पिछला भाग पढ़े:- पड़ोसी ने तोड़ी मेरी दीदी की सील-8
सेक्स कहानी अब आगे-
दीदी की फ्रेंड पिंकी के जाने के बाद हम लोग सो जाते हैं। शाम को जब मेरी आंख खुली तो देखा काफी समय में हो गया था। मैं घर में देखा मम्मी अभी तक ऑफिस से नहीं आई थी। फिर मैंने दीदी को जगाया जो एक निक्कर पहने सो रही थी। वो अपनी उभरी हुई गांड ऊपर करके मजे से सो रही थी।
उठते ही अंगड़ाई लेते हुए दीदी बोली: भाई, मम्मी आ गई क्या?
मैं: नहीं दीदी मैं भी उन्हें ही देख रहा था।
दीदी: ठीक वो आती होगी। मैं फ्रेश होके आती हूं। तब चाय बनाती हूं।
दीदी बॉथरूम से आने के बाद किचन में चाय बनाते हुए सलीम से फोन को स्पीकर पर करके बात करने लग जाती है।
फोन उठाते ही सलीम बोला: कैसी हो मेरी जान? बहुत देर बाद याद आई मेरी।
दीदी: बाबू आपकी याद तो मुझे हमेशा आती है। अभी आपकी याद मैं सो गई थी। और सोते हुवे मैंने सपना देखा आप मुझे प्यार कर रहे हो।
सलीम: फिर तो मेरी जान की पैंटी गीली हो गई होगी। अगर नहीं हुई तो अभी आ जाता हूं।
दीदी: सलीम जी ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि आपकी याद में मेरी पैंटी गीली ना हुई हो। ना-ना बाबू, अभी तो मेरा कल का दर्द नहीं गया। अभी तक मेरी गांड अंदर से जलन कर रही है। अब कुछ दिन आपको रुकना होगा।
सलीम: ऐसा मत बोलो मेरी जान। मेरे लंड का क्या होगा?
दीदी: उसको जब में मिलूंगी तब अपने दोनों छेद में लेकर शांत कर दूंगी। पर आप अभी ऐसी बातों से मुझे गर्म मत करो, मेरे से रहा नहीं जाता।
सलीम: जान सुनो मैंने अभी कुछ देखा है। क्या मैं तुम्हे बताऊं?
दीदी: हां बताओ ना आपने क्या देखा?
सलीम: जान तुम्हारी मम्मी अभी मेरे सामने चौंक पर एक आदमी के साथ बाइक पर आती हुई दिखी। अब वो बाइक से उतर कर घर आ रही है।
दीदी: सलीम जी आपने मेरी मम्मी को देखा? वो भी बाइक पर! क्या वो बड़ी मूंछों वाले थे?
सलीम: हां मेरी जान। वैसे यह कौन था जो तुम्हारी मम्मी को यह छोड़ के गया?
दीदी शर्माते हुएं: वो शायद ठाकुर अंकल जी थे। बाकी मैं बाद में बात करूंगी। मम्मी आने वाली होगी।
सलीम: मेरी जान बताओ तो क्या यही तुम्हारे पापा के दोस्त हैं, जिसके साथ तुमरी मम्मी?
दीदी इतराते हुवे: शायद हां, सलीम जी आई लव यू प्लीज अभी मैं फोन रख रही हूं, बाय।
दीदी का फोन कटते ही मम्मी घर में आ जाती हैं। मैंने देखा उनके हाथ में काफी कैरी बैग थे, जिसे देख कर लग रहा था मम्मी काफी शॉपिंग कर के आई थी। मैं उनके पास गया। उन्हें नमस्ते कर के उनके हाथ से कैरी बैग लेकर मैंने उनके बेड पर रख दिया। फिर मम्मी फ्रेश होके आई और हमारे साथ घर के आंगन में बैठ गई।
दीदी मम्मी को चाय देते हुए बोली: मम्मी आज आप कैसे इतना लेट तक शॉपिंग करती रही?
मम्मी: बेटी आज वो ठाकुर जी को अपने लिए कुछ शॉपिंग करनी थी। वो शॉपिंग करने में लिए मेरी मदद मांगने लगे। फिर मैं उनको मना नहीं कर पाई तो उनके साथ चली गई। वहां गई तो फिर अपने और आप दोनों के लिए भी कुछ शॉपिंग कर ली।
दीदी मुस्कराते हुए: क्या बात है मम्मी, अपने अंकल जी की शॉपिंग में मदद करी।
मम्मी: हां बेटी, ठाकुर जी बोले एक औरत अच्छे से जानती हैं शॉपिंग कैसे करते है। जब ठाकुर जी इतने प्यार से बोले तो मुझे उनके साथ जाना पड़ा।
दीदी: फिर तो अंकल जी ने आपकी खूब तारीफ की होगी?
मम्मी शर्माते हुए: हां, और मुझे भी अच्छा लगा ठाकुर जी की मदद करके।
फिर दीदी और मैं बोल पड़ते हैं, “दिखाओ ना क्या लाई हो हमारे लिए?” दीदी सारे बैग खोलने लगी, उनमें कुछ मम्मी की साड़ी थी और दीदी की ड्रेस थी। दीदी ने मेरे कपड़े निकल के दिये, जिसे मैं सामने बैठ कर देखने लगा। फिर दीदी लास्ट बैग जल्दी में खोलती हैं।
मम्मी उस बैग को दीदी के हाथ से छीनते हुए बोली: आराम से बेटी इतना जल्दी क्या है?
फिर मम्मी उसे खाली करती हैं तो, उसमें ब्रा पैंटी के सैट निकलते हैं। मम्मी दीदी की कुछ ब्रा पैंटी देते हुए बोली: यह तुम्हारी है। इनका साइज चेक कर लेना।
दीदी मम्मी के बैग में देखते हुए: मम्मी बैग में अभी कुछ और है दिखाओ ना?
मम्मी: यही हैं बस और कुछ नहीं।
जैसे ही दीदी ने बैग मम्मी के हाथ से छीना और खोल कर अंदर देखा, उसकी आंखें चमक उठी।
“अरे मम्मी ये साड़ी!” दीदी ने हैरानी से कहा, और साड़ी को पूरा खोल कर सामने फैला दिया। मैं भी देखने लगा और सच बताऊं, मेरी नज़र वहीं अटक गई। वो साड़ी बहुत ही हॉट थी। गहरे लाल रंग की बिल्कुल चमकदार। रेशम जैसी चिकनी, इतनी पतली कि हाथ से सरके तो खुद-ब-खुद फिसल जाए। साड़ी की बॉर्डर पर हल्की गोल्डन कढ़ाई थी, जो रोशनी में चमक रही थी। और उसके साथ जो ब्लाउज़ का कपड़ा जुड़ा था, वो बहुत छोटा और टाइट फिटिंग का था, जैसे पहनने पर शरीर से चिपक जाए।
दीदी हंसते हुए बोली: मम्मी, इसे आप छुपा क्यों रही थीं? इतनी सेक्सी साड़ी तो कोई खास मौके के लिए होती है!
मम्मी थोड़ी शर्माईं। उनकी नज़रें झुकी हुई थीं, पर होंठों पर हल्की मुस्कान भी थी। दीदी ने बैग में फिर हाथ डाला और एक छोटा सा ट्रांसपेरेंट पैकेट निकाला।
दीदी बोली: ओह माय गॉड मम्मी! इसके साथ तो मैचिंग ब्रा-पैंटी भी है!
मैंने देखा लाल साटन की ब्रा, जिसकी स्ट्रैप पतली थी, और उसके साथ बिल्कुल मैचिंग छोटी सी पैंटी। बिल्कुल वही रंग, वही चमक। जैसे साड़ी के नीचे एक और राज छुपा हो।
मम्मी ने झेंपते हुए दीदी से वो पैकेट ले लिया, और जल्दी से बैग में डाल दिया। मैं कुछ नहीं बोला, लेकिन मन में बहुत कुछ चल रहा था। आज मम्मी एक-दम अलग लग रही थी। मम्मी साड़ी हाथ में लेकर हल्का सा मुस्कराईं, फिर दीदी की ओर देख कर बोली-
मम्मी: बेटी, ये साड़ी ठाकुर जी ने गिफ्ट की है। मैं पहले मना कर रही थी, लेकिन वो बहुत ज़िद करने लगे। बोले तुमने मेरी इतनी मदद की है, तो एक छोटा-सा गिफ्ट तो बनता है। अब जब कोई इतना प्यार से कुछ दे, तो मना करना मुश्किल हो जाता है।
दीदी ने साड़ी को हाथ में लेकर नज़दीक से देखा, फिर शरारत से बोली: वाह मम्मी! अंकल जी ने तो कमाल की साड़ी दी है। इसे देख कर तो मेरा खुद पहनने का मन कर रहा है!
मम्मी हंसते हुए बोली: अभी नहीं बेटी, जब तेरी शादी हो जाए तब पहन लेना। अभी तो ये मुझे दे दो।
दीदी मुंह बना कर बोली: मम्मी प्लीज़, एक बार पहनने दो ना।
मम्मी ने दीदी की जिद देख कर थोड़ा सोचा, फिर कहा: ठीक है, पहन लेना। लेकिन उससे पहले एक बार मैं पहन लूं, फिर जो चाहो करना। अब चलो, सब चीजें समेटो मुझे खाना भी बनाना है।
दीदी मुस्करा कर साड़ी मम्मी को दे देती है। मम्मी साड़ी को देख कर बहुत खुश हो जाती हैं, जैसे कोई बच्ची अपनी पसंदीदा चीज़ पा गई हो। थोड़ी देर बाद दीदी अपने कमरे में चली जाती है, और मैं बाहर टहलने चला गया। जब वापस लौटा, तो खाना बन चुका था। हम सब साथ बैठ कर खाना खाने लगे।
मैंने देखा, मम्मी आज कुछ अलग ही लग रही थी। उनका चेहरा बहुत शांत और खुश लग रहा था। वो धीरे-धीरे मुस्कुरा रही थी, जैसे कोई मीठा ख्याल उनके मन में चल रहा हो।
मुझे उस पल समझ नहीं आया कि मम्मी को आज अचानक इतनी खुशी किस बात की थी। लेकिन अच्छा लगा उन्हें ऐसे मुस्कुराते देखना। खाना खाने के बाद हम सब अपने-अपने कमरों में सोने चले गए।
अगले दिन सुबह-सुबह दीदी के पास कॉलेज से फोन आया। किसी ने बताया कि उसके फाइनल एग्ज़ाम शुरू हो चुके थे। दीदी ये सुनते ही घबरा गईं। चेहरा एक-दम टेंशन में आ गया।
मम्मी ने जब दीदी को ऐसे देखा, तो पास आकर बोलीं: क्या हुआ बेटी? इतनी परेशान क्यों हो? एग्ज़ाम ही तो हैं, अब ध्यान लगाकर पढ़ाई करो। जब तक पेपर खत्म नहीं हो जाते, बाहर जाना बंद।
मम्मी की ये बात सुन कर दीदी और ज़्यादा टेंशन में आ गईं। फिर मम्मी के जाते ही, दीदी ने खुद को कमरे में बंद कर लिया। इसके बाद कई दिन तक दीदी दिन-रात पढ़ाई में लग गईं। ना किसी से बात, ना हँसी-मज़ाक। यहां तक कि सलीम जो हर दिन मिलने की बात करता था, उसे भी दीदी टाल देती। सिर्फ फोन पर प्यार से दो बातें करती और फिर पढ़ाई में लग जाती।
कुछ दिन बाद शनिवार की रात थी। हम सब साथ में बैठ कर खाना खा रहे थे। मम्मी ने दीदी की ओर देख कर प्यार से कहा: बेटी, मैं देख रही हूं तुम बहुत मेहनत कर रही हो एग्ज़ाम के लिए। तुम्हारी ये लगन देख कर मुझे बहुत खुशी हो रही है। वैसे अब तक पेपर कैसे गए?
दीदी मुस्करा कर बोली: थैंक्यू मम्मी। अभी तक के पेपर ठीक गए हैं।
मम्मी खुश होकर बोलीं: गुड बेटा, ऐसे ही मन लगा कर मेहनत करो। मैंने तुम्हारे बारे में ठाकुर जी को बताया, तो वो भी तारीफ कर रहे थे।
दीदी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा: अच्छा मम्मी, फिर तो उन्हें मेरी तरफ से थैंक्यू बोल देना।
मम्मी थोड़ी शरमाते हुए बोलीं: बेटी, कल रविवार है ना, तो ठाकुर जी कह रहे थे कि वो घर पर आकर मेरे हाथ का डिनर करना चाहते हैं।
दीदी ने हंसते हुए कहा: ठीक है मम्मी, फिर तो मैं उन्हें सामने से ही थैंक्यू कह दूंगी।
मम्मी मुस्कराई और बोली: हां, ये ठीक रहेगा। चलो अब खाना हो गया, अब तुम पढ़ाई में लग जाओ।
उसके बाद दीदी देर रात तक अपनी किताबों में लगी रही। थोड़ी देर सलीम से फोन पर बात की, फिर सो गई।
इसके आगे की कहानी अगले पार्ट में। मुझे अपना फीडबैक जरूर दे मेरी इमेल पर [email protected] मेरे सभी पाठकों को मेरा धन्यवाद।