पिछला भाग पढ़े:- पड़ोसी ने तोड़ी मेरी दीदी की सील-23
हिंदी सेक्स कहानी अब आगे-
एक दिन शाम को मैं अपने दोस्तों के साथ बाहर घूम कर घर लौटा। जैसे ही घर में घुसा, मुझे मम्मी के कमरे से उसकी और दीदी की बातें सुनाई दी। हँसी की आवाज़ भी आ रही थी। मैं समझ गया कि मम्मी ऑफिस से आ चुकी थी।
मैं सीधे कमरे की ओर बढ़ा, लेकिन जैसे ही मैंने सुना कि मेरी बात हो रही थी। मैं थोड़ा चौक गया। बिना कोई आवाज़ किए, मैं कमरे के पास दीवार से टिक कर खड़ा हो गया। दरवाज़ा आधा खुला था, अंदर की बातें साफ़ सुनाई दे रही थी।
मम्मी की आवाज़ आई: तू पागल हो गई है क्या? अमित घर पर है, ऐसे में सलीम को बुलाना सही नहीं होगा।
दीदी बोली: अमित को सब पता है। मेरे और सलीम के बारे में भी, और उसने आपको भी देखा था उस दिन सलीम के साथ गोडाउन पर।
इस पर मम्मी थोड़ी धीमी आवाज़ में बोली: फिर भी बेटा, उसके सामने ऐसा करना अच्छा नहीं लगेगा। वो क्या सोचेगा मेरे बारे में?
दीदी हँसते हुए बोली: तो फिर आज रात उसे किसी बहाने से बाहर भेज दे?
मम्मी थोड़ी सोचते हुए बोली: नहीं बेटा वो बेचारा रात को कहाँ जाएगा? मैं उसे जल्दी सोने को कह दूँगी।
दीदी ने फिर कहा: नहीं मम्मी, मुझे पता है उसके घर पर रहते हुए आप सलीम के साथ खुल कर मज़े नहीं कर पाएगी।
मैं वहीं चुप-चाप खड़ा रहा, एक शब्द भी बोले बिना। अब ये सिर्फ एक बात-चीत नहीं लग रही थी, ये कोई प्लान था, और उसमें मैं भी शामिल था पर बिना मेरी जानकारी के।
कमरे के बाहर मैं अब भी चुप-चाप खड़ा था। अंदर से दीदी और मम्मी की बात-चीत जारी थी। अब बातों का अंदाज़ पहले से कुछ अलग था जैसे कोई प्लान बन रहा हो।
दीदी की आवाज़ आई: और आज मैंने कुछ ऐसा सोचा है जिससे सलीम पागल हो जाएगा।
इसके बाद थोड़ी फुसफुसाहट हुई — शायद दीदी ने कुछ बात कान में कही थी। फिर अचानक मम्मी की चौंकी हुई आवाज़ आई: तू पागल हो गई है क्या? मैं ऐसा नहीं कर सकती। मुझे बहुत शर्म आएगी।
दीदी तुरंत हँसते हुए बोली: किससे शर्म आएगी? मुझसे या सलीम से?
मम्मी: तू ना बहुत कमीनी हो गई है। और सलीम से कैसी शर्म? उसने तो मुझे बेशर्म बना ही दिया है।
दीदी: तो फिर मुझसे क्यों शर्म रही है? अब मेरे से क्या छिपाना मुझे सब पता है। आप और मैं एक ही मूसल से अपनी आग बुझा रहे है।
मम्मी: वो बात तो सही है पर तू सोचती है सलीम मानेगा?
दीदी: सलीम तो पागल हो जाएगा। उसे तो यही चाहिए था। आज की रात वो कभी नहीं भूलेगा। आप बस हा कर दे।
कुछ सेकंड चुप्पी रही। फिर मम्मी धीरे से बोली: अगर अमित ने डिस्टर्ब नहीं किया तो मैं सोचूँगी। उसके घर पर रहते हुए मैं यह सब नहीं कर सकती।
अब बात साफ़ हो गई थी कुछ ऐसा तय हो रहा था, जो आम नहीं था। मैंने तय कर लिया था कि अब मेरी माँ, बहन और सलीम के बीच जो भी हो रहा था, उसमें खुल कर टोक तो नहीं सकता। लेकिन चुप-चाप सब देखना और समझना ज़रूरी था।
डिनर के वक्त, मैंने मम्मी से कहा: आज रात मैं दोस्तों के साथ मूवी देखने जा रहा हूं। शो लेट नाइट है। और थिएटर उसी इलाके में है जहाँ मेरे दोस्त का घर है। तो रात वहीं रुकूंगा।
मम्मी ने एक नज़र दीदी की तरफ देखा दोनों की आँखों में हल्की मुस्कान तैर गई। दीदी का चेहरा तो जैसे खिल उठा हो। उसे जैसे किसी इंतज़ार का जवाब मिल गया हो।
मैंने जल्दी-जल्दी कपड़े बदले, बैग उठाया और जाते-जाते बस इतना कहा: ठीक है, मैं निकलता हूं। मैं अब सीधा सुबह को घर आऊँगा।
मम्मी ने मुझे रोकते हुए कहा: बेटा, ये पैसे लेकर जा और एक से मजे करना।
मैं समझ रहा था इतना प्यार किस ख़ुशी में मिल रहा था। दोनों ने मुस्कुराते हुए बाय कहा। लेकिन असल बात ये थी मैं कहीं जाने वाला नहीं था। जैसे ही मैं दरवाज़े से बाहर निकला और दोनों ने समझा कि मैं जा चुका हूं, मैंने पीछे से घर का मेन गेट धीरे से खोला और चुप-चाप अंदर घुस गया।
अंदर बिल्कुल सन्नाटा था। रसोई से बर्तनों की आवाज़ आ रही थी। दीदी और मम्मी बर्तन धो रही थी। मैंने बिना आवाज़ किए गेस्ट रूम की तरफ रुख किया, और धीरे से अंदर घुस कर दरवाज़ा बंद कर लिया। मैं अब जो कुछ होने वाला था उसका इंतज़ार कर रहा था।
रात के करीब 10 बजे थे। मैं गेस्ट रूम के दरवाज़े की आड़ में खड़ा था, और पर्दे के किनारे से हॉल की तरफ देख रहा था।
दीदी अकेली सोफे पर बैठी थी। उसने उस रात हल्की पिंक साटिन नाइटी पहनी थी, जो सिल्की और चिपकी हुई थी। उसकी पतली-पतली डोरी वाली स्ट्रैप्स बस उसके कंधों पर टिक रही थी। सामने से डीप नेक था, जिससे उसकी कॉलरबोन और थोड़ा सा क्लीवेज साफ़ दिख रहा था।
वो नाइटी उसकी जांघों से ऊपर तक थी। जब वो एक टांग मोड़ कर बैठी थी तो उसकी गोरी जांघें पूरी तरह से खुली हुई दिख रही थी, बस साफ़ और चमकती हुई स्किन। उसके पैरों में हाई हील सैंडल थी।
उसके बाल खुले हुए थे, थोड़े बिखरे हुए और शायद गीले भी। बाल उसकी गर्दन और कंधों पर गिर रहे थे। वो बीच-बीच में अपने बालों को उंगलियों से संभाल रही थी। वो कभी अपनी जांघ पर हाथ फेर रही थी, कभी अपने होंठ दबा रही थी। होंठों पर हल्का लिप बाम था और उसकी आंखों में एक अलग ही लुक था।
ऊपर पंखा चल रहा था और उसकी साटिन नाइटी का कपड़ा धीरे-धीरे उड़ रहा था। कभी उसकी जांघ से हटता, कभी कंधे के पास से। उसकी स्किन जगह-जगह से झलक रही थी, और हर हलचल में एक सिडक्शन था। मैं वहीं खड़ा था, बिना हिले, बिना आवाज़ किए। बस दीदी को देख रहा था और सच कहूं तो उससे नजर हटाना मुमकिन नहीं था।
दीदी ने फोन उठाया, कुछ सेकंड स्क्रीन देखती रही, फिर कॉल लगाई और स्पीकर ऑन कर दिया। वो आराम से सोफे पर टिकी थी, लेकिन उसके चेहरे की हल्की मुस्कान और आँखों में चमक कुछ और ही कह रही थी। मैं गेस्ट रूम में था, लेकिन दोनों की बात साफ सुनाई दे रही थी।
सलीम: कैसी हो मेरी जान?
दीदी: ठीक हूं, बस आपको याद कर रही थी।
(उसकी आवाज़ में एक ठहराव था, लेकिन अंदर से जैसे कुछ हिल रहा हो।)
सलीम: बहुत दिन हो गए मिलने का मन कर रहा है।
दीदी: तो आ जाओ ना। आज घर पर कोई नहीं है। अमित और मम्मी रिश्तेदारी में गए हैं।
सलीम: सच में?
दीदी: हाँ, झूठ बोलूंगी क्या आपसे? (हल्की हँसी थी उसके लहजे में) जल्दी आओ ना अकेले में आपकी और भी ज़्यादा याद आती है।
सलीम: फिर तो आना ही पड़ेगा आज।
दीदी (थोड़ा धीमे, मगर सीधा): आओ, आज की रात हम दोनों के लिए होगी।
उसकी आवाज़ में कोई बनावटीपन नहीं था। एक-दम नार्मल बात, लेकिन उसके हर लफ्ज़ में जैसे कोई इनविटेशन छुपा था। मैं वहीं दरवाज़े के पीछे सांस थामे खड़ा था, और हर बात के साथ दिल की धड़कन तेज़ होती जा रही थी।
कुछ देर बाद दूर से डोरबेल बजी। दीदी ने एक नज़र खुद पर डाली, अपने बाल हल्के से ठीक किए और फिर अपने खास अंदाज़ में दरवाज़ा खोला। सामने सलीम खड़ा था। उसकी नज़र जैसे ही दीदी पर पड़ी, वो कुछ पल के लिए बस देखता ही रह गया। उसकी आँखों में एक-दम से चमक आ गई चेहरा खुशी से भर गया।
सलीम (हँसते हुए, आवाज़ में हल्की उत्तेजना): क्या लग रही हो मेरी जान। तू तो आज जान ही ले लेगी।
दीदी मुस्कुराई, एक हाथ से बाल पीछे किए और दरवाज़े से हटते हुए उसे अंदर आने दिया। जैसे ही सलीम अंदर आया, उसने एक पल भी नहीं गंवाया। सीधा दीदी को अपनी बाहों में भर लिया। उसका चेहरा मंजू की गर्दन के पास था, और उसकी साँसें थोड़ी तेज़ हो गई थी।
सलीम: तेरे जिस्म की खुशबू और ये कपड़े एक-दम जान लेवा लग रही है।
दीदी धीरे से मुस्कराते हुए: अब इतने दिनों बाद मिल रहे हो तो असर तो होना ही था।
मैं दरवाज़े की आड़ से देख रहा था। सलीम अंदर आया और बिना कुछ कहे दीदी को अपनी बाहों में भर लिया। दीदी भी पीछे नहीं हटी हल्की मुस्कान के साथ उसके सीने से लग गई।
दोनों के चेहरे इतने करीब थे कि सांसें टकरा रही थी। सलीम दीदी की कमर पर हाथ रखे उसे देख रहा था, जैसे अब कुछ सोचने की जरूरत ही नहीं थी।
दीदी ने उसकी शर्ट के कॉलर से खेलते हुए कुछ कहा नहीं, बस आँखे बंध की और अपने होठ सलीम के होठ पर रख दिए। सलीम और दीदी एक-दूसरे के लिप्स चूस रहे थे। सलीम दीदी को किस्स करते हुए उसकी पीठ और गांड को सहला रहा था।
मैं वहीं खड़ा था और उस पूरे सीन को देखते हुए दिल ज़ोर से धड़कने लगा था। तभी पीछे से एक आवाज़ आई तेज़ और चौंकाने वाली, “सरप्राइज!”
सलीम के हाथ वहीं रुक गए और उसका चेहरा एक-दम सख्त पड़ गया, जैसे दिल धक से रुक गया हो। लेकिन दीदी वो मुस्कुरा रही थी। उसके चेहरे पर कोई डर नहीं था। जैसे वो जानती थी क्या होने वाला था। और सीन पल में पूरी तरह पलट गया था।
सामने मम्मी खड़ी थी। उसके चेहरे पर बड़ी शरारती मुस्कान थी। लेकिन जो चीज़ सबसे पहले ध्यान खींच रही थी, वो थी उसकी ड्रेस। मम्मी ने एक बॉडी से चिपकी हुई सिल्की डार्क रेड नाइटी पहनी थी। पतली स्ट्रैप्स, डीप नेक और नीचे से इतनी छोटी कि उसकी जांघें साफ दिख रही थी।
सलीम की नज़र वहीं अटक गई जैसे उसे यकीन ही नहीं हुआ कि सामने मम्मी खड़ी है, वो भी इस हाल में।
मैं भी दरवाज़े की ओट में थोड़ा पीछे हट गया लेकिन नज़रें अब भी उसी पर थी। उसके स्टाइल, उसकी चाल और उसकी नाइटी की हर हलचल में एक खुला इनविटेशन था। और सबसे हैरान करने वाली बात, दीदी अब भी मुस्कुरा रही थी।
दीदी: मेरी जान, कैसा लगा सरप्राइज?
सलीम थोड़ी देर तक कुछ बोल ही नहीं पाया।
फिर अचानक पीछे हटते हुए बोला: तुम तो कह रही थी घर पर अकेली हो। तो ये यहाँ क्या कर रही है?
दीदी हल्के मुस्कान के साथ: मैं सब जानती हूं सलीम जी, आप मेरी पीठ पीछे मम्मी से मिलते हो। उन्होंने मुझे सब कुछ बता दिया है।
दीदी पास आकर खड़ी हो गई नज़रें सीधे सलीम की आँखों में और बोली: और अब हम दोनों को कोई प्रॉब्लम नहीं है।
सलीम: क्या? (उसके चेहरे पर शॉक साफ़ दिख रहा था।)
तभी मम्मी धीरे से उसके पास आई, बहुत करीब और उसकी आँखों में देखते हुए बोली: तुम तो यही चाहते थे ना कि हम दोनों माँ-बेटी तुम्हें एक साथ मिलें?
सलीम ने मम्मी को पास खींचा, हाथ उसकी कमर पर रखा और मुस्कराते हुए बोला: चाहता तो यही था, पर कभी कहने की हिम्मत नहीं हुई।
दीदी अपनी जगह से हल्के अंदाज़ में मुस्कराई, उसके लहजे में शरारत थी: इसी लिए तो मैंने ये प्लान बनाया है। आज तीनों मिल कर रात को रंगीन बनाएंगे।
सलीम ने दोनों को अपनी बाहों में ले लिया। एक तरफ दीदी दूसरी तरफ मम्मी और बिना कुछ कहे, तीनों की चाल धीरे-धीरे बेडरूम की ओर बढ़ गई।
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