सहेली के भैया ने मेरी सील तोड़ी-1 (Saheli Ke Bhaiya Ne Meri Seal Todi-1)

हेलो, मेरा नाम कंचन है। मैं अभी 34 साल की हूं। मेरा रंग गोरा, छरहरा बदन, और चिकनी कमर है। आज भी मोहल्ले के लोगों की नज़र पड़ते ही उनके मुंह और ना जाने कहां-कहां से पानी निकलने लगता है।

मेरे परिवार में अभी मेरा बेटा 14 साल और बेटी 10 साल की है। पति काम-काज से बाहर ही रहते है। मैं घर पे रह के बच्चों को पढ़ाती हूं। यह कहानी तब की है, जब मेरी पहली बार कौमार्य भंग हुई थी। उस समय मेरी शादी नहीं हुई थी। हम दो सहेलियां हुआ करते थे, मैं कंचन और मेरी सहेली माया। हम दोनों सहेलियां अभी नई-नई जवानी में प्रवेश किए थे। परंतु मेरी सहेली माया थोड़ी चतुर थी। पहले से ही वह कई लड़कों के साथ अफेयर कर चुकी थी।

हम दोनों सहेलियां साथ में पढ़ते थे। मेरे घर में मेरी मम्मी और पापा थे। मैं उनकी इकलौती संतान थी। वह मुझे बड़े नाज़ों से पाल रहे थे, और पढ़ा रहे थे। उनके गौरव को कभी ठेस ना पहुंचे इसलिए मैं कभी भी किसी लड़के से बात नहीं करती थी, और चुप-चाप अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाती थी।

माया के घर में उसके माता-पिता और उसका एक बड़ा भाई था, जिसका नाम राकेश था। उसकी उम्र हम लोगों से 5 साल बड़ी थी। मैं इन्हें राकेश भैया बुलाती थी, और वह भी मुझे अपनी छोटी बहन मानते थे।

हम दोनों सहेलियों को पढ़ाई में कुछ भी दिक्कत होती थी तो हम दोनों राकेश भैया से पूछते थे‌। राकेश भैया भी काफी प्यार से हम दोनों को पढ़ाते थे, और सब चीज़ को अच्छे से समझा देते थे। एक दिन मैं घर पर बैठ कर पढ़ाई कर रही थी और मेरे मम्मी-पापा सामने ही बैठ कर मेरे शादी-ब्याह की बात कर रहे थे।

तभी वहां पर माया आ गई और वह मेरी शादी-ब्याह की बात सुन ली, जो पापा कह रहे थे कि एक लड़का उन्होंने देख रखा था, और जल्द ही उसके घर वालों से बात करके शादी फिक्स कर देंगे। माया यह सुनते ही मुस्कुरा पड़ी और मुझे देख कर आंख मार दी।

तभी मम्मी ने माया से कहा: आओ बेटी बैठो। कहां जा रही हो? दिन भर बस तुम लोग खेलते-कूदते ही रहती हो?

माया: अरे चाची यहीं तो उम्र है, थोड़ा सा खेल कूद लेने दो। उसके बाद शादी-ब्याह हो जाने के बाद कहां हमें खेलने-कूदने को मिलेगा। आज बाग में झूला लगा हुआ है। हम लोग वहां पर जा रहे हैं, आम के पेड़ के नीचे झूला झूलने?

मम्मी मेरी थोड़ी नाराज हो गई, क्योंकि वह माया को जानती थी। वह बहुत ही नटखटी थी, और लड़कों से बहुत ज्यादा ही बातें करती थी। इसलिए मम्मी उससे मुझे दूर ही रखना चाहती थी।

मम्मी: अच्छा ठीक है चली जाओ। लेकिन शाम होने से पहले तुम दोनों घर वापस आ जाना, और ज्यादा वहां पर झूला मत झूलना।

मम्मी का आदेश मिलते ही मैं बहुत खुश हुई, और झूला झूलने के लिए मैं उत्साहित हो गई। सावन का महीना चल रहा था। हमारा गांव बहुत छोटा है, और गांव के आसपास बड़े-बड़े बाग और बगीचे हैं। इसमें आम के पेड़ लगे हुए हैं। हम सभी सखियां वहां पर जाकर झूला झूलते थे।

हम दोनों सहेलियां वहां पर चली गई जहां पर बहुत सारी लड़कियां पहले से ही झूला झूल रही थी‌। हम भी वहां पर अपना झूला लगा कर झूला झूलने लगे। पास में ही लड़के भी खेल रहे थे, क्योंकि जहां पर लड़कियां होती है, वहां पर लड़के तो होंगे ही?

वहां पर एक लड़का था अजय। वह माया को चाहता था। हमेशा ही उसे देखता रहता था। माया भी उसे मन ही मन पसंद करती थी, परंतु माया पहले से किसी के साथ रिलेशन में थी। फिर भी माया अपने मन से अजय को दूर ना कर सकी, और वह अजय को अपने पास बुलाई झूला लगाने के लिए।

अजय झूला लगाने के बहाने माया से खूब सारी बातें करने लगा। माया भी उससे हंस-हंस के बातें करने लगी। मैं भी माया के साथ बातें कर रही थी, कि तभी अजय के कुछ और सारे दोस्त आ गए, और वह माया के साथ मुझ पर भी लाइन मारना शुरू कर दिया।

पर मैं किसी से कोई बात करना नहीं चाहती थी, इसलिए चुप-चाप अपना झूला झूलने पर ध्यान दिया। लेकिन माया तो अजय से हट ही नहीं रही थी। वह अजय को ही बोल रही थी कि उसे झूला दे। अजय उसे पीछे से झूलाता, और जैसे ही आगे की ओर झूला जाकर पीछे की ओर आता, अजय उसे हंसते हुए पकड़ लेता‌। माया भी खूब खुश थी।

इसी तरह माया और अजय दोनों ने जम कर एक-दूसरे के मजे लिए और फिर हम दोनों सखियां घर चली गई। मैं और माया शाम को घर पर छत पर बैठ कर बातें कर रही थी कि तभी राकेश भैया आते हुए दिखाई दिए। मैं राकेश भैया को आवाज देकर अपने पास बुलाई।

राकेश: क्या बात है कंचन, तुमने मुझे क्यों बुलाया?

मैं: वह भैया मैं चाहती थी कि आप मेरी गणित में थोड़ा हेल्प कर दें।

राकेश: अच्छी बात है कंचन। मैं शाम को घर पर वापस आता हूं। तुम दोनों को एक साथ हि पढ़ा दूंगा, ठीक है?

मैं खुश हो गई और मुस्कुराते हुए शाम को जल्दी से खाना पीना बनाने लगी, ताकि पढ़ाई कर सकूं। मैं शाम को 7:00 बजे तक खाना-वाना बना कर मम्मी पापा को खिला दी, और उन्हें बोल दी कि मुझे राकेश भैया से पढ़ना था, इसलिए मैं दलान में जा रही थी।

हमारे घर में साइड कमरा होता है, जिसे आज-कल लोग गेस्ट हाउस बोलते हैं। वह हमारे यहां दलान बोला जाता था। उसमें ही मैं पढ़ाई करती थी। दलान में बैठ कर पढ़ने से कोई डिस्टर्ब करने वाला नहीं होता है। वहां हम लोग चुप-चाप पढ़ाई कर लेते थे।

शाम को खाना खाने के बाद राकेश भैया और माया दोनों ही मेरे दलान में आ गए, और फिर हम तीनों एक साथ बैठ कर पढ़ाई शुरू कर दिए। मेरी मम्मी राकेश भैया को बहुत ज्यादा मानती थी, क्योंकि वह मेरी मम्मी की बहुत हेल्प करते थे। हमारे घर में कोई भाई ना होने की वजह से हमारे घर का सारा कार्यभार भैया ही संभालते थे।

राकेश भैया माया और मेरे बीच में बैठे हुए थे, और हम दोनों को अच्छे से समझा रहे थे। हम दोनों काफी मजे लेकर राकेश भैया के साथ पढ़ाई करते थे। माया पढ़ाई में थोड़ी कमजोर थी, इसलिए वह पढ़ाई से थोड़ा दूर ही रहती थी। जैसे ही राकेश भैया पढ़ाना शुरू करते थे, उसे नींद आने लगती थी। राकेश भैया उसे बहुत डांटते थे।

मैं पढ़ने में बहुत ही होशियार थी। इसलिए राकेश भैया मुझे बहुत प्यार से समझा कर पढ़ रहे थे। उस दिन राकेश भैया मुझे पढ़ा रहे थे, कि तभी माया को नींद आने लगी। तब राकेश भैया ने डांट कर उसे कहा कि, “ठीक है जाओ, यहीं पर सो जाओ। जब पढ़ाई हो जाएगी, तब तुम्हें जगा कर घर पर ले चलेंगे।”

फिर माया वहीं बगल में लेट कर सो गई, और राकेश भैया मुझे पढ़ाने लगे। राकेश भैया मुझे पढ़ रहे थे, और मैं उन्हें गौर से सुन रही थी, कि तभी वह बोलते-बोलते मेरी और देखें और एका-एक रुक गए।

मेरी ध्यान किताब पर था, तो मैं सोची क्या हुआ भैया क्यों रुक गए? जब मैं उनके चेहरे को देखा, तो वह मेरी चूचियों की तरफ देख रहे थे, जो मेरे झुकने की वजह से हल्की-हल्की ऊपर से दिखाई दे रही थी?

मैं शर्मा गई। भैया और मेरा जब दोनों की आंखों का सामना हुआ, तो हम दोनों घबरा गए, और हम दोनों नीचे देखने लगे। फिर भैया ने मुझे पढ़ाना शुरू किया, और मैं उन्हें गौर से सुनती गई। इसी तरह हम बातें करते हुए पढ़ाई कर रहे थे। बीच-बीच में भैया मुझे किसी दूसरे विषय के बारे में भी बताते, जो काफी इंटरेस्टिंग होता था, और मैं मजे लेकर उनसे पढ़ती थी, और बीच-बीच में सवाल पूछती। वह बड़े ही प्यार से मुझे समझाते, और कभी-कभी तो मेरे गालों को भी खींच देते हैं, और फिर हम दोनों ही मुस्कुराते थे।

ऐसे ही हम दोनों 10:00 बजे रात तक पढ़ाई करते और हंसी मजाक करते। उसके बाद फिर मैं सोने के लिए अपने रूम में चली जाती, और फिर राकेश भैया माया को जगा कर अपने घर वापस चले जाते थे।

ऐसे ही कई दिनों तक हम लोग पढ़ते रहे। भैया मुझे अब मजाक थोड़ा ज्यादा करने लगे थे। ऐसा लगता था जैसे वह मुझे पसंद करने लगे हो। वह मुझसे बातें करते-करते सट भी जाया करते थे, और कभी-कभी तो इधर-उधर टच भी कर देते थे। मैं उनके इस अंदाज पर हंस देती थी।

इसके आगे की कहानी आपको अगले पार्ट में पढ़ने को मिलेगी।