Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 68

This story is part of the Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din series

    यह प्यार दीवाना पागल है। ना जाने क्या करवाता है। कभी प्यारी को खुद ही चोदे, कभी औरों से चुदवाता है।

    जस्सूजी ने पहले सुनीता के कपाल पर और फिर सुनीता के बालों पर, नाक पर, दोनों आँखों पर, सुनीता के गालों पर और फिर होँठों पर चुम्बन किया। जस्सूजी सुनीता के होँठों पर तो जैसे थम ही गए। सुनीता के होँठों के रस से वह रसपान करते थकते नहीं थे। जस्सूजी ने सुनीता को अपनी बाँहों में ले लिया और सुनीता के होँठों से अपने होँठ कस कर भींच कर बोले, “सुनीता, मैं तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूँ। क्या तुम मुझे अपना सर्वस्व अर्पण करने के लिए तैयार हो?”

    सुनीता बेचारी बोल ही कैसे सकती थी जब उसके होँठ जस्सूजी के होँठों से जैसे सील ही गए हों? फिर भी सुनीता ने अपनी आँखें खोलीं और जस्सूजी की आँखों से ऑंखें मिलाई और और अपना सर ऊपर निचे हिला कर उसने अपनी सहमति जताई। सुनीता की आँखों में उस समय उन्माद छाया हुआ था। आज वह अपने पति के सामने अपने प्रियतम से प्यार का ना सिर्फ इजहार करने वाली थी बल्कि अपने प्यार को अपने पति से अधिपत्य (ऑथॉरिज़ेशन) भी करवाना चाहती थी। सुनीता समझ गयी थी की उस दिन उसे जस्सूजी उसके पति के देखते हुए चोदेंगे।

    सुनीता के पति सुनीलजी की ना सिर्फ इसमें सहमति थी बल्कि उनकी इच्छा से ही यह मामला यहाँ तक पहुँच पाया था। सुनीता जब जस्सूजी के चुम्बन से फारिग हुई तो उसने जस्सूजी और अपने पति को अपनी दोनों बाँहों में लिया। सुनीता की एक बाँह में उसके पति थे और दूसरे बाँह में जस्सूजी।

    सुनीता ने दोनों की और बारी बार से देख कर मुस्करा कर कहा, “हालांकि मैं एक औरत हूँ शायद इसी लिए मैं आप मर्दों की एक बात समझ नहीं पायी। वैसे तो आप लोग अपनी बीबियों पर बड़ा मालिकाना हक़ जताते हो। उसे कहते हो की ‘मैं तुम्हारे ऊपर किसी और की नजर को बर्दाश्त नहीं करूँगा।’ तो फिर कैसे आप अपनी प्यारी पत्नी को किसी और के साथ सांझा कर सकते हो? किसी और के साथ कैसे शेयर कर सकते हो? किसी और को अपनी पत्नी के साथ सम्भोग करने की इजाजत कैसे दे सकते हो ?”

    सुनीलजी ने जब यह सूना तो वह भी मुस्करा कर बोले, “मैं अपनी बात करता हूँ। इस के तीन कारण है। पहला, मैंने अपने जीवन में कई परायी स्त्रियों को चोदा है। जब हम एक ही तरह का खाना रोज रोज घरमें खाते हैं तो कभी कभी मन करता है की कहीं बाहर का खाना खाया जाए। तो पहली बात तो विविधता की है। मैं तुम्हें बहुत बहुत चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ की तुम भी पर पुरुष सम्भोग का आनन्द उठाओ। किसी दूसरे लण्ड से चुदवाओ और महसूस करो की कितना आनंद आता है।

    दूसरी बात यह है, की मैं जानता हूँ की मेरी पत्नी, यानी की तुम जब चुदाई करवाती हो तो मुझे कितना आनंद देती हो। मैं जस्सूजी को बहुत पसंद करता हूँ। तुम भी जस्सूजी को वाकई में बहुत प्रेम करती हो। तो मैं चाहता हूँ की तुम जस्सूजी के कामातुर प्यार का और उनके मोटे कड़क लण्ड का अनुभव करो। अपने प्यारे से चुदवा कर कैसा अनुभव होता है यह जानो।

    और तीसरा कारण यह है की मुझे जस्सूजी से कोई भी खतरा नजर नहीं आता। जस्सूजी शादीशुदा हैं। अपनी पत्नी को खूब चाहते हैं और वह तुम्हें मुझसे कभी छीन लेने की कोशिश नहीं करेंगे। मैं कबुल करता हूँ की मैं खुद जस्सूजी की बीबी ज्योति से बड़ा ही आकर्षित हूँ। हमारे बिच शारीरक सम्बन्ध भी हैं। और इस बात का पता शायद आप और जस्सूजी को भी है।

    सुनीता ने अपने पति की बात स्वीकारते हुए कहा, “जस्सूजी एक तरह से मरे उपपति होंगे। आप मेरे पति हैं, तो मेरे उपपति जस्सूजी हैं।”

    फिर सुनीता ने जस्सूजी की और देख कर कहा, “यह मत समझिये की उपपति का स्थान छोटा है। उपपति का स्थान बिलकुल कम नहीं होता। पति पत्नी के अधिकृत पति हैं। पर उपपति पत्नी के मन में सदैव रहते हैं। पति होती है पति के साथ, पर मन उसका उपपति के साथ होता है। कुछ नजरिये से देखें तो पति से उपपति का स्थान ज्यादा भी हो सकता है।”

    फिर अपने पति की और देखते हुए सुनीता ने कहा, “आप मेरे लिए दोनों ही अपनी अपनी जगह पर बहुत महत्त्व पूर्ण हैं। कोई कम नहीं। एक ने मेरे जीवन को सँवारा है तो दूसरे ने मुझे नया जीवन दिया है।”

    सुनीता ने अपने पति के लण्ड पर अपना हाथ रखा। उसने पीछे हाथ कर पति के लण्ड को अपनी उँगलियों में पकड़ा। दूसरे हाथ से सुनीता ने जस्सूजी के पयजामे पर हाथ फिरा कर उनका लण्ड भी महसूस किया। जस्सूजी का लण्ड कड़क नहीं हुआ था, पर सुनीलजी का लण्ड ना सिर्फ खड़ा हो कर फनफना रहा था बल्कि अपने छिद्र छे रस का स्राव भी कर रहा था।

    सुनीता ने जस्सूजी को अपना हाथ बार बार हिलाकर पयजामा निकालने का इशारा किया। जस्सूजी ने फ़ौरन पयजामे का नाडा खल कर अपने पायजामे को बाहर निकाल फेंका। जस्सूजी अब पूरी तरह नंगे हो चुके थे।

    इस तरह उस पलंग पर तीन नंगे कामातुर बदन एक दूसरे से सट कर लेटे हुए थे। सुनीलजी पलंग पर बैठ गए और जस्सूजी की और देखने लगे। जस्सूजी कुछ असमंजस में दिखाई दिए। सुनीलजी ने जस्सूजी का हाथ पकड़ा और उन्हें खिंच कर सुनीता की दो टाँगों की और एक हल्का धक्का मार कर पहुंचाया। जस्सूजी बेचारे इधर उधर देखने लगे तब सुनीलजी ने जस्सूजी का सर हाथ में पकड़ कर अपनी बीबी की दो टांगों के बिच में घुसाया।

    सुनीता ने अनायास ही अपनी टांगें चौड़ी कर दीं। जस्सूजी सुनीता की चौड़ी टाँगों के बीच घुसे। सुनीता की रसीली चूत को देखते ही उनका लण्ड कड़क हो गया। सुनीता अपनी चूत हमेशा साफ़ रखती थी। जस्सूजी ने अपनी हथेली से सुनीता की चूत के सहलाना शुरू किया। जस्सूजीका हाथ छूते ही सुनीता की चूत में से रस रिसना शुरू हो गया।

    जस्सूजी का आधा खड़ा लण्ड देखते ही ना सिर्फ सुनीता की बल्कि सुनील जी की आँखें भी फटी की फटी रह गयीं। सुनीता ने तो खैर जस्सूजी का लण्ड भली भाँती देखा था और अपनी चूत में लिया भी था। पर सुनीलजी ने जस्सूजी का लण्ड इतने करीब से पहली बार देखा था।

    ना चाहते हुए भी सुनीलजी का हाथ आगे बढ़ ही गया और उन्होंने जस्सूजी का खड़ा मोटा लण्ड अपनी हथेली में उठाया। काफी भारी होने क बावजूद जस्सूजी का लण्ड काफी मोटा और लंबा था। उस दिन तक सुनीलजी को अपने लण्ड के लिए बड़ा अभिमान था। वह मानते थे की उनका लण्ड देखकर अच्छी अच्छी लडकियां गश्त खा जाती थीं।

    उन्हें पता तो था ही की जस्सूजी का लण्ड काफी बड़ा है। पर इतने करीब से देखने पर उन्हें उसकी मोटाई का सही अंदाज लगा। इतना मोटा लण्ड सुनीता अपनी चूत में कैसे ले पाएगी वह सुनीलजी की समझ से परे था। पर उनके दिमाग में ख़याल आया की शायद उसी दिन सुबह सुनीता की चुदाई जस्सूजी ने की होगी, क्यूंकि वह जब कमरे में दाखिल हुए थे तब सुनीता पलंग में नंगी सोई हुई थी। शायद जस्सूजी भी उसके साथ नंगे ही सोये हुए थे।

    सुनीलजी ने जस्सूजी का लण्ड अपने हाथों में पकड़ कर थोड़ी देर हिलाया। उन्हें महसूस हुआ की ऐसा मोटा और लंबा लण्ड अपनी चूत में डलवाने के लिए कोई भी औरत क्या कुछ कर सकती है। प्रैक्टिकल भी तो उनके सामने ही था। जब से जस्सूजी उनकी जिंदगी में आये तबसे सुनीलजी ने महसूस किया की सुनीता की सेक्स की भूख अचानक बढ़ने लगी थी। क्या पता सुनीता अपने पति से चुदवाते हुए कहीं जस्सूजी से चुदवाने के बारे में ना सोच रही हो?

    थोड़ी देर हिलाते ही जस्सूजी का लण्ड एकदम कड़क हो गया। उस समय सुनीलजी को लगा की जस्सूजी का लण्ड उनके लण्ड के मुकाबले कमसे कम
    एक इंच और लंबा और आधा इंच और मोटा जरूर था। सुनीलजी का हाथ लगते ही जस्सूजी के लण्ड में अगर कोई ढिलास रही होगी वह भी ख़तम हो गयी और जस्सूजी का लण्ड लोहे की मोटी छड़ के समान खड़ा होकर ऊपर की और अपना मुंह ऊंचा कर डोलने लगा।

    सुनीलजी की उत्सुकता की सीमा नहीं थी की उनकी बीबी जो उनके (सुनीलजी के)लण्ड से ही परेशान थी उसने जस्सूजी से कैसे चुदवाया होगा? पर आखिर औरत की चूत का लचीलापन तो सब जानते ही हैं। वह कितना ही बड़ा लण्ड क्यों ना हो, अपनी चूत में ले तो सकती है बशर्ते की वह जो दर्द होता है उसे झेलने के लिए तैयार हो। सुनीता को भी दर्द तो हुआ ही होगा।

    खैर अब सुनीलजी अपनी पत्नी को अपने सामने जस्सूजी से चुदवाती हुई देखना चाहते थे। वह यह भी देखना चाहते थे की जस्सूजी भी सुनीता को चोद कर कैसा महसूस करते हैं?

    सुनीलजी ने जस्सूजी के लण्ड को सुनीता की चूत के द्वार पर टीका दिया। उस समय सुनीता की हालत देखने वाली थी। अपना ही पति अपनी पत्नी की चूत में गैर मर्द का लण्ड अपने हाथ से पकड़ कर रखे यह उसने कभी सोचा भी नहीं था। जस्सूजी के लण्ड का सुनीता की चूत के छूने से सुनीता का पूरा बदन सिहर उठा। सुनीता ने देखा की सुनीलजी बड़ी ही उत्सुकता से सुनीता के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश कर रहे थे। सुनीता को पता नहीं था की वह चेहरे पर कैसे भाव लाये?

    एक गैर पुरुष, चाहे वह इतना करीबी दोस्त बन गया था यहां तक की उसने सुनीता की जान भी बचाई थी, पर आखिर वह पति तो नहीं था ना? फिर भी कैसे विधाता ने उसे सुनीता को चोदने के लिए युक्ति बनायी वह तो किस्मत का एक अजीब ही खेल था। आज वह पडोसी, एक अजनबी सुनीता का हमबिस्तर या यूँ कहिये की सुनीता का उपपति बन गया था। सुनीता ने उसे उपपति का ओहदा दे दिया था।

    सुनीता ने अपने हाथ की उँगलियों में जस्सूजी का लण्ड पकड़ ने की कोशिश की। उसे थोड़ा सहलाया ताकि उसके ऊपर जमा हुआ चिकना रस जस्सूजी के पुरे लंड पर फैले जिससे वह सुनीता की चूत में आराम से घुस सके। अब सुनीता को अपने पति की इजाजत की आवश्यकता नहीं थी। उनके ही आग्रह से ही यह सब हो रहा था।

    सुनीता की चूत में से भी धीरे धीरे उसका प्रेम रस रिस रहा था जिसके कारण जस्सूजी का लण्ड अच्छा खासा चिकना था। सुनीता ने अपनी उँगलियों से उसके सिरे को खासा चिकना बना दिया और कर अपनी चूत की पंखुड़ियों को खोल कर उस दिन दूसरी बार जस्सूजी से चुदवाने के लिए तैयार हो गयी। अब उसे पहले जितना डर नहीं था। उसे चिंता जरूर थी की उसकी चूत काफी खिंच जायेगी, पर पहले की तरह उसे अपनी चूत फट जाने का डर नहीं था।

    जस्सूजी भी अब जान गए थे की सुनीता उनके लण्ड के पेलने का मार झेल लेगी। जहां प्रेम होता है, वहाँ प्रेम के कारण पैदा होते दर्द को झेलने की क्षमता भी हो ही जाती है। कई साहित्यकारों ने सही कहा है की “प्रेम हमेशा दर्द जरूर देता है।”

    सुनीता ने एक बार अपने पति सुनीलजी की और देखा। वह सुनीता की बगल में बैठ अपनी बीबी के स्तनोँ को सेहला रहे थे और जस्सूजी के उनके इतने धाकड़ लण्ड को अपनी बीबी की छोटी सी चूत में घुसने का इंतजार कर रहे थे। वह देखना चाहते थे की उनकी बीबी जस्सूजी का लण्ड घुसने के समय कैसा महसूस करेगी।

    देखते ही देखते जस्सूजी ने अपना लण्ड एक धक्के में करीब एक इन्च सुनीता की चूत में घुसेड़ दिया। सुनीता ने अपने होंठ भींच लिए ताकि कहीं दर्द की आहट ना निकल जाए। एक धक्के में इतना लण्ड घुसते ही सुनीता ने अपनी आँखें खोलीं। उसने पहले जस्सूजी की और और फिर अपने पति की और देखा। जस्सूजी आँखें बंद करके अपने लण्ड को सुनीता की चूत में महसूस कर आहे थी और उसका आनंद ले रहे थे।

    सुनीलजी को जासुजी का अपनी बीबी की चूत में लण्ड घुसते हुए देख कुछ मन में इर्षा के भाव जागे। यह पहली बार हुआ था की सुनीता को किसीने उनके सामने चोदा था। शयद उस दिन से पहले सुनीता को सुनीलजी के अलावा किसी और ने पहले चोदा ही नहीं था। उनके लिए यह अनुभव करना एक रोमांचकारी अनुभव था। पर अब उनका अपनी बीबी पर जो एकचक्र हक़ था आज से वह बँट जाएगा। आज के बाद सुनीता की चूत जस्सूजी के लण्ड के लिए भी खुली रहेगी।

    खैर यह एक अधिकार की दृष्टि से कुछ नुक्सान सा लग रहा था पर रोमांच और उत्तेजना के दृष्टिकोण से यह एक अनोखा कदम था। आज से वह सुनीता से खुल्लम खुल्ला जस्सूजी की चुदाई के बारे में बातचीत कर सकेंगे और जब बात होगी तो उनके सेक्स में भी फर्क पडेगा और सुनीता भी अब खुलकर उनसे चुदवायेगी। यह सुनीलजी के लिए एक बड़ी ही अच्छी बात थी।

    जस्सूजी का लण्ड पेलने की हरकत देखकर सुनीलजी को भी जोश आ गया। उन्होंने ने सुनीता के बोल को जोर से दबाना शुरू किया। सुनीता के एक मम्मे को एक हाथ में जोरसे पिचका कर उन्होंने उसकी निप्पल इतने जोर से दबा दी की सुनीता जस्सूजी के लण्ड के घुसने से नहीं पर सुनीलजी के मम्मे दबाने से चीख पड़ी और बोली, “अरे जी, यह आप क्या कर रहे हो? धीमे स दबाओ ना?”

    उधर जस्सूजी ने एक और धक्का मारा और उनका लण्ड ६ इंच तक सुनीता की चूत में घुस गया। सुनीता फिर से चीख उठी। इस बार उसे वाकई में काफी दर्द हो रहा था, क्यूंकि जस्सूजी ने एक ही धक्के में ६ इंच लण्ड अंदर घुसा दिया था। जस्सूजी ने फटाफट अपना लण्ड वापस खिंच लिया। सुनीता को राहत मिली पर अब उसे जस्सूजी से अच्छी तरह से चुदवाना था।

    सुनीता के चेहरे पर पसीना आ रहा था। सुनीलजी ने निचे झुक कर अपनी बीबी के कपाल को चुम कर उसका पसीना चाट गए। फिर धीमे से बोले, “ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा ना मेरी जान?”

    सुनीता ने दर्द भरी निगाहों से अपने पति की और देखा और फिर चेहरे पर मुस्कराहट लाती हुई बोली, “यह तो झेलना ही पडेगा। आपको खुश जो करना है।”

    पढ़ते रहिये.. क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी!

    [email protected]

    Leave a Comment