सहेली के भैया ने मेरी सील तोड़ी-5 (Saheli Ke Bhaiya Ne Meri Seal Todi-5)

पिछला भाग पढ़े:- सहेली के भैया ने मेरी सील तोड़ी-4

राकेश: कंचन कहां हो?

राकेश भैया आवाज लगाते हुए अंदर आए। मैं उन्हें देखते ही घबरा गई। मुझे समझ में ही नहीं आया मैं क्या कहूं? कुछ देर इधर-उधर देखने के बाद मैंने उनसे किसी तरह से नज़रें मिलाई, तो उनके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी। उनके चेहरे की मुस्कान देख कर मेरी तो थकान हीं दूर हो गई। मुझे फिर से वह सब रंगीन बाते याद आने लगी। मैं थोड़ा डरते हुए राकेश भैया से बोली-

मैं: भैया आप, बैठिए मैं आपके लिए खाना लाती हूं।

भैया बैठ गए। मैं उनके लिए खाना लाई और वह खाना खाने लगे। उस दिन गर्मी बहुत ज्यादा थी। खाना खाते हुए भैया को पसीना बहुत ज्यादा आ रहा था। मैं उन्हें इस तरह देख ना सकी, और उनके पास जाकर बैठ गई और पंखा को झलने लगी।

भैया बोले: अरे कंचन, तुम इतनी तकलीफ क्यों उठा रही हो? मैं खा लूंगा, तुम जाओ तुम भी खा लो?

भैया मुझे जाने के लिए बोलते रहे, पर मैं वहां से नहीं गई, और पंखा झलते रही। तब राकेश भैया ने एक रोटी का निवाला तोड़ा और मुझे खिलाने लगे। मैं शर्मा गई और नीचे देखने लगी।

तभी राकेश भैया बोले: अरे खा लो कंचन, मेरे हाथ से क्या खाना भी नहीं खाओगी अब तुम?

मैं थोड़ी देर तक तो कुछ नहीं करी। लेकिन फिर राकेश भैया बार-बार मुझसे कहने लगे तो मैंने मुंह खोला, और उनके हाथ से पहला निवाला ग्रहण की। फिर हम दोनों ने खाने को ऐसे ही खत्म किया। उन्होंने मुझे प्यार से खिलाया। मैं भी उन्हें प्यार से पंखा झलती रही।

फिर वह दलान में सोने चले गए और मैं अपने कमरे में सोने चली गई। मैं सोने तो चली गई परंतु 1 घंटे तक करवट ही बदलती रही। मुझे नींद ही नहीं आ रही थी। मुझे बार-बार उनका प्यार याद आ रहा था। तभी तेज गर्जन के साथ बारिश शुरू हो गई। मैं अपने कमरे से उठी और दलान की ओर चल दी।

जब मैं दलान में गई। तब देखी कि दरवाजा खुला ही था, और वहां पर कोई नहीं था। मैं थोड़ी देर अचंभित खड़ी रही। मैं सोचने लगी कि इतनी बरसात में रात को राकेश भैया कहां चले गए? मैं रूम के अंदर प्रवेश की और अंदर देखने लगी। लाइट बुझी हुई थी, अंदर बेड पर कोई नहीं था। तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई और उन्होंने आते ही दरवाजा को बंद कर दिया।

हल्की-हल्की दिये की रोशनी उस रूम में फैली हुई थी, और राकेश भैया का चेहरा मुझे दिखाई दिया। राकेश भैया मुझे अचंभित तरीके से देख रहे थे, और उन्होंने मुझसे पूछा-

राकेश: कंचन तुम यहां, सब ठीक तो है? क्या बात है?

मैं: हां भैया सब ठीक है। मैं बस ऐसे ही देखने आई थी। बारिश हो रही है, आप ठीक तो है?

राकेश: हां कंचन मैं ठीक हूं। आओ बैठो, थोड़ी देर बातें करते हैं, फिर चली जाना।

फिर मैं उनके साथ बिस्तर पर बैठ गई, और हम दोनों बातें करने लगे। बाहर बहुत ज्यादा तेज बारिश के साथ हवा भी चल रही थी, जिसकी वजह से हम दोनों की आवाज़ उतनी क्लियर नहीं सुनाई दे रही थी। जिसकी वजह से राकेश भैया मेरे कानों के पास अपने मुंह को लाते, और बोल कर मुझे बताते। मुझे उनकी गर्म सांसे मेरे कानों पर महसूस होती, तो मुझे अंदर से रोमांटिक फील होता था।

इसी तरह हम बातें करते रहे। फिर धीरे-धीरे हम एक-दूसरे के पास आ गए। राकेश भैया और मैं बिल्कुल एक-दूसरे से सटे हुए बैठे थे। मैं उनसे अब थोड़ा खुलने लगी थी। मुझे अब थोड़ा अच्छा फील हो रहा था। राकेश भैया अपने हाथ को मेरे हाथ में लेकर सहला रहे थे। ना जाने मुझे क्या हुआ, मैं उनके सीने से लिपट गई, और अपनी बाहों को उनके गले में डाल कर अपने सर को उनके कंधे पर रख ली। राकेश भैया भी अपने हाथ को मेरे पीठ पर रख कर हल्के-हल्के सहलाने लगे।

हम दोनों एक-दूसरे से काफी देर तक ऐसे ही चिपके रहे। फिर राकेश भैया ने अपने हाथ को इधर-उधर घुमाना शुरू किया मेरी पीठ पर। जहां भी उन्हें मुलायम दिखता वहां अपने हाथ की उंगलियों को ले जाते और मेरे शरीर के हर हिस्से को टटोल रहे थे।

अब मैं भी अपने भीतर गर्मी महसूस कर रही थी। बाहर तेज बारिश हो रही थी, और अंदर हम दोनों का कार्यक्रम शुरू होने वाला था। राकेश भैया अपने गाल को मेरे गाल से रगड़ने लगे और मैं उनके बालों को अपने हाथों से सहलाने लगी। अपनी आंखों को बंद करके मैं मजा ले रही थी।

फिर राकेश भैया ने मुझे अलग किया, और अपनी शर्ट उतार कर बाहर फेंक दी, और मुझे बिस्तर पर लिटा कर मेरे ऊपर आकर मेरे होंठों को चूसने लगे। मैं भी उनके होंठों को चूसने में मदद कर रही थी। वह कभी मेरे होंठों को चूसते तो कभी मेरे मुलायम गालों को चूमते, तो कभी मेरी गर्दन को चूमते। मैं उनके बालों को सहला रही थी, और वह अपने हाथों से मेरे कमर को सहलाते तो कभी मेरे चूचियों को कपड़े के ऊपर से ही रगड़ते।

उन्होंने मेरे कमीज को उतार कर मेरी चूचियों से ब्रा को अलग किया, और मेरी दोनों चूचियों को बारी-बारी से अपने मुंह में लेकर चूसने लगे। मैंने आनंद में अपनी आंखें बंद की, और उनके बालों को सहला रही थी, और सिसकियां ले रही थी आआआह उफ्फफ्फ्फ़।

काफी देर तक पूरे मजे लेकर राकेश भैया मेरे दोनों चूचियों को बारी-बारी से चूसते रहे। उसके बाद भैया नीचे की ओर गए, और मेरे पेट को चूमते हुए मेरी सलवार के नाड़े को खींचा, और सलवार को उतार कर अलग कर दिया। मैं अब उनके सामने सिर्फ पेंटी में पड़ी हुई थी। उसके बाद राकेश भैया ने मेरी पेटी को भी उतार कर अलग किया, और मेरी टांगों को फैला कर मेरी दोनों जांघों को एक-एक करके चूमने लगे।

फिर वह मेरी जांघों को चूमते हुए मेरे बुर तक पहुंचे, और मेरी बुर के दोनों पंखुड़ियों को हाथों से अलग किया, और अपनी जीभ को मेरी कली के भीतर घुसा कर उसे चूसने लगे। राकेश भैया ने पहले दिन ही अपने लंड से मेरी बुर को कली से फूल बना दिया था। पर आज बारिश मे बुर की कली को पूरी तरह से खिला देना चाहते थे राकेश भैया।

मैं चुप-चाप लेटी रही और चादर को पकड़े रही, और राकेश भैया मेरी बुर की कली को फैला कर उसके अंदर के सारे रस को चूस रहे थे‌। मैं बस छटपटा रही थी, और अपने होंठों को दांतों से काट रही थी। फिर राकेश भैया मेरे बदन के ऊपर अपने बदन का सारा भार देकर मेरे ऊपर लेट गए, और मेरे गाल को चूमा, गर्दन को चूमा और मेरे होंठों को चूसने लगे। उन्होंने मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों से ऊपर की ओर लॉक किया। फिर मेरी टांगों को फैला कर अपनी कमर में लपेटवा दिया, और फिर अपने लंड को मेरी बुर पर सेट करके धीरे-धीरे अंदर डालना शुरू कर दिया।

भैया ने बुर को चाट कर पूरी तरह से गिला कर दिया था, जिसकी वजह से लंड को धीरे-धीरे बुर में उतारने में आसानी हो रही थी। मुझे दर्द तो हो रहा था, पर पहले जितना नहीं। मैं इस बार सहन कर रही थी, और राकेश भैया मेरे होठों को चूस कर मेरी आवाज को ही बंद कर दिए थे। वो अपने लंड को धीरे-धीरे करके पूरे तरीके से मेरी बुर में उतार दिये। जब पूरी तरीके से बुर में लंड चला गया, तब मैंने जाकर थोड़ी सी शांति महसूस की। फिर ऐसे ही राकेश भैया भी काफी देर तक पड़े रहे, और मुझे इधर-उधर चूमते-चाटते रहे।

जब मैं पूरी तरीके से शांत हो गई, और उनके होंठ चुसाई में मजा लेने लगी, उसके बाद धीरे-धीरे भैया लंड को पीछे खींचते और मेरी बुर में उतार देते। इस तरह मुझे मजा आने लगा। फिर राकेश भैया तो ताबड़तोड़ अपने लंड को मेरी बुर में बार-बार अंदर-बाहर तेजी से करने लगे, और इस पर तो अब मुझे मजा ही आने लगा था। कमरे में थप-थप की आवाज़ गूंजने लगी।

जैसे-जैसे राकेश भैया अपने लंड की रफ्तार मेरी बुर में बढ़ाते, वैसे-वैसे कमरे में थप-थप की आवाज बढ़ती जाती। उसके साथ ही मेरे दोनों पैरों की पायलों की हल्की-हल्की आवाज भी लयबद्ध तरीके से गूंज रही थी, और बाहर बारिश की छम-छम की आवाज का एक अलग ही आनंद आ रहा था।

काफी देर तक ऐसे ही राकेश भैया मेरी लेते रहे और उसके बाद उन्होंने मुझे उल्टा कर दिया। फिर पीछे से अपने लंड को मेरी बुर में पूरा डाल दिया, और फिर मेरी गर्दन को पकड़ कर मुझे चूमते हुए अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया।

इसी तरह पूरे रूम में हमारी चुदाई की आवाज़ गूंजती रही, और राकेश भैया लगातार मेरी चुदाई करते रहे। फिर उन्होंने पूरा लंड बाहर खींचा, और मुझे अपने ऊपर बिठा लिया। फिर लंड को अंदर डाल कर, मुझे अपने ऊपर झुका कर मेरी चूचियों को पीने लगे। वो नीचे से धक्के लगा कर मेरी चुदाई करना शुरू कर दिए।

इसी तरह और कई तरीकों से राकेश भैया ने मेरी बुर को उस रात बहुत चोदा। रात भर बारिश होती रही और मैं चुदवाती रही। उसके बाद मैं थक कर राकेश भैया के सीने पर ही सर रख नंगी ही उनके साथ सो गई। सुबह जब उठी तब देखी राकेश भैया बिस्तर पर नहीं थे। मैं एक चादर ओढ़ लेटी हुई थी। मैं उठी और अपने कपड़े पहनी, और बाहर निकल कर देखने गई। तब देखी कि राकेश भैया जानवरों को चारा पानी डाल कर कहीं जा रहे थे। जब उनकी नज़र मेरे ऊपर पड़ी तब वह मुझे देख कर मुस्कुराए और बोले-

राकेश: कंचन सब ठीक तो है ना? तुम्हारा दर्द गायब हुआ या नहीं?

यह बोल कर राकेश भैया मंद-मंद मुस्कुराने लगे। मेरी भी हल्की सी मुस्कान छूट गई, परंतु मुझे थोड़ी शर्म भी आ रही थी। रात की बातों को सोच कर फिर मैंने हां में सर हिलाया, और वहां से कमरे में भाग गई‌। अपने घर जाकर खाना-वाना बनाने की तैयारी करने लगी। अभी भी हल्का-हल्का बुर में दर्द था।

दोपहर तक मम्मी-पापा घर पर आ गए और राकेश भैया अपने घर जा चुके थे। उन्हें मैंने खाना खिला दिया था। फिर मम्मी पापा को खाना दी और उसके बाद मैं अपने काम में लग गई। तब मम्मी मेरे पास आई और बोली-

मम्मी: शादी को बहुत कम दिन ही बचे हैं, इसलिए हमें तैयारी और तेजी से करनी होगी। और तुम अब घर से बाहर नहीं जाओगी, ज्यादातर घर पर ही रहना। बहुत मुश्किल से इतना अच्छा लड़का मिला है। उसका घर परिवार बहुत अच्छा है। वहां पर तुम राज करोगी। वह घर का इकलौता बेटा है। साथ ही उसके बाप का अपना केले का बहुत बड़ा खेत है, जहां से उसकी बिजनेस चलती है, और घरों में आमदनी होती है।

मैं मां के बातों से बिल्कुल सहमत थी और मैं शादी के लिए तैयार थी। परंतु अब मेरे मन में मेरे सहेली के भैया यानी कि राकेश भैया बसे हुए थे। मैं उन्हें भूल नहीं पा रही थी, और रात में जो मेरे साथ हुआ था वह सोच कर तो मेरे मुझे रोना आ रहा था। क्योंकि मैं चाहती थी कि यह सब पति के साथ ही हो। परंतु विधाता का खेल देखिए, शादी से ठीक कुछ महीने पहले ही हो गया। मैं अपने आप को कोस रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं?