पिछला भाग पढ़े:- पंजाब की सरदारनियां-6
हिंदी सेक्स कहानी अब आगे-
संतोष भी जस्मीन की मिस काल देख कर समझ गया और उसके बाद तो जैसे दोनों दुनिया की नजरों से छुपने से लगे। बैंक में बैठे दोनों के मन में बस एक ही विचार रहता कि कब मौका मिले और कब वो एकांत में कुछ समय गुजार सके।
दोनों के बीच संबंध चलते हुए दो-तीन महीने बीत चले थे, और अब तक संतोष जस्मीन के होंठो के रस से लेकर जस्मीन की अनछुई जवानी के पकते आमों का स्वाद भी ले रहा था। और साथ ही जस्मीन के हाथों से अपने केले की मसाज से लेकर उसे खिला भी चुका था।
भले ही जस्मीन ना-नुकुर करके ही सही, पर संतोष के पके केले का स्वाद अब धीरे-धीरे उसे भी पसंद आ रहा था। बस कमी थी तो एक, कि जस्मीन अब भी संतोष के साथ हमबिस्तर होने से झिझक रही थी और एक कुंवारी लड़की के लिये यह बात स्वाभाविक भी थी।
लेकिन संतोष को भी कोई जल्दी नहीं थी। भले ही उसने हर उम्र की औरत का स्वाद चखा था, पर एक पंजाबन सरदारनी और ऊपर से जट्टी का स्वाद उसने पहली बार लेना था। इसलिए वो गलती की कोई गुंजाइश नहीं चाहता था, जिससे कि बनी-बनाई बात बिगड़ जाए। इसलिए वो ज्यादा जोर नहीं देता था इस बात पर।
लेकिन संतोष के काले मोटे केले को हाथ लेकर सहलाना और उसे अपने मुंह से चूसने में जो मजा अब जस्मीन को आने लगा था। अब धीरे-धीरे उसका भी दिल संतोष के एक-एक इंच को अपने अंदर महसूस करने के लिए उतावला होने लगा था। वहीं संतोष भी चुम्मा-चाटी करते समय अपने लुल्ले के डोडे को कपड़ों के ऊपर से, कभी जस्मीन के चूतड़ों, तो कभी उसकी फुद्दी पर मसलता और सहलाता हुआ उसका मूड बनाने की कोशिश करता रहता।
वहीं दूसरी तरफ जस्मीन की भाभी सुखप्रीत भी उससे संतोष और उनके रिश्ते के बारे में समय-समय पर पूछती रहती, और जस्मीन को बताती रहती के उसे किस तरह से बर्ताव करना चाहिए। और जब-जब भी जस्मीन सुखप्रीत से संतोष के लिंग और जस्मीन के अंदर आती फीलिंग्स को बताती, तो सुखप्रीत भी जस्मीन को बोलती के एक बार इसका चस्का पढ़ा तो तुझे समझ आएगा के दुनिया के सारे सुख इसके सामने फेल हो जाते है औरत के लिए। हालांकि अब तक संतोष को सुखप्रीत के बारे में जस्मीन की तरफ से कुछ नहीं बताया था।
वहीं दूसरी तरफ मोहन भी राजवंत को समझने लगा था, और उसे पता चल चुका था कि सरदार जी के तिलों में उतना तेल नहीं कि राजवंत को वो सुख दे सके। यहां तक कि शुरू से ही वो 5-10 मिनट के खिलाड़ी रहे थे। इसलिए मोहन अब राजवंत को रिझाने के लिए उसके हथकंडे अपनाने लगा।
संध्या का समय था और राजवंत भैंस का दूध निकालने के लिए उसकी खुरली में पड़े हरे चारे को हाथ से हिला रही थी और साथ ही मोहन को आवाज लगती है, “मोहन, भैंस के लिए दाना लेकर आओ हरे चारे पे डालने के लिए।”
मोहन जो दूसरी भैंस को उसके खूंटे पर बांध रहा था ने बात सुनी और एक डिब्बे में दाना लेकर चला गया। पर जैसे ही उसने राजवंत को खुरली पर झुकी हुई देखा तो उसके मन में एक शरारत आई। चूंकि अब तक मोहन और राजवंत दोनों ही एक-दूसरे को समझने लगे थे, और राजवंत भी मोहन की डबल मीनिंग बातों और शरारतों का गुस्सा नहीं करती थी। इसलिए मोहन दबे पांव राजवंत के पीछे आया और उसका लंड जो पहले से उसने खड़ा कर रहा था, राजवंत को देख कर उसे अपनी धोती में सीधा करते हुए निशाना राजवंत के चूतड़ों को बनाया।
फिर थोड़े जोर से अनजान बनते हुए लंड पीछे टकराया, जिससे लंड राजवंत की सलवार कुर्ती के ऊपर से भी अपनी जगह बनाते हुए राजवंत के चूतड़ों की दरार में जा फंसा।
मोहन के इस हमले ने राजवंत को आवाक सी कर दिया और साथ ही एक हल्का सा मजा भी दिया। पर गुस्सैल नजरों से देखती हुई राजवंत ने मोहन से कहा, “ये क्या हरकत है मोहन? दिखाई नहीं देता क्या तुम्हें? हटो पीछे से!”
“ओहो! माफ करना सरदारनी जी, अंधेरे में दिखाई नहीं दिया, ये लीजिए दाना डालिए आप भैंस को।” मोहन ने शरारती मुस्कराहट होंठो पर लेकर राजवंत को देख कर कहा।
“पीछे हटो जल्दी से और बाल्टी नजदीक करो दूध निकालने के लिए।” राजवंत ने दाने का डिब्बा पकड़ती हुई ने फिर से कहा।
“बस-बस सरदारनी जी, 2 मिनट, मुश्किल से भैंस सील होने लगी है अब, वरना पहले तो मरने को दौड़ती थी।” मोहन ने अपने हाथों से हल्का सा चूतड़ों को सहलाते हुए पास खड़ी भैंस का बहन बनाया।
“जानती हूं मैं कौन सी भैंस की बात कर रहे हो तुम। जल्दी पीछे हटो वरना इस बार मार भैंस से नहीं बल्कि घर के झोटे से पड़ेगी।” राजवंत ने भी मोहन को इशारे में बात करके कहा। “कौन झोटा, हाहाहाहाहा, उसे कट्टा बछड़ा कहिए सरदारनी जी। झोटे के साथ मुकाबला मत करवाइए बेचारा कुचला जाएगा।” मोहन ने भी बात को समझ कर हंसते हुए कहा।
“अच्छा, बहुत हंसी आ रही है, एक लठ पड़ेगी ना जब, तब अकल ठिकाने आ जाएगी तेरी। फिर पता चलेगा के कौन झोटा है।” राजवंत ने जवाब देकर कहा।
मोहन ने भी राजवंत की लठ वाली बात सुन कर एक हल्का सा धक्का मारा और उसका खड़ा लुल्ला आगे को जाता हुआ सलवार के ऊपर से राजवंत की फुद्दी के होंठो पर जा लगा और उसकी सिसकी निकली।
“अगर वो सच में ही झोटा है तो फिर इस भैंस की आग को क्यो नहीं बुझा पाया सरदारनी जी? देखो तो कैसे इस परदेशी झोटे के आगे सील हुई खड़ी है।” मोहन ने आगे को झुक कर राजवंत के कान में हल्की आवाज में कहा।
राजवंत ने बात सुन कर पीछे मोहन को हल्की कोहनी से चोट मारी और साथ ही जवाब देती हुई बोली, “उस झोटे के बीज से गबरू जवान लड़का है एक, पता चलेगा जब तुझे घुटने तले दबाएगा।”
“हाय सरदारनी जी, पर मेरा तो मन इस भैंस को अपने नीचे दबाने का है।” मोहन ने अपने लंड पर हल्का सा दबाव देते हुए राजवंत से कहा।
राजवंत की भी सिसकी निकली और मजा लेती हुई बोली, “तो पहले जगह ढूंढ लो कोई, वरना तरसते रहो और सपने देखते रहो ऐसे ही।”
इस से पहले के मोहन कोई आगे जवाब दे पता उन्हें एक दस्तक सी सुनाई दी और दोनों झट से अलग हुए, मोहन दूसरी भैंस को देखने का बहाना बनाता हुआ दूसरी तरफ चल गया तो वहीं राजवंत बाल्टी उठा कर भैंस का दूध निकालने लगी।
मोहन के मन में अब राजवंत की बात घूमने लगी और उसे ये सोच लग गई कि आखिर गांव में ऐसी कौन सी जगह तलाश करे जहां पर वो बिना किसी डर से राजवंत के जिस्म का मजा से सके।