ हो जातीं और होंठ मेरे होंठों के साथ जुड़े रहते। मैं धीरे-धीरे, प्यार और धीरज के साथ, उसके अंदर की नाजुक जगह को सहलाता रहा।

उसकी हल्की कराह और साँसों की रफ्तार मुझे और पास खींच रही थी। इस दौरान मैं लगातार उसे चूम रहा था, हमारे होंठ और हाथ एक साथ उसके शरीर की हर हरकत को महसूस कर रहे थे। धीरे-धीरे मैंने उसे और गहराई से सहलाना शुरू किया, हर स्पर्श और हर चूमने के साथ उसकी हरकत को अपने अंदर समेटते हुए।

जैसे ही मुझे लगा कि अब वह और कोई विरोध नहीं कर रही है, मैंने धीरे से अपनी दो उँगलियाँ उसके नाज़ुक हिस्से के अंदर डालना शुरू किया। पहली बार जैसे ही उँगलियाँ अंदर गई, उसकी साँसें और भी तेज़ हो गई। मैं धीरे-धीरे उन्हें अंदर और बाहर हिला रहा था, हर हरकत को उसके शरीर की हरकतों के हिसाब से कर रहा था। उसकी हल्की कराहें और शरीर का कंपन मुझे यह संकेत दे रहे थे कि उसे अब मेरी हरकतों में आनंद मिल रहा था। मैं अपनी उँगलियों की गति को सावधानी और प्यार के साथ बढ़ाता रहा, हर पल उसके चूमने और शरीर की हरकत को महसूस करते हुए।

कुछ देर बाद उसने हाँफते हुए कहा, “मैं आज सामने से भी आज़माना चाहती हूँ।” उसकी साँसें तेज़ और तेज़ हो रही थी, और उसकी आँखों में एक नई चाहत झलक रही थी।

मैं उसके शब्दों को ठीक से समझ नहीं पाया। उलझन में उसकी ओर देखता हुआ मैंने धीरे से पूछा, “दीदी, आप क्या चाहती हैं?”

उसने बिना झिझक कहा, “मैं चाहती हूँ कि तुम्हारा लंड मेरी चूत में हो।” यह सुनते ही मुझे पूरी तरह समझ आ गया कि मेरी दीदी मेरे लिए तैयार थी, मेरे लिए हर दर्द सहने के लिए तैयार थी।

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