पड़ोसन बनी दुल्हन-53

This story is part of the Padosan bani dulhan series

    माया ने जो मेरे प्रश्न जवाब दिया उस जवाब सुन कर मैं हैरान रह गयी। माया ने कहा, “दीदी तुम नहीं जानती की मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ। देखिये, तुमने मुझे अनाथ से सनाथ बनाया, तुमने मुझे अपनी नौकरानी से जेठानी बनाया। तुमने मुझे विधवा से सधवा बनाया।

    अब मेरी बारी है तो मैं तुम्हें एक बच्चे लिए तड़पता देखने के बजाये माँ बनते हुए देखूं। क्या यह मेरा सौभाग्य नहीं है? दीदी, अगर आपने मेरे पति से चुदवाया तो आपके साथ तो मेरे सम्बन्ध और भी घनिष्ठ हो जाएंगे।

    आप मेरी दीदी से मेरी देवरानी तो बन ही गयी हो, अब मेरी देवरानी से मेरी सौतन भी बन जाओगी। इसे मेरा दुर्भाग्य मत समझो। यह तो मेरा सौभाग्य होगा। अगर सौतन बनी तो फिर तो आप मेरी सगी बहन बन जाओगी। हमारे बिच में कुछ भी गोपनीय नहीं रहेगा।”

    मैं माया को देखती ही रही। माया की आँखों में एक दृढ निश्चय और मेरे प्रति ममता का भाव साफ़ झलक रहा था।

    माया ने मेरे और करीब आ कर मेरे कानों में फुसफुसाते हुए कहा, ” दीदी सच बताऊँ? मैं तो इंतजार कर रही हूँ की काश यह सब गोपनीयता ना हो और एक रात ऐसी आये जब मेरे पति और आपके जेठजी से चुदवाने के लिए मैं ही आपको हमारे बेडरूम में ले जाउं और आपके कपडे उतार कर आपको उनके सामने नंगी कर उनका लण्ड अपने हाथ में ले कर आपकी चूत पर रख कर मेरे पति से आपको चोदने के लिए कहूँ।

    वह दिन मेरे लिए कितना सौभाग्य का दिन होगा? यह सोच कर ही मेरा अंग अंग रोमांच से काँप उठता है। अगर हो सके तो मैं आपको मेरे पति और आपके जेठजी से एक बार नहीं बार बार चुदवाकर आपको भी वही उन्माद भरा आनंद दिलवाना चाहती हूँ जिसे मैं आपकी बदौलत एन्जॉय कर रही हूँ। मैं आप दोनों की जोड़ी देख कर बड़ी ही खुश हो जाउंगी। मेरे पति के चोदने से आप अगर खुश होंगी, और वह भी खुश होंगे तो मेरा जीवन सफल हो जाएगा।”

    माया की यह बड़ी बात सुन कर मेरा मन किया की मैं माया के पाँव छू लूँ। पर मैंने खड़े हो कर माया को अपनी बाँहों में भर लिया और कहा, “माया तुम मेरी बहन ही नहीं, मेरी जान हो। यह सब बात कह कर तुमने मुझे अपनी ग़ुलाम बना लिया है। मुझे नहीं पता की मैं क्या कहूं और कैसे मेरी कृतज्ञता जाहिर करूँ?”

    माया ने मेरी बात को अनसुनी करते हुए कहा की अब मैं निश्चिन्त हो कर अपना काम करूँ। आगे जो करना है माया करेगी। माया ने कहा की उसको इस काम को अंजाम देने के लिए कुछ तैयारी करनी पड़ेगी। कुछ दिन चाहिए। हो सकता है एकाध हफ्ता लग जाए।

    मुझे समझ नहीं आया की माया ऐसा क्या जादू करेगी की मैं जेठजी से चुद भी जाऊं और जेठजी को पता भी ना लगे। पर शायद कहीं ना कहीं मुझे माया की सरलता का जादू और उसके स्त्री चरित्र पर विश्वास था जिसके कारण मुझे लगा की हो सकता है माया यह नामुमकिन को मुमकिन कर पाए।

    माया में एक खूबी थी जो हर पति या प्रेमी उसकी पत्नी या प्रेमिका में चाहता है की हो। हमारी सभ्यता में उसे रम्भागुण कहते है। आदर्श पत्नी के लिए संस्कृत में एक श्लोक है जो मैं निचे प्रस्तुत कर रहा हूँ।

    कार्येषु दासी, करणेषु मंत्री, भोज्येषु माता, शयनेषु रम्भा ।

    धर्मानुकूला क्षमया धरित्री, भार्या च षाड्गुण्यवतीह दुर्लभा ॥

    गृहकार्य में दासी, कार्य प्रसंग में मंत्री, भोजन कराते वक्त माता, रति प्रसंग में रंभा, धर्म में सानुकुल, और क्षमा करने में धरित्री माने धरती सामान हो। इन छे गुणों से युक्त पत्नी मिलना दुर्लभ है ।

    इस श्लोक में एक शब्द है “शयने शु रम्भा।” कहते हैं की देवलोक में रम्भा एक अप्सरा है। उसे हर कोई देवता चाहता है क्यूंकि वह जब किसी के साथ भी कामक्रीड़ा करती है तो वह अपनी अदाओं और कामुक कारनामों से अपने सहशैया पुरुष का मन जित लेती है। माया में भी यह खूबी थी।

    माया मुझे बताती रहती थी की मेरे जेठजी को चुदाई में आनंद का अतिरेक मिले इस लिए वह नयी नयी अदाएं सीखती थी और नए नए तरीके ढूंढती रहती थी।

    हमारे मोहल्ले में कुछ महिलायें थीं जिनके साथ मैं और माया कभी मंदिर तो कभी बाज़ार जाया करती थी, कभी त्यौहार भी करती थी। उनमें से एक दो से माया कुछ ज्यादा करीब थीं। कई बार लडकियां भी अपनी ख़ास सहलियों से अपने निजी अनुभव और मन की बात शेयर करतीं हैं।

    माया उन सहेलियों से बातें करती रहती थी की एक मर्द की अपनी प्रेमिका से या पत्नी से चुदाई की रति क्रीड़ा में क्या अपेक्षाएं होतीं हैं। कैसे एक औरत ऐसा कुछ करे जिससे उसके प्रेमी को सबसे अधिक सुख मिले। माया मुझसे भी कई बार यह सब पूछती रहती थी।

    मैं माया को कभी नेट में देख कर तो कभी मेरे अपने अनुभव से उसका मार्गदर्शन करती रहती थी। मुझे माया की वह बात बड़ी पसंद थी। अगर पति और पत्नी एक दूसरे को ख़ुशी दें और चुदाई में अलग अलग तरीके से उत्तेजना और उत्साह ला पाएं तो दाम्पत्य जीवन काफी रसमय और टिकाऊ हो सकता है।

    जब मेरे जेठजी माया की कामुक अदाओं से उत्तेजित हो कर माया की ऐसी तगड़ी चुदाई करते जैसे वह उनकी सुहाग रात हो तभी माया ख़ुशी से झूम उठती और अगली सुबह मौक़ा मिलते ही मेरे पास आकर मुझे पिछली रात की कहानी बता देती। इस मायने में माया मुझे जैसे मेरी छोटी बहन या बेटी हो ऐसा कई बार महसूस होता।

    चुदाई के पहले, चुदाई दरम्यान और जब भी एकांत और सही मौक़ा मिले तब कपल्स का एक दूसरे से चुदाई के बारे में अपनी कल्पनाएं, तृष्णाएं और तरंगी इच्छाएं सांझा करना भी कामशास्त्र का एक जरुरी अंग है। अपने पति या पत्नी की ह्रदय के कोने में दबी छिपी हुई कामुक इच्छाओं को जागरूक कर उनका इस्तेमाल कर उनसे अपने दाम्पत्य जीवन को रसमय बनाना एक कला है।

    शादीशुदा कपल्स शादी के कुछ सालों बाद अपने पार्टनर से ऐसी और दूसरी रसिक बातें करने में या तो झिझकते हैं या फिर उसमें कोई दिलचश्पी नहीं लेते और दाम्पत्य जीवन धीरे धीरे नीरस और उबाऊ और बोरिंग हो जाता है। चुदाई भी एक आवश्यक आपदा समान बोरिंग हो जाती है।

    कपल्स को दाम्पत्य जीवन की रक्षा करने के लिए एक दूसरे के प्रति संवेदनशील रहना और चुदाई की क्रिया को रसमय बनाना आवश्यक है। माया इस बात को भलीभाँति समझती थी।

    वैसे तो मेरे जेठजी किसी पार्टी में जाते नहीं थे। पर माया को एक बार मेरे जेठजी एक पार्टी में ले गए। वास्तव में तो उस पार्टी में उनको मजबूरी में जाना पड़ा। वह पार्टी जेठजी के किसी पुराने दोस्त ने जेठजी के ही सम्मान में दी थी। जब माया जेठजी के उनके दोस्त और उसकी पत्नी से मिली तो उनकी बात सुन कर वह आश्चर्यचकित सी रह गयी।

    पैसों की किल्लत होते हुए भी मेरे जेठजी ने उस दोस्त को उसके बुरे समय में ऐसी मदद की थी की अगर उस समय जेठजी ने वह मदद ना की होती तो वह दोस्त अपनी पढ़ाई नहीं कर पाता। उनका दोस्त आगे की पढ़ाई करने के लिए विदेश स्कालरशिप के सहारे चला गया था। वह पढ़ कर विदेश में ह्रदय का एक नामी सर्जन बन चुका था और बहुत सारे पैसे कमा रहा था।

    जेठजी तो उस बात को भूल गए थे, पर जेठजी का दोस्त जेठजी का वह अहसान नहीं भुला था। जब वह विदेश से वापस आया तो उसने जेठजी के सम्मान में एक पार्टी रखी और मेरे जेठजी और माया को ख़ास न्यौता दिया।

    जेठजी का दोस्त काफी रंगीले मिजाज़ का था। उस पार्टी में दोस्त ने कुछ और दोस्तों को बुलाया और कुछ बार डांसरों को बुला कर डिस्को डांस का भी प्रोग्राम रखा था। पार्टी में कुछ लडकियां कैबरे डांस कर रहीं थीं। जेठजी की इजाजत लेकर जेठजी के दोस्त ने माया को उसके साथ डांस करने के लिए आमंत्रित किया।

    जेठजी के बार बार आग्रह करने पर मज़बूरी में शर्माती हिचकिचाती माया डांस करने के लिए तैयार हुई। जेठजी के दोस्त ने माया की कमर में हाथ डालकर माया को डांस के स्टेप्स सिखाये और कुछ देर माया के साथ डांस किया।

    माया डरी हुई झिझकती बार बार जेठजी की और देखती रहती थी की कहीं जेठजी को बुरा ना लग जाये। पर बुरा लगना तो दूर, जेठजी तालियां बजा कर माया की हौसला अफजाई करते रहे। मेरे जेठजी को भी उस दोस्त की पत्नी ने अपनी कमर के इर्दगिर्द हाथ डलवा कर अपना हाथ जेठजी की कमर में डालकर डांस करना सिखाया। माया ने पहली बार अपने पति को किसी औरत के साथ डान्स करते हुए देखा था। शायद जेठजी पहली बार ही किसी औरत के साथ नाच रहे थे।

    माया को कतई भी अंदाज नहीं था की उसके पति किसी ऐसे कार्यक्रम में इस तरह आज़ाद पंछी की तरह हिस्सा ले सकते थे। एक लगभग नग्न लड़की तो जेठजी की गोद में ही बैठ कर कामुक अदाए कर जेठजी को उकसा रही थी। यह अनुभव माया और जेठजी दोनों के लिए अनूठा था।

    इस डांस ने जेठजी और माया के जीवन में एक अद्भुत परिवर्तन लाने का काम किया। जेठजी और माया रात को वापस आये तो जेठजी ने उस पार्टी में माया के डांस की भूरी भूरी तारीफ़ की।

    जेठजी ने माया को कहा की उन्होंने जिंदगी में बड़ा ही संघर्ष किया था पर माया का उनकी जिंदगी में आने के बाद अब उन्हें माया के साथ जिंदगी को पूरा एन्जॉय करने की इच्छा थी। माया को तब यकीन हो गया की उसके पति चुदाई के मामले में उतने भी रूढ़िवादी नहीं थे जितना सब सोचते थे। माया को लगा की अगर मौक़ा मिले तो उसके पति चुदाई में अलग अलग तरिके के प्रयोग करने के लिए तैयार भी हो सकते थे।

    माया के यह समझ लेने के बाद माया और जेठजी की काम क्रीड़ा में काफी परिवर्तन आने लगा।

    उस पार्टी ने माया को भी कामक्रीड़ा के कुछ नए सोपान सिखाये। कभी हफ्ते के अंत में तो कभी जब दोनों का मूड रूमानी हो या फिर जब भी मौक़ा मिलता, जेठजी के सामने चुदाई से पहले माया अच्छी तरह बनठन कर, आभूषण पहने हुए संगीत लगा कर संगीत की लय पर थिरकते हुए एक कैबरे की नर्तकी की तरह कामुक अदाएं करते हुए, एक के बाद एक वस्त्र निकालते हुए अपनी पतली कमर, अपने कूल्हे, चूँचियाँ, घुंघराले घने बाल, अपनी जांघें बल्कि अपने पुरे कामुक बदन को इस तरह लचकाती, मटकाती और लहराती थी की कई बार तो जेठजी माया को निर्वस्त्र होते हुए देखते हुए ही झड़ जाते थे।

    कभी इस तरह नृत्य और अदाएं करते हुए जेठजी की गोद में बैठ कर उनके लण्ड से खेलना या फिर जेठजी के कुर्ते में हाथ डाल कर उनके बदन को प्यार से सहलाना और ऐसी अनेकानेक कामकलाप कर माया जेठजी को इतना उन्मादित कर देती थी की जेठजी अपने सख्त खड़े हुए फौलादी लंड को सहलाते हुए बदहवास बन कर माया को ही देखते रहते थे।

    इसके बाद नंगी हो कर जेठजी से चुदवाते हुए माया प्यार से अदाएं करते हुए अपनी आँखों की पलकों को मटकाती हुई जेठजी की और ऐसे कटाक्ष भरी नज़रों से देखती की जेठजी माया को इस कदर बेतहाशा चोदते जैसे माया किसी और की बीबी हो।

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