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पापा ने घड़े बनाना सिखाया-1 (Papa ne ghade banana sikhaya-1)

हेलो दोस्तों, मैं आपकी प्यारी ममता। फिगर 36-30-36, गोरी और मखमली बदन की कोई भी देख के पागल हो जाये।मेरी उम्र 29 साल है। मेरे दो बच्चे है और दोनों स्कूल जाते है। हम लोग पेशे से कुम्हार है और मेरे पापा अभी भी घड़ा बनाते है।

मेरे ससुराल में मैं अपने बच्चे और सास-ससुर के साथ रहती हूं। मेरे पति बाहर मे जॉब करते है और 3 महीने मे एक बार कुछ ही दिनों के लिए आते है। जब मेरे पति घर पर नहीं होते तो मैं अपने बच्चों को सास-ससुर के पास छोड़ कर मायके चली आती हूं।

मायके में सब कुछ अच्छा चल रहा है। पापा की घड़े की बिक्री अब बढ़ गई है, क्यूंकि इधर कुछ सालों से मैं भी अब घर के कामों में हाथ बटाने लगी हूं। त्योहारों के समय घड़े की बिक्री ज्यादा होती। तब मैं भी अपनी मां के साथ घड़े निकालती और ग्राहकों को देती। घर के पीछे खाली एक बड़ा सा दालान है। वहीं पर घड़े बनाने और बेचने का काम होता था। आस-पास के गांव वाले घड़े खरीदने खुद आते थे।

पापा ने मेरी मां को घड़े बेचने का काम दिया था और मुझे हिसाब लिखने का। पापा मुझे बहुत प्यार करते थे। वह हमेशा मुझे कहा करते थे, “मेरी बेटी लाखों में एक है, सुंदर सुशील और होशियार।”

मैं भी अपने पापा के पास उनके काम में हाथ बटाने चली आती थी। माँ, मुझे मना करती थी यहां आने को, लेकिन पापा बोलते, “अरे बेचारी अकेले घर मे क्या करेगी, रहने दो, इसका मन भी लगा रहेगा और यहां काम भी जल्दी होगा।”

फिर मां बोली कि, “अच्छा ठीक है तुम यहां मदद करो। मैं तनिक खेत से गायों के लिए चारा ले आती हूं।”

और मां हम दोनों को अकेले छोड़ कर चली गई। पापा चाक चलाने लगे और घड़े, मटके बनाने लगे। मै घड़े को धूप मे सूखने को रखती थी। फिर शाम घर चली आई।

शाम को मैं मां और पापा को खाना खिला रही थी। तब मां ने कहा, “बेटी आज तुमने अपने पापा की बड़ी अच्छी मदद की है। एक काम करना रोज दोपहर को उनकी मदद कर दिया कर। मैं तब तक गायों के लिए चारा लेकर आ जाया करूंगी!”

मैं अपनी सर झुका कर हां में मुंडी हिलाई। दोनों खाना खाकर सोने चले गए। दूसरे दिन जब मैं ढलान पर पहुंची तो देखी कि पापा चाक पर मिट्टी के घड़े बना रहे थे, और वह पसीने से भीगे हुए थे। 60 साल के उम्र मे भी पापा का बदन गठीला था, इसका कारण था इस उम्र में भी इतनी कड़ी मेहनत करना।

मैं अभी दरवाजे पर ही खड़ी थी, तभी पापा बिना देखे ही मुझे बोले, “बेटी अंदर भी आओगी या वहीं खड़ी रहोगी। मैं तो तुम्हारी पायलों की आवाज सुन तुम्हें पहचान लेता हूं।”

मैं लज्जा गयी और उनके पास आकर घड़े को धूप मे सुखाने लगी। धीरे-धीरे दिन बीतता गया और मैं पापा से खुलने लगी। पापा मुझे खूब प्यार करते थे, वे कभी मुझ पर गुस्सा नहीं करते थे। वहा गर्मी के कारण मुझे भी पसीना होने लगती थी। जब मैं अपनी साड़ी के पल्लू से पसीने पोंछती, तब पापा देख कर बोलते, “बेटी पसीने तुम्हारी रेशमी साड़ी से नहीं सुखेंगे, मेरी गमछी लो और अपने पसीने पोंछ लो।”

मैं उनकी गमछी लेकर अपने चेहरे की पसीने को पोछने लगी। इस दौरान पापा मुझे बड़े गौर से देख रहे थे!

उनके चेहरे पर भी पसीने थी, तब मैं पापा से बोली “पापा आपके माथे से भी पसीने बह रहे हैं, ”

पापा मुस्कुराते हुए बोले “बेटी इतनी गर्मी में पसीने तो होगी ही।”

फिर मैं बोली, “पापा आप कहो तो मैं पोंछ दू?”

पापा बोले, “अरे रहने दो बेटी, तुम क्यों परेशान होंगी?”

मै मुँह बनाते हुए उनके बिलकुल पास बैठ गयी और बोली, “एक तो आप मुझे बेटी भी कह रहे हो और मना भी कर रहे हो!” मैं उनके माथे से पसीने को खुद पोंछने लगी।

पापा अपनी आंखें बंद कर ली और मेरे बदन की खुशबु जो उस गमछी में थी वो सुगंध लेने लगे। फिर मैं उनके पास बैठ कर उन्हें घड़ा बनाते हुए देखने लगी। मैं उनको खड़ा बनाते देखते हुए यह भूल गई कि मेरी आंचल सीने से सरक चुकी थी, और मेरे बड़े गले की ब्लाउज से गोरी-गोरी चूचियाँ दिखने लगी‌थी। जब मेरी नजर पापा की नजर पर गई तो वह मेरे चूचियों को अपने कनखियों से देख रहे थे। मुझे अपने आप पर बहुत शर्म आई और मैं अपने सीने पर आंचल रख वहां से उठ कर जाने लगी।

पापा मुझे रोकते हुए बोले “क्या हुआ बेटी कहां जा रही हो।”

मुझे कुछ समझ नहीं आ रही थी कि मैं क्या बोलूं, तब पापा बोले, “क्या हुआ बेटी तुम्हें भूख लगी है क्या?”

मैं हड़बड़ाते हुए बोली, “नहीं पापा, बस ऐसे ही मुझे घर जाना है, कुछ काम है।”

पापा फिर पूछे, “ऐसा क्या काम है जो भागी जा रही है?”

मै शरमाते हुए बोली, “वो पापा मुझे जोर से सूसू आई है।”

मेरे इस बात से पापा भी झेप गए। आखिर मैं अब उनकी छोटी बच्ची नहीं थी, शादी-शुदा जवान बेटी थी उनकी।

पापा मुस्कुराते हुए बोले, “देख बेटी, बहुत धूप है, और लू भी चल रही है। कहां घर जाएगी, वहा आँगन मे जा नलका है, वहीं कर ले। पर्दा भी लगा हुआ है।

मैं शर्माती हुई आंगन में गई। नलका ठीक कोने में था और बोरे का ऐसे ही एक पर्दा लगा था जो कभी भी हवा से उड़ सकता था। मुझे बहुत जोर की सूसू लगी थी, तो मैं बिना सोचे समझे वहां जाकर अपनी साड़ी उठाई और पैंटी नीचे करके मूतने लगी। मेरी सूसू की धार इतनी तेज थी कि पापा के कानों तक आवाज जा रही थी। मैं अभी सूसू कर ही रही थी कि एक तेज हवा का झोंका आया और पर्दा गिर गया। मैं शर्म से अपनी सर झुकाए आंखें बंद कर ली और सूसू करती रही।

अपनी कनखियों से एक आँख खोल के देखी तो पापा इधर ही देख रहे थे। वह अपनी शादी-शुदा बेटी की गोरी-गोरी गांड को बड़े गौर से देख रहे थे। मेरा सूसू करना खत्म हुआ तो मैं उठी और अपने साड़ी को नीचे कर ली बिना पैंटी पहने। जब पापा की तरफ देखी तो वह अपने काम में व्यस्त थे।

मैं उनके पास गई तो बाबू जी ऐसे जता रहे थे जैसे उन्होंने कुछ देखा ही ना हो, वह कुछ जानते ही ना हो। पापा, “बेटी इन घड़ो को जरा धूप में रख दो सूखने के लिए।” मैं उन घड़ो को धूप में रखने लगी।

पापा बार-बार मेरी ओर ही देख रहे थे, उनकी देखने की आज नजरिया ही बदल गई थी। मुझे बहुत शर्म आने लगी मैं जल्द ही काम खत्म करके घर चली गई।

दोपहर बहुत ज्यादा हो गई थी मैं घर आकर लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी। लेकिन मेरी आंखों में आज नींद नहीं आ रही थी। बार-बार पापा की हरकत याद आ रही थी। मैं ना चाहते हुए भी बार-बार बाबू जी के बारे में ही सोच रही थी। वे जिस तरह मेरी चूची और गोरे-गोरे गांड को घूर रहे थे, उफ्फ्फ ये सब सोचते हुए मेरी चूत गीली होने लगी।

इसी तरह दो-तीन दिन और बीत गए और पापा का मेरे चूचियों को घूरना मुझे अच्छा लगने लगा। मैं अब जान-बूझ कर उनके सामने बैठ जाती है और उन्हें मटके बनाते हुए देखने लगती और इसी बीच अपनी आंचल को सरका कर उन्हें गोल-गोल गोरी गोरी चूचियों के दर्शन कराती।

फिर पापा थोड़ी देर के लिए अपने हाथ धोएं और बोले कि, “तू यही रूक, मैं थोड़ा पेशाब करके आता हूं। उनके मुंह से यह शब्द सुन कर मेरे दिमाग में ना जाने क्या उल्टी सीधी बातें चलने लगी। जब वे आंगन के कोने में नलके के पास मूतने लगे तब उनकी आवाज मेरे तन बदन में सिहरन पैदा करने लगी।

फिर वे मूत कर आए और थोड़ा देर बैठ कर आराम करने लगे। तब मैं उनके जगह चाक पर बैठी और चला कर घड़े बनाने की कोशिश करने लगी, पर मुझसे बन ही नहीं रही थी।

पापा मुझे देख कर हंस रहे थे, लेकिन मैं कोशिश करना नहीं छोड़ी। तभी पापा मेरे पीछे आकर मेरे हाथों को सहलाते हुए वह भी अपने हाथों को माटी से गीला किये और मुझे पकड़ कर घड़े बनाना सिखाने लगे। मैं पूरी तरह से उनके बाहों में थी और उनका गरम सांस मेरी गर्दन के पास से पूरे शरीर मे गर्मी पैदा कर रही थी।

मेरे पूरे बदन को अपनी बाहों में कस के मुझे घड़े बनाना सिखा रहे थे। उन्होंने मेरे हाथ पकड़ कर एक बहुत ही सुंदर घड़ा बना दिया, मैं यह देख कर उछल पड़ी। “बाबू जी यह देखो कितना सुंदर घड़ा बना दी मैंने।”

“हां-हां, मेरी बेटी के हाथों में तो जादू है।” और यह कह कर पापा ने मेरे गालों पर हलकी मिट्टी लगा दी। मैं थोड़ा सा गुस्सा दिखाते हुए बाबू जी से बोली, “आपने मेरे गालों को मिट्टी लगा दिया। अब मैं नहीं छोडूंगी।” और मैं उनके गालों पर अपनी गाल रगड़ कर मिट्टी उनके गाल पर लगाने लगी! इस दौरान पापा का लंड खड़ा होकर मेरी गांड की दरारों में घुसने की कोशिश कर रहा था।

जब मुझे एहसास हुआ कि कुछ ज्यादा ही हो रहा था, तो मैं उठ कर अपने कपड़े ठीक की और अपने हाथ को पानी से धोकर घर चली आई।

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