बड़ी बहन के साथ छुप-छुप कर बदन की आग बुझाई-5 (Badi behan ke sath chhup chhup kar badan ki aag bujhayi-5)

पिछला भाग पढ़े:- बड़ी बहन के साथ छुप-छुप कर बदन की आग बुझाई-4

भाई बहन सेक्स कहानी अब आगे से-

रात का समय था। कमरे में हल्की पीली रोशनी जल रही थी और माहौल पूरी तरह शांत था। मैं और स्नेहा दीदी एक-दूसरे के सामने खड़े थे। उस खामोशी में सिर्फ हमारी सांसें सुनाई दे रही थी। मेरी नज़रें उनकी आंखों से हट ही नहीं रही थी। उनके चेहरे पर हल्की थकान थी, लेकिन साथ ही एक अलग-सी कोमलता भी थी। उस पल ऐसा लग रहा था जैसे हमें किसी ने रोक दिया हो और हम बस एक-दूसरे को देखते ही रहना चाहते हों।

कुछ सेकंड तक हम बिना कुछ कहे यूं ही खड़े रहे। फिर अचानक मैंने हिम्मत जुटाई और उन्हें अपनी बाहों में कस कर खींच लिया। उनके बदन की गर्माहट सीधे मेरे सीने में उतर गई। जैसे ही उनका सीना मेरे सीने से सटा, मैं साफ़ महसूस कर पा रहा था कि उनके मुलायम उभार मेरे साथ दब रहे हैं।

उनका नाइट ड्रेस बहुत पतला था, और इस वजह से कपड़े का फर्क ज़्यादा नहीं लग रहा था। उनके शरीर की गर्मी और नर्मी मुझे पूरी तरह घेर रही थी। मेरी धड़कन तेज़ हो गई थी और मुझे लग रहा था कि शायद वो भी इसे महसूस कर पा रही होंगी। उनकी सांसें मेरे गले और गाल पर हल्के-हल्के टकरा रही थी, जिससे मेरी बेचैनी और बढ़ रही थी।

धीरे-धीरे मैंने अपना चेहरा उनके और करीब किया और फिर उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। वो पहली बार था जब मैंने ऐसा किया था। उनके होंठ नरम और हल्के गीले थे। जैसे ही मैंने उन्हें चूमा, दीदी हल्के से कांपी, लेकिन उन्होंने कोई मना नहीं किया। उल्टा वो मेरी पकड़ में और ढीली पड़ गई। कुछ सेकंड तक हम बस होंठों को छूते रहे, उस एहसास का स्वाद लेते हुए। फिर मैंने थोड़ा और दबाव डाला और उनका मुंह हल्का सा खुल गया।

जैसे ही मैंने अपना मुंह थोड़ा और आगे बढ़ाया, मेरी ज़बान उनके होंठों से अंदर चली गई। उसी वक्त उनकी ज़बान ने भी मेरी ज़बान को छुआ। वो एहसास इतना अलग और नया था कि मैं खुद को रोक ही नहीं पाया। हमारी ज़ुबानें आपस में टकराई, फिर धीरे-धीरे रगड़ने लगी। कभी मैं उनकी ज़बान को अपने में समेटने की कोशिश करता, कभी वो मेरी पकड़ लेती।

हर बार जब हमारी ज़ुबानें एक-दूसरे से भिड़ती, मेरे पूरे शरीर में सिहरन दौड़ जाती। मुझे उनके मुंह की गर्माहट और हल्की मिठास साफ़ महसूस हो रही थी। उपहमारी सांसें अब भारी और तेज़ हो चुकी थी। मैं हर सेकंड महसूस कर पा रहा था कि उनके होंठ मेरे होंठों के साथ कैसे हिल रहे थे, उनकी ज़बान किस तरह मेरी ज़बान के साथ खेल रही थी।

उनकी हल्की कराहें मेरे कानों तक पहुंच रही थी और मेरी पकड़ उन पर और मज़बूत हो रही थी। उसी पल मैंने अपना एक हाथ धीरे-धीरे उनके सीने पर ले जाकर उनकी छातियों को दबाना शुरू कर दिया।

उनके नर्म और भरे हुए स्तन मेरी हथेली में आते ही मैं खुद को रोक नहीं पाया। हल्के-हल्के दबाने पर उनकी सांसें और तेज़ हो गई। उनके शरीर में हल्की-सी हलचल हुई लेकिन उन्होंने मुझे रोका नहीं। मेरे अंगूठे उनके उभार के बीच से ऊपर-नीचे घूम रहे थे और इस स्पर्श से उनके होंठ और भी ज़्यादा बेकाबू होकर मेरे होंठों को दबा रहे थे। हर दबाव और हर स्पर्श के साथ उनकी कराह और गहरी हो रही थी, और मैं और ज्यादा खोता जा रहा था।

किस्स और गहराता गया। मैंने धीरे-धीरे अपना दूसरा हाथ उनके कंधे पर ले जाकर उनकी नाइट ड्रेस की डोरी को पकड़ लिया। मैं उनके होंठों को चूमते हुए धीरे-धीरे उनकी ड्रेस खोलने लगा। जैसे ही कपड़ा ढीला होने लगा, वो हल्की-सी पीछे खिसकी और उनकी आंखों में झिझक साफ़ दिखाई दी।

वो शरमा रही थी, उनकी सांसें और तेज़ हो चुकी थी। लेकिन उन्होंने मुझे रोका नहीं। उनकी उंगलियां हल्के से मेरे हाथ को थाम कर कुछ पल रुकी, मानो सोच रही हों कि मुझे रुकना चाहिए या नहीं। लेकिन फिर धीरे-धीरे उन्होंने अपना हाथ ढीला छोड़ दिया और उनकी ड्रेस मेरे हाथों से खुलने लगी। उनकी ये शर्म और चुप्पी दोनों ही मुझे और आगे बढ़ने का इशारा दे रही थी।

जब उनका नाइट ड्रेस पूरी तरह से ढीला होकर कंधों से फिसल गया, तो सामने जो नज़ारा था उसने मेरी सांसें रोक दी। वो हल्के गुलाबी रंग की ब्रा और मैचिंग पैंटी में खड़ी थी। उनके बदन की सफेदी और उस गुलाबी रंग का मेल उन्हें और भी ज़्यादा आकर्षक बना रहा था। उनकी छाती का उभार ब्रा के कपड़े के अंदर से साफ़ झलक रहा था और उनके पेट पर हल्की-सी सिकुड़न उन्हें और खूबसूरत दिखा रही थी। वो शर्म से नज़रें झुकाए खड़ी थी, उनके गालों पर हल्की लालिमा थी। उनका ये रूप इतना मोहक था कि मैं कुछ पल उन्हें बस देखता ही रह गया।

धीरे-धीरे मैंने उनके कंधों पर हाथ रखा और उनकी ब्रा की हुक खोल दी। जैसे ही हुक खुला, ब्रा ढीली होकर नीचे गिर गई और उनकी छाती सामने आ गई। उनके भरे और गोल स्तन एक-दम साफ दिखाई देने लगे। उनके निप्पल हल्की ठंडक से थोड़े सख्त हो गए थे। वो थोड़ी शर्मीली नज़र से झुकी हुई खड़ी थी और उनकी सांसें तेज़ चल रही थी। मैं कुछ देर तक उन्हें ध्यान से देखता रहा, उनके सीने का उठना-गिरना साफ दिख रहा था।

मैंने उनके पेट पर हाथ रखा और धीरे-धीरे नीचे सरकाया। फिर मैंने धीरे से उनकी पैंटी पर हाथ रखा और उसे नीचे खींचना शुरू किया। वो कपड़ा उनकी कमर और जांघों से फिसलता हुआ धीरे-धीरे नीचे जाता गया। जब वो पिंडलियों तक पहुँच गया तो उन्होंने अपने पैर उठा कर उसे पूरी तरह उतार दिया। अब वो मेरे सामने पूरी तरह नंगी खड़ी थी।

उनकी जांघों के बीच का हिस्सा साफ नज़र आ रहा था। वहाँ की त्वचा मुलायम और साफ थी, हल्की-सी चमक लिए हुए। बीच का हिस्सा गुलाबी रंग का दिख रहा था। मैंने गौर किया कि वो हल्की घबराहट में अपने दोनों हाथ आगे करके ढकने की कोशिश कर रही थी, लेकिन पूरा ढक नहीं पा रही थी। उनके इस ढंग में शर्म और असहजता साफ दिख रही थी। उनके चेहरे पर हल्की लालिमा थी, आँखें झुकी हुई और होंठों पर हल्की कंपन।

मैंने धीरे से उन्हें बिस्तर पर लिटाया और खुद अपने कपड़े उतारने लगा, तभी उन्होंने मेरे हाथ थाम लिए। उनकी आँखों में डर और हिचक थी। उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा, “अभी नहीं… मैं डरी हुई हूँ। क्या तुम मुझे किसी और तरीके से खुश कर सकते हो, बिना सेक्स किए?”

मैं थोड़ी देर तक सोचता रहा, समझ नहीं पा रहा था कि आगे क्या करूँ। तभी उन्होंने धीरे-धीरे अपने दोनों पैर अलग कर दिए, जैसे मुझे इशारा कर रही हों कि मैं उन्हें खाने के लिए आगे बढ़ूँ। उनकी इस हरकत ने मुझे चौंका दिया, लेकिन उनके चेहरे पर एक तरह की चाह और उम्मीद दिख रही थी, मानो वो मुझे अपने तरीके से पास आने का न्योता दे रही हों।

मैं धीरे-धीरे सरक कर उनके पैरों के बीच आकर बैठ गया। मेरे हाथ काँप रहे थे क्योंकि इतने दिनों से जिस लम्हे का इंतज़ार कर रहा था, वो अब मेरे सामने था। मैंने झिझकते हुए अपना हाथ उनके बीच रखा और धीरे से उनकी नाजुक जगह को छू लिया। उस स्पर्श से मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।

अपनी स्नेहा दीदी को इस तरह छूना मेरे लिए अजिब तरह से अच्छा लग रहा था। त्वचा की गरमी और नर्मी को महसूस करते ही मेरे पूरे शरीर में एक अजीब सिहरन दौड़ गई। यह वही पल था जिसके लिए मैं कई दिनों से तरस रहा था, और अब जब वो सच हो रहा था, तो मैं खुद को रोक नहीं पा रहा था।

मैंने धीरे-धीरे अपनी उँगलियों से उनकी नाज़ुक जगह को रगड़ना शुरू किया, लेकिन उन्होंने अचानक मेरा हाथ पकड़ा और कहा, “नहीं… इसे अपनी जीभ से करो, मुझे वह पसंद है।” उनकी आवाज़ में इच्छा और मज़ा दोनों झलक रहे थे।

मैंने थोड़ा झिझकते हुए सिर नीचे किया और अपनी जीभ से उनके नाज़ुक हिस्से से छूने लगा। उनकी नर्मी और गर्मी मेरी जीभ पर तुरंत महसूस हुई। हल्की मीठी खुशबू और स्वाद ने मुझे चौंका दिया, लेकिन मुझे अच्छा भी लगा। उनकी सांसें तेज़ और हाँफती हुई, शरीर में हल्की कपकपाहट थी। उनका चेहरा लाल हो गया, होंठ खुले और आँखें आधी बंद थी। मेरी जीभ धीरे-धीरे उनके नाजुक हिस्से को छू रही थी, हर स्पर्श पर उनका शरीर हिल रहा था और मुझे एक अलग तरह की गर्मी महसूस हो रही थी।

मैंने धीरे-धीरे अपनी जीभ को उनके नाजुक हिस्से के अंदर की तरफ चलाना शुरू किया। हर हल्का स्पर्श उनके शरीर को हिला रहा था, और उनकी सांसें और तेज़ हो रही थी। मेरी जीभ उनकी नर्मी में फिसल रही थी, अंदर की गर्मी और नाजुक त्वचा का अहसास मुझे पूरी तरह महसूस हो रहा था। उन्होंने अपने हाथों से खुद को सहारा दिया, होंठ खुले और आँखें आधी बंद थी। मैं देख सकता था कि हर स्पर्श उनके शरीर को हिला रहा था, और उनका हल्की कंपन महसूस हो रहा था।

जैसे-जैसे मैं अपनी जीभ की गति बढ़ाने लगा, उनकी हल्की कराहें और मुरझाई हुई आवाज़ें भी तेज़ होने लगी। हर बार मेरी जीभ उनके अंदर घूमती, उनकी सांसें फटाफट आने लगती और दिल की धड़कन तेज़ हो जाती। उनका शरीर झटकों के साथ उठता और उनके होंठों से निकलती आवाज़ें इस सबकी कहानी बता रही थी।

मैं देख रहा था कि मेरी हर हरकत उन्हें और ज्यादा भा रही थी, और उनके नर्म शरीर की हर हलचल मुझे पूरी तरह महसूस हो रही थी। उनकी कमर हल्की-हल्की उठती और गिरती, उनके हाथ अपने आस-पास या मेरी पीठ पर टिके हुए, जैसे वह इस खुशी की हर झलक में खोई हों। मेरी जीभ की रफ़्तार बढ़ने के साथ उनकी आहें और भी गहरी और नर्म हो गई, और उनके हल्के कंपन अब हर स्ट्रोक के साथ और साफ़ महसूस होने लगे।

फिर अचानक वह पूरी तरह खिंच गई और अपने शरीर के हर हिस्से में एक तीव्र सनसनी महसूस करने लगी। उसने जोर से मेरे सिर को अपने पैरों के बीच दबा दिया, ताकि मैं उसके नाजुक हिस्से पर पूरी तरह टिकूं। उसकी गर्मी और नर्मी मेरे चेहरे पर फैल गई, और हर हलचल के साथ उसके शरीर का दबाव मुझे और करीब खींच रहा था। उसकी सांसें तेज़ और लड़खड़ाती हो गई, हल्की कराहें निकलने लगीं, और मैं उसके हर पल महसूस कर सकता था। उसका हाथ और शरीर मेरे सिर को कस कर दबाए हुए था, जिससे मैं पूरी तरह उसके स्पर्श में डूब गया।

कुछ देर बाद वह धीरे-धीरे उठी। उसने अपने ब्रा, पैंटी और नाईट ड्रेस उठाए और अपने शरीर पर पहनने लगी। हर चीज़ ठीक तरह से पहनने के बाद वह मेरे पास आकर बैठ गई और बोली, “मुझे अब अपने कमरे जाना होगा।”

और उसके बाद उठ कर अपने कमरे की तरफ चली गई। अगली सुबह सब कुछ मेरे लिए बहुत शानदार लग रहा था। मैंने कई दिनों तक इंतजार किया था कि मैं स्नेहा दीदी को छू सकूं, और पिछली रात वह मौका मुझे मिल गया था। मैं अपने बिस्तर में बैठा, पिछली रात की यादों में खोया हुआ, हर लम्हा जो मैंने उसके साथ बिताया था, मेरे दिमाग में ताजा था।

मैं धीरे-धीरे उठ कर ड्राइंग रूम की ओर गया ताकि नाश्ता कर सकूँ। जैसे ही मैं वहाँ पहुँचा, मुझे पता चला कि दीदी रसोई में खाना बना रही थी। उसकी हल्की-हल्की आवाज़ें और चूल्हे की खटखट सुन कर मैं मुस्कुरा उठा। मैं उससे पूछ बैठा, “मम्मी-पापा कहाँ हैं?”

उसने बिना देखे जवाब दिया, “पापा काम पर गए हैं और मम्मी बाथरूम में कपड़े धो रही हैं।” मैं वहीं खड़ा होकर उसे देखने लगा।

वह हल्के गुलाबी रंग की सूती सलवार-कुर्ता पहने थी, जिस पर छोटे-छोटे फूलों की कढ़ाई बनी हुई थी। कपड़ा पतला और आरामदायक था, जिससे उसके शरीर की नाज़ुक बनावट झलक रही थी। उसके स्तन नर्म और गोल दिख रहे थे, थोड़ा उठे हुए और हर हलचल पर धीरे-धीरे हिलते हुए लग रहे थे।

कपड़े के नीचे उनकी पूरी शेप दिखाई दे रही थी, किनारों की नरमी और हल्की खिंचाव में उनकी बनावट साफ़ दिखाई दे रही थी। हर बार वह थोड़ी आगे झुकती, तो उनके स्तन का ऊपर का हिस्सा और ज्यादा दिखाई देता, और हल्का दबाव उनकी गोलाई को और उभारता। उसकी त्वचा का रंग और मुलायमपन कपड़े के हल्के हिस्से से झलकता था।

उसके पेट के बीच में नाभि भी धीरे-धीरे कपड़े के नीचे से दिखाई दे रही थी, और पेट की नर्मी और हल्का उभार भी दिख रहा था। उसके खुले बाल उसकी पीठ पर गिरते हुए उसके रूप को और भी मोहक बना रहे थे। उसकी पतली कमर और हल्के से झुके कंधे इस बात का एहसास कराते थे कि वह सहज होते हुए भी कितनी खूबसूरत लग रही थी।

मैं बस चुप-चाप रसोई की ओर देखता रह गया, यह सोचते हुए कि घर में फिलहाल हम दोनों ही थे। मैं अब खुद को रोक नहीं पा रहा था। धीरे-धीरे मैं उसके पास गया और अपने हाथों को उसके स्तनों पर रख दिया। मेरी उंगलियाँ उनके गोल और नरम स्तनों की सतह पर धीरे-धीरे घूम रही थी, हर हल्की उभार और मुलायम हिस्से को महसूस कर रही थी।

मैं धीरे-धीरे उन्हें दबाता और उनकी असली बनावट को अपनी हथेलियों में महसूस करता रहा। दीदी ने मुस्कुराते हुए मुझे देखा, लेकिन उसने मुझे नहीं रोका। वह खाना बनाते हुए भी मेरी ओर झुकती रही, हल्की मुस्कान के साथ। मैं उनके स्तनों को अपनी हथेलियों में कस कर पकड़ता और थोड़ी हल्की दबाव के साथ उन्हें घुमाता, हर पल उनके शरीर की गर्मी और नर्मी का एहसास अपनी उंगलियों और हथेलियों में महसूस करता रहा। दीदी भी बिना रुके अपनी रसोई का काम करती रही, जबकि मैं उनके पास खड़ा रह कर यह महसूस करता रहा।

फिर दीदी ने अचानक धीरे-से आवाज़ में कहा, “अगर मम्मी हमें देख लें तो?” उसकी यह चिंता हल्की-सी हिचक के साथ थी, लेकिन उसकी आँखों में एक शरारत भी झलक रही थी।

मैंने उसे देखा और कहा, “मैं नहीं जानता कि मैं अपने आप को कैसे रोकूं। तुम्हें देख कर मेरा दिल बहुत तेज़ धड़क रहा है।” मेरी आवाज़ में ईमानदारी और हल्की बेचैनी थी।

मैं उसके बिल्कुल पास खड़ा था, रसोई की हल्की रोशनी हमारे चेहरों पर पड़ रही थी। धीरे-धीरे मेरा हाथ नीचे खिसका और उसके ढीले पायजामे के अंदर चला गया। सबसे पहले मेरी उंगलियाँ उसके नर्म पैंटी के कपड़े से टकराई। वह हल्की-सी सिहर उठी, उसका बदन तन गया।

मैंने उसकी ओर देखा तो उसके गाल लाल थे और नजरें झुकी हुई। पैंटी से होते हुए मेरा हाथ आगे बढ़ा और उसके सबसे नाजुक हिस्से तक पहुँच गया। जब मेरी उंगलियाँ उसकी उस जगह को छूने लगी, तो उसकी सांसें भारी होने लगी। मेरे हाथों को वहाँ की गरमी और नमी साफ़ महसूस हो रही थी।

मैं धीरे-धीरे उसे सहलाने लगा, कभी हल्के दबाव से, कभी उंगलियों से घुमाते हुए। उसकी देह कांप रही थी, वह खुद को समेटने की कोशिश कर रही थी, लेकिन फिर भी उसने मुझे रोका नहीं। उसकी आंखें बंद थी और होंठों से हल्की सिसकारी निकल रही थी, मानो शर्म और सुख दोनों उसे एक साथ अपनी गिरफ्त में ले रहे हों।

इसी बीच मैंने अपनी दो उंगलियाँ और आगे बढ़ाई और धीरे से उसके अंदर सरका दी। वह तुरंत हल्का-सा झटकी, उसकी सांसें और तेज़ हो गई। अंदर की गरमी और कसावट मेरी उंगलियों को कस कर पकड़ रही थी। मैंने हल्की-हल्की गति शुरू की, अंदर-बाहर करते हुए। उसकी कमर खुद-ब-खुद मेरी हरकतों के साथ हिलने लगी।

उसके होंठों से दबे-दबे स्वर निकल रहे थे, उसकी उंगलियाँ मेरे कंधे को कस कर पकड़ चुकी थी। उसके चेहरे पर शर्म और आनंद की मिली-जुली तस्वीर थी। हर बार जब मेरी उंगलियाँ उसके अंदर सरकती, उसकी देह पूरी तरह सिहर जाती और उसकी सांसें बेकाबू होती चली जाती।

इसी दौरान मेरा दूसरा हाथ उसकी कमर से होते हुए पीछे की ओर गया और मैंने उसका मुलायम गोल हिस्सा कस कर पकड़ लिया। उसने हल्की-सी कराह भरी और भी ज़्यादा मेरे पास आ गई। मैं उसके कान के बिल्कुल पास झुक कर फुसफुसाया, “दीदी, सामने से तुम्हें डर लगता है… तो क्या हम पीछे से ट्राई करें?” मेरे शब्द सुन कर उसका चेहरा और लाल हो गया, उसकी सांसें अटकने लगी और उसने अपनी आंखें कस कर बंद कर ली, मानो सवाल का जवाब उसके शरीर की बेचैनी ही दे रही हो।

लेकिन अचानक उसने अपनी आँखें खोली, गहरी सांस ली और धीरे से मेरा हाथ हटाया। उसने गैस का बटन बंद किया और मेरी ओर देख कर मुस्कराते हुए कहा, “चलो, देखते हैं…” उसके इन शब्दों में शरारत और चुनौती दोनों थी। उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रसोई से बाहर खींचा और सीधे अपने कमरे की ओर ले गई।

कमरे में आकर उसने दरवाज़ा बंद किया और मुझे देखते हुए हल्की मुस्कान दी। कुछ पल तक वह चुप रही, फिर धीरे से बोली, “तो बताओ, तुम मुझे कहाँ चाहते हो? बिस्तर पर लेटी हुई… या दीवार पकड़ कर तुम्हारे सामने झुकी हुई?”

उसके सवाल ने मेरे पूरे शरीर में बिजली दौड़ा दी। मैंने उसकी आँखों में देखते हुए धीरे से कहा, “दीवार पर… मुझे तुम्हें वहीं देखना है।”

अब वहाँ सिर्फ हम दोनों थे और कमरे की हल्की पीली रोशनी। मैं एक कोने में खड़ा उसकी हर हरकत को देख रहा था। वह धीरे-धीरे मेरी ओर देख कर मुस्कराई और अपने पायजामे की नाड़ी खोलने लगी। मेरी सांसें तेज़ होती जा रही थी। उसने धीरे-धीरे अपने ढीले कपड़े उतार दिए और फिर अपनी कुर्ती भी सिर के ऊपर से निकाल दी।

अब वह सिर्फ ब्रा और पैंटी में मेरे सामने खड़ी थी। उसका गोरा बदन रोशनी में और निखर रहा था। मैं उसे देखता ही रह गया, मानो कोई सपना आँखों के सामने सजीव हो गया हो।

उसने धीरे से अपनी ब्रा की हुक खोली और उसे नीचे गिरा दिया। उसके उभरे हुए, भरे-भरे स्तन खुल कर सामने आ गए। उनकी गोलाई और हल्की थरथराहट देख कर मेरी आँखें ठहर गई। उसके निप्पल हल्के गुलाबी और सख्त थे, मानो ठंडी हवा उन्हें छू रही हो।

उसने शरारती अंदाज़ में मुझे देखा और धीरे-धीरे अपनी पैंटी भी नीचे सरका दी। जैसे-जैसे कपड़ा उसकी जाँघों से सरकता हुआ नीचे आया, उसकी छुपी हुई नर्मी सामने आने लगी। पूरी तरह नंगी होकर वह मेरे सामने खड़ी थी, और मैं उसकी हर अदा देखकर भीतर तक खुश और पागल-सा महसूस कर रहा था।

इसके बाद उसने चुप-चाप दीवार की ओर रुख किया। उसने अपने दोनों हाथ मजबूती से दीवार पर टिकाए और धीरे-धीरे अपनी कमर को मोड़ते हुए नीचे की ओर झुकी। उसकी रीढ़ की हड्डी की पतली सी लकीर ऊपर से नीचे तक खिंची हुई दिख रही थी, और उसके नीचे उसकी कमर का घुमाव इतना गज़ब का था कि मेरी साँसें थम गई।

उसके झुकते ही उसकी टाँगें थोड़ी खुल गई, जिससे उसकी जाँघों की चिकनाई और उभार साफ़ झलक रहे थे। उसकी कमर से नीचे की तरफ का हिस्सा मानो एक-दम तराशा हुआ लग रहा था, गोलाई से भरा, मुलायम और कसावट लिए हुए। जब वह झुकी तो उसके दोनों गोल हिस्से हल्के-हल्के हिले, मानो मुझे अपनी ओर खींच रहे हों।

उसकी यह पोज़िशन बिल्कुल परफेक्ट थी, जैसे वह मुझे खुल कर न्योता दे रही हो। दीवार पर झुके हुए उसके हाथ थोड़े कांप रहे थे, लेकिन कमर का वह घुमाव और पीछे निकला हुआ गोल हिस्सा किसी कलाकृति से कम नहीं लग रहा था। उसके नितंबों की गोलाई इतनी उभरी हुई थी कि मैं खुद को रोक ही नहीं पा रहा था। वे इतने चिकने और कसावट भरे लग रहे थे कि बस छू लेने भर से पूरा रोमांच मेरे शरीर में दौड़ने लगता।

मैं धीरे-धीरे उसके पास गया और अपने हाथों से उसके पिछवाड़े की गोलाई को थाम लिया। उसकी त्वचा गरम और नर्म थी, जैसे मुलायम रेशम मेरी हथेलियों में भर गया हो। मैं उसे कस कर पकड़ते हुए उसकी हर थरथराहट महसूस कर रहा था। उसकी यह पोजीशन और उसका पिछला हिस्सा मुझे पागल करने के लिए काफी था।

उस पल मुझे एहसास हुआ कि वह पूरी तरह मुझे अपनाने के लिए तैयार थी। उसकी कमर का घुमाव, उसकी फैली हुई टाँगें और उसके मुलायम, गोल नितंब, सब कुछ इतना परफेक्ट था कि मेरी हर चाहत उस एक पल में चरम पर पहुँच गई।
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