पिछला भाग पढ़े:- चुदाई के रंग में रंगी मेरी चुदक्कड़ मां-3
स्वागत है दोस्तों आपका सफर के चौथे भाग में। भाग तीन में आपने देखा होगा कि कैसे मैंने मेरी मां कोमल को उसके संस्कारों के चंगुल से निकाला। सरोज आंटी भले ही कोमल को पहले दिन अजीब लगी हो, पर अब कोमल को यह समझ आ रहा था कि सरोज जीवन का लुत्फ उठा रही थी और वह सिर्फ अपनी किस्मत को दोष देती रहती थी। बल्कि वह भी सरोज की तरह मजे कर सकती थी, जिसके लिए उसे बेफिक्र होकर जीना पड़ेगा।
मैं और कोमल रात का खाना बाहर खा कर आते है। आते ही मेरे बाप ने घर पर बहुत हंगामा किया। लेकिन कोमल ने इस बार उसकी नहीं सुनी।
मेरा बाप: ये क्या लगा रखा है तुम लोगों ने? मैं यहां भूखा हूं और तुम दोनों अपना पेट भरने के लिए बाहर चले गए। भूलो मत मैं ही हूं जो तुम्हे खाना देता है। आगे से अगर तू कहीं गई, तो तेरी टांगे तोड़ दूंगा।
कोमल: बकवास बंद कर अपनी। तेरे हिसाब से नहीं जीऊंगी अब मैं। मेरा जो मन करेगा वही करूंगी। जो करना है कर ले।
मेरा बाप: ज्यादा जुबान निकल चुकी ही तेरी।
कोमल: घटिया इंसान है तू, तेरी सुनूंगी क्या अब मैं?
ये कह कर कोमल अपने कमरे में चली जाती है, और मेरा बाप देखता रह जाता है। मैं भी अपने कमरे में जाकर सो जाता हूं। अगले दिन सुबह-सुबह गौरव मुझे मेरे घर बुलाने आता है और मैं उसके घर चला जाता हूं और गौरव के पापा विनोद बड़े ही प्यार से मेरा स्वागत करते है।
विनोद: आओ बेटा समर, कैसे हो तुम?
मैं: मैं ठीक हूं अंकल, आप बताओ?
विनोद: मैं भी ठीक हूं बेटा।
इतने में गौरव की हसीन मां सरोज आती है एक सुंदर पीले रंग की साड़ी में। उसके ब्लाउज में से उसके मस्त चूचे बिल्कुल साफ नजर आ रहे थे जिन्हें देखते ही मेरा मन किया कि इन खरबूजों को मैं खा जाऊं। और खुले बालों में वह कयामत ढा रही थी। उसके होठ बिल्कुल रसीले थे और चमक मार रहे थे। देखते ही मैं पागल हो गया। मन के रहा था कि उसके होठों को चूस लूं और चूसता ही रहूं।
सरोज: आओ समर, कैसे हो?
मैं: बहुत अच्छा हूं आंटी, वैसे एक बात बोलूं?
सरोज: हां क्यों नहीं।
विनोद: समर यहां खुल कर बोलो, शर्माने की कोई जरूरत नहीं है।
मैं: आंटी आप बेहद खूबसूरत लग रही हो।
सरोज: ओह अच्छा, थैंक्यू सो मच समर। अच्छी लग रही हूं ना इस साड़ी में?
मैं: बहुत आंटी।
विनोद: बिल्कुल ठीक कहा तुमने समर। मैं भी यही कहने वाला था। सरोज बेबी बहुत कमाल लग रही हो तुम।
विनोद: आओ समर चाय पीते है सभी।
हम सोफे पर बैठते है और सरोज चाय लेने के लिए किचन जाती है। मेरा ध्यान कहीं और नहीं था बल्कि सरोज की तरफ ही था। जब वह किचन की ओर जा रही थी तो उसके पीछे का नजारा देख कर मेरा लंड बिल्कुल टाइट हो गया। पीछे से उसकी कमर बिल्कुल नंगी थी। चिकनी कमर जिस पर सिर्फ एक पतला धागा था, जिसने ब्लाउज का संभाल रखा था। वरना उसके मस्त और बड़े चूचे ब्लाउज से बाहर आने के लिए बेताब थे। चलते हुए मटकते हुए उसके चूतड़ किसी को भी पागल कर दे। मेरा मन था कि उसके चूतड़ों को जाकर जोर से दबा दूं। ऐसा नजारा देख कर मेरा लौड़ा तन चुका था।
विनोद: अच्छा समर, क्या करते हो तुम?
मैं: बस अंकल, ग्रेजुएशन हो गई है अब। सोच रहा हूं खुद का कोई बिजनेस करूं।
विनोद: वाह, ये तो बहुत अच्छा सोचा। मैं तो गौरव से भी कहता हूं कि जो उसे अच्छा लगे वो करे। वैसे कैसा बिजनेस, सोचा है कुछ?
मैं: अंकल मुझे कुछ ऐसा बनाना है जहां लोग खुल कर और बिना किसी चिंता के एंजॉय कर सके। क्योंकि लोग बेहद परेशान है आज-कल।
सरोज: ये तो बहुत अच्छा सोचा है तुमने समर। ऐसी जगहों की बहुत जरूरत है हमें।
विनोद: हां समर, वैसे भी लोग तनाव में ही रहते है। तो उन्हें अगर ऐसा कुछ मिल जाए तो शानदार चीज होगी ये।
मैं: हां अंकल, ऐसी जगह बेहद कम है और यही नहीं बेहद महंगी है।
विनोद: हां बेटा, अगर हर इंसान खुल कर मजे कर सकेगा, तो टेंशन वगैरह रहेगी ही नहीं दुनिया में।
गौरव: हां ये तो है पापा क्योंकि ज्यादातर लोग घरवालों और समाज के डर से खुल कर नहीं जी पाते। और ऊपर से कानून वगैरह लोगों को जीने नहीं देता।
सरोज: हां ये तो है। तो कोई क्लब वगैरह का सोच रहे हो क्या तुम?
मैं: हां आंटी।
विनोद: काफी अच्छा सोचा है तुमने समर, गौरव के भी कुछ ऐसे ही सपने है।
मैं: अच्छा। फिर तो और अच्छी बात है। हम दोनों मिल कर कर लेंगे कुछ ऐसा।
सरोज: क्यों नहीं समर।
चाय पीकर फिर विनोद ऑफिस के लिए निकलता है और जाते-जाते वो मेरे और गौरव के सामने सरोज को एक लिप किस्स करता है।
सरोज: बाय विनोद।
विनोद: बाय डार्लिंग, बाय समर, बाय गौरव।
विनोद चला जाता है। मैं और गौरव, गौरव के कमरे में जाते है और गौरव जाते ही मुझसे पूछता है।
गौरव: भाई एक बात बता, मेरी मां कैसी लगी तुझे?
मैं: भाई क्या मतलब?
गौरव: देख भाई, सीधा-सीधा बोल खुल कर। तू मेरी मां को पूरा टाइम घूरे जा रहा था। मैं तेरी तरफ ही देख रहा था।
मैं: भाई माफ कर दे। बस आंटी इतनी खूबसूरत लग रही थी कि नज़र ही नहीं हट रही थी।
गौरव: अरे माफी क्यों मांग रहा है। मस्त है ना सरोज?
मैं: हां भाई। काफी मस्त माल है तेरी मां।
गौरव: भाई हर मर्द का लंड खड़ा हो जाएगा सरोज की गांड देख कर।
मैं: भाई मेरा तो खड़ा हो चुका है सोच कर। वैसे तो मेरा मेरी मां को देख कर भी खड़ा हो जाता है।
गौरव: भाई वैसे तेरी मां भी गजब है। उस दिन देखते ही मन किया था कोमल को पकड़ कर यहीं चोद दूं।
मैं: भाई, एक-दूसरे की मां को चोदे?
गौरव: ये भी कोई कहने की बात है। वैसे भी मेरी तो यही इच्छा है कि दोस्त की मां को चोदूं।
मैं: अच्छा मैं तो खुद देखना चाहता हूं मेरी मां को चुदाई का मजा लेते हुए।
गौरव: करें क्या सच में ये काम?
मैं: भाई कोई दिक्कत तो नहीं आ जाएगी ना?
गौरव: ट्राई तो करना पड़ेगा।
मैं: हां करते है ट्राई। भाई मैं तो चाहता हूं कि मेरी मां रांड बन कर रहे और खूब चुदे।
गौरव: वैसे भी लंड कोई रिश्ता नहीं देखता। खुद की मम्मियों को चोदने में और चुदते देखने में जो आनंद है वो और कहां मिल सकता है।
मैं: ये बात तो तूने बहुत मस्त कही। वैसे भाई तूने कभी सेक्स किया है?
गौरव: हां भाई मैंने मेरी मां की बहन को चोद रखा है। सुमन नाम है उसका और 34 साल की उमर है उसकी। खूब मजे देती है। तूने नहीं किया कभी?
मैं: नहीं भाई, कोमल को रोज देख कर मन करता है। भाई सुमन हमारी मदद कर सकती है हमारी मम्मियों को रांड बनाने में।
गौरव: कैसे?
मैं: सुमन सरोज और कोमल दोनों को मना सकती है, पर वो सीधे हमारी बात नहीं कर सकती। पर हां अगर वो कोमल और सरोज को किसी पराए मर्द से चुदवा दे एक बार, तो हम एक-दूसरे की मां को चोद सकते है और शायद खुद की भी।
गौरव: हां भाई, बात तो सही कह रहा है तू। करते है कोशिश। पर अभी इस खड़े लंड का क्या करे?
मैं: भाई आज एक काम करते है। एक-दूसरे की मम्मी की ब्रा और पैंटी से अपने लंड को मजा देते है।
गौरव: हां भाई।
मैं कोमल की नीले रंग की ब्रा और लाल रंग की पैंटी लेकर आया और गौरव सरोज की गुलाबी रंग की ब्रा पैंटी लेकर आया। मैंने कोमल की ब्रा से गौरव के लंड को सहलाया और गौरव ने सरोज की बिल्कुल मुलायम ब्रा से मेरे लंड को सहलाया। फिर पैंटी से हमने एक-दूसरे के लंड को सहलाया।
गौरव कोमल की कल्पना में और मैं सरोज की कल्पना में खोए हुए थे। ऐसे करते-करते हमने एक-दूसरे के लंड को अपनी-अपनी मां की ब्रा-पैंटी से मजे दिए और किसी फव्वारे की तरह हम दोनों ने अपना अपना माल एक-दूसरे की मां की पैंटी पर गिरा दिया।
मैं: भाई मजा आया?
गौरव: बहुत। सुमन को बुलाता हूं मैं। मेरी मौसी एक नंबर की रांड है वो कोमल को और सरोज को रांड बना ही देगी।
मैं: हां भाई, साथ में हम दोनों सुमन को भी चोद लेंगे क्योंकि मैंने आज तक किसी औरत की गांड पर अपना लंड नहीं रगड़ा।
गौरव: हां भाई।
अभी यहां तक। दोस्तों आपको कैसा लग रहा है इस सफर पर?
मेरे साथ बने रहिए और मेरी मेल
[email protected]