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दीदी का देवर-1 (Didi Ka Devar-1)

मेरा नाम रिया पंडित है। मैं अभी 22 साल की हूं और BA फर्स्ट ईयर में पढ़ाई कर रही हूं। कॉलेज जाते ही मेरा एक बॉयफ्रेंड बन गया जो दिखने में बहुत ही ज्यादा स्मार्ट था। मैं उसे अपना दिल दे बैठी। हम दोनों रात-रात भर बात करते, और वह मुझसे बहुत ही सेक्सी बातें करके मुझे गीली कर देता था।

और इसी तरह वो एक मौका पाकर मुझे Oyo में ले जाकर कई बार चुदाई भी कर दिया। उसकी चुदाई के बाद से मेरी दोनों चूचियां पहले से ज्यादा बड़ी और गांड मोटी हो गई। मैं पहले से ज्यादा खूबसूरत और जवान दिखने लगी। अब लोगों की नज़र में मैं एक जवान माल हो गई थी।

मेरे घर में मैं, मेरी दीदी, मेरा भाई और मम्मी-पापा रहते हैं। मेरी दीदी की शादी हो चुकी है और उनका एक 2 साल का बेटा भी है।

जीजू बहुत ही अच्छे हैं। उनकी बहुत ही अच्छी कंपनी में एक जॉब लगी है, और वह ज्यादातर काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं। दीदी घर पर अपने देवर और सास-ससुर के साथ रहती है।

दीदी के देवर का नाम विजय है। वह मेरी ही उम्र का रहा होगा और वह भी अभी पढ़ाई करता है। वह बहुत ही ज्यादा शरारती है। दीदी की शादी में जब वह आया था तब उसकी नज़र मेरे ऊपर ही थी, और वह मेरे पास आने का बहाना खोजता रहता था। जब भी उसे मौका मिलता, वह मुझे टच करने की कोशिश जरूर करता था।

बात कुछ महीने पहले की है, जब होली बीती थी। तब दीदी का फोन आया कि उनकी तबीयत खराब थी। फिर मम्मी पापा ने मुझे दीदी के पास जाने को बोल दिया, क्योंकि उनके पास जीजू भी नहीं थे और उनके घर पर सास-ससुर दीदी और देवर ही थे।

मैं भी जाने के लिए तैयार हो गई। तब मुझे लेने के लिए विजय मेरे घर आया था। विजय मुझे देखते ही मुस्कुराने लगा। वह तो मेरे पास आने का मौका खोजता रहता था, और उसे आज बहुत ही अच्छा मौका मिला था। वह मुझे बाइक पर बैठा कर अपने घर ले जा रहा था, और बाइक काफी रफ तरीके से चला रहा था। जिसकी वजह से मेरी छाती उसकी पीठ में दब रही थी। मैं ना चाहते हुए भी अपना सारा भार उस पर दे रही थी।

मैं वहां पहुंच कर सबसे पहले अपने दीदी से मिली। दीदी मुझे देखते ही बहुत खुश हुई। फिर उनके सास-ससुर से मिली, और फिर दीदी को आराम करने के लिए बोल कर मैं उनके यहां का सारा कम-काज करने लगी। जब मैं काम कर रही थी, तब दीदी का देवर आया। वो मेरे पास आकर मुझे छेड़ने लगा।

मैं: विजय प्लीज मुझे काम करने दो ना। कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा? तुम जाओ यहां से।

विजय कातिल मुस्कान के साथ मुझे बोला-

विजय: अरे भैया की साली पर तो छोटे भाई का पूरा हक होता है। अब क्या मैं अपना हक भी ना लूं?

यह कहते हुए वह मुझे पीछे से अपनी बाहों में पकड़ लिया। उसका मोटा सा लंड मेरी गांड पर टच होने लगा। मैं अब मदहोश हो रही थी।

मैं: प्लीज विजय छोड़ दो कोई देख लेगा तो अनर्थ हो जाएगा।

विजय: ऐसे कैसे छोड़ दूं साली साहिबा। होली तो आपके साथ खेल नहीं पाया, पर कोई बात नहीं। अब होली के बाद आपके साथ कुछ मस्ती तो कर ही सकता हूं।

और यह कहते हुए उसने मेरी गर्दन के पास चूम लिया। मेरा पूरा बदन सिहार उठा। मैंने उसे दूर हटाने की कोशिश की, पर वह नहीं माना और मुझे लगातार किस्स करने लगा। फिर मैंने उसे एक जोर का धक्का देकर हटा दिया और अपना काम करने लगी।

तभी किचन की ओर दीदी आने लगी तो वह वहां से भाग गया, और फिर मैं और दीदी दोनों मिल कर जल्दी से काम खत्म कर दिए। फिर मैंने दीदी और सभी लोगों को खाना खिलाया, और उसके बाद दीदी के साथ ही सो गई। इसी तरह कई दिनों तक हमारा चलता रहा, और दीदी अब ठीक हो गई थी।

फिर मैं अपने घर जाने की जिद करने लगी तो दीदी बोली: अभी-अभी तो ठीक हुई हूं। थोड़े दिन और रुक जा, उसके बाद चली जाना।

मेरे जाने की बात विजय भी सुन चुका था और वह मुझे जाने नहीं देना चाहता था। फिर दीदी उठ कर अपने कमरे में चली गई कुछ काम करने, और मैं भी बाहर जाने लगी। तभी विजय मेरे पास दौड़ता हुआ आया और मुझे अपनी बाहों में पकड़ लिया। मैं अपने आप को उससे छुड़ाने लगी, पर वह मुझे छोड़ने को तैयार नहीं था। मैं उससे बोली-

मैं: विजय छोड़ो, कोई आ जाएगा, कोई देख लेगा।

विजय: आज कोई नहीं आने वाला रिया। तुम रोज-रोज यही बहाना बना कर मुझसे भाग जाती हो।

वह मुझे अपनी बाहों में कस कर पकड़े हुए था, जिससे उसका मोटा लंड मेरी गांड को टच हो रहा था। फिर दरवाजे के पास ही खड़ा करके मेरी गर्दन और पीठ को चूमते हुए वह मेरे चूचियों तक जा पहुंचा। मैं उसके इस तरह से चुंबन से मदहोश होने लगी, और मेरी आंखें बंद होने लगी। वह अपना हाथ अब मेरे चिकने पेट पर चलाने लगा। मेरे कमीज को ऊपर उठा कर उसने मेरी नाभि के आस-पास चिकने पेट पर हाथ फिराना शुरू कर दिया।

मुझे डर भी लग रहा था कि कोई आ ना जाए, पर वह था कि हटने को तैयार ही नहीं था। वह लगातार मेरे गर्दन और मेरी चूचियों के ऊपरी हिस्से को चूमने लगा। मैं अपनी आंखें बंद करके उसके बालों को सहलाने लगी।

वह अब अपनी हद से ज्यादा आगे बढ़ रहा था। उसका हाथ धीरे-धीरे मेरी सलवार में जाने लगा था। मैंने झट से उसे धक्का देकर पीछे किया, और वहां से भाग गई। वह भी मेरे पीछे-पीछे भागने लगा। मैं भागते हुए जानवरों वाले घर में घुस गयी। वह भी मेरे पीछे-पीछे भागते हुए आया और जानवरों वाले घर में आते ही उसने दरवाजे को बंद कर दिया।

फिर वह मेरे पास आया और मुझे अपनी गोद में उठा कर पास पड़े घास के पास मुझे लिटा कर वह मेरे ऊपर आ गया, और मेरे गाल और गर्दन को चूमना शुरू कर दिया। उसके इस तरह के चुंबन से मेरा पूरा बदन सिहारने लगा। उसके होंठ मेरे कोमल बदन को छूते तो मेरा रोम-रोम सिहार उठता। मैं चुप-चाप बैठ कर उसकी पीठ और बाल को सहलाते हुए अपने गाल और होंठ को चुम्मा रही थी।

फिर उसने मेरे कोमल होंठों पर अपने होंठ रख, मेरे होंठ को चूसना शुरू कर दिया। मैं भी उसका साथ देने लगी, और उसके होंठों को चूसने लगी। वह मेरे होंठों को चूसते हुए मेरे बालों को सहला रहा था। मैं भी उसका संपूर्ण साथ दे रही थी।

फिर उसने मेरी कमीज को उतार कर अलग कर दिया, और मैं अब उसके सामने सिर्फ ब्रा और सलवार में थी। वह मेरे कोमल बदन के हर हिस्से को चूमने लगा, और ब्रा के ऊपर से ही चूचियों को काटने लगा। मैं तो जैसे मरी जा रही थी। उसकी हर एक हरकत से मेरी आहें निकल रही थी।

फिर वह अपने ऊपर का टी-शर्ट निकाला और अपने नंगे बदन को मेरी ब्रा को चूचियों से अलग करके उस पर रगड़ना शुरू कर दिया। हम दोनों के बदन आपस में रगड़ कर गर्म हो रहे थे, और विजय मेरे होंठों को चूस रहा था, और मैं उसकी नंगी पीठ को सहला रही थी।

फिर वह उठा और सलवार के नाड़े को खींच कर मेरी सलवार निकाल दी, और उसके बाद पैंटी भी निकाल दी। फिर वह मेरे गोरी जांघो को चूमते हुए, मेरे टांगों को फैला कर, अपनी जीभ मेरी बुर में लगा कर चूसने लगा। मेरी बुर पानी छोड़ कर गीली हो चुकी थी।

थोड़ी देर बुर चूसने के बाद वह मेरे ऊपर आया, और अपनी पैंट को निकाल कर अपने लंड को हिलाते हुए मेरी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया। मैं उसकी इस हरकत से पूरी तरह से मदहोश हो गई और अपने आप को उसके हवाले करके उसे गले लगा ली।

वह धीरे-धीरे अपने लंड को मेरे बुर के भीतर घुसाने लगा। जैसे-जैसे उसका लंड मेरे बुर में जाता है मेरी चीखे निकलने लगती। पहले से मेरी बुर चुदी हुई थी, तो ज्यादा तकलीफ नहीं हुई, और उसका मोटा लंड कुछ ही देर में मेरे बुर के भीतर गोते लगा रहा था। मैं अपनी आंखें बंद करके उसके गले से लगी हुई थी। वह धीरे-धीरे अपनी गांड हिला कर मेरी चुदाई करना शुरू कर दिया।

मैं उसकी पीठ और बालों को सहला रही थी, और वह मेरे गाल और होंठों को चूमते हुए धक्के लगा कर चुदाई कर रहा था। हम दोनों घास पर लेटे हुए चुदाई कर रहे थे। जानवर वाले कमरे में बंद थे, तो किसी के आने की कोई दिक्कत थी नहीं, तो हम दोनों खुल कर मजे में चुदाई कर रहे थे। मैं अपनी टांगों को उसकी कमर में लपेट ली थी और वह धक्के लगातार लगाये जा रहा था।

हम दोनों की सांसे बहुत तेज चल रही थी। हम दोनों एक-दूसरे में लिपटे हुए थे, और वह मेरी बुर में धक्के लगाए जा रहा था, और हम दोनों के होंठ एक-दूसरे से मिले हुए थे। उसकी रफ्तार अब दोगुनी हो चुकी थी। ऐसा लग रहा था कि किसी भी वक्त उसका पानी मेरे बुर में निकल जाएगा। फिर थोड़ी ही देर में वह अपने लंड को चोदते हुए मेरे बुर से बाहर खींचा, और सारा लंड का पानी मेरे ऊपर गिरा दिया।
हम दोनों कुछ देर ऐसे ही एक-दूसरे से लिपटे रहे। उसके बाद उठे और अपने कपड़ों को ठीक किया, और फिर घर चले आए।

अगला भाग पढ़े:- दीदी का देवर-2

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