पिछला भाग पढ़े:- सहेली के भैया ने मेरी सील तोड़ी-2
थोड़ी देर एक-दूसरे के होंठ को ऐसे ही चूसते रहे। राकेश भैया लगातार मेरे होठों को चूसने के साथ मेरी गालों को अपनी हथेलियां से खरोच रहे थे, और मेरे मुलायम गालों को रगड़ के लाल कर दिया।
जब हम दोनों का चुंबन खत्म हुआ, तब हम दोनों एक-दूसरे से नज़र थोड़ी देर के लिए चुरा लिए शर्म के कारण, और हम दोनों बुरी तरह से हाफ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे हम कितनी मेहनत किए हो।
तभी कमरे में हलचल हुई और माया करवट बदली। फिर हम दोनों बिल्कुल अलग हो गए, और राकेश भैया अपनी किताब को समेटने लगे। मैं भी अपनी किताब को समेट कर एक तरफ रख दी। फिर राकेश भैया मेरी ओर देखने लगे और मैं उनकी तरफ।
राकेश भैया फिर से मेरे पास आए, और मुझे अपने बाहों में दबोच लिया। मेरी छाती उनकी छाती से दब गई। मेरा शरीर उनके शरीर से रगड़ खाने लगा, और उनकी गर्म सांसे मेरे चेहरे पर महसूस हो रही थी। मैं अपने हाथ को उनके गले में डाल दी, और वह अपने हाथ को मेरी कमर में लपेट लिए, और फिर से वो मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर चूसने लगे।
थोड़ी देर होंठ चुसाई के बाद हम अलग हुए। राकेश भैया लगातार मेरे चेहरे को चूम रहे थे। कभी मेरे गालों को चूमते, कभी मेरे गर्दन पर चूमते, तो कभी मेरे होंठ को चूमते। इस तरह उनके चुंबन से मेरे अंदर भूचाल उत्पन्न हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी बुर में से पानी की नल खुल गई हो। मैं अंदर बहुत ही सनसनी महसूस कर रही थी।
फिर हम अलग हुए और लगभग 10:00 बज गए थे। इसलिए राकेश भैया बोले कि, “आगे का कार्यक्रम कल करेंगे।” और फिर वह माया को जगा कर चले गए और मैं अकेली छटपटाती सो गई।
दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ। हम सुबह झूला झूलने गए। उधर अजय के साथ माया रंगरलियां मना रही थी, जिससे मेरी बुर में भूचाल उत्पन्न हुई थी। शाम को राकेश भैया जब हमें पढ़ा रहे थे, तब माया फिर से सो गई, और राकेश भैया मुझे फिर से दबोच कर चुम्मा-चाटी करने लगे। पर मैं बहुत ही डरी हुई थी। मैं नहीं चाहती थी कि राकेश भैया को इससे आगे के लिए इजाजत दूं।
कई दिनों तक राकेश भैया को केवल इतना ही इजाजत देती, और उसके बाद राकेश भैया घर चले जाते। फिर मैं सो जाती। लेकिन मेरे मन में एक पाप फील हो रही थी, कि मैं अपनी सहेली के भैया से ही जिसे मैं खुद अपना भैया समझती थी, उनके साथ यह सब कर रही थी। मुझे अफसोस और पाप जैसा फील हो रहा था।परंतु नियति को शायद यही मंजूर था। मैं तो चाहती थी कि मेरा कौमार्य, मेरे पति भंग करे। पर ऐसा अब संभव नहीं लग रहा था।
एक दिन मैं किसी काम से माया के घर गई। तब वहां पर पता चला कि माया और उसके मम्मी-पापा किसी रिश्तेदार के यहां कुछ घंटे के लिए गए हुए थे। घर पर सिर्फ राकेश भैया थे। मैं जैसे ही घर के अंदर गई, राकेश भैया तो मुझे देख कर बहुत ज्यादा खुश हो गए, और उन्होंने झट से मुझे अंदर बुलाया, और दरवाजे को बंद कर दिए। उन्होंने मुझे बैठाया और बोले कि-
राकेश: बताओ कंचन क्या बात है? तुम यहां इस वक्त आई हो, कुछ काम था क्या?
मैं थोड़ा असमंजस में बोली-
मैं: हां, नहीं, मैं तो बस ऐसे ही।
राकेश भैया हंसते हुए मेरे पास आकर बैठ गए और बिल्कुल मुझसे सट कर बैठे हुए थे। उन्होंने अपना एक हाथ को मेरे कंधे पर रख दिया और बोले, “मैं तुम्हारी बातों को समझ रहा हूं। कंचन तुम यहां मेरी बहन माया से मिलने आई हो। परंतु वह तो आज घर पर नहीं है। घर पर शाम को सभी लोग आएंगे। तब तक तुम मेरे साथ चाहो तो बैठ सकती हो।”
मैं वहां रुकना ठीक नहीं समझी, इसलिए उठ कर जाने को हुई। तभी राकेश भैया ने मुझे मेरी कमर में हाथ डाल कर पकड़ लिया पीछे से, और मेरे गर्दन पर किस्स करने लगे। मैं एकाएक इस हमले से थोड़ी आहत हुई, और अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की। परंतु राकेश भैया ने मुझे कस के पकड़ा हुआ था। फिर वह मुझे अपनी तरफ घुमाए और मुझे अपने बाहों में समेट कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। मैं थोड़ी देर विरोध तो करती रही, लेकिन कोई फायदा ना हुआ। फिर मेरा भी मन मचलने लगा और मैं उनके होंठों को चूसते हुए साथ देना शुरू कर दी।
राकेश भैया लगातार मेरे होंठों को चूसते हुए अपने हथेलियों को मेरी कमर और नितंब पर फिरा रहे थे। मैं उनके हाथों की मजबूती से अपने शरीर पर हो रहे हलचल से गर्मी महसूस कर रही थी, और उनकी होंठ चुसाई में मदद कर रही थी।
फिर उन्होंने मुझे गोद में उठाया, और बिस्तर पर लेकर चले गए। बिस्तर पर जाते हैं वह मेरे ऊपर चढ़ गए, और मेरे गालों को कभी चूमते तो कभी मेरे होंठों को चूमते। मैं इन सब के बीच मजा तो खूब ले रही थी, पर मेरे अंदर बीच-बीच में पाप भी उत्पन्न हो रही थी। ऐसा लग रहा था कि मैं कोई बहुत बड़ा पाप कर रही थी। मैं अपने ही भैया के साथ यह सब बहुत गलत कर रही थी।
यही सब सोच रही थी कि भैया अपनी शर्ट और पेंट उतार कर सिर्फ चड्डी में मेरे ऊपर चढ़ कर और मेरे कभी होंठ चूसते तो कभी मेरे स्तनों को कपड़े के ऊपर से ही दबा देते।
फिर उन्होंने मेरे एक-एक करके सारे कपड़ों को उतारना शुरू कर दिया। मैं शर्म से अपनी हथेलियां से चेहरे को छुपा ली। उन्होंने मुझे थोड़ी ही देर में पूरी तरह से नंगा कर दिया। मैं राकेश भैया के सामने पहली बार इस तरह पूरी तरह से नंगी थी। मुझे बहुत ज्यादा शर्म आ रही थी। मैं अपनी हथेलियों से चेहरे को छुपाई हुई थी, और राकेश भैया लगातार मेरी दोनों नींबू को चूस रहे थे।
वह मेरे दोनों नींबू को चूसते हुए नीचे की ओर जाते और मेरे पूरे बदन को चूम लेते। फिर वह मेरी बुर के पास गए, और मेरी दोनों टांगों को फैला कर उसमें अपना जीभ डाल कर उसे चूसने लगे। मैं तो छटपटाने लगी।
मेरी अंदर इतनी वासना भरी हुई थी कि मैं अब सोचना बंद कर दी कि वह मेरे भैया थे। मैं उनके सर को अपनी बुर में दबाने लगी।
मैं: उउउउउफ्फफ्फ्फ़ मत करो भैया, यह सब गलत है।
भैया लगातार मेरी बातों को अनसुना करते हुए, मेरी बुर को चाटते हुए, ऊपर की ओर आए। फिर अपने विशालकाय लंड को मेरी बुर में डाल कर धक्का देना शुरू कर दिए।
परंतु बुर इतनी टाइट थी कि वह अंदर जा ही नहीं पा रहा था। तब भैया ने बहुत सारा थूक अपने लंड पर लगाया, और एक जोर का धक्का मारा। तब कुछ इंच तक मेरी बुर में उनका लंड अंदर चला गया।
मैं झटपटाने लगी, वहां रोने लगी, पर भैया कभी चूचियों को सहलाते तो कभी मुझे बहलाने की कोशिश करते, और लंड का दबाव मेरी बुर पर लगातार तेजी से अंदर कर रहे थे। मैं कराह रही थी, रो रही थी, पर भैया पर इन सब का कोई असर ना होता, और वह मेरी बुर में अपना लंड अंदर उतार दिए। मेरा बुर फट चुकी थी, और उसके अंदर से खून रिस रहा था।
मैं रो रही थी। भैया मुझे चुप करा रहे थे, पर मेरे अंदर इतना दर्द हो रहा था कि मैं सह ही नहीं कर पा रही थी। पर भैया कभी चूचियों को सहलाते तो कभी मेरे गालों को मसलते, और मुझे दिलासा देते कि अभी मजा आने लगेगा, थोड़ा बर्दाश्त करो मेरी परी।
फिर उन्होंने पूरा लंड को बाहर निकाला जो खून से लाल हो चुका था। मैंने अपनी बुर की हालत देखी तो मुझे रहा ना गया और मेरे आंखों से आंसू लगातार बहने लगे। फिर उन्होंने अपने लंड को धोया, और मेरी बुर को भी साफ किया। बहुत ज्यादा मेरी बुर में जलन हो रही थी, पर भैया को इस पर कोई असर ही ना हो रहा था। वह बोल रहे थे कि अभी मजा आने लगेगा प्लीज एक बार और।
वह मेरे बदन से खेलते रहे और मुझे सहलाते रहे। थोड़ी देर बाद मेरी जलन शांत हुई। फिर मैं उनके बाहों में सिमे्ट गई। मैं सिसक कर रो रही थी, पर उन्हें कोई असर ना हो रहा था। मैं वहां से उठी और अपने कपड़े को पहनने लगी। फिर राकेश भैया मुझसे बोले कि, “एक बार बात तो सुनो।”
इसके आगे की कहानी अगले पार्ट में।