पिछला भाग पढ़े:- पड़ोसी ने तोड़ी मेरी दीदी की सील-17
हिंदी सेक्स कहानी अब आगे-
एक दिन दोपहर का वक्त था। मम्मी ऑफिस से जल्दी आ गई थी। घर में बिलकुल सन्नाटा था। मैं आंगन में था, दीदी अपने कमरे में, और थोड़ी देर बाद मम्मी सीधे उसी के कमरे में चली गई। दरवाज़ा आधा खुला था, तो उनकी बातों की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी।
मम्मी हँसते हुए बोली: चलो मंजू, आज तो तुझसे ढंग से बैठ के बात कर ही लूँ। कब से वक़्त नहीं मिला तुझसे गप्पें मारने का।
दीदी ने भी मुस्कुरा कर कहा: हाँ मम्मी, आपको देख के अच्छा लग रहा है। आज-कल आप बड़ी खुश-खुश लगती हो।
मम्मी उसके पास बैठ गई, फिर बालों में उंगलियाँ फेरते हुए बोली: सच बताना बेटा सलीम तुझसे कितना प्यार करता है?
दीदी थोड़ा चौंकी, लेकिन बोली: काफी करता है,क्यों मम्मी?
मम्मी ने हँस कर पूछा: ऐसे ही पूछ रही हूँ। जब मिलती है उससे, तो क्या करता है तेरे लिए? कैसे ट्रीट करता है तुझे?
दीदी ने हल्का सा मुस्कुरा कर कहा: अरे मम्मी, सब कुछ शेयर करता है, टाइम देता है। वैसे ही जैसे कोई प्यार करने वाला करता है।
मम्मी फिर थोड़ा और पास सरक आई और धीमे से पूछा: कभी ज़्यादा नज़दीकियाँ बनाई उसने? मतलब थोड़ा और आगे बढ़े हो क्या तुम दोनों? जैसे उस दिन कमरे में दोनों कर रहे थे।
दीदी थोड़ा असहज हो गई। उसने हल्की सी हँसी में बात टालते हुए कहा: मम्मी आप भी ना क्या-क्या पूछती हो।
मम्मी खिलखिला कर हँसने लगी: अरे माँ हूँ तेरी, तुझसे नहीं पूछूँगी तो किससे पूछूँ? अच्छा लगता है जब तू खुश दिखती है। और सलीम तो वैसे भी हैंडसम भी है, जवान मर्द भी।
इतना कह कर मम्मी कुछ पल चुप हो गई। दीदी उसकी तरफ़ देखने लगी। फिर अचानक पूछ बैठी: मम्मी एक बात पूछूँ?
मम्मी ने कहा: हाँ पूछ ना।
दीदी थोड़ी हल्की मुस्कान के साथ बोली: आप इन दिनों सलीम के बारे में इतनी बातें क्यों करने लगी हो?
मम्मी थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली: तू उसकी गर्लफ्रेंड है बेटा, फ़िक्र होती है तेरी। और वैसे भी तू जानती है ना, हम दोनों की पसंद अक्सर एक जैसी रही है।
दीदी ने हँसी में बात तो आगे बढ़ा दी, लेकिन उसके मन में हल्की सी खटास आ गई थी। मम्मी पहले सलीम के नाम से नाराज़ हो जाती थी, अब इतनी फिक्रमंद और दिलचस्प क्यों बन गई?
थोड़ी देर बाद दीदी ने भी बात मोड़ दी। अब वो सोच में डूबी सी बोली: मम्मी एक बात और बताओ। वो ठाकुर अंकल कैसे थे? आप उनके साथ मतलब…
मम्मी का चेहरा एक-दम सधा हुआ था, पर आँखों की चमक जैसे बुझ गई। उसने नज़रें नीचे करते हुए कहा: क्यों पूछ रही है ये सब?
दीदी ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा: ऐसे ही, उस दिन आपको और ठाकुर अंकल को देख कर लगता था कि आपको थोड़े रौबदार, दबाव वाले मर्द पसंद आते होंगे।
मम्मी कुछ देर चुप रही, फिर एक गहरी साँस लेकर बोली: शायद वो मजबूरी थी मंजू या आदत। पर अब लगता है सलीम जैसा कोई नहीं है।
दीदी ने सीधा पूछा: मतलब?
मम्मी ने बात पलट दी: मतलब ये कि तू खुश है उसके साथ चुदवा कर तो उसे संभाल के रख। लड़के कम मिलते हैं जो इतनी अच्छी प्यास बुझाते है।
लेकिन अब दीदी के दिल में जो शक था, वो थोड़ा और गहराता गया। मम्मी के जवाब, उसकी आँखें, सब कुछ जैसे कुछ छुपा रहा था।
मैं बाहर बैठा बस सब सुन रहा था। और अब मुझे यकीन होने लगा था कि इस घर में सलीम सिर्फ दीदी का नहीं रह गया। कुछ और भी है, जो सबके बीच बँटने लगा है।
एक बार रात का वक़्त था। घर में सन्नाटा छाया हुआ था। दीदी अपने कमरे में थी, और मैं टीवी देख रहा था। बस हल्की सी लाइट मम्मी के कमरे से बाहर झलक रही थी। मुझे नींद नहीं आ रही थी।
जैसे ही मैं पानी लेने उठा, मम्मी का कमरा आधा खुला दिखा। मैं अनजाने ही थोड़ा पास गया और जो दिखा, वो देख कर मैं ठिठक गया।
मम्मी शीशे के सामने खड़ी थी। उसने हलका सा ट्रांसपेरेंट नाइट ड्रेस पहना हुआ था। उसके अंदर से मुझे उनकी ब्रा पेंटी दिख रही थी। बाल खुले थे और होंठों पर हल्की सी नमी थी और उसकी आँखें, जैसे किसी बहुत दूर की चीज़ को पास महसूस कर रही थी। मम्मी की आँखें बंद हुई, और वो बहुत धीरे से, फुसफुसाते हुए कुछ बड़बड़ाने लगी जो मैं ध्यान से सुनने लगा।
मम्मी ख़ुद से आपके जिस्म को मसलते हुए: सलीम उसके हाथ जब मेरी चूचियों को दबा रहे थे। जब मेरी पीठ पे चूम रहा था। उफ़ वो एहसास कितना मस्त था। सलीम के मूसल लंड ने मुझे पागल बना दिया हैं। मैंने खुद को कभी उस तरह महसूस नहीं किया, सलीम जैसा असली मर्द मैंने खो दिया।
मम्मी अपने होठ चबाते हुए बोली: सलीम को मंजू को सौंप तो दिया, पर खुद को कैसे रोकूं? वो जब घोड़ी बना कर मुझे चोद रहा था मेरी साँस जैसे रुक गई थी।
मम्मी की उंगलियाँ खुद-ब-खुद उसकी गर्दन तक गई, फिर वहीं से धीरे से नीचे उतरने लगी, और अपने चूचे दबाने लगी। शायद वो दोबारा उसी लम्हे को जी रही थी, सलीम की चुदाई को महसूस कर रही थी।
फिर बहुत धीमे से, मम्मी की आवाज़ फिर आई : मुझे वापस सलीम से मिलने जाना है। एक बार और वो मूसल लंड से चुदना हैं। बस एक बार फिर उसे छू लूँ, उसके सीने से लग जाऊँ, और सलीम को अपना बना लूँ। मैं अब नहीं सह सकती। अब और इंतज़ार नहीं हो रहा। मेरी चूत अब सलीम के लंड से ठंडी होगी।
वो अब पलट कर अलमारी के पास गई, और अंदर से एक साड़ी निकाली हल्की गुलाबी, लेकिन बेहद फिटिंग वाली। शायद वही जो वो खास मौकों पर पहनती थी। अब वो ठान चुकी थी। मम्मी के होंठ अब धीमे से मुस्कुरा रहे थे। जैसे वो दीदी से सलीम को बाटने की इच्छा रख रही हो।
मम्मी बोली: मंजू को कुछ समझ नहीं आएगा। वो उसे प्यार करती है और मैं? मैं बस उसको चाहती हूँ, पूरी तरह उसको अपना बनाना चाहती हूँ। उससे अपनी गर्मी शांत करना चाहती हूँ।
उसने फिर खुद को शीशे में देखा। बालों को समेटा, होंठों पर थोड़ा लिपस्टिक लगाया। और उसकी आँखें अब और भी गहरी दिखने लगी थी। वो अब सलीम से मिलने की तयारी कर चुकी थी। दूसरे दिन सुबह मम्मी ने ऑफिस जाने का बहाना बनाया, लेकिन मैं समझ गया था कि उसकी नीयत कहीं और जाने की थी। उसने अलमारी खोली और वो गुलाबी सारी निकाली।
मम्मी उस दिन जैसे कुछ अलग ही मूड में थी। मैंने जैसे ही उसे देखा, मेरी नज़र खुद-ब-खुद रुक गई। वो हल्की गुलाबी रंग की साड़ी में थी। साड़ी एक-दम पतली और फिसलती सी, जिससे उसका पूरा फिगर साफ़ दिख रहा था।
कमर से साड़ी इतनी टाइट कसी हुई थी कि उसकी चूचियाँ, कमर और गांड की गोलाई बस आँखें खींच लेती थी। ब्लाउज़ छोटा और फिगर से चिपका हुआ था। उसकी साँसे भी चलती तो लगता था सब कुछ हिल रहा था।
उसका पल्लू कंधे पर ढीला रखा हुआ था, जिससे उसकी गर्दन, कॉलरबोन और ब्लाउज़ का ऊपरी हिस्सा पर बनी क्लीवेज पूरी तरह झलक रहा था। बाल खुले थे, हल्के लहराते हुए उसकी पीठ को छू रहे थे। उसके होंठों पर हल्की मुस्कान थी, और आँखों में ऐसा लुक जैसे उसे पता हो, कि सामने जो भी देखेगा, उसका दिल ज़रूर धड़केगा।
उसके पैरों में सैंडल थी, और चलते वक्त उसका एक-एक स्टेप धीमा, लहराता हुआ लगता था। ऐसा लग रहा था जैसे वो सिर्फ़ सलीम को नहीं, बल्कि पूरे शहर को साथ बहा कर ले जा रही हो।
मैंने बस उसे देखा और मन ही मन यही सोचा आज सलीम मम्मी पर पूरा लट्टू होने वाला था। उनको देख कर तो मेरा लंड भी हरकत करने लगा। लेकिन सच कहूँ, उस वक़्त मम्मी को देख कर ऐसा लगा, अगर वहाँ सलीम की जगह कोई और भी होता तो खुद को रोक नहीं पाता। वो किसी एक के लिए नहीं सजी थी। वो आज औरत नहीं, पूरी चाहत बन कर निकली थी।
मैं बाहर आंगन में था। मम्मी सलीम से मिलने इतनी उतावली थी की उसने मेरी तरफ देखा भी नहीं, सीधा दरवाज़ा खोला और बाहर निकल गई। मुझे अब कुछ शक नहीं रहा था, मैं समझ गया था आज मम्मी के इरादे ठीक नहीं थे। मैंने चुप-चाप चप्पल पहनी और थोड़ी दूरी बना कर उसके पीछे चल पड़ा।
मम्मी सीधा उसी रास्ते की तरफ मुड़ी जहाँ सलीम का गोडाउन पड़ता है। सलीम का गोडाउन एक सुनसान सी जगह पर था, जहाँ आस-पास कोई आता-जाता नहीं था। वहाँ पहुँच कर मम्मी बिना किसी हिचकिचाहट के गेट के अंदर चली गई। मैं थोड़ी दूरी पर छुप गया, वहीं जहाँ पिछली बार छुपा था।
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