पिछला भाग पढ़े:- पड़ोसी ने तोड़ी मेरी दीदी की सील-10
हिंदी सेक्स कहानी अब आगे-
अंकल के जाने के बाद मम्मी घर के कामों में लग गई, और दीदी अपनी पढ़ाई में। रात को जब हम सब साथ में खाना खा रहे थे, मम्मी कुछ चुप-सी बैठी थी।
उन्हें देख कर दीदी ने पूछा: क्या हुआ मम्मी? आप कुछ उदास लग रही हैं, और अंकल भी आज जल्दी चले गए?
मम्मी (धीरे से बोलीं): कुछ नहीं बेटा, बस ऐसे ही मन थोड़ा खाली सा लग रहा है। तुम खाना खाओ, मैं ठीक हूं। उन्हें जाना था, चले गए।
मम्मी की बात सुन कर दीदी चुप हो गई। फिर जल्दी-जल्दी खाना खा कर हम सब अपने-अपने कमरों में चले गए। अगले दिन दीदी का आख़िरी एग्ज़ाम था। वो सुबह जल्दी उठ कर कॉलेज चली गई। जब लौट कर आई, तो बहुत खुश थी। फिर नहा-धो कर ताज़ा होकर कमरे में बैठी, और चुप-चाप कुछ सोचने लगी। मैं वहीं पास में बैठा था। दीदी आंखें बंद करके मन ही मन कुछ कह रही थी। उनकी बातों में बहुत भाव था। उन्होंने धीरे से कहा-
दीदी (धीरे से मन ही मन): बस अब सलीम हमेशा मेरे साथ ऐसा ही प्यार बनाए रखे। उसके बिना अब रहना मुश्किल है। मैं उससे बहुत प्यार करती हूं।
दीदी की ये बात सुन कर मैं चौंक गया। मुझे पहली बार एहसास हुआ कि वो सलीम से कितना गहरा जुड़ाव महसूस करती थी। वो सिर्फ़ उससे बात नहीं करती, बल्कि दिल से चाहती थी। उस दिन दीदी ने खुशी-खुशी घर के सारे काम निपटाए, और जल्दी सोने चली गई।
अगले दिन सुबह, दीदी एक हल्की सी मुस्कान और ताजगी के साथ उठी। नाश्ता किया, फिर मम्मी ऑफिस के लिए निकल गई। उनके जाने के बाद दीदी नहाने चली गई। तैयार होकर आई तो उन्होंने सलीम से फोन पर बात की, और मिलने की बात कही।
जब सलीम ने शाम तक का समय बताया, तो दीदी थोड़ा उदास हो गई, और चुप-चाप अपने कमरे में लेट गई। लेकिन शाम को जैसे ही सलीम बाइक लेकर घर के पास आया, दीदी की उदासी जैसे उड़ गई। वो जल्दी से बाहर निकली, और सलीम को देखते ही उससे लिपट गई, जैसे महीनों बाद किसी अपने से मिली हो।
दीदी ने उस दिन पहली बार शॉर्ट ड्रेस पहनी थी। स्लीवलेस ब्लैक ड्रेस, जो घुटनों से कुछ ऊपर थी, और उनकी गोरी टांगें खामोशी से मेरा ध्यान खींच रही थी।
ड्रेस उनकी कमर पर बिल्कुल फिट थी।जिससे उनका बदन और ज़्यादा निखर कर दिख रहा था। कंधे खुले थे, और गले की कटिंग थोड़ी डीप मगर इतनी सलीकेदार कि सलीम नज़र वही अटक गई।
उन्होंने बाल खुले छोड़े थे, और होठों पर सिर्फ हल्की सी लिपस्टिक। कमरे से बाहर निकली, तो उनकी चाल में एक अजीब सा आत्मविश्वास था, जैसे उन्हें एहसास था कि वो आज कुछ ज़्यादा ही ख़ूबसूरत लग रही थी। और सच में वो लग भी रही थी।
दीदी की आंखों में चुदने की बेचैनी थी। जैसे हर पल उनके भीतर कुछ टूटने को है। उन्होंने सलीम की ओर झुक कर उसके होंठों को अपने होंठों से छुआ। वह स्पर्श सिर्फ चाहत का नहीं, एक अधूरी तड़प का इज़हार था।
सलीम ने घबराए हुए लहजे में धीरे से पूछा: जान क्या यहीं आंगन में सब कुछ करने का इरादा है तुम्हारा?
दीदी ने हड़बड़ी में जवाब दिया: बाबू मुझसे अब और इंतज़ार नहीं होता। आप इतने लेट क्यों हुए? आपको पता भी है ना मम्मी के आने का वक्त हो चुका है।
सलीम ने हल्के से उनके होंठों को फिर चूमा, जैसे पल भर को डर को भुलाना चाहता हो और बोला: सॉरी जान, आज बहुत काम था। वरना कब का आ जाता।
दीदी ने अपना सिर सलीम के सीने से टिका दिया। उनके शब्दों में एक कंपकंपी सी थी: आपको अंदाज़ा भी नहीं मैं कितनी देर से खुद को रोक रही थी। आपसे चुदने के लिए कब से तड़प रही हूं। अब और नहीं रहा जाता। मम्मी को आने से पहले मेरी चूत की गर्मी को शांत करो।
हाथ थाम कर, लगभग खींचते हुए, दीदी सलीम को अपने कमरे की ओर ले गई। दरवाज़े के पास पहुंच कर अचानक रुक गई। उनके चेहरे पर डर और सतर्कता का मिला-जुला भाव था।
वो पलट कर बोली: अमित तुम यहीं गेट के पास रहना। मम्मी आ जाएं तो तुरंत बताना। और अगर वो पूछें, तो कह देना कोई बिजली वाला आया है। दीदी पंखा ठीक करवा रही हैं। ठीक है?
इतना कह कर दीदी ने तेजी से सलीम को कमरे में खींच लिया। दरवाज़ा जैसे ही बंद हुआ, उस कमरे के भीतर एक असहज, संकोच भरी चुप्पी उतर आई। और बाहर समय की सुई जैसे तेज़ भागने लगी। कुछ देर बाद मुझे अंदर से दीदी की सिसकारियों की आवाज़ें आने लगी। उनकी सांसें तेज़ थी, और ऐसा लग रहा था जैसे वो बहुत बेचैन हों।
उनकी आहें कमरे के बाहर तक सुनाई दे रही थी। मैं थोड़ा घबरा गया। समझ आ रहा था कि अंदर सलीम दीदी की जम कर चुदाई कर रहा था। मन कर रहा था जा कर देखूं, लेकिन दीदी ने मना किया था कि कोई अंदर ना आए।
करीब आधा घंटा बीत गया, लेकिन ना दीदी बाहर आई, ना सलीम । मैं घर के बाहर खड़ा था, मम्मी के लौटने का इंतज़ार कर रहा था। मेरा ध्यान दीदी को सलीम कैसे चोद रहा होगा ये सोचने में उलझ जाता है। तभी अचानक मम्मी मेरे पास आ गई। उन्हें देख कर मैं घबरा गया।
मम्मी ने पूछा: अमित, ये बाहर बाइक किसकी खड़ी है? और तू यहां क्या कर रहा है?
मैं थोड़ा हड़बड़ा गया, फिर जल्दी से बोला, ताकि दीदी भी सुन लें: वो मम्मी, घर में बिजली वाला आया है। दीदी उससे पंखा ठीक करवा रही हैं।
मम्मी गुस्से में बोलीं: क्या? इतनी देर से वो अंदर हैं और तुझे यहां खड़ा कर दिया? रुक, मैं खुद देखती हूं!
मैं मन ही मन सोच रहा था आज तो दीदी गई। अगर मम्मी ने देख लिया, तो सलीम और दीदी दोनों पकड़े जाएंगे। मम्मी धीरे-धीरे ऊपर गई और दीदी के कमरे के पास जाकर झांकने लगी। कमरे की खिड़की थोड़ी खुली हुई थी, जिससे अंदर थोड़ा-बहुत दिख रहा था। मम्मी ने जैसे ही अंदर देखा, उनके चेहरे का रंग उड़ गया। उन्होंने घबरा कर अपना हाथ मुंह पर रख लिया और फिर माथा पकड़ कर बैठ गई।
उनके चेहरे पर गुस्सा साफ दिख रहा था, पर वो चुप थी। शायद इसलिए कि अगर कुछ कहती, तो बात बाहर निकल जाती और दीदी की बदनामी हो जाती। मम्मी चुप-चाप अंदर देखती रही, और मैं, दूर खड़ा, चुप-चाप मम्मी को देख रहा था।
कुछ देर तक दीदी की आवाज़ें नहीं आ रही थी, सब कुछ शांत था। लेकिन फिर अचानक, उनकी धीमी-धीमी सिसकियां फिर से सुनाई देने लगी। मैं धीरे से मम्मी की ओर देखने लगा। मम्मी दरवाज़े की झिरी से अंदर झांक रही थी।
वो मम्मी, जो थोड़ी देर पहले तक बहुत परेशान दिख रही थी। अब चुप-चाप अंदर देख रही थी । उनके चेहरे पर अब गुस्से की जगह हैरानी थी। उन्होंने एक-दम से अपने मुंह पर हाथ रख लिया, जैसे कुछ ऐसा देख लिया हो जिसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी।
मैंने सोचा शायद मम्मी उस सलीम को देख कर हैरान हो गई होंगी, जो दीदी की चुदाई कर रहा था। लेकिन थोड़ी ही देर में मुझे मम्मी का चेहरा कुछ और ही कहता लगा। वो जैसे अंदर देखती-देखती खुद भी उलझन में पड़ गई हो। उनका मन भी बेचैन सा लग रहा था। वो ख़ुद से अपने जिस्म को सहला रही थी। उनका हाथ सारी के ऊपर से अपनी चूचियों पर था। दूसरे हाथ से वो अपनी गर्दन को छू रही थी।
धीरे-धीरे, जब दीदी की आवाज़ें थोड़ी तेज़ होने लगी, तो मम्मी ने अपने जिस्म को और छेड़ना शुरु कर दिया। जब दीदी की आवाज़ आना बंद हुई, तब मम्मी ने जल्दी से अपना चेहरा दूसरी ओर कर लिया, और अपनी साड़ी को ठीक करने लगी। शायद उन्हें अचानक अपनी स्थिति का एहसास हो गया था। मैं समझ गया कि अब मुझे वहां नहीं रुकना चाहिए। मैं चुप-चाप वहां से हट गया और घर के बाहर आ गया।
जब सलीम बाइक लेकर चला गया, तो थोड़ी देर बाद मैं घर के अंदर गया। जैसे ही अंदर गया, देखा मम्मी आंगन में बहुत गुस्से में बैठी थी। दीदी अपने कमरे से बाहर आई, उन्होंने सिर्फ एक स्लीवलेस कुर्ती और छोटी निकर पहन रखी थी। मम्मी को देखते ही दीदी थोड़ा डर गई। उनके चेहरे पर घबराहट साफ़ दिख रही थी और माथे पर पसीना आ गया था।
मम्मी ने उन्हें देखा और गुस्से से बोलीं: आओ महारानी जी, इधर मेरे पास आओ।
दीदी धीरे-धीरे डरते हुए मम्मी के पास गई। मम्मी का चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था। उन्होंने दीदी के पास जाकर गाल पर दो-तीन थप्पड़ मार दिए। फिर उनके बाल पकड़ कर झटके से खींचते हुए बोलीं: यही सब करती है तू मेरे पीछे? मेरी पीठ पीछे क्या-क्या चल रहा है तेरा?
मम्मी ने फिर से दो-तीन थप्पड़ मारे। मैंने देखा कि दीदी को भी गुस्सा आ रहा था, लेकिन वो कुछ बोल नहीं रही थी। मम्मी लगातार चिल्ला रही थी और दीदी को बहुत बुरा-भला कह रही थी। घर का माहौल बहुत तनावपूर्ण हो गया था।
मम्मी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा: अमित, तुम बताओ, तुम्हें पता था मंजू बाहर क्या कर रही है? सलीम से मिलती थी? अगर तुम जानते थे तो मुझे क्यों नहीं बताया?
फिर मम्मी ने मुझे भी एक-दो थप्पड़ मार दिए। इसके बाद मम्मी ने दीदी से कहा:
तुझे वही सलीम मिला था अपना मुंह काला करने के लिए? पता है वो कैसा है? तुझे शर्म नहीं आई उसके साथ ऐसा करने में? रंडी मुंह काला करना ही था तो कहीं और कर लेती।
मम्मी दोबारा दीदी को मारने के लिए बढ़ी। लेकिन दीदी पीछे हटते हुए बोली: बस करो मम्मी, सलीम के बारे में और कुछ मत बोलो। मैंने कोई गलत काम नहीं किया है।
मम्मी: अच्छा, तो अभी तू उस सलीम के साथ कमरे में क्या कर रही थी, वो भी बिना कपड़ों के नंगी ? मैंने खुद देखा तुम दोनों क्या कर रहे थे अंदर। रंडी के तेवर तो देखो, जैसे कोई शर्म ही नहीं बची। बड़ी खुशी मिल रही थी ना अपनी हवस मिटाने में?
दीदी: हां, अगर मैंने उसके साथ कुछ किया तो? आप क्या कर लोगी? आप कौन सी दूध की धुली हो? आप भी तो उस ठाकुर अंकल के साथ अपनी हवस पूरी कर रही थी।
मम्मी को दीदी की बात बुरी लग गई और वो गुस्से में आ गई। उन्होंने दीदी का हाथ पकड़ा और दो-तीन थप्पड़ मार दिए। दीदी भी इस बार बहुत गुस्से में आ गई और मम्मी को अपने से धक्का देकर दूर कर दिया।
दीदी बोली: बस अब और मत बढ़ाओ बात। अगर तुमने मुझे दोबारा छुआ, तो मैं ये भी भूल जाऊंगी कि तुम मेरी मां हो। तू रंडी खुद उस अंकल के साथ जिस तरह से चुदवा रही थी, वो सब मैंने देखा है। तुम्हें शर्म आनी चाहिए एक विधवा होकर भी इस उम्र में ऐसी हरकतें कर रही हो। मैं तो फिर भी जवान हूं, लेकिन तुम्हें खुद को देखना चाहिए साली छिनाल।
दीदी अब कहने लगी, तो मम्मी रोने लगी। मम्मी (रोते हुए): हां, मैंने जो कुछ किया, मजबूरी में किया। मुझे प्रमोशन चाहिए था और उसके लिए मुझे उसके साथ रहना पड़ा।
दीदी (गुस्से में): मजबूरी थी या फिर मर्द की बाहों में सुकून लेने की चाहत? अगर तुम्हारी मजबूरी थी, तो सुन लो मेरी भी। मैं सलीम से प्यार करती हूं और उसके बिना नहीं रह सकती। मैं उसी से शादी करूंगी।
मम्मी (कड़ाई से): मैं तुम्हारी शादी उससे नहीं होने दूंगी। अगर तुम उससे दोबारा मिली, तो देख मैं क्या करती हूं।
फिर दीदी अपने कमरे में चली जाती हैं और चुप-चाप रोने लगती हैं। मम्मी भी अपने कमरे में बैठ कर रोती रहती हैं। उस रात घर में किसी ने खाना नहीं खाया। अगले दिन भी दीदी कमरे से बाहर नहीं आई, ना नाश्ता किया ना दोपहर का खाना। पूरा दिन सन्नाटे में गुजर गया। रात को जब मम्मी दीदी को खाना देने गई, तो दीदी ने गुस्से में कह दिया: लेजा रंडी मुझे कुछ नहीं खाना, मुझे बस सलीम चाहिए!
मम्मी चुप-चाप खाना वहीं रख कर वापस अपने कमरे में चली आई, और गुस्से में बड़बड़ाने लगी: बहुत चढ़ा है सलीम का भूत इसके सिर पर। सब निकाल दूंगी रंडी। कुछ भी समझती नहीं अपने भले-बुरे का!
अगले दिन भी दीदी ने कुछ नहीं खाया। मम्मी ने गुस्से में जाकर फिर डांटा: खाना है तो खा, नहीं तो मर भूखी रंडी। लेकिन मैं तुझे सलीम से मिलने नहीं दूंगी। बहुत हो गया तमाशा! क्या उसी के पीछे पागल हो गई है? पता हैं तेरी चूत को उसके लंड का पानी लग गया है।
अंदर से दीदी चिल्ला पड़ी: हां रंडी, जैसे तुझे ठाकुर के लंड का पानी लगा है। पता नहीं तुम बाहर भी और से चुदवाती होगी। मैं तो सलीम से प्यार करती हूं। उसके लिए कुछ भी करूंगी। उसका बीज भी अपने अंदर लूंगी। जब तुम इस उम्र में ठाकुर से चुदाई का मजा ले सकती हों, तो मैं क्यूं ना अपनी जवानी में सलीम की चुदाई का मजा लूं?
दीदी की बातें इतनी बेशर्म हो गई थी कि मम्मी को चुप रह जाना पड़ता था। घर की इज़्ज़त बचाने के लिए मम्मी कभी-कभी हाथ जोड़ कर भी दीदी से बात करती थी। लेकिन दीदी पर अब सलीम के प्यार का असर साफ दिखने लगा था।
मैं चुप-चाप उनकी बातें सुनता रहता। घर का माहौल इतना तनाव भरा हो गया था कि अब मुझे भी बाहर जाने का मन नहीं करता था। मम्मी को दीदी पर दया आ जाती थी। वो उसे प्यार से समझाने की कोशिश करती थी, लेकिन दीदी मम्मी की कोई बात मानने को तैयार नहीं थी।
मैं रोज़ दीदी को रात में अपनी कसम देकर खाना खाने को कहता। दीदी मेरी बात मान जाती और खाना खा लेती। बहुत दिनों तक मम्मी ने दीदी को समझाने की कोशिश की, लेकिन दीदी नहीं मानी।
एक दिन मम्मी अपने कमरे में अकेली बैठ कर कुछ सोचने लगी। काफी देर सोचने के बाद उन्होंने खुद से ही कहा, अगर मैं सलीम के घर जाकर बात करूंगी, तो सबको पता चल जाएगा। नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती।
फिर मम्मी मेरे पास आई और बोली: बेटा, सलीम इस वक्त कहां मिलेगा?
मैंने बताया: मम्मी, वो इस समय अपने गोदाम पर होगा। वहीं माल की देख-रेख करता है, और वहीं रुकता भी है।
मम्मी बोली: ठीक है, मैं उससे बात करने जा रही हूं। तुम घर पर रह कर अपनी दीदी का ध्यान रखना।
उस समय शाम के 6 बज रहे थे। मम्मी ने अपने बाल ठीक किए, एक अच्छी सी साड़ी पहनी और घर से बाहर निकल गई। मुझे डर लग रहा था कि कहीं मम्मी और सलीम के बीच कोई बहस ना हो जाए। मैं सोच में पड़ गया। अगर मैं मम्मी के पीछे गया, तो दीदी घर में अकेली रह जाएगी।
मैंने दीदी से कहा: मम्मी सलीम से बात करने गई है। मुझे थोड़ा डर लग रहा है।
दीदी बोली: अमित, तुम मम्मी के साथ जाओ। मेरी चिंता मत करो।
मम्मी ने उस दिन पतली सी चमकीली साड़ी पहनी थी, हल्के नीले रंग की, जो रौशनी में कभी सिल्वर तो कभी आसमानी सी लगती। कपड़ा इतना नाज़ुक था कि जैसे वो उनके जिस्म से लिपट नहीं रहा था, बल्कि उसके हर कर्व को छूता हुआ सरक रहा था।
उनका ब्लाउज़ थोड़ा छोटा और कसा हुआ था। जिससे बूब्स का उभार और कंधे की गोलाई एक-दम उभर कर सामने थी। पल्लू कंधे पर रखा था, लेकिन इतना ढीला कि चलने पर बार-बार सरकता, और नीचे की तरफ खिसकता। जब वो उसे ठीक करतीं, तो उनकी उंगलियां धीरे-धीरे सीने के ऊपर से गुजरती, और मुझे अपनी सांसें थमती हुई लगती।
उनकी कमर पतली और मुरझाई नहीं, बल्कि और निखरी हुई दिख रही थी। साड़ी पेट पर इतनी टाइट बंधी थी कि नाभि की गोलाई साफ़ दिख रही थी, और नीचे सिल्क की हल्की सिलवटों में जैसे शरीर की गर्माहट भाप बन कर छिपी हो।
बालों का ढीला जूड़ा, जिसमें से कुछ लटें उनकी गर्दन को छू रही थी। उस गर्दन की नर्मी और खुलापन ऐसा था, जैसे कोई भी उसे देखने से खुद को रोक ना पाए। चेहरे पर हल्का मेकअप था। गुलाबी होंठ, काजल भरी आंखें, और उनमें एक चुप सी चमक। ना शर्म, ना खुलापन बस कुछ अधूरा सा जो अपनी तरफ खींचता है।
उनकी चाल में तेज़ी नहीं थी, लेकिन हर कदम पर कमर की हिलती हुई लचक और पल्लू की सरकती रेखा, कुछ ऐसा बना रही थी कि रास्ते में कोई भी मर्द एक बार देखे तो दूसरी बार देखने से खुद को रोक ना सका।
मैं जल्दी से बाहर निकला और जब गोदाम के पास पहुंचा, तो देखा मम्मी अंदर जा रही थी।
तो दोस्तों, मम्मी सलीम के बारे में क्या सोचती हैं। ये मैं आपको अगले भाग में बताऊंगा। मुझे पूरा यक़ीन है कि मेरे प्रिय पाठक अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार करेंगे। मेरी अब तक की कहानी आपको कैसी लगी, मुझे ज़रूर बताइए। आप अपने सुझाव और प्रतिक्रियाएं मेरी ईमेल पर भेज सकते हैं: [email protected]
अब तक मेरी कहानी के साथ बने रहने के लिए आप सभी पाठकों का दिल से धन्यवाद।
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