पंजाब की सरदारनियां-5 (Punjab ki sardarniyan-5)

पिछला भाग पढ़े:- पंजाब की सरदारनियां-4

जैसे-जैसे इलेक्शन के नजदीक आते जा रहे थे, बलवंत अपने सरपंच और पंचायत मेंबर दोस्तों के साथ गांव के घर-घर में जा कर अपने चुनाव निशान के बारे में सब को बताते हुए वोट मांगने लगे। तो वही दूसरी तरफ उसके खेतों में उसके बेटे ने बिहारी मोहन की मदद से धान की फसल लगवा दी थी, जिसे दो बार खाद डाली जा चुकी थी, और लगातार पानी खड़ा किया जा रहा था।

एक दिन मोहन जैसे ही खेत में आके मोटर चलाने लगा। तो मोटर एक बार चल कर अचानक से बंद हो गई। मोहन ने फिर से स्विच ऑन किया पर मोटर नहीं चली। इतने में मोटरसाइकिल पर पीछे से हरनूर (बलवंत का बेटा) भी आ गया, “की होया मोटर नहीं चलाई?” मोटर वाले कमरे की तरफ आता हुआ बोला।

“पता नहीं क्या हो गया? एक बार चल के बंद हो गई। अब चल ही नहीं रही।” मोहन ने जवाब दिया।

“चल के बंद हो गई!” हरनूर ने हैरानी से पूछा और पहले मोटर के स्टार्टर को देख और फिर बाहर कुएं की तरफ जा के देखा तो मोटर पानी में भीगी हुई थी जो कैसे चूहे के बिल के जरिए किए में चला गया।

“भैंचोद ध्यान किथे सी तेरा? मोटर तो पानी में डूबी पढ़ी है,” हरनूर ने गाली निकलते हुए मोहन को डांट लगाई। ऊंची आवाज सुनते ही मोहन भी जल्दी से कुएं पर आकर देखा तो मोटर पानी में डूबी हुई थी, “ओहो, मैंने देखा ही नहीं।” मोहन नीचे देखते हुए बोला।

“ते देखना तेरे पियो (बाप) ने सी, साला एक काम ढंग दा नहीं करदा तू,” हरनूर फिर से गुस्सा हुआ और गाली देखते बोला।

“अरे अब नहीं पता चला। मुझे क्या सपना आया था इसका के मोटर पानी में होगी?” मोहन सफाई देते हुए नरमी से बोला।

“तेनु पैसे किस लई देते है? काम के ना? ध्यान ता रख, साला भईया, भैंचोद मोटर साड़ के रख दी। हुन देख की रिहा ग्रिप निकाल मोटर के और खोल नीचे जा के।” हरनूर ने फिर से गालियां देते हुए कहा।

मोहन को गुस्सा तो बहुत आया कि कल का छोकरा मुझे ऐसे बोल रहा है, जबकि इसमें मोहन का कोई कसूर भी नहीं था। पर वो सारा गुस्सा पी गया। जैसे उसके दिमाग में कोई और ही खयाल चल रहे थे।

कुछ दिनों से बैंक में काम का काफी बोझ था, और महीने के आखरी दिन होने के कारण सभी टारगेट्स पूरे करने पर ध्यान देने की वजह से संतोष को जस्मीन से बात करने का भी मौका नहीं मिला था अच्छे से। पर आज दिन कुछ अच्छे से गुजर रहा था। काम भी कम था। कोई खास मीटिंग या कॉन्कॉल (कान्फ्रेस कॉल) भी नहीं थी।

अपने रूम में बैठे संतोष जब कुछ फाइल्स देख रहे थे, तो उसकी नज़र जस्मीन की रिज्यूमे और डॉक्यूमेंट कॉपीज पर गई, और वो उसे एक बार गौर से देखने लगा।

जैसे ही संतोष ने ध्यान दिया तो उसने पाया के आज जस्मीन का जन्म दिन था। एक-दम से उसके मन में कुछ ख्याल आया, और अपने मोबाइल से संतोष ने एक कॉल करते हुए बात की।

करीब 20–30 मिनट बाद संतोष अपने ऑफिस में जस्मीन को बुलाया, और एक फाइल देते हुए उसे डॉक्यूमेंट चेक करने ओर फिर वेरिफिकेशन के लिए जाने के बोला।

जस्मीन फाइल लेकर वापिस अपने केबिन पर आ गई, और फाइल के डॉक्यूमेंट चेक करने लगी। कि तभी संतोष ने अपने ऑफिस से बाहर आते हुए जस्मीन को चलने के लिए कहा और खुद बाहर जाकर गाड़ी स्टार्ट की।

जस्मीन भी चलती हुई डॉक्यूमेंट देख रही थी और उसकी नज़र तारीख पर पढ़ी तो समझ गई के यह फाइल पिछले महीने ही अप्रूव हो चुकी थी। फिर सर ने चेक करने को क्यो कहा? बाहर आकर जस्मीन भी गाड़ी के बैठी और बैठते ही बोली, “सर ये फाइल तो हम अप्रूव कर चुके है फिर आज दोबारा क्यो जा रहे है वह?”

संतोष ने एक बार के लिए जस्मीन को देखा और चुप रहते हुए गाड़ी चलाने लगा। जस्मीन अब भी ऐसी वहम में थी कि ना जाने आज दोबारा क्यो इस साइट पर जा रहे है सर?

शहर के ट्रैफिक से निकलने के बाद गाड़ी कोटकपूरा रोड पर तेज रफ्तार चलने लगी, और करीब शहर से 2 किलोमीटर बाहर रोड पर बने रेस्तरां कम होटल महाराजा हवेली पर रुकी। गाड़ी पार्किंग में लगाते ही संतोष ने जस्मीन को देखते हुए कहा, “आओ, कुछ सरप्राइज़ है तुम्हारे लिए।” कहते हुए संतोष गाड़ी से उतरा।

जस्मीन भी गाड़ी से उतर कर संतोष के साथ चलने लगी। कुछ नौजवान देख रहे तो थोड़े हैरान भी थे, कि कैसे एक भारी और भद्दे से दिखने वाले काले संतोष के साथ एक दूध जैसी लड़की चली जा रही थी।

रेस्तरां के अंदर रिस्पेशन पर संतोष ने कुछ पूछ-ताछ के बाद संतोष ने जस्मीन को इशारा किया और दोनों रिसेप्शनिस्ट के साथ अंदर चले गए। रिसेप्शनिस्ट संतोष को उसके बुक किए एक छोटे से हाल के गेट के पास ले आया, “आपके ऑर्डर के मुताबिक सब कुछ अंदर रेडी है सर।”

कहते हुए रिसेप्शनिस्ट वही से वापिस हो गया। संतोष ने दरवाजा खोला और अंदर जाने लगा, “आ जाओ जस्मीन।” कहते हुए जस्मीन को भी अंदर बुलाया।

जस्मीन अब थोड़ी सी घबराने लगी थी। हालांकि उसे भरोसा था के संतोष उसकी सहमति के बिना कुछ भी गलत हरकत नहीं करेगा। पर आज जिस तरह से वो इसे अकेली यह लाया था। मन में थोड़ी घबराहट होने लगी थी, पर संतोष के कहने पर अंदर चली गई। गेट बंद हो गया अपने आप और दोनों अंदर थे।

“सर कितना अंधेरा है यहां, लाइट ऑन कीजिए ना।” जस्मीन थोड़ी घबराती हुई बोली।

“हां-हां, एक मिनट बस,” संतोष ने कहते हुए अपने फोन निकाला और किसी को कॉल किया। थोड़ी देर बाद ही अचानक से लाइट ऑन हुई और साथ एक गुब्बारा फटने से सारे कमरे में सितारे से बिखर गए। एक छोटा सा रूम जिसे हॉल का रूप दिया गया था, बर्थडे की डेकोरेशन के साथ जस्मीन का नाम और रूम के बीचों-बीच एक छोटा केक पढ़ा हुआ था।

संतोष ने भी अब हल्की तालियां बजाई और जस्मीन को विश किया, “हैप्पी बर्थडे जस्मीन, भगवान आपको सारी खुशियां दे जो आप चाहती है।”

जस्मीन हैरानी से अब कुछ देख रही थी और खुश होती हुई मुस्कुरा कर संतोष को देख कर बोली, “सर आपको कैसे पता के आज मेरा जन्म दिन है?”

संतोष ने आंखे नचाते हुए एक स्माइल के साथ जस्मीन को देख के कहा, “जो आपको सच्चे दिल से चाहते है वो आपके बारे में छोटी से छोटी बात को भी नजरअंदाज नहीं करते। और ये तो फिर जिंदगी का सबसे बड़ा दिन है, जो साल बाद आता है।”

जस्मीन संतोष की शरारत को समझ रही थी। पर वो खुश भी थी। उसे संतोष ने बिना बताए उसके जन्मदिन पर एक सरप्राइज़ दे दिया था अपनी तरफ से, और इसी खुशी में वो अपने आप ही संतोष की तरफ बढ़ती हुई उसके गले मिली, “थैंक यू सर। थैंक यू सो मच मुझे बर्थडे पर ये छोटी सरप्राइज़ पार्टी देने के लिए।”

गले मिलते हुए संतोष ने भी जस्मीन के मम्मों को अपनी छाती पर महसूस किया, और अपने हाथों से आज पहली बार उसके पीठ को सहलाती हुए बहाने से अपने हाथ नीचे उसके चूतड़ों तक सहलाया। जस्मीन ने भी इसे महसूस किया पर उसे भी आज जैसे यह स्पर्श अजीब नहीं लग रहा था।

थोड़ी देर बाद जस्मीन ने केक काटा, और पहले संतोष को तो फिर संतोष ने जस्मीन को खिलाया और साथ ही कुछ और खाने के साथ कोक वगैरा पिया। संतोष अब तक जैसे कुछ कहने के लिए बेताब सा हो रहा था, और जब दोनों एक सोफा पर बैठे बातें कर रहे थे तो संतोष बोला, “अरे मैं तुम्हारा गिफ्ट तो देना भूल ही गया तुम्हें।” कहते हुए संतोष ने उठते हुए इधर-उधर नज़र दौड़ाई, “दे तो दिया सर गिफ्ट, ये पार्टी , अब भला क्या रह गया? जस्मीन ने संतोष को देखते हुए।

“ना-ना, बर्थडे गर्ल को गिफ्ट देना तो बनता है।” संतोष ने ध्यान से देखते हुए थोड़ी दूर पड़े एक छोटे बैग और बुके को उठाते हुए जस्मीन के पास आया और घुटने के बल बैठा।

संतोष को ऐसे बैठते देख कर जस्मीन की मुस्कुराहट कम हो गई, जैसे उसे आने वाले पल का अंदाजा हो गया था। वही संतोष ने बुके जस्मीन को देते हुए कहा, “काफी समय से मैं अपने दिल में ये बात दबाए हुए हूं।‌ अब भी बोल रहा हूं तो सोच रहा हूं कि बोलूं या ना, कहीं तुम गुस्सा ही ना कर जाओ, कहीं मेरी इस बात को सुनने के बाद हमारी दोस्ती भी खत्म ना हो जाए।”

संतोष ने अपनी बात कहने से पहले अपने दिल के डर को जस्मीन के सामने खोला। वहीं जस्मीन बिना कुछ बोले बस सुन रही थी संतोष की बात और बुके हाथ में लिए उसे देख रही थी।

“जस्मीन, मुझे नहीं पता तुम मेरे बारे में क्या सोचती हो, पर सच कहूँ तो मैं तुमसे अब प्यार करने लगा हूं। मैं जानता हूं कि कई बहुत भद्दा और रंग का भी काला हूं। पर फिर भी फीलिंग कही भी किसी पर भी अटैच हो जाती है।”

संतोष ने अपनी बात कहते हुए रुक कर सांस ली तो वही जस्मीन सिर्फ संतोष को देखे जा रही थी, “देखो, प्रोफेशन में मै तुम्हारा बॉस हूं। सिर्फ इसलिए हां मत कर देना। मैंने फीलिंग्स तुम्हे बता दी है। मैं तुम्हे प्यार करता हूं, और तुम्हारी मर्जी से तुम्हें पाने के लिए हर किसी से लड़ सकता हूं। पर अगर तुम्हें नामंजूर हो तो बस हमारी दोस्ती को ऐसे ही बरकरार रखने की कोशिश करना।”

अब अपने हाथ में पकड़ा छोटा सा बैग संतोष ने जस्मीन को देते हुए कहा, “इसमें नया फोन और सिम है। अगर तुम्हे मेरे जिस्मानी और रंग रूप के भेद को अलग रख कर मुझसे प्यार है, तो मेरा नंबर सेव है इसमें। मुझे मिस काल देना मैं समझ जाऊंगा, वरना सिम निकाल देना।” संतोष ने जस्मीन को बैग देते हुए कहा और अब उठ कर सोफा पर बैठ गया।

रूम के चुप छाई हुई थी और कुछ देर दोनों ऐसे ही बैठे रहे।‌ फिर कुछ देर बाद जस्मीन ने संतोष को जाने के लिए कहा तो दोनों रूम से बाहर आते हुए रेस्तरां से बाहर निकले और गाड़ी के बैठ कर चले गए।