पिछला भाग पढ़े:- बड़ी बहन के साथ छुप-छुप कर बदन की आग बुझाई-7
भाई बहन में सेक्स की कहानी अब आगे से-
स्नेहा दीदी खड़ी हो गई और मैं भी उनके पास खड़ा हो गया। कमरे का माहौल अचानक और गहरा हो गया था। खिड़की से आती हल्की रोशनी उनके चेहरे पर पड़ रही थी और उनकी आँखों की चमक कुछ अनकही बातें कह रही थी।
स्नेहा दीदी धीरे-धीरे अपने कपड़े उतारने लगी। पहले उन्होंने अपना ढीला-ढाला टी-शर्ट सिर के ऊपर से निकाला और उसे एक तरफ रख दिया। फिर उन्होंने अपने छोटे शॉर्ट्स को धीरे-धीरे नीचे खींचा, उनकी जाँघों से सरकते हुए शॉर्ट्स फर्श पर आकर गिर गए। अब वह मेरे सामने केवल अपनी ब्रा और पैंटी में खड़ी थी।
उनकी गोरी त्वचा पर हल्की-सी लालिमा झलक रही थी, जैसे अचानक खुली हवा और मेरी नज़रें उनके जिस्म को छू रही हो। ब्रा के अंदर से उनके भरे-भरे स्तनों का आकार साफ़ झलक रहा था, कपड़े की पकड़ के बावजूद उनका उठाव और गोलाई मेरे दिल की धड़कन तेज़ कर रहे थे। हर सांस के साथ उनका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था और उस हलचल में उनकी खूबसूरती और भी निखर रही थी।
कमर के नीचे, पतली-सी पैंटी उनकी जाँघों को और सुडौल बना रही थी। उनके पैरों की लंबाई और चिकनाई ऐसी लग रही थी मानो कोई कलाकार ने उन्हें गढ़ा हो। पैंटी के कपड़े के भीतर उनकी छुपी हुई गरमी का एहसास दूर से ही मुझे बेचैन कर रहा था। उस पल स्नेहा दीदी किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। उनकी आँखों की शर्मीली चमक और शरीर का यह रूप मुझे पूरी तरह मोहित कर चुका था।
स्नेहा दीदी खड़ी थी और उनकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी। अचानक उन्होंने अपने दोनों हाथ खोल दिए, जैसे मुझे अपने पास बुला रही हो। उनके खुले हाथों की वह पुकार मेरे लिए किसी जादू से कम नहीं थी। मैं धीरे-धीरे उनके पास गया और उनके गर्म शरीर को अपनी बाहों में भर लिया। जैसे ही उनके नरम और भारी स्तन मेरे सीने से दबे, एक हल्की सिहरन मेरे पूरे जिस्म में दौड़ गई।
उनकी ब्रा के कपड़े के पीछे छुपी गोलाई और नरमी मेरे सीने से इस तरह चिपकी थी कि लगता था मानो दो गर्म तकिये मेरे दिल की धड़कनों को महसूस कर रहे हों। दीदी की सांसें तेज़ थी और उनकी छाती का हर उठाव मेरे सीने पर साफ़ दबाव डाल रहा था।
मैंने उन्हें कस कर पकड़ा और उसी बाहों में मेरी एक हथेली धीरे-धीरे उनकी कमर से नीचे खिसकने लगी। उंगलियाँ उनकी चिकनी जाँघों के किनारे से होती हुई पैंटी के भीतर चली गई। जैसे ही मेरी उंगलियाँ उस गरम जगह तक पहुँची, दीदी हल्की-सी कांप गई और उनका चेहरा मेरी गर्दन में छिप गया। उनकी गरमी और नमी ने मेरे पूरे शरीर को झकझोर दिया। मैंने धीरे-धीरे उनकी भीगी हुई जगह पर अपनी उंगलियों को रगड़ना शुरू किया। उनकी पैंटी के कपड़े के नीचे से मिलने वाली वह नमी और मुलायम स्पर्श ऐसा था मानो कोई छुपा हुआ खज़ाना मेरे हाथों में आ गया हो।
हर रगड़ के साथ दीदी की सांसें और भारी होती जा रही थी। उनका सीना मेरे सीने पर और जोर से दब रहा था, और उनके होंठों से निकलती हल्की कराहें मेरे कानों में पिघलती जा रही थी। दीदी का पूरा शरीर मेरी पकड़ में कांप रहा था, उनकी जाँघें थोड़ी-थोड़ी खुल रही थी और मेरी उंगलियाँ उनके भीतर की बेचैनी को और गहराई से महसूस कर रही थी। कमरे में उस पल सिर्फ हमारी सांसों की आवाज़ और उनके शरीर की गर्मी रह गई थी।
दीदी का शरीर मेरी पकड़ में हल्की-हल्की थरथरा रहा था। उनकी सांसें इतनी भारी हो गई थी कि हर सांस मेरे गाल पर गर्म हवा की तरह टकरा रही थी। मैं उनके कान के पास था और उनके होंठों से निकलती धीमी-धीमी कराहें मेरे दिल की धड़कनों को और तेज़ कर रही थी। उनकी जाँघें अब धीरे-धीरे और खुलने लगी, जैसे वह खुद को मेरे हवाले कर रही हो।
मैंने अपना हाथ उनकी पैंटी के भीतर और गहराई तक ले गया। मेरी उंगलियाँ उनके सबसे नर्म हिस्से तक पहुँची और जैसे ही मैंने एक उंगली अंदर की ओर सरकाई, दीदी ने मेरी गर्दन को कस कर पकड़ लिया। उनके चेहरे पर उस पल एक आधा दर्द, आधा सुख था। उनकी भौहें सिकुड़ गई, आँखें बंद हो गई और होंठ दब कर रह गए, मानो वह भीतर उमड़ते एहसासों को रोकने की कोशिश कर रही हो।
मेरी उंगली जैसे-जैसे उनके भीतर जाने लगी, उनका पूरा शरीर एक झटके से सिहर उठा। वह हल्की-सी चीखी, लेकिन तुरंत ही उनकी आवाज़ कराह में बदल गई। उनका चेहरा मेरी छाती से सट गया, उनकी गर्म साँसें मेरी त्वचा को पिघला रही थी। मैंने धीरे-धीरे उंगली को अंदर-बाहर करना शुरू किया, और उनके हाव-भाव हर पल बदलते जा रहे थे, कभी आँखें कस कर बंद हो जाती, कभी वह मुझे देखती, उनकी आँखों में नमी और गहरी चाह एक साथ तैर रही थी।
उनके होंठ काँपते हुए मेरे कान के पास आ गए और वह धीमी-सी आवाज़ में कराह उठी। उनकी आवाज़ में इस बार एक नई बेचैनी थी। उन्होंने बमुश्किल शब्द निकाले, “मुझसे अब कंट्रोल नहीं हो रहा… क्या तुम अपनी पैंट खोल सकते हो?”
मैं कुछ पल चुप रहा, उनका चेहरा मेरे सीने से लगा हुआ था। उनकी आँखों में गहरी तड़प थी, लेकिन साथ ही कहीं छिपा हुआ डर भी साफ़ झलक रहा था। मैंने उनके बालों को सहलाते हुए धीरे से कहा, “दीदी, खुद पर ज़ोर मत डालो। अभी नहीं… तुम इतना दर्द सह नहीं पाओगी। हम इसे बाद में करेंगे, जब तुम पूरी तरह तैयार हो।”
दीदी ने आँखें खोल कर मेरी तरफ़ देखा, उनके चेहरे पर एक जिद और चाह साफ़ दिखाई दे रही थी। उन्होंने लगभग फुसफुसाते हुए कहा, “मैं दर्द सह लूँगी… बस तुम मुझे अपने पास आने दो।”
मैंने उनका चेहरा अपनी हथेलियों में लिया और गहरी नज़रों से देखा। प्यार और चिंता दोनों मेरी आँखों में थे। मैंने धीरे-धीरे कहा, “नहीं दीदी… तुम्हारा छोटा सा होल अभी उस दर्द के लिए तैयार नहीं है। और मेरी चीज़ इतनी बड़ी है कि तुम्हारे लिए सहना मुश्किल होगा। मैं तुम्हें तकलीफ़ में नहीं देख सकता। जब तुम सच में तैयार हो जाओगी, तब हम करेंगे। अभी नहीं।”
यह सुन कर दीदी कुछ पल चुप रही। फिर धीरे-धीरे वह मेरे सामने घुटनों के बल बैठ गई। उनकी आँखों में मासूमियत थी और चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान। वह मेरे पैरों के बीच आकर ऊपर मेरी ओर देखने लगी। उनकी नज़रें सीधी मेरी आँखों से टकराई और उनकी आवाज़ में मासूमियत और गहरी चाह दोनों मिल कर गूँज उठी, “गोलू… मैं समझ गई। तुम अपनी दीदी को चोट नहीं पहुँचाना चाहते… लेकिन क्या तुम अपना लंड मेरे मुँह में डाल सकते हो? मुझे अभी उसकी ज़रूरत है।”
उनके इन शब्दों को सुनते ही मेरे ज़हन में दो महीने पहले की याद ताज़ा हो गई। उस समय मैंने एक बार बिना उनकी इजाज़त उन्हें छूने की कोशिश की थी और वह मुझ पर गुस्सा हो गई थी। उनकी आँखों में नाराज़गी और चेहरे पर सख्ती साफ़ झलक रही थी। उस दिन मुझे लगा था कि शायद मैंने उन्हें हमेशा के लिए खो दिया।
लेकिन आज वही दीदी मेरे सामने घुटनों पर बैठी थी, मासूम चेहरे के साथ मेरी तरफ़ देख रही थी और खुद मेरे लंड को अपने मुँह में लेने की बात कह रही थी। इस सोच से ही मेरे अंदर एक अजीब-सी खुशी और गर्व भर गया। जिस दीदी को छूने की हिम्मत भी कभी मेरे लिए नामुमकिन थी, वही अब अपनी इच्छा से मुझे चखना चाह रही थी। उस पल मुझे लगा जैसे मैं किसी सपने में हूँ, और यह सपना कभी टूटना नहीं चाहिए।
धीरे-धीरे मैंने अपनी पैंट के बटन खोले और उसे नीचे सरका दिया। मेरी अंडरवियर के पीछे जो चीज़ अब तक छुपी थी, वह अचानक आज़ाद हो गई और उनकी नज़रों के सामने खड़ी थी। दो महीने बाद दीदी पहली बार मेरा लंड देख रही थी। उनके चेहरे पर उस पल का भाव अजीब था—आँखों में हल्की-सी हैरानी, होंठों पर कंपकंपी, और गालों पर लाली जैसे उन्होंने पहली बार किसी ऐसे राज़ को देखा हो जिसे वह बहुत दिनों से महसूस करना चाहती थी।
उनकी आँखें मेरे लंड पर टिक गई। उन्होंने अपनी उंगलियाँ बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ाई और कांपते हाथों से उसे छुआ। जैसे ही उनकी नर्म उंगलियों का स्पर्श मेरी गर्म त्वचा से हुआ, मेरे भीतर सिहरन दौड़ गई। दीदी का चेहरा उस समय एक-दम मासूम लग रहा था, मानो कोई बच्ची किसी अनमोल चीज़ को पहली बार हाथ में पकड़ रही हो।
उन्होंने पहले उसे सिर्फ पकड़ा, उसकी गर्माहट और धड़कन को महसूस किया। फिर अपने गालों को थोड़ा पास लाते हुए उन्होंने धीरे से अपने होंठ उसके पास लाए और बहुत नर्मी से उसके सिरे पर एक हल्की सी चुम्मी रख दी। मेरी सांसें थम-सी गई। उनके होंठों का वह कोमल स्पर्श इतना सुखद था कि मैं खुद को रोक नहीं पा रहा था।
धीरे-धीरे उन्होंने चूमने की गहराई बढ़ानी शुरू कर दी। पहले सिरा, फिर धीरे-धीरे उसके चारों ओर अपने नर्म होंठों की नमी को छोड़ती गई। हर किस्स में उनकी मासूमियत और चाह दोनों झलक रही थी। वह अपने हाथों से उसे पकड़ कर नीचे से सहला रही थी और होंठों से ऊपर से बार-बार चूम रही थी। उनकी आँखें बंद थी और चेहरे पर ऐसा भाव था जैसे वह किसी बहुत लंबे इंतज़ार के बाद अपने सबसे बड़े सुख को महसूस कर रही हों।
मैं ऊपर से उन्हें देख रहा था, उनकी हर हरकत मुझे और पागल कर रही थी। उनके मासूम चेहरे और धीरे-धीरे आगे बढ़ते होंठों ने उस पल को और गहरा बना दिया था।
धीरे-धीरे दीदी ने मेरा लंड अपने मुँह में लेना शुरू किया। उसने धीरे-धीरे सिर हिलाना शुरू किया, और जैसे-जैसे वह आगे-पीछे हो रही थी, मेरा लंड उसके जीभ और मुँह के पीछे तक पहुँचने लगा। उसके जीभ का हर स्पर्श गर्म और नर्म था, और उसके मुँह के पीछे की हल्की नमी ने मुझे एक अजीब, सुखद सनसनी महसूस कराई। मैं उसकी हर हरकत पर ध्यान दे रहा था, और उसके चेहरे की हर रेखा मेरे लिए जैसे खुशी की लहर बन कर दौड़ रही थी।
दीदी की आँखें बंद थी, लेकिन उनके चेहरे पर नमी और हल्की लालिमा साफ़ देखी जा सकती थी। होंठों की हल्की कंपन, जीभ की हल्की हरकत और मुँह की ओसिली नमी सभी मिल कर मेरे शरीर को पूरी तरह झकझोर रही थी। वह अपने मुंह से मेरे लंड को सहलाती रही, कभी हल्का दबाव, कभी नरम स्पर्श, और उसके माथे और गालों पर सुख की झलक साफ़ झलक रही थी। उसके चेहरे की मासूमियत और इच्छा का मिला-जुला भाव मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं था।
मैं ऊपर से उसे देख रहा था, उसकी हर हल्की हरकत, जीभ का स्पर्श और होंठों की नरमी मुझे और भी ज्यादा उत्तेजित कर रही थी। वह मेरे लंड को अपने मुँह में पूरी तरह से महसूस कर रही थी, और उसके चेहरे पर हर पल खुशी, चाह और हल्की बेचैनी दिखाई दे रही थी। उस पल ऐसा लग रहा था जैसे समय थम गया हो, और सिर्फ हमारी साँसें, उसकी मासूम आँखों की चमक और मेरे अंग का अनुभव रह गया हो।
धीरे से मैंने अपने हाथ उसके सिर के पीछे रखा और उसकी गर्दन को सहलाते हुए अपनी कमर को हल्के-हल्के आगे-पीछे करना शुरू किया। उसकी आँखें बंद हो गई और होंठों की नरमी में मेरा लंड जैसे घुलता जा रहा था। शुरुआत में बहुत धीरे, ताकि उसकी साँसें और तालमेल बराबर रह सकें। हर बार जब मैं थोड़ा और गहराई में जाता, उसकी नाक की हल्की-सी सिसक और आँखों का पानी मुझे और भी पागल बना देता।
कुछ ही पलों में मैंने अपनी गति और बढ़ा दी। अब मेरे कमर की चाल तेज़ होती जा रही थी, और हर धक्का उसके मुँह के अंदर तक पहुँच रहा था। उसकी जीभ मेरे लंड को चारों तरफ से छूती रही और उसके गले के पीछे की हल्की कसावट ने मुझे और उत्तेजित कर दिया। वह साँस लेने की कोशिश करती, लेकिन मैंने अपने हाथ से उसके सिर को मजबूती से पकड़ा हुआ था। उसके बाल मेरी उँगलियों के बीच फँसे हुए थे और उसका मासूम चेहरा मेरे धक्कों की रफ़्तार में हिल रहा था।
धीरे-धीरे मेरी स्पीड और तेज़ हो गई। अब हर मूवमेंट के साथ उसके गाल लाल हो रहे थे, आँखों से पानी निकलने लगा था और गले से हल्की खाँसी की आवाज़ आ रही थी। वह कुछ कहना चाहती थी, लेकिन मेरा लंड उसके मुँह में इतना गहरा था कि शब्द बाहर नहीं आ पा रहे थे। उसकी खाँसी और तेज़ साँसें भी मुझे रोक नहीं पाई, मैं उसे और ज़्यादा मजबूती से अपने लंड पर दबाए रखता गया।
उसकी आँखों में आंसुओं की नमी थी, होंठ पूरी तरह फैल गए थे और उसका चेहरा मेरी जाँघों से बार-बार टकरा रहा था। हर बार की गहराई उसके शरीर को सिहरने पर मजबूर कर रही थी। वह बेकाबू होकर सांस लेने की कोशिश कर रही थी, लेकिन मैंने उसे कोई मौका नहीं दिया। मेरे धक्कों की रफ़्तार अब इतनी तेज़ थी कि उसके मुँह से हल्की-सी गरम हवा और सिसकियाँ ही बाहर आ रही थी। उसकी यह हालत देख कर मेरी उत्तेजना चरम पर पहुँच रही थी और मैं उसे और गहराई तक महसूस कराने की चाह में पूरी ताक़त से अपनी कमर हिलाता जा रहा था।
वह थोड़ी देर बाद अपना सिर पीछे खींचने की कोशिश करने लगी, लेकिन मैंने उसके बाल पकड़ कर कहा, “दीदी… बस आख़िरी बार, थोड़ी देर और रोक लो।” उसकी आँखों में बेबसी और मासूमियत थी, पर उसने हल्के-से सिर हिला कर हामी भर दी। अब उसने भी मेरी गति के साथ अपना सिर आगे-पीछे करना शुरू कर दिया। उसका मुँह और गला मेरी चाल के साथ तालमेल बैठाने लगे, और उसकी आँखों में आँसुओं के साथ-साथ अब चाह और खुशी भी झलकने लगी।
मेरे शरीर में अचानक तेज़ी से उबाल आने लगा और मुझे महसूस हुआ कि अब मैं फटने ही वाला था। मैंने उसके सिर को और मज़बूती से पकड़ लिया और गहरी साँस लेते हुए तेज़ी से धक्के मारने लगा।
कुछ ही पलों में मेरा गर्म सफेद पानी उसके मुँह में फूट पड़ा। उसने पहले तो अपना मुँह हटाने की कोशिश की, लेकिन मैंने उसे कस कर पकड़े रखा। मजबूरी में उसने निगलना शुरू कर दिया। हर मोटा और गरम फव्वारा उसके गले से अंदर उतरता चला गया।
वह हड़बड़ाई, खाँसने लगी, लेकिन मेरा लंड उसके मुँह में जकड़ा रहा। कुछ बूँदें उसके होठों से बह कर नीचे उसकी ठोड़ी पर आ गई, जिनसे उसके गाल और ठोड़ी चमक उठे। उसकी आँखें भरी हुई थी, गाल लाल थे और होंठों पर चिपका हुआ मेरा गरम पानी उसकी हालत को और भी कामुक बना रहा था।
उस दिन का एहसास हमारे लिए बेहद खास था क्योंकि दो महीने बाद हम दोनों फिर से इतने करीब आए थे। रात को हम दोनों ने तय किया कि अब सिर्फ कमरे में ही नहीं, बल्कि बाहर भी अपने रिश्ते को थोड़ा सेलिब्रेट करेंगे। स्नेहा दीदी ने कहा कि पास ही एक अच्छा होटल रेस्टोरेंट है, जहाँ का खाना और माहौल बहुत अच्छा है। मैं तो बेंगलुरु में नया था और मुझे शहर की जगहों का पता नहीं था, इसलिए पूरी तरह उसी पर निर्भर था।
वह मुझे अपने साथ लेकर होटल के रेस्टोरेंट पहुँची। रास्ते में उसका चेहरा खुशी से चमक रहा था। रेस्टोरेंट में बैठ कर जब हमने खाना ऑर्डर किया तो उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी। जैसे वह हमारे इस रिश्ते को अपने तरीके से खास बनाना चाह रही हो। वहाँ हमने मिल कर खाना खाया, हँसी-मज़ाक किया और इस नए रिश्ते को खुले दिल से जिया। उस पल मुझे महसूस हुआ कि स्नेहा दीदी मेरे लिए सिर्फ बहन नहीं, बल्कि मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा प्यार बन चुकी थी।
खाना खाते-खाते अचानक स्नेहा दीदी का चेहरा थोड़ा गंभीर हो गया। उसने मेरी तरफ देखते हुए धीरे से पूछा, “तू हमेशा चाहता था कि मुझे सामने से चोदना चाहता था… फिर आज जब मैंने खुद कहा भी, तब तूने क्यों मना कर दिया?” उसकी आँखों में जिज्ञासा और हल्की नाराज़गी दोनों थी।
मैंने उसकी आँखों में देखते हुए शांत स्वर में कहा, “दीदी, मैंने ज़िंदगी में बहुत गलतियाँ की हैं… लेकिन अब नहीं करना चाहता। मैं जानता हूँ, अगर मैं सामने से करता तो आपको बहुत दर्द होता। मैं आपको तकलीफ़ नहीं देना चाहता था। मैं चाहता हूँ जब भी ऐसा हो, वो धीरे-धीरे हो, ताकि आप भी हर पल को महसूस कर सके। सिर्फ मैं नहीं, आपको भी उतना ही सुख मिलना चाहिए।”
मेरी बात सुन कर उसने गहरी सांस ली और धीरे से कहा, “लेकिन मुझे दुख होता है… हर बार जब तू रोक देता है तो मैं सोचती हूँ कि शायद मैं ही ठीक नहीं हूँ। इसलिए मैं सोच रही हूँ कि अस्पताल जाकर डॉक्टर से मिलूँ, ताकि समझ सकूँ कि मुझे इतना दर्द क्यों होता है। शायद वहाँ से कोई हल मिल जाए।”
उसकी ये बातें सुनकर मेरा दिल खुशी से भर गया। मुझे लगा जैसे स्नेहा दीदी सच में हमारे रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए पूरी कोशिश कर रही हैं। उसका ये कदम मेरे लिए सबसे बड़ा सबूत था कि वो भी मुझे उतना ही चाहती है जितना मैं उसे चाहता हूँ। मैंने उसका हाथ थामते हुए मुस्कुरा कर कहा, “दीदी, ये जान कर मुझे बहुत खुशी हुई कि आप भी मेरे लिए कोशिश कर रही हो। जब भी समय सही होगा, हम इसे ज़रूर पूरा करेंगे… और तब आप भी बिना दर्द के इस सुख को महसूस करोगी।”
खाना खत्म करने के बाद जब मैं उठने ही वाला था तो स्नेहा दीदी ने मेरा हाथ पकड़ लिया। उनका चेहरा थोड़ा लाल हो गया था और आँखों में झिझक साफ दिख रही थी। उन्होंने धीरे धीरे, बहुत ही शर्माते हुए कहा, “मैंने फिल्मों में देखा है कि लोग ऐसे छोटे-छोटे रेस्टोरेंट के बाथरूम में… सेक्स करते हैं। और सच कहूँ तो, मैंने ये रेस्टोरेंट इसलिए चुना था क्योंकि मैं भी अपने छोटे भाई के साथ वो अनुभव लेना चाहती हूँ।”
पहले तो मैं उनकी बात सुन कर कुछ समझ ही नहीं पाया। मेरे लिए ये अचानक था, और मैं सोच में पड़ गया कि दीदी ये सब क्यों कह रही थी। लेकिन फिर उनकी मासूम आँखों में छिपी सच्चाई और उनके होंठों पर हल्की सी झिझकती मुस्कान देख कर मुझे समझ आ गया कि ये उनकी सच्ची इच्छा थी। मैं उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था, इसलिए मैंने धीरे से सिर हिला दिया।
मेरे ‘हाँ’ कहते ही दीदी के चेहरे पर एक मासूम सी मुस्कान खिल गई। वो तुरंत खड़ी हुई और बिना कुछ बोले बाथरूम की ओर बढ़ने लगी। मैं उनके पीछे-पीछे चल पड़ा। रेस्टोरेंट का कॉरिडोर लंबा और थोड़ा अंधेरा था, जैसे वहाँ लोग शायद ही आते हों। उस सुनसान रास्ते पर सिर्फ हमारे कदमों की आवाज़ गूँज रही थी।
आख़िरकार जब हम बाथरूम तक पहुँचे तो देखा वहाँ दो दरवाज़े थे, एक पुरुषों के लिए और एक महिलाओं के लिए। मैं रुक गया और धीरे से पूछा, “दीदी, अब हम किसमें जाएँ?”
उन्होंने मेरी ओर झुक कर फुसफुसाया और मुस्कुराते हुए कहा, “लेडीज़ वाले में चलो, वहीं सुरक्षित रहेगा। वैसे भी यहाँ कोई और औरत नहीं है।”
हम दोनों अंदर चले गए। जैसे ही दरवाज़ा बंद हुआ, बाथरूम में हल्की सी ख़ामोशी छा गई। मैं वहीं खड़ा रह गया, समझ नहीं पा रहा था आगे क्या होगा। तभी दीदी ने मेरी तरफ़ देखा और धीरे धीरे अपने हाथ से दरवाज़े की कुंडी लगा दी। उनकी आँखों में झिझक और चाहत दोनों साफ दिख रही थी।
फिर उन्होंने बिना कुछ कहे अपनी नज़रें झुका लीं और अपनी पायजामा खोलना शुरू कर दिया। मेरे सामने खड़े होकर जब उन्होंने उसे नीचे खिसकाया तो पहली बार मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने इस दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत और सबसे ख़ास बहन पाई है। उस पल मुझे लगा कि ज़िंदगी ने मुझे सचमुच सबसे बड़ा तोहफ़ा दिया है।
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