पड़ोसी ने तोड़ी मेरी दीदी की सील-23 (Padosi Ne Todi Meri Didi Ki Seal-23)

हिंदी सेक्स कहानी अब आगे-

मम्मी कुछ देर तक चुप-चाप सिर झुकाए बैठी रही। ऐसा लग रहा था जैसे दीदी की हर बात उसके दिल पर चोट कर रही हो। दीदी की आँखों में गुस्सा था, लेकिन मम्मी की आँखों में पछतावा और टूटा हुआ आत्मसम्मान साफ़ दिख रहा था। थोड़ी देर बाद मम्मी धीमी आवाज़ में बोली-

मम्मी: बेटा मुझे पता है मैंने जो किया वो माफ़ करने लायक नहीं है। लेकिन तू जानती है ना, मैं बहुत समय से अकेली महसूस कर रही थी। कोई ऐसा नहीं था जो समझे कि मैं भी कुछ महसूस करती हूं। उस दिन मैं सलीम से बात करने गई, तब उसने मेरी चुप्पी समझी। बस वहीं मैं बहक गई। मेरी हालत कमजोर थी और मैं उस कमजोरी में उलझ गई। लेकिन यकीन कर, मैंने ये सब तुझे दुख पहुँचाने के लिए नहीं किया।

इतना कह कर वो चुप हो गई। अब उनके बीच एक भारी चुप्पी थी। ऐसा सच जिसे ना पूरी तरह नकारा जा सकता था, और ना ही आसानी से माफ़ किया जा सकता था। दीदी की आँखों में आँसू थे, लेकिन उसके चेहरे पर अब भी गुस्सा साफ़ दिख रहा था। उसकी आवाज़ काँप रही थी, लेकिन वह गुस्से में चिल्ला पड़ी-

दीदी: मम्मी, तुम्हें पूरी दुनिया में बस यही मर्द मिला था? अगर किसी से रिश्ता बनाना ही था, तो किसी और से करती! ठाकुर अंकल क्या तुम्हारी प्यास नहीं बुझाते थे! मैंने तुम पर भी भरोसा किया था और उस पर भी। लेकिन तुमने तो मेरा प्यार ही मुझसे छीन लिया!

मम्मी कुछ पल दीदी की आँखों में देखती रही, फिर शर्म से सिर झुका लिया। उसकी आँखें भर आई थी। अब उसमें ना हिम्मत थी, ना कोई सफाई देने की कोशिश।

मम्मी फिर भी धीरे से वो बोली: बेटा, मुझे पता है मैंने बहुत बड़ी गलती की है। मैं कुछ भी कह कर अपना गुनाह छोटा नहीं कर सकती। लेकिन एक बात सच है। सलीम ने कभी तेरे लिए वैसे महसूस नहीं किया, जैसे तू उसके लिए करती थी। पता नहीं कब और कैसे, वो मेरी तरफ़ झुक गया और मैं भी बहक गई। मुझे नहीं करना चाहिए था ऐसा। मैंने तेरा भरोसा तोड़ा है, और शायद मुझे यही सजा मिलनी चाहिए कि तू मुझे कभी माफ़ ना करे।

अब दोनों के बीच ना कोई भरोसा, ना कोई बहाना। सिर्फ एक टूटा हुआ रिश्ता और अधूरी बातें रह गई थी। दीदी के चेहरे पर आँसुओं की लकीरें साफ़ दिख रही थी, लेकिन उसकी आँखों में अब भी गुस्से की झलक थी। उसके हाथ काँप रहे थे जब उसने गुस्से में फोन उठाया और कहा-

दीदी: अब सब साफ़ हो गया। सलीम भी धोखेबाज़ है। मैं आज ही उससे रिश्ता तोड़ दूंगी!

वो सलीम को कॉल करने ही वाली थी कि तभी मम्मी अचानक आगे बढ़ी और उसके हाथ से फोन छीन लिया।

“नहीं बेटा,” मम्मी लगभग चिल्ला पड़ी। उसकी आवाज़ में डर और बेचैनी साफ़ झलक रही थी।

मम्मी: ऐसा मर्द बहुत मुश्किल से मिलता है। सलीम जैसा इंसान हर किसी की ज़िंदगी में नहीं आता। हाँ, उसने गलती की, मैंने भी की। लेकिन मेरा यकीन कर तुझे कभी ऐसा मर्द नहीं मिलेगा जो तेरी प्यास बुझाने लायक हो, बस उसे समझने की ज़रूरत है। प्लीज़, उसे मत छोड़। अगर तूने ऐसा किया, तो एक दिन तुझे भी पछतावा होगा और मैं भी खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगी।

दीदी एक पल के लिए चौंक गई। उसके हाथ से फोन ढीला हो गया और वो बस मम्मी की आँखों में देखने लगी। जहाँ अब प्यार नहीं था, सिर्फ पछतावा और दर्द था। मैं दीदी की तरफ़ देख रहा था। सोच रहा था क्या वो इस टूटे हुई भरोसे को संभालेगी, या हमेशा के लिए छोड़ देगी।

मम्मी की आँखों में अब पछतावे की जगह एक कड़वी सच्चाई थी। जैसे वो अब सब कुछ साफ-साफ कह देना चाहती थी। मम्मी ने मुझे मेरे कमरे में जाने को कहा। वो नहीं चाहती थी कि मेरे ऊपर इस सब बातों का असर हो। मैं लेकिन दूर से उनकी बाते सुन रहा था।

मम्मी ने एक गहरी साँस ली और सीधी बात कही: बेटा मुझे पता है तू सलीम से प्यार करती है। लेकिन सलीम प्यार करने वाला आदमी नहीं है। वो तो बस जिस्म की भूख मिटाने के लिए ठीक है।

दीदी को जैसे किसी ने बहुत गहरी चोट दी हो। वो चुप रह गई।

मम्मी ने फिर कहा: तू उसके साथ शादी का सपना देखती है, लेकिन वो उसके लायक नहीं है। वो तुझे कभी वो इज़्ज़त नहीं देगा, जो तू डिज़र्व करती है। शादी बराबरी वालों से होती है और सलीम तेरे सोच और इरादों से कहीं पीछे है। तू सच्ची है, लेकिन वो चालाक है। मैंने उसे बहुत करीब से देखा है और ये ही सच्चाई है।

दीदी की आँखों में अब सिर्फ आँसू थे। उसका प्यार टूट चुका था, भरोसा भी बिखर गया था और माँ-बेटी का रिश्ता भी अब वैसी नहीं रहा। वो बस चुप-चाप अपना सर पकड़ बैठ गई। मम्मी की बातों ने सच तो दिखा दिया था, लेकिन उस सच को दिल से मानना अब भी बहुत मुश्किल था।

दीदी अब भी गुस्से में थी, लेकिन उसके चेहरे पर अब पहले जैसा तेज़ गुस्सा नहीं था। वो कुछ देर चुप रही, फिर गहरी साँस लेकर धीरे से बोली: मैं आपको समझती हूं, मम्मी। आप अकेली है, विधवा है और इस उम्र में जिस्म की भूख को झुठलाया नहीं जा सकता। मैं आपका दर्द समझ सकती हूं। आपको भी इंसान की तरह जीने का हक़ है, और ये कोई आपसे नहीं छीन सकता।

वो थोड़ा समय चुप रही और सलीम के बारे में सोचते हुए बोली: और सलीम वो ऐसा मर्द है जो किसी भी औरत की प्यास बुझा सकता है। चाहे जिस्म की हो या अकेलेपन की। उसका तरीका अलग है, लेकिन उसकी चुदाई में अलग तरह का आकर्षण है। शायद इसलिए आप भी उसकी तरफ़ खिंच गई।

फिर एक हल्की सी उदास मुस्कान के साथ बोली: शायद मैं ही गलत थी। जिसे मैं प्यार समझ रही थी, वो बस मेरी जिस्मानी भूख थी। और सलीम वो शायद किसी एक का हो ही नहीं सकता। अगर आप अब भी उसके साथ रहना चाहती है, तो रह ले। मैं पीछे हट जाती हूं।

मम्मी की आँखों में अब पछतावा साफ़ दिख रहा था। उसकी आवाज़ काँप रही थी, चेहरा शर्म से झुका हुआ था। वो दीदी के पास आई और भर्राए हुए लहजे में बोली: मैं बहुत खुदगर्ज़ निकली, बेटा । पहले तुझे सलीम से मिलने से रोका, तुझे मारा-पीटा लेकिन खुद उसी रास्ते पर चल पड़ी। जब मैंने तुझे और सलीम को साथ देखा, तो कुछ अंदर से टूट गया। शायद जलन थी, या कोई अधूरी इच्छा पर मैं खुद को रोक नहीं पाई। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।

फिर मम्मी की आँखों से आँसू बहने लगे और वो दीदी को गले लगा कर रो पड़ी और बोली: मम्मी, मैंने जिस्म की आग को बहुत गहराई से महसूस किया है। सलीम मर्द ही ऐसा है उसकी बातों, नज़रों और छूने के अंदाज़ में ऐसा कुछ है जो औरत को खींच लेता है। लेकिन अब वो आपका है। मैं वादा करती हूं, अब मैं आपके बीच नहीं आऊँगी।

दीदी कुछ देर चुप रही, फिर मम्मी की पीठ पर हाथ फेरती रही। जैसे उसे थोड़ा सहारा दे रही हो। कमरे में अब सिर्फ माँ-बेटी की थकी हुई साँसें थी। जिन्होंने साथ में प्यार, धोखा, जलन और माफ़ी सब महसूस कर लिया था।

फिर मम्मी ने धीरे से दीदी का हाथ पकड़ते हुए कहा: हां बेटी सलीम से मिलने के बाद मेरा रोम-रोम खिल उठा था। मेरी अन्दर की सोई हुई इच्छा को सलीम ने जगा दिया था। लेकिन बेटा अब मैं तेरा हक़ नहीं छीन सकती। तू मुझे इतना कुछ समझ रही है, माफ कर रही है तो मैं अब खुदगर्ज़ नहीं बन सकती। सलीम तेरा था और तेरा ही रहेगा। मैं अब तुम्हारे बीच नहीं आऊँगी।

दीदी ने मम्मी की बात ध्यान से सुनी। फिर कुछ पल चुप रही और हल्की मुस्कान के साथ बोली, जैसे अब वो सच को पूरी तरह समझ चुकी हो: मम्मी अब ये बात साफ़ हो चुकी है कि सलीम कभी किसी एक का नहीं हो सकता। वो आपसे भी खेल रहा था और मुझसे भी। और हम दोनों को वो पसंद हैं।

मम्मी हैरान हो गई। उसने थोड़ा पीछे हट कर पूछा: क्या? मैं समझी नहीं, तू कहना क्या चाहती है?

दीदी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और एक ठंडी सी मुस्कान के साथ बोली: मतलब ये, मम्मी अब सलीम हम दोनों का होगा, एक साथ। अब वो छुप-छुप कर हमारी चुदाई नहीं करेगा। जो खेल वो हमसे कर रहा था, अब उसी खेल के नियम हम बनाएंगे। ना अब कोई जलन होगी, ना कोई लड़ाई। सब साफ़-साफ़ होगा।

मम्मी थोड़ी देर दीदी को देखती रही। फिर उसे समझ में आ गया कि दीदी अब दर्द से बाहर आ चुकी थी और अपने रिश्ते के बारे में खुद फैसला लेना चाहती थी। अब दोनों की आँखों में आँसू नहीं थे।

फिर मम्मी धीरे से बोली, थोड़ी घबराहट और सवाल के साथ: पर बेटा क्या तू सोचती है कि सलीम हमारे इस फैसले को मानेगा? क्या वो सच में हम माँ-बेटी को चोदेगा। हम दोनों की प्यास बुझाने के लिए तैयार होगा?

अब दीदी की आँखों में गुस्सा नहीं था, बल्कि एक अनुभव दिख रहा था, जैसे वो अब सलीम को पूरी तरह समझ चुकी हो। उसने धीरे से सिर हिलाया और बोली: मम्मी, सलीम के दिल में किसी के लिए कोई फीलिंग नहीं है। ना प्यार की, ना लगाव की। वो बस जिस्म की भूख के पीछे भागता है। यही उसकी सच्चाई है। और आप भी जानती है। ऐसा आदमी जब देखेगा कि माँ-बेटी खुद उसके पास आ रही हैं, तो वो और खुश होगा। उसे तो यही चाहिए था।

फिर दीदी ने हल्की सी कड़वी मुस्कान के साथ कहा: अब हम उसके तरीके से नहीं चुदवायेंगे। अब हम अपने तरीके से उसके साथ चुदेंगे। और इस बार, उसके ऊपर कंट्रोल हमारा होगा।

मम्मी चुप-चाप उसकी बात सुनती रही। अब उनके बीच रिश्तों की जगह समझदारी और सच्चाई ने ले ली थी। उनका रिश्ता, उनकी सोच अब एक नए तरीके से बदल रही थी। मैंने भी चैन की सांस ली की आख़िर में दोनों के बीच का झगड़ा ख़त्म हुआ।

आप को अभी तक की कहानी कैसी लगी मुझे [email protected] पर मेल करे।

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