पिछला भाग पढ़े:- बड़ी बहन के साथ छुप-छुप कर बदन की आग बुझाई-5
हॉट सिस्टर सेक्स स्टोरी अब आगे-
स्नेहा दीदी के दोनों हाथ कस कर दीवार को पकड़े हुए थे और उनका खुला पिछवाड़ा बिल्कुल मेरे सामने था। मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ा और कांपते हाथों से उनकी गोलाई पर अपनी उंगलियाँ फेरने लगा। जैसे ही मेरी हथेली उनकी नरम त्वचा से टकराई, मेरे रोंगटे खड़े हो गए। उनकी गर्मी और मुलायम स्पर्श ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया।
दीदी हल्का-सा सिहर उठी, उनकी कमर थोड़ी-सी हिली और उस हरकत से उनकी सुंदरता और निखर गई। मैं अपने हाथ को और मजबूती से उनकी गहराइयों तक फेरता गया, हर बार ऐसा लगता मानो कोई अनकहा राज़ मेरे हाथों में सिमट आया हो। उनका चमकता हुआ बदन, झुक कर लिया हुआ अंदाज़ और हल्की-सी करवट मुझे और भी दीवाना बना रही थी।
अचानक उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा, “जल्दी करो… वरना मम्मी मुझे ढूंढ़ने आ जाएगी।” उनके शब्दों में घबराहट भी थी और उत्तेजना भी, जिससे मेरा दिल और ज़ोर से धड़कने लगा।
मेरे मन में अजीब ख्याल आया, यही दीदी, जो हर बार छोटे कपड़े पहनने पर भी मुझसे नज़रें चुराती थी, शर्म से लाल हो जाती थी, आज मेरे सामने पूरी तरह नंगी खड़ी थी। वही दीदी, जो पहले झिझक में डूब जाती थी, अब खुद मुझसे कह रही थी कि मैं उनके खुले पिछवाड़े को और गहराई से टटोलूँ। इस उलझन और सुख के मिले-जुले एहसास ने मेरे अंदर तूफ़ान खड़ा कर दिया।
धीरे-धीरे मैंने खुद को भी नंगा करना शुरू किया। पहले अपनी पैंट खोली, फिर अंडरवियर नीचे खींच दिया। मेरी नज़रें दीदी के खुले बदन पर टिकी थी और मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था। मैं उनके बिलकुल पास गया और अपने गर्म, सख्त हो चुके लंड को उनकी मुलायम, नर्म त्वचा से छुआ दिया।
जैसे ही मेरी नोक उनके पिछवाड़े की गोलाई से टकराई, एक तेज़ सनसनी मेरे शरीर में दौड़ गई। मैंने धीरे-धीरे उसे ऊपर से नीचे रगड़ना शुरू किया, कभी गोलाई पर घुमाता, कभी उनकी गहराई के पास सरकाता। दीदी का बदन हल्का-हल्का कांप रहा था और उनकी सांसें गहरी होती जा रही थी।
हर बार जब मेरा लंड उनकी त्वचा पर सरकता, मुझे ऐसा लगता मानो दुनिया थम गई हो। उनकी गर्माहट मेरी नसों में बिजली की तरह दौड़ रही थी। मैंने अपना लंड उनके पूरे पिछवाड़े पर बार-बार रगड़ा, कभी कस कर दबाता, कभी हल्के-हल्के घुमाता। दीदी के होठों से धीमी सिसकारियाँ निकल रही थी, और उनका बदन मेरी हर हरकत पर झुकता जा रहा था।
उस पल में मैंने सेक्स शुरू नहीं किया था, लेकिन मेरे लंड और उनकी त्वचा का यह रगड़ना ही मुझे पागल बना रहा था। हर बार जब मेरा अंग उनकी नरमाई में खोता, मेरे भीतर और ज़्यादा गहराई तक उतरने की लालसा पैदा हो रही थी।
इसी बीच दीदी ने कांपती आवाज़ में कहा, “अंदर डाल दो… मैं अब और संतुलन नहीं रख पा रही।” उनके शब्दों में बेबसी और तीव्र चाहत दोनों झलक रहे थे, जिससे मेरा शरीर और दिमाग पूरी तरह मदहोशी में डूब गया।
मैंने गहरी साँस ली और धीरे-धीरे अपना लंड उनकी जांघों के बीच नीचे सरकाया, उनकी कसावट भरी दरार तक पहुँचा दिया। यह मेरे जीवन का पहला मौका था जब मैं सच में अपनी दीदी के भीतर उतरने वाला था। जैसे ही मेरी नोक उनके तंग छेद से टकराई, मेरा पूरा बदन कांप उठा। वह जगह इतनी तंग, इतनी गर्म और नर्म थी कि मैं बस सांस रोक कर वहीं ठहर गया।
दीदी ने सिर दीवार से टकरा कर हल्की कराह भरी, उनकी आवाज़ में चाहत और दर्द दोनों घुली थी। उनका चेहरा पसीने से चमक रहा था, आँखें बंद थी और होठों पर दाँत गड़े हुए थे। उन्होंने अपनी कमर हल्की-सी पीछे धकेली, जैसे मुझे और आगे खींच रही हों।
उनका छेद इतना कसा हुआ था कि मेरी नोक को अंदर सरकाने में भी पूरी ताक़त लग रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था मानो कोई अनजाना दरवाज़ा धीरे-धीरे मेरे लिए खुल रहा हो। उस कसावट ने मेरी नसों में आग भर दी, हर स्पर्श मेरी रूह तक उतर रहा था।
दीदी की साँसें तेज़ हो चुकी थी, उनका बदन थरथरा रहा था और दीवार पर उनकी पकड़ और मज़बूत हो गई थी। उन्होंने हाँफते हुए कहा, “भाई… धीरे… बहुत टाइट है।” उनकी आवाज़ में घबराहट और आनंद दोनों घुल गए थे।
मेरे लिए यह पल किसी सपने से कम नहीं था। वह दीदी, जिनसे मैं हमेशा नज़रें चुराता था, जिनकी झिझक मुझे पागल करती थी, अब पूरी तरह मेरे सामने झुक कर खड़ी थी। उनका शरीर बार-बार झुक कर मुझे और करीब आने का इशारा कर रहा था। उनके नितंब मेरी हर धड़कन को महसूस करा रहे थे, और मैं भीतर तक डूब चुका था।
धीरे-धीरे मैंने कमर हिलाना शुरू किया। पहले हल्की-हल्की हरकतें की, ताकि वह मेरी मौजूदगी को और सहजता से महसूस कर सकें। जैसे ही मैंने थोड़ी गहराई में जाना शुरू किया, दीदी के होंठों से तीखी सिसकारी निकली, उनकी आवाज़ में दर्द भी था और चाहत भी।
उनकी कराहें कमरे की ख़ामोशी को तोड़ रही थी। हर धक्का उन पर भारी पड़ रहा था, उनकी पीठ और पिछवाड़ा कसक से काँप रहे थे। उन्होंने दीवार को और कस कर पकड़ लिया, जैसे खुद को संभाल रही हों। “आह्ह… धीरे… बहुत जल रहा है…” उन्होंने टूटी आवाज़ में कहा।
मैंने उनकी पीड़ा और सुख दोनों को महसूस किया। उनका छेद अभी भी तंग था, जिससे हर हरकत मुझे भी दीवाना बना रही थी। मैंने गति धीमी रखी, पर उनकी कसावट मुझे मजबूर कर रही थी कि और अंदर धँस जाऊँ। उनके चेहरे पर कभी दर्द की लकीरें आती, कभी उनकी आँखें बंद होकर सिसकारी के साथ गहरी चाहत उभरती।
उनकी कमर बार-बार काँप रही थी, उनकी साँसें धौंकनी की तरह तेज़ हो चुकी थी। हर धक्का उन्हें और मेरे करीब खींचता जा रहा था। उनकी कराहों में अब धीरे-धीरे आनंद की लहर भी घुलने लगी थी, लेकिन उस लहर में अभी भी दर्द का रंग साफ़ झलक रहा था। उस पल का हर सेकंड मेरे लिए नया था, दीदी की कसावट, उनकी आवाज़, उनका थरथराता बदन और मेरे अंदर दौड़ता हुआ पागलपन।
धीरे-धीरे मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ानी शुरू की। शुरुआत में हल्के से धक्के दे रहा था, मगर हर धड़कन मुझे और तेज़ होने पर मजबूर कर रही थी। दीदी का बदन बेकाबू होकर काँपने लगा। उनके हाथ ज़मीन पर फिसल गए और वह अपना संतुलन खो बैठी। अचानक उनका शरीर मेरे सामने फर्श पर ढह गया, लेकिन हमारा जुड़ाव टूटा नहीं। मेरा लंड अब भी उनकी कसावट में धंसा हुआ था।
मैं भी उनके साथ नीचे गिर पड़ा और उनका पूरा नर्म बदन मेरे नीचे दब गया। दीदी के स्तन फर्श से मसल गए, उनकी कराह और ज़ोर से बाहर निकली। उनके गाल ठंडी ज़मीन से सट गए और उनकी आँखें भींची रह गई।
मैं उनके ऊपर फैला हुआ था, मेरा सीना उनकी पीठ से चिपक गया और मेरा लंड अब भी उनकी तंग गहराई में धंसा हुआ था। उनकी गर्माहट मुझे और पागल बना रही थी। मैंने वहीं से फिर से मूवमेंट शुरू किया, इस बार और तेज़, और गहरे। हर झटके के साथ दीदी की सिसकारियाँ कमरे में गूँजने लगी।
उनके स्तन ज़मीन से दबते हुए हिल रहे थे, उनकी कमर मेरे हर धक्के पर काँप उठती। दीदी के नाखून फर्श पर खुरचने लगे, उनकी उँगलियाँ फिसलती और फिर कसकर ज़मीन पकड़ लेती। उनके बदन की लचक और कसावट ने मेरे जोश को और उकसा दिया।
मेरे हर तेज़ झटके पर उनका पूरा शरीर थरथराने लगा, उनकी साँसें टूट-टूट कर बाहर आ रही थी। उनके होंठ खुले हुए थे, आवाज़ों में दर्द और आनंद का मिला-जुला तूफ़ान था। मैं और तेज़ी से, और गहराई तक उतरता गया, उनकी कराहें और मेरी धड़कनें एक लय में बंध गई।
मेरे अंदर का जोश अब काबू में नहीं रहा। जैसे ही दीदी की टाइट जगह ने मुझे और कस कर पकड़ लिया, मेरा पूरा शरीर कांपने लगा। मैंने आखिरी बार जोर से धक्का मारा और फिर सब बाहर निकल गया। गरम-गरम सफेद पानी उनके अंदर भर गया।
मेरी भारी सांसें उनके कानों से टकराई और दीदी के मुँह से लंबी कराह निकली, “आह्ह्ह…” उनकी आँखें कसकर बंद थी, चेहरे पर दर्द और मज़े दोनों की लहर साफ़ दिख रही थी। उनका पूरा बदन मेरे नीचे काँप रहा था।
उनकी कमर अब भी हल्की-हल्की हिल रही थी, और उनके मुँह से टूटी-फूटी आवाज़ें निकल रही थी। उनके दबे हुए स्तन फर्श से रगड़ खा रहे थे, पीठ पसीने से भीग चुकी थी। मेरे अंदर से निकली गरम लहरों को महसूस करके उनकी कराह और तेज़ हो गई।
मैं पूरी तरह उनके ऊपर फैला हुआ था। मेरा सीना उनकी पीठ से चिपका हुआ, दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मेरा सफेद पानी धीरे-धीरे बाहर रिस रहा था और दीदी बस कराहती रही। उस पल हम दोनों ने खुद को पूरी तरह खो दिया।
उस दिन के बाद हम दोनों के बीच का रिश्ता और भी गहरा हो गया। हम दोनों भूल गए कि हमारे बीच कैसा रिश्ता है, या फिर दुनिया की नज़र में हम जो कर रहे हैं वो सही है या ग़लत। हमें बस एक-दूसरे का साथ चाहिए था। स्नेहा दीदी सामने से करने में अब भी डरती थी, लेकिन उन्होंने मुझे कभी निराश नहीं किया। जब भी मेरी ख्वाहिश होती, वो अपने मुँह और पिछवाड़े से मुझे खुश कर देती।
उस दिन भी जब मैं उठा तो मेरा लंड फिर से तन चुका था। पिछली रात भी उन्होंने मुझे अपने मुँह से इतना सुख दिया कि मैं थक कर सो गया। लेकिन सुबह की वो सख्ती वैसी थी जैसे मेरे शरीर ने खुद अपनी ज़िद पकड़ी हो। मैं करवट बदल कर दीदी की तरफ देखने लगा, वो अब भी सो रही थी, लेकिन मैं फिर से बेकाबू हो चुका था।
दीदी ने रात को सिर्फ़ ब्रा और पैंटी पहन कर सोई थी। उनकी साँसों के साथ उनके स्तन ब्रा में कस कर ऊपर-नीचे हो रहे थे। उनकी ब्रा हल्की थी, जिसके कपड़े से उनके गोलाई साफ़ झलक रही थी। हर साँस पर उनके स्तन थोड़ा और उभर जाते, जैसे कपड़ा उन्हें रोक पाने में नाकाम हो रहा हो। उनकी गर्दन से नीचे तक पसीने की हल्की चमक थी, जिससे उनकी क्लीवेज और भी गहरी और भरी-भरी लग रही थी।
उनकी पैंटी की कमर पर चादर ढकी हुई थी, लेकिन उनका ऊपरी हिस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था। उनकी नींद में भी उनका सीना इतना भरा हुआ लग रहा था कि मेरी आँखें हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। वो मासूम नींद में थी, लेकिन उनकी छाती की गोलाई और कसमसाता हुआ कपड़ा मुझे और भी पागल कर रहा था।
मैं धीरे-धीरे उनके पैरों के पास सरक गया। सावधानी से उनके दोनों पैर थोड़े फैलाए और उनके बीच जाकर बैठ गया। मेरा दिल इतनी जोर से धड़क रहा था कि मुझे डर था कहीं वो जाग ना जाए। मैंने बहुत धीरे से उनकी पैंटी की कमर पकड़ी और उसे नीचे खिसकाने लगा, ताकि वो नींद में ही रहें और जागें नहीं।
पैंटी उतरते ही मेरी नज़र उसके नाज़ुक हिस्से पर टिक गई। हल्की रोशनी में उनका नाजुक हिस्सा बहुत मुलायम और साफ़ दिख रहा था, जैसे गुलाबी कलियाँ हों। वहाँ थोड़े-से हल्के बाल थे, जो उसे और भी असली और आकर्षक बना रहे थे। उसकी जाँघों के बीच का वो हिस्सा सांसों के साथ हल्का-सा हिल रहा था। उसकी त्वचा इतनी चिकनी और नरम लग रही थी कि बिना छुए ही उसका अहसास मुझे पागल कर रहा था। वहाँ से आती हल्की-सी मीठी खुशबू मुझे और करीब खींच रही थी।
मैंने धीरे-धीरे उसे छूना शुरू किया ताकि वह ना जागे। मुझे पहले की सारी बातें याद आई, जब मैं उसके करीब जाता था और वह मुझे अपने तरीके से खुश कर देती थी। लेकिन उस समय वह सामने से कभी राज़ी नहीं होती थी। हर बार जब मैंने कोशिश की, उसने मुझे रोक दिया। उसका कहना था कि उसे बहुत दर्द होता है, इसलिए वह नहीं चाहती थी कि मैं ऐसा करूँ।
आज फर्क यह था कि वह गहरी नींद में थी और मुझे रोक नहीं रही थी। जब मेरा हाथ उसके और करीब गया तो मैं उसके नाज़ुक हिस्से को छूने लगा। उस स्पर्श का अहसास मेरे लिए अलग ही था। उसकी त्वचा की गर्माहट मेरी उंगलियों में उतर रही थी। वह हिस्सा बहुत मुलायम था, इतना कि जैसे मैं किसी बेहद कोमल जगह को छू रहा हूँ। हर बार जब मेरी उंगलियाँ वहां रुकतीं या हल्का सा दबाव डालतीं, मेरे शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती थी।
मुझे थोड़ी घबराहट थी, लेकिन उससे ज़्यादा एक तरह का सुकून और खुशी महसूस हो रही थी। उसकी शांति मुझे आगे बढ़ने का मौका दे रही थी और मैं उस अहसास को बार-बार महसूस करना चाहता था।
उस पल में मैं खुद भी ज़्यादा कंट्रोल नहीं कर पाया और मैंने अपना अंडरवियर भी उतार दिया। अब मैं उसके नाज़ुक हिस्से के साथ खेल रहा था और हर हलचल, हर छूने पर होने वाला एहसास साफ़-साफ़ महसूस कर रहा था। ऐसा लगता था मानो मेरा ध्यान अब सिर्फ उसी जगह पर टिक गया हो और बाकी सब कुछ गायब हो गया हो। यह सब मेरे लिए नया था, और मैं उस एहसास में खोता चला गया।
लेकिन मेरे मन में एक सवाल बार-बार उठ रहा था। क्या वह सचमुच दर्द महसूस करती है जब हम आगे से करने की कोशिश करते हैं, या फिर ज़्यादा सोच कर मुझे रोक देती है? कई बार मुझे लगता था कि शायद वह ओवररिएक्ट करती है, लेकिन जब उसके चेहरे पर दर्द की झलक देखी थी, तो मैं रुक गया था। उस पल की यादें मेरे दिमाग में बार-बार घूम रही थी।
अब जब मैं उसे सोते हुए छू रहा था, तो मेरे अंदर यह जानने की इच्छा और भी बढ़ गई कि असल में सच क्या है। क्या वह सच में इतनी तकलीफ़ झेलती है, या फिर डर की वजह से मुझे आगे नहीं बढ़ने देती? मैं पूरी तरह अपने एहसासों में डूबा था, लेकिन दिमाग के कोने में यह सवाल लगातार गूंज रहा था।
अब जब मैं उसे सोते हुए छू रहा था, तो मेरे अंदर यह जानने की इच्छा और भी बढ़ गई कि असल में सच क्या है। यह सोचते-सोचते मैंने एक कदम और आगे बढ़ाने की हिम्मत की। बहुत सावधानी से मैंने अपना लंड उसके नाज़ुक हिस्से पर लगाया और धीरे-धीरे अंदर ले जाने की कोशिश की। शुरुआत में थोड़ा रुकावट महसूस हुई, लेकिन धीरे-धीरे वह अंदर चला गया।
उस पल का अहसास मेरे लिए बिल्कुल अलग था। मैं बहुत संभल कर और धीमी गति से कर रहा था ताकि उसे तकलीफ़ ना हो। पहले कुछ पल तक सब ठीक लगा और मैं हर हलचल को साफ़-साफ़ महसूस कर रहा था।
मेरे मन में लगातार यही सवाल घूम रहा था, क्या वह सच-मुच दर्द महसूस करती है या फिर ज़्यादा सोच कर रुक जाती है? जब मैं धीरे-धीरे चल रहा था तो मुझे लगा शायद यह उसके लिए भी आम हो सकता है। लेकिन जैसे ही मैंने अपनी गति थोड़ी बढ़ाई, उसका शरीर अचानक हरकत में आया। उसने नींद में ही तेज़ दर्द महसूस किया और अचानक चीख उठी।
उसकी आवाज़ में इतनी तकलीफ़ थी कि मैं तुरंत रुक गया। उसकी आंखों में आंसू आ गए थे और उसका चेहरा सिकुड़ गया था। वह ज़ोर से सांस ले रही थी और अपने हाथों से मुझे पीछे धकेलने की कोशिश कर रही थी। उसके चेहरे पर वही कड़वा दर्द साफ़ झलक रहा था, जिसकी वजह से वह हमेशा मना करती थी। उसकी कराह और चीख ने साफ़ कर दिया कि यह उसके लिए सहन करना बहुत मुश्किल था।
उस पल मुझे यक़ीन हो गया कि वह ओवररिएक्ट नहीं करती थी, बल्कि सच-मुच उसे तकलीफ़ होती थी। उसकी चीख और बेचैनी देख कर मुझे तुरंत अपनी गलती का एहसास हुआ।
वह रोने लगी और कांपती हुई आवाज़ में बोली, “तुमने ऐसा क्यों किया? मैंने हमेशा कहा था कि मुझे दर्द होता है, फिर भी तुमने ज़बरदस्ती क्यों की?” उसके शब्दों में दर्द और गुस्सा साफ़ झलक रहा था।
उसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे और वह मेरे सामने जवाब चाह रही थी।
मैंने हकलाते हुए कहा, “सॉरी… सॉरी स्नेहा दीदी, मुझसे गलती हो गई।” लेकिन वह लगातार रोती रही। उसने मेरे जवाब की तरफ ध्यान नहीं दिया और तुरंत अपने कपड़े उठा कर पहनने लगी। उसके कांपते हाथ, चेहरे पर आंसू और बार-बार कपड़े ठीक करने की बेचैनी साफ़ दिखा रही थी कि वह अब मुझसे दूर जाना चाहती है।
कपड़े पहनने के बाद वह दरवाज़े की ओर बढ़ी। चलते-चलते उसने पीछे मुड़ कर कहा, “सब खत्म हो गया है। अब हमारे बीच कुछ नहीं बचा। तुम मेरे लिए सिर्फ वही छोटे भाई जैसे हो, जैसे पहले थे।”
उसकी बातों ने मेरे अंदर सन्नाटा भर दिया। मैं चुप-चाप उसे जाते हुए देखता रहा और समझ गया कि सब कुछ बदल चुका है। मैं धीरे-धीरे उसके पास गया और धीमे स्वर में बोला, “दीदी… आप कहाँ जा रही हैं?”
माँ-पापा वहीं थे, इसलिए वह मुझे अनदेखा नहीं कर सकी। उसने आंसुओं से भरी आँखों से मेरी ओर देखा और ठंडी आवाज़ में कहा, “ऑफिस… मेरी छुट्टियाँ खत्म हो गई हैं।” उसके शब्द छोटे थे, लेकिन उनमें दूरी और ठंडापन साफ़ महसूस हो रहा था।
उसी पल मेरा दिल भर आया। मैंने बिना कुछ सोचे उसे कस कर गले लगा लिया। माँ-पापा के सामने यह बस एक भाई का प्यार लग रहा था, लेकिन हम दोनों जानते थे कि इस हग में और भी कुछ छिपा था।
उसके स्तन मेरे सीने से दबे हुए महसूस हुए, नरम, गर्म और हल्की थरथराहट लिए हुए। उस एक पल में मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो गई। वह पल भर के लिए ठिठकी, जैसे खुद को सँभाल रही हो, और फिर बस एक सेकंड के लिए मुझे गले लगा कर तुरंत अलग हो गई। उसके पीछे मुड़ने से पहले भी उस स्पर्श का अहसास मेरे अंदर गहराई तक रह गया।
इसके बाद उसने अपने बैग उठाए और दरवाज़े की ओर चल दी। मैं वहीं खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा। उसी पल मुझे अपनी सारी गलतियों का बोझ और गहराई से महसूस हुआ। उसकी हर कदम के साथ मुझे लग रहा था जैसे वह मुझसे और दूर जा रही है, और मैं सिर्फ अपनी नादानी के साथ अकेला रह गया हूँ।
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