पिछला भाग पढ़े:- पड़ोसी ने तोड़ी मेरी दीदी की सील-29
हिंदी चुदाई कहानी अब आगे-
सलीम, दीदी की चूत से अपना लंड निकालते हुए, हाँफते हुए बोला: मुझे लगता है, अब कुछ ऐसा करते हैं जो हम सब को एक साथ बांध दे।
राजू और अजय, दोनों की आँखें सलीम पर टिकी थी, उनके चेहरे पर सवालिया भाव थे। मम्मी और दीदी भी उत्सुकता से सलीम को देख रही थी।
सलीम ने एक कामुक मुस्कान दी और तीनों को पास बुलाया, और कहा: चलो, अब एक-दूसरे का और क़रीब आते हैं।
सबसे पहले, सलीम ने राजू और अजय को इशारा किया। राजू ने मम्मी के बगल में जगह बनाई और अजय ने दीदी के बगल में। सलीम ने मम्मी को अपने ऊपर खींचा, और उन्हें घुटनों के बल खड़ा किया। मम्मी अब सलीम के सामने थी, उनकी चूत सलीम के लंड के ठीक सामने थी।
फिर, सलीम ने दीदी को बुलाया। दीदी मम्मी के पीछे आई और सलीम के लंड को अपने मुँह में ले लिया, जबकि सलीम मम्मी की चूत में लंड डालने की कोशिश कर रहा था। दीदी ने लंड को पूरी लगन से चूसना शुरू किया।
अब राजू की बारी थी। राजू मम्मी के पीछे आया और मम्मी की गांड में अपना लंड डालने लगा। मम्मी ने एक तीखी आह भरी, पर उन्होंने राजू को कोई विरोध नहीं किया।
अजय ने भी अपनी जगह बनाई। वह दीदी के पीछे आया और दीदी की गांड में अपना लंड डालने लगा। दीदी भी अपने होंठ भींच कर अजय का स्वागत कर रही थी। कमरा अब जिस्मों के एक उलझे हुए जाल में बदल चुका था। सलीम मम्मी की चूत मार रहा था, दीदी सलीम का लंड चूस रही थी, राजू मम्मी की गांड मार रहा था, और अजय दीदी की गांड मार रहा था।
आहें, चीख़ें, और हरकतों की आवाज़ें एक साथ मिल रही थी, जैसे कोई भयानक संगीत बज रहा हो।
सलीम, मम्मी की चूत में धक्के मारते हुए, हाँफते हुए बोला: क्या चूत है तेरी जान। आज तो तूने सबको पागल कर दिया।
मम्मी ने एक ज़ोरदार आह भरी, उनके पैर हवा में थे, और बोली: उम्मम्म… सलीम जी… और तेज़… मुझे और चाहिए… आपके दोस्त भी… सब का चाहिए…
राजू, मम्मी की गांड मारते हुए, उसके मुँह से लार टपक रही थी: ये गांड तो स्वर्ग है भाभी जी। मैं तो यहीं रहना चाहता हूँ।
मम्मी ने पीछे मुड़ कर राजू को देखा और एक कामुक मुस्कान दी: मेरा पूरा जिस्म तुम्हारे लिए है, राजू। जहाँ मन करे, लेलो।
दीदी, सलीम का लंड चूसते हुए बीच-बीच में बोलती थी: क्या लंड है सलीम जी। इतना बड़ा, इतना मज़ेदार।
फिर अजय की तरफ़ देख कर बोली: और अजय तू भी कम नहीं। मेरी गांड फाड़ दे आज।
अजय, दीदी की गांड मारते हुए हाँफ रहा था: तेरी गांड भी तो कस के पकड़ती है, रंडी मज़ा आ गया।
सलीम ने एक ज़ोरदार धक्का लगाया और बोला: तुम दोनों सच में रंडीया हो।
मम्मी ने अपनी आँखें बंद करके कहा: हम दोनों माँ बेटी आपके लिए हैं, सलीम जी। हमारे हर छेद में आपका हक़ है।
दीदी ने भी जोश में कहा: आज रात हम सब एक-दूसरे में खो जाएँगे। कोई सीमा नहीं, कोई रोक-टोक नहीं।
अचानक, सलीम ने एक ज़ोरदार धक्का लगाया और हाँफते हुए बोला: अब आख़िरी खेल। सब एक साथ, हर तरफ़ से।
सलीम ने पहले मम्मी को अपने ऊपर खींचा और उन्हें पीठ के बल लेटा दिया। फिर उसने खुद को मम्मी के ऊपर एडजस्ट किया, अपना लंड मम्मी की चूत में था।
अब दीदी की बारी थी। दीदी ने मम्मी के ऊपर आकर लेट गई, उनके पैर सलीम के दोनों तरफ़ थे। दीदी की चूत अब सीधे मम्मी के मुँह के पास थी। दीदी ने अपनी चूत को मम्मी के मुँह पर रगड़ा और एक शरारती मुस्कान दी।मम्मी ने बिना देर किए दीदी की चूत को अपने मुँह में ले लिया और उसे चाटना शुरू कर दिया।
राजू, जो अब तक मम्मी की गांड मार रहा था, वह हटा और मम्मी के सिर की तरफ़ आ गया। उसने मम्मी का सिर उठाया और उन्हें दीदी की चूत चूसने में मदद करने लगा। फिर, उसने अपना कड़ा लंड निकाला और मम्मी के खुले मुँह के पास लाया।मम्मी ने दीदी की चूत चूसते हुए ही, राजू का लंड अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसना शुरू कर दिया।
अजय, जो दीदी की गांड मार रहा था, वह भी हटा और दीदी के पैरों के बीच आ गया। उसने अपना लंड निकाला और दीदी की चूत के पास लाया, जो अब मम्मी चाट रही थी। अजय ने अपना लंड दीदी की चूत में डाल दिया।
अब स्थिति ये थी: सलीम मम्मी की चूत मार रहा था। मम्मी दीदी की चूत चाट रही थी और राजू का लंड चूस रही थी। अजय दीदी की चूत मार रहा था। दीदी मम्मी को चूत चटा रही थी और अजय से चूत मरवा रही थी। राजू मम्मी के मुँह में अपना लंड दे रहा था।
सबसे पहले, मम्मी के शरीर में एक तेज़ झटका आया। उनकी आँखें बंद हो गई, उनके होंठों से राजू का लंड छूटा और उनके मुँह से एक लम्बी, गहरी चीख़ निकली। वो झड़ चुकी थी, उनके शरीर से पसीना बह रहा था, और वो ढीली पड़ गई।
उनके झड़ने के साथ ही, दीदी का शरीर भी अकड़ गया। अजय की चूत में और मम्मी के मुँह पर उनकी चूत हिलते ही, दीदी ने भी एक तीखी, सुख से भरी चीख़ मारी। वो भी चरम सुख को पहुँच चुकी थी, उनका पूरा बदन काँप रहा था।
मम्मी और दीदी के एक साथ झड़ने से माहौल को और भी तेज़ कर दिया। सलीम, राजू और अजय, तीनों ही अब बेकाबू हो चुके थे। सलीम ने मम्मी की चूत में कुछ और ज़ोरदार धक्के लगाए, उसके चेहरे पर तनाव साफ था। राजू का लंड मम्मी के मुँह में था और वो भी तेज़ी से उसे अंदर-बाहर कर रहा था। अजय दीदी की चूत में तेज़ी से धक्के मार रहा था।
फिर एक साथ, सलीम, राजू और अजय तीनों के मुँह से ज़ोरदार आहें निकली। उनके शरीर अकड़ गए और उनके लंड से गर्म वीर्य की धारें निकलनी शुरू हो गई। सलीम का वीर्य मम्मी की चूत में भर गया। राजू का वीर्य मम्मी के मुँह में, और अजय का वीर्य दीदी की चूत में निकल गया।
सलीम, राजू और अजय निढाल पड़े थे, उनके शरीर पसीने और वीर्य से सने थे। मम्मी और दीदी भी थकी हुई, पर गहरी संतुष्टि के साथ लेटी थी, उनके नग्न शरीर पर रात के खेल के निशान साफ़ दिख रहे थे।
मैं खिड़की पर से यह सब देख रहा था, मेरी आँखें इस भयानक, फिर भी उत्तेजक नज़ारे से हट नहीं रही थी। मुझे पता था कि अब कुछ भी पहले जैसा नहीं रहेगा।
धीरे-धीरे, राजू और अजय उठे। उन्होंने अपने कपड़े उठाए और बिना ज़्यादा बात किए उन्हें पहनना शुरू किया। उनके चेहरों पर एक अजीब सी, विजयी मुस्कान थी। उन्होंने मम्मी और दीदी की तरफ़ देखा, जैसे कोई जीत का इनाम देख रहे हों। राजू ने मम्मी के गाल पर थपकी दी, और अजय ने दीदी की पीठ सहलाई।
राजू ने कहा: शानदार रात थी। फिर मिलेंगे, मेरी रंडीयो। (अजय ने भी यही बात दोहराई।)
सलीम उठा, उसने भी अपने कपड़े पहने। उसने मम्मी और दीदी दोनों के माथे चूमे और बोला: तुम दोनों ने आज की रात को यादगार बना दिया। अब ये सिलसिला चलता रहेगा।
मम्मी और दीदी ने सिर हिलाया, उनकी आँखें झुकी हुई थी, पर उनके होंठों पर एक अजीब सी मुस्कान थी। जैसे ही दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई, मम्मी और दीदी एक-दूसरे से चिपक गई। वे बिना किसी झिझक या शर्म के, पूरी तरह नंगी अवस्था में एक-दूसरे में सिमट गई।
उनके चेहरे पर अब कोई शर्म नहीं थी, बस रात की गहरी संतुष्टि थी। वे अपनी साँसें सामान्य कर रही थी और एक-दूसरे के जिस्म की गरमाहट में खो रही थी।
वो रात उस घर के लिए एक नए युग की शुरुआत थी। सलीम के दोस्तों के साथ हुई वो घटना कोई एक बार का खेल नहीं था। धीरे-धीरे, सलीम के अलग-अलग दोस्त घर आने लगे। कभी कोई नया चेहरा आता, तो कभी कोई पुराना। हर बार वही नजारा, वही उत्तेजना, और वही बेशर्मी।
मम्मी और दीदी, दोनों अब सलीम और उसके दोस्तों के लिए पूरी तरह से रंडी बन कर रह गई थी। उनके लिए यह अब कोई शर्म की बात नहीं थी, बल्कि एक सामान्य दिनचर्या बन चुकी थी। वे ख़ुद को सजाती, मेहमानों का स्वागत करती, और बिना किसी झिझक के उनके सामने नंगी हो जाती थी। उनके शरीर अब सिर्फ़ उनके नहीं थे, बल्कि उन सभी पुरुषों के लिए उपलब्ध थे जो उन्हें इनाम समझते थे।
उनके चेहरे पर अब एक अजीब सी बेशर्म संतुष्टि दिखती थी, जैसे उन्हें इस नए जीवन में खुशी मिल गई हो। वे अब पहले से ज़्यादा खुश और बेफ़िक्र दिखती थी, उनकी आँखों में एक अलग ही चमक थी। उन्हें अब कोई परवाह नहीं थी कि कौन क्या सोचेगा, क्योंकि उनके लिए ये खेल ही उनका नया सच था।
और मैं उस घर में एक मूक दर्शक बना रहा। हर रात खिड़की से उन दृश्यों को देखता रहा। मेरा मन अंदर से मुझे कोसता, पर मेरा शरीर उस पागलपन को देखने से मुझे रोक नहीं पाता था। मैं जानता था कि मेरी माँ और दीदी अब वापस नहीं आ सकती थी, और ये घर अब एक खुला जिस्मफ़रोशी का अड्डा बन चुका था। मेरी ज़िंदगी उन रातों के साथ हमेशा के लिए बदल चुकी थी।
रातें बीतती गई, और हर रात, मेरा घर एक अखाड़ा बन जाता था जहाँ जिस्मों का खुला खेल खेला जाता था। सलीम और उसके नए-पुराने दोस्त आते, और मम्मी तथा दीदी उनके लिए नंगी होकर सेवा करती। मैंने रात के उस भयानक और उत्तेजक नज़ारे को अपनी आँखों से देखना कभी बंद नहीं किया, पर मेरा लंड अभी भी हर रात खड़ा होता था, पर अब उसके साथ एक घिन और शर्मिंदगी का एहसास जुड़ गया था।
मैं अब घर में एक भूत जैसा बन गया था। मैं मम्मी और दीदी से सीधी बात नहीं कर पाता था। जब वे मुझसे बात करती, तो उनकी आवाज़ में वही नकली ममता और बहनापा होता था, पर मुझे उनकी आँखों में रात की बेशर्मी दिखती थी। मैं जानता था कि उनके लिए यह खेल अब आम बात थी, पर मेरे लिए यह हर दिन एक ज़ख्म बन जाता था जो कभी भरता नहीं था।
मैंने कई बार सोचा कि उन्हें रोकूँ, उनसे पूछूँ कि वे ऐसा क्यों कर रही हैं। पर मेरे मुँह से आवाज़ नहीं निकलती थी। मुझे डर लगता था। डर इस बात का कि अगर मैंने कुछ कहा, तो उनका यह नया जीवन टूट जाएगा, और शायद वो मुझे ही इस सब के लिए जिम्मेदार ठहरा दें। या शायद, मुझे भी इसमें शामिल कर लिया जाए। यह सोच कर ही मेरी रूह काँप जाती थी।
मैं अब तन्हा हो चुका था। मेरे दोस्त थे, पर मैं उनसे खुल कर बात नहीं कर पाता था। मेरा दिमाग़ हमेशा उन रातों के नज़ारों और आवाज़ों से भरा रहता था। मेरी पढ़ाई पर भी इसका असर पड़ने लगा था। मैं जानता था कि मैं इस घर में ऐसे और नहीं रह सकता, पर मेरे पास जाने की कोई जगह नहीं थी। मैं फँस चुका था, इस जिस्मों के जाल में, एक ऐसा जाल जो मेरे ही परिवार ने बुना था।
यह कहानी मेरे लिए यहीं ख़त्म हो गई। मेरे माँ और दीदी, जो कभी मेरे लिए सब कुछ थी, अब सिर्फ़ जिस्मों की प्यास बुझाने वाली रंडियां बन चुकी थी। और मैं, उनका बेटा और भाई, उनकी इस नई दुनिया का एक गवाह था।
आप को अभी तक की कहानी कैसी लगी मुझे [email protected] पर मेल करे।