Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 51

This story is part of the Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din series

    सुनीलजी ने बंदूक अपने हाथ में लेते हुए कहा, “यह तो ठीक है। पर मेरा काम कलम चलाना है, बंदूक नहीं। मुझे बंदूक चलाना आता ही नहीं।”

    जस्सूजी थोड़ा सा चिढ कर बोल उठे, “काश! यहां आपको बंदूक चलाने की ट्रेनिंग देने का थोड़ा ज्यादा समय होता। खैर यह देखिये…….” ऐसा कह कर जस्सूजी ने सुनीलजी को करीब पाँच मिनट बंदूक का सेफ्टी कैच कैसे खोलते हैं, गोली दागने के समय कैसे पोजीशन लेते हैं, गोली का निशाना कैसे लेते हैं वह सब समझाया।

    जस्सूजी ने आखिर में कहा, “सुनीलजी, हम सबको नदी के किनारे किनारे ही चलना है क्यूंकि आगे चलकर इसी नदी के किनारे हमारा कैंप आएगा। थक जाने पर बेहतर यही होगा की आराम करने के लिए भी हम लोग किसी झाडी में छुप कर ही आराम करेंगे ताकि अगर दुश्मन हमारे करीब पहुँच जाए तो भी वह आसानी से हमें ढूंढ ना सके।”

    काफी अँधेरा था और सुनीलजी को क्या समझ आया क्या नहीं वह तो वह ही जाने पर आखिर में सुनीलजी ने कहा, “जस्सूजी, फिलहाल तो आप बंदूक अपने पास ही रखिये। वक्त आने पर मैं इसे आप से ले लूंगा। अब मैं सबसे आगे चलता हूँ आप सुनीता के पीछे पीछे चलिए।”

    सुनीलजी ने आगे पोजीशन ले ली, करीब ५० कदम पीछे सुनीता और सबसे पीछे जस्सूजी गन को हाथ में लेकर चल दिए। बारिश काफी तेज होने लगी थी। रास्ता चिकना और फिसलन वाला हो रहा था।

    तेज बारिश और अँधेरे के कारण रास्ता ठीक नजर नहीं आ रहा था। कई जगह रास्ता ऊबड़खाबड़ था। वास्तव में रास्ता था ही नहीं। सुनीलजी नदी के किनारे थोड़ा अंदाज से थोड़ा ध्यान से देख कर चल रहे थे।

    नदी में पानी काफी उफान पर था। कभी तो नदी एकदम करीब होती थी, कभी रास्ता थोड़ी दूर चला जाता था तो कई बार उनको कंदरा के ऊपर से चलना पड़ता था, जहां ऐसा लगता था जैसे नदी एकदम पाँव तले हो।

    उनको चलते चलते करीब एक घंटे से ज्यादा हो गया होगा। वह काफी आगे निकल चुके थे। सुनीलजी काफी थकान महसूस कर रहे थे। चलने में काफी दिक्कत हो रही थी।

    ऐसे ही चलते चलते सुनीलजी एक नदी के बिलकुल ऊपर एक कंदरा के ऊपर से गुजर रहे थे। सुनीलजी आगे निकल गए, पर सुनीता का पाँव फिसला क्यूंकि सुनीता के पाँव के निचे की मिटटी नदी के बहाव में धँस गयी और देखते ही देखते सुनीता को जैसे जमीन निगल गयी। पीछे आ रहे जस्सूजी ने देखा की सुनीता के पाँव के निचे से जमीन धँस गयी थी और सुनीता नदी के बहाव में काफी निचे जा गिरी।

    गिरते गिरते सुनीता के मुंह से जोरों की चीख निकल गयी, “जस्सूजी बचाओ………. जस्सूजी बचाओ………” जोर जोर से चिल्लाने लगी, और कुछ ही देर में देखते ही देखते पानी के बहाव में सुनीता गायब हो गयी।”

    उसी समय जस्सूजी ने जोर से चिल्लाकर सुनीता को कहा, “सुनीता, डरना मत, मैं तुम्हारे पीछे आ रहा हूँ।” यह कह कर उन्होंने सुनीलजी की और बंदूक फेंकी और जोर से चिल्लाते हुए सुनीलजी से कहा, “आप इसे सम्हालो, आप बिलकुल चिंता मत करो मैं सुनीता को बचा कर ले आऊंगा। आप तेजी से आगे बढ़ो और नदी के किनारे किनारे पेड़ के पीछे छुपते छुपाते आगे बढ़ते रहो और सरहद पार कर कैंप में पहुंचो। भगवान् ने चाहा तो मैं आपको सुनीता के साथ कैंप में मिलूंगा।”

    ऐसा कह कर जस्सूजी ने ऊपर से छलाँग लगाई और निचे नदी के पुरजोर बहाव में कूद पड़े। सुनीलजी को पानी में जस्सूजी के गिरने की आवाज सुनाई दी और फिर नदी के बहाव के शोर के कारण और कुछ नहीं सुनाई दिया।

    सुनीलजी का सर इतनी तेजी से हो रहे सारे घटनाचक्र के कारण चकरा रहा था। वह समझ नहीं पा रहे थे की अचानक यह क्या हो रहा था? एक सेकंड में ही कैसे बाजी पलट जाती है। जिंदगी और मौत कैसे हमारे साथ खेल खेलते हैं? क्या हम कह सकते हैं की अगले पल क्या होगा? जिंदगी के यह उतार चढ़ाव “कभी ख़ुशी, कभी गम” और”कल हो ना हो” जैसे लग रहे थे।

    वह थोड़ी देर स्तब्ध से वहीँ खड़े रहे। फिर उनको जस्सूजी की सिख याद आयी की उन्हें फुर्ती से बिना समय गँवाये आगे बढ़ना था। सुनीलजी की सारी थकान गायब हो गयी और लगभग दौड़ते हुए वह आगे की और अग्रसर हुए।

    जहां तक हो सके वह नदी के किनारे पेड़ों और जंगल के रास्ते ही चल रहे थे जिससे उन्हें आसानी से देखा ना जा सके। अँधेरा छटने तक रास्ता तय करना होगा। सुबह होने पर शायद उन्हें कहीं छुपना भी पड़े।

    जस्सूजी ऊपर पहाड़ी से सीधे पानी में कूद पड़े। पानी का तेज बहाव के उपरांत पानी में कई जगह पानी में चक्रवात (माने भँवर) भी थे जिसमें अगर फ़ँस गए तो किसी नौसिखिये के लिए तो वह मौत का कुआं ही साबित हो सकता था। ऐसे भँवर में तो अच्छे अच्छे तैराक भी फँस सकते थे। इनसे बचते हुए जस्सूजी आगे तैर रहे थे। किस्मत से पानी का बहाव उनके पक्षमें था। माने उनको तैरने के लिए कोई मशक्कत करने की जरुरत नहीं थी। पर उन्हें सुनीता को बचाना था।

    वह दूर दूर तक नजर दौड़ा कर सुनीता को ढूंढ ने लगे। पर उनको सुनीता कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। एक तो अँधेरा ऊपर से पानी का बहाव पुर जोश में था। सुनीता के फिसलने और जस्सूजी के कूदने के बिच जो दो मिनट का फैसला रहा उसमें नदी के बहाव में पता नहीं सुनीता कितना आगे बह के निकल गयी होगी। जस्सूजी को यह डर था की सुनीता को तैरना तो आता नहीं था तो फिर वह अपने आपको कैसे बच पाएगी उसकी चिंता उन्हें खाये जा रही थी।

    जस्सूजी ने जोर से पानी में आगे की और तैरना चालु रखा साथ साथ में यह देखते भी रहे की पानी के बहाव में सुनीता कहीं किनारे की और तो नहीं चली गयी?

    पानी का बहाव जितना जस्सूजी को आगे सुनीता के करीब ले जा रहा था उतना ही सुनीता को भी तेजी से जस्सूजी से दूर ले जा रहा था। सुनीता ने जस्सूजी के चिल्लाने की और उसे बचाने के लिए वह आ रहे हैं, यह कहते हुए उन की आवाज सुनी थी। पर उसे यकीन नहीं था की नदी का इतना भयावह रूप देख कर वह अपनी जान इस तरह जोखिम में डालेंगे।

    थोड़ी दूर निकल जाने के बाद नदी के तेज बहाव में बहते हुए सुनीता ने जब पीछे की और अपना सर घुमा के देखा तोअँधेरे में ही जस्सूजी की परछाईं नदी में कूदते हुए देखि। उसे पूरा भरोसा नहीं था की जस्सूजी उसके पीछे कूदेंगे।

    इतने तेज पानी के बहाव में कूदना मौत के मुंह में जाने के जैसा था। पर जब सुनीता ने देखा की जस्सूजी ने अपनी जान की परवाह ना कर उसे बचाने के लिए इतने पुरजोश बहाव में पागल की तरह बहती नदी में कूद पड़े तो सुनीता के ह्रदय में क्या भाव हुए वह वर्णन करना असंभव था।

    उस हालात में सुनीता को अपने पति से भी उम्मीद नहीं थी की वह उसे बचाने के लिए ऐसे कूद पड़ेंगे। सुनीता को तब लगा की उसे जितना अपने पति पर भरोसा नहीं था उतना जस्सूजी के प्रति था। उसे पूरा भरोसा हो गया की जस्सूजी उसे जरूर बचा लेंगे। वह जानती थी की जस्सूजी कितने दक्ष तैराक थे।

    सुनीता का सारा डर जाता रहा। उसका दिमाग जो एक तरह से अपनी जान बचाने के लिए त्रस्त था, परेशान था; अब वह अपनी जान के खतरे से निश्चिन्त हो गया।

    अब वह ठंडे दिमाग से सोचनी लगी की जो ख़तरा सामने है उससे कैसे छुटकारा पाया जाये और कैसे जस्सूजी के करीब जाया जाये ताकि जस्सूजी उसे उस तेज बहाव से उसे बाहर निकाल सकें।

    अब सवाल यह था की इतने तेज बहाव में कैसे अपने बहने की गति कम की जाए ताकि जस्सूजी के करीब पहुंचा जा सके। सुनीता जानती थी की उसे ना तो तैराकी आती थी नाही उसके अंदर इतनी क्षमता थी की पानी के बहाव के विरूद्ध वह तैर सके।

    उसे अपने आप को डूबने से भी बचाना था। उसके लिए एक ही रास्ता था। जो जस्सूजी ने उसे उस दिन झरने में तैरने के समय सिखाया था। वह यह की अपने आपको पानी पर खुला छोड़ दो और डूबने का डर बिलकुल मन में ना रहे।

    सुनीता ने तैरने की कोशिश ना करके अपने बदन को पानी में खुल्ला छोड़ दिया और जैसे पानी की सतह पर सीधा सो गयी जैसे मुर्दा सोता है। पानी का बहाव उसे स्वयं अपने साथ खींचे जा रहा था।

    अब उसकी प्राथमिकता थी की अपनी गति को कम करे अथवा कहीं रुक जाए। अपने बलबूते पर तो सुनीता यह कर नहीं सकती थी। कहावत है ना की “हिम्मते मर्दा तो मददे खुदा।” यानी अगर आप हिम्मत करेंगे तो खुदा भी आपकी मदद करेगा।

    उसी समय उसको दूर एक पेड़ जैसा दिखाई दिया जो नदी में डूबा हुआ था पर नदी के साथ बह नहीं रहा था। इसका मतलब यह हुआ की पेड़ जमीन में गड़ा हुआ था और अगर सुनीता उस पेड़ के पास पहुँच पायी तो उसे पकड़ कर वह वहाँ थम सकती है जिससे जस्सूजी जो पीछे से बहते हुए आ रहे थे वह उसे मिल पाएंगे।

    सुनीता ने अपने आपको पेड़ की सीध में लिया ताकि कोशिश ना करने पर भी वह पेड़ के एकदम करीब जा पाए। उसे अपने आपको पेड़ से टकराने से बचाना भी था। बहते बहते सुनीता पेड़ के पास पहुँच ही गयी। पेड़ से टकराने पर उसे काफी खरोंचें आयीं और उस चक्कर में उसके कपडे भी फट गए। पर ख़ास बात यह थी की सुनीता अपनी गति रोक पायी और बहाव का मुकाबला करती हुई अपना स्थान कायम कर सकी। सुनीता ने अपनी पूरी ताकत से पेड़ को जकड कर पकड़ रक्खा।

    अब सारा पानी तेजी से उसके पास से बहता हुआ जा रहा था। पर क्यूंकि उसने अपने आपको पेड़ की डालों के बिच में फाँस रक्खा था तो वह बह नहीं रही थी। सुनीता ने कई डालियाँ, पौधे और कुछ लकड़ियां भी बहते हुए देखीं। पानी का तेज बहाव उसे बड़ी ताकत से खिंच रहा था पर वह टस की मस नहीं हो रही थी।

    हालांकि उसके हाथ अब पानी के सख्त बहाव का अवरोध करते हुए कमजोर पड़ रहे थे। सुनीता की हथेली छील रही थी और उसे तेज दर्द हो रहा था। फिर भी सुनीता ने हिम्मत नहीं हारी।

    कुछ ही देर में सुनीता को उसके नाम की पुकार सुनाई दी। जस्सूजी जोर शोर से “सुनीता….. सुनीता…. तुम कहाँ हो?” की आवाज से चिल्ला रहे थे और इधर उधर देख रहे थे। सुनीता को दूर जस्सूजी का इधर उधर फैलता हुआ हाथ का साया दिखाई दिया।

    सुनीता फ़ौरन जस्सूजी के जवाब में जोर शोर से चिल्लाने लगी, “जस्सूजी!! जस्सूजी……. जस्सूजी….. मैं यहां हूँ।” चिल्लाते चिल्लाते सुनीता अपना हाथ ऊपर की और कर जोर से हिलाने लगी।

    सुनीता को जबरदस्त राहत हुई जब जस्सूजी ने जवाब दिया, “तुम वहीँ रहो। मैं वहीँ पहुंचता हूँ। वहाँ से मत हिलना।”

    पर होनी भी अपना खेल खेल रही थी। जैसे ही सुनीता ने अपने हाथ हिलाने के लिए ऊपर किये और जस्सूजी का ध्यान आकर्षित करने के लिए हिलाये की पेड़ की डाल उसके हाथ से छूट गयी और देखते ही देखते वह पानी के तेज बहाव में फिर से बहने लगी।

    जस्सूजी ने भी देखा की सुनीता फिर से बहाव में बहने लगी थी। उन्हें कुछ निराशा जरूर हुई पर चूँकि अब सुनीता को उन्होंने देख लिया था तो उनमें एक नया जोश और उत्साह पैदा हो गया था की जरूर वह सुनीता को बचा पाएंगे। उन्होंने अपने तैरने की गति और तेज कर दी।

    सुनीता और उनके बिच का फासला कम हो रहा था क्यूंकि सुनीता बहाव के सामने तैरने की कोशिश कर रही थी और जस्सूजी बहाव के साथ साथ जोर से तैरने की। देखते ही देखते जस्सूजी सुनीता के पास पहुंचे ही थे की अचानक सुनीता एक भँवर में जा पहुंची और उस के चक्कर में फँस गयी।

    पढ़ते रहिये.. क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी!

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