मैंने यह सुन रखा था, कि रईसों और बड़े अफसरों के घर की लड़कियों और औरतों की जवानी की मलाई सबसे पहले ज्यादातर नौकरों को ही खाने को मिलती है। पहले मेरा इस पर विश्वास नहीं था, लेकिन जब मुझे इसका सौभाग्य मिला तो यकीन हो गया। वैसे मैंने इस मलाई को खाने के लिए ऐसा रिस्क लिया था, जिसमें मुझे जेल भी हो सकती थी। मगर किस्मत ने मेरा साथ दिया और मुझे अपनी जवान मालकिन को भरपूर भोगने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
अपनी बात करूं, तो मेरे माता-पिता की मृत्यु उसे समय हो गई थी, जब मैं केवल 12 साल का था। पेट पालने के लिए कई जगह छोटे-मोटे काम करते-करते मैं एक बर्तन की दुकान तक पहुंचा। मेरा मालिक लड़कों का शौकीन था और पीछे से मेरी सवारी करना चाहता था। जब मैं इसके लिए राजी नहीं हुआ तो उसने मुझ पर चोरी का इल्जाम लगा कर मुझे पुलिस के हवाले कर दिया।
थाने में मैं पुलिस वालों को अपने निर्दोष होने का विश्वास दिलाने की कोशिश करता रहा। लेकिन मुझ पर चोरी का इल्जाम होने के कारण कोई भी पुलिसकर्मी मेरी बातों पर विश्वास नहीं करता और जो भी आता मुझ पर हाथ साफ करके चला जाता। तभी पुलिस के एक बड़े अधिकारी का थाने में आना हुआ और मैंने उनके पैर पकड़ लिए तथा रो-रो कर अपनी बेगुनाही की दुहाई दी।
उनको मुझ पर दया आ गई और वह मुझे अपने बंगले में ले आए। मैंने ईमानदारी से दिल लगा कर उनकी सेवा की और खुश होकर उन्होंने मुझे परमानेंट कर दिया। कुछ दिनों बाद उनका ट्रांसफर हो गया। उसके बाद कई अफसर आए और चले गए। मैं सभी अफसर की ईमानदारी से सेवा करता रहा। इसी तरह 10 वर्ष गुज़र गए और मैं 22 साल का हट्टा-कट्टा नौजवान हो गया।
इसी बीच एक खूबसूरत और जवान महिला पुलिस अधिकारी उस बंगले में शिफ्ट हुई, जिसकी देख-रेख की जिम्मेदारी मुझ पर थी। मेरी नई मालकिन का नाम अनुषा था। गजब की खूबसूरत थी वह। गोरा लंबोत्रा चेहरा। उभरी-उभरी छतिया। भरी-भरी जांघें। सभी कुछ तो था उसमें जो किसी मर्द को पागल कर दे।
जब वह वर्दी में दफ्तर जाने के लिए निकलती तो मेरी नज़रें उसकी जांघों के जोड़ पर चिपक जाती और मेरे अंदर कुछ तूफान सा मारने लगता। अनुषा के पिछवाड़े में भी गजब का मांस चढ़ा था। ऐसा लगता था जैसे पिछवाड़े के दोनों प्रदेश पैंट फाड़ कर बाहर आ जाएंगे।
शुरू-शुरू में वह मुझे बात-बात पर भला-बुरा कहा करती थी, पर जब मैंने उसके हर काम, जैसे नाश्ता बनाना, लंच और डिनर बनाना, साफ सफाई, कपड़े धोना, बिस्तर लगाना आदि समय पर उसकी मर्जी के मुताबिक करके दिए तो उसका व्यवहार धीरे-धीरे मेरे प्रति बदलता चला गया।
एक दिन कहीं से फोन आया और वह जल्दी-जल्दी नहा कर हड़बड़ी में चली गई। घर के सारे काम निपटाने के बाद नियमानुसार दोपहर में जब मैं उसके कपड़े धोने के लिए उसके बाथरूम में गया और एक कोने में पड़ी उसकी वर्दी उठाई, तो आज पहली बार उसकी वर्दी के नीचे उसकी सफेद रंग की ब्रा और पैंटी भी पड़ी मिली।
आज से पहले उसने धोने वाले कपड़ों में अपने अंग वस्त्र कभी नहीं छोड़े थे। लेकिन शायद जल्दी-जल्दी में आज वह अपने अंग वस्त्र धोकर यथा स्थान रखना भूल गई थी। जैसे ही मैंने अनुषा के अंग वस्त्र हाथों से छुए, मुझे एक अजीब सा रोमांस महसूस हुआ। एक सनसनी सी दौड़ने लगी मेरे भीतर। मेरा औजार फनफना कर खड़ा हो गया।
किसी औरत के अंग वस्त्र को छूने और टटोलने का यह मेरी जिंदगी में पहला मौका था। सो, मैं उसकी ब्रा के दोनों कप को काफी देर तक अपनी मुट्ठियों में भींचता और उसके बड़े और गोरे उरोजों की कल्पना कर रोमांचित होता रहा। थोड़ी देर बाद मैंने उसकी पैंटी की ओर तवज्जो दी और उसे हाथ में लेकर उस हिस्से पर अपनी उंगलियां फिराने लगा, जो संभवत उसकी चूत पर जाकर फिट होता था।
मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी उंगलियां अनुषा के शरीर के सबसे खूबसूरत हिस्से में मचल रही हो। यह क्रिया मैं तब तक करता रहा, जब तक मुझे यह नहीं महसूस हुआ कि मेरा माल बाहर आ जाएगा। जब मामला कंट्रोल से बाहर हो गया, तो मैंने अपनी पेंट की चैन खोल कर अपना औजार बाहर निकाल दिया। फिर अनुषा की पैंटी के ठीक उसी हिस्से, जो सबसे खुशनसीब था और अनुषा की चूत को हर समय चूमता रहता था, को अपने औजार की टोपी पर रख कर रगड़ने लगा।
मुश्किल से 1 मिनट के भीतर ही मेरी पिचकारी अनुषा की पैंटी में छूट गई और पूरा माल पैंटी पर फैल गया। मैं करीब 5 मिनट लंबी-लंबी सांस लेता, अपने आप को नियंत्रित करता रहा। उसके बाद अनुषा की वर्दी और उसके अंग वस्त्र को अच्छी तरह से साफ करके छत पर सूखने के लिए डाल दिए और सर्वेंट रूम में जाकर अपने बिस्तर पर लेट गया।
आज मुझे एक अजीब सा संतोष अनुभव हो रहा था। जैसे मैंने बहुत कुछ पा लिया हो। उसके बारे में बाद में अनुषा के बारे में सोचता ही चला गया और उसके खूबसूरत शरीर को भोगने की इच्छा पालने लगा। तभी मेरे अंतर्मन ने मुझे वार्निंग दी।
मेरा अंतर्मन: तू यह क्या सोच रहा है? अनुषा तेरी मालकिन है और पुलिस की बड़ी अधिकारी है। अगर जरा सी भी गड़बड़ हुई, तो वह तेरी हड्डियां तुड़वा डालेगी और तू सीधा जेल जाएगा। साथ ही परमानेंट सरकारी नौकरी भी जाती रहेगी।
मैंने अंतर्मन को समझाया: नहीं-नहीं ऐसा नहीं होगा। मैं बहुत संभल कर होशियारी के साथ कोशिश करूंगा।
यह अंतर्द्वंद तब तक जारी रहा, जब तक कि मुझे नींद नहीं आ गई। करीब 2 घंटे बाद मेरी नींद खुली। मैं हाथ मुंह धो कर शाम के खाने की तैयारी में व्यस्त हो गया। शाम का धुंधला होते ही अनुषा आ गई। चेंज करके वह हाथ मुंह धोने के लिए बाथरूम में गई, तो वहीं से उसने मुझे आवाज दी-
अनुषा: टीकाराम!
“जी मैडम,” मैंने तुरंत उत्तर दिया।
अनुषा: जरा सुनो।
मैं जाकर बाथरूम के दरवाजे से कुछ कदम पहले ही खड़ा हो गया।
अनुषा: तुमने वर्दी धो डाली है क्या (वह अंदर से ही बोली)?
मैं: जी मैडम (मैंने संक्षिप्त सा जवाब दिया)।
अनुषा: अरे उसमें मेरे भीतर वाले कपड़े थे, वह कहां हैं?
कहते हुए वह बाथरूम के दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई और मेरी तरफ प्रश्नवाचक नज़रों से देखने लगी। उसका चेहरा पानी से भीगा हुआ था और नाइट सूट से उसकी छातियां बाहर निकलने को बेताब थी। उस वक्त तो जैसे कहर ढा देने पर आमादा थी मेरी मालकिन। मैंने अपने आप को संयत करते हुए कहा-
मैं: सारे कपड़े धोकर छत में सूखने के लिए डाल दिए हैं, ले आऊं क्या?
अनुषा: ओह, आई एम सॉरी, सुबह मैं जल्दी में थी, तो वह वाले कपड़े धो नहीं पाई (उसने खेद संपूर्ण लहजे में कहा)।
मैं: कोई बात नहीं मैडम, मुझे तो तनख्वाह ही आप अफसर लोगों की सेवा करने की मिलती है। वर्दी के साथ जो भी कपड़े मिले, सब धो दिए हैं। ले आऊं क्या?
अनुषा: नहीं-नहीं मैं ले लूंगी (वह सकुचाती हुई बोली और पलट कर बाथरूम के भीतर चली गई)।
उसके मुड़ते ही मैं भी मुड़ा और किचन में जाकर रात के खाने की तैयारी में व्यस्त हो गया। इस घटना के बाद एक-दो दिन तक तो वह अपने अंग वस्त्र धोकर सूखने डालती रही। लेकिन फिर उसने अंग वस्त्र धोना छोड़ दिया। मुझे तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई। उसके ऑफिस जाते ही मैं उसके अंग वस्त्र को चूमता-चाटता और अनुषा को भोगने की कल्पना करते हुए उसके भीतरी कपड़ों पर पिचकारी छोड़ कर अपने आप को शांत कर लेता।
इस सारे सिलसिले के बीच मेरे मन में अनुषा को भोगने की इच्छा बढ़ती गई और मेरे भीतर एक दुस्साहस पैदा होता गया। अब मौका मिलते ही अनुषा के पूरे शरीर को भरपूर नजरों से देख कर अपनी प्यास बुझाने लगा। लेकिन इस बात की सावधानी रखता कि उसे इस बात का एहसास ना होने पाए कि मैं उसे किन नजरों से देखता हूं।
कुछ दिनों के भीतर ही मेरे अनुषा को बिना कपड़ों में देखने की चाहत जोर मारने लगी और मैं उसके सोकर उठने से पहले ही उसके कमरे की सफाई करने जाने लगा। कभी-कभी सोते समय उसका नाइट सूट अस्त-व्यस्त हो जाया करता और मुझे ब्रा में कैद उसकी गोलाइयों का कुछ हिस्सा देखने को मिल जाता।
इसी प्रकार दिन गुजरते गए तथा दिन गुजारने के साथ ही मेरी लालसा भी बढ़ती गई। फिर एक दिन वह समय भी आ गया, जब मुझे अनुषा को भोगने का सौभाग्य प्राप्त हो ही गया।
ये सब कैसे हुआ, आगे आने वाले पार्ट में पढ़िएगा।