Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 48

This story is part of the Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din series

    कैप्टेन कुमार और नीतू भीगी बिल्ली की तरह कर्नल साहब के पीछे पीछे चलते हुए मुख्य राह पर पहुँच गए। इस बार जान बुझ कर जस्सूजी ने सुनीता से कुमार और नीतू की और इशारा कर धीरे चलने को कहा।

    नीतू और कुमार की मैथुन लीला देखने के बाद सुनीता को जस्सूजी का रवैया काफी बदला हुआ नजर आया। अब वह उनकी कामनाओं और भावनाओं की कदर करते हुए नजर आये।

    रास्ते से भटक जाने के लिए पहले शायद वह कैप्टेन कुमार को आड़े हाथों ले लेते। पर उन्होंने जब दोनों के बिच का आकर्षण और उत्कट प्यार देखा तो कुमार को थोड़ी सी डाँट लगा कर छोड़ दिया।

    कर्नल साहब अब धीरे धीरे समझ रहे थे की जो कामबाण उनके और सुनीता के ह्रदय को घायल कर रहा था वही कामबाण कप्तान कुमार और नीतू के ह्रदय को भी घायल कर रहा था।

    जब प्यार के कामबाण का तीर चलता है तो वह उम्र, जाती, समय, समाज का लिहाज नहीं करता। शादीशुदा हो या कंवारे, बच्चों के माँ बाप हों हो या विधवा हो, इंसान घायल हो ही जाता है।

    हाँ, यह सच है की समाज ऐसी हरकतों को पसंद नहीं करता और इसी लिए अक्सर यह सब कारोबार चोरी छुप्पी चलता है। आखिर कर्नल साहब और सुनीता भी तो शादीशुदा थे।

    नीतू और कुमार की मैथुन लीला देखने के बाद कर्नल साहब का नजरिया कुछ बदल गया। वह कर्नल साहब नहीं जस्सूजी के नजरिये से नीतू और कुमार का प्यार देखने लगे। सुनीता यह परिवर्तन देख कर खुश हुई।

    धीरे धीरे पूरा कारवाँ गंतव्य स्थान की और आगे बढ़ने लगा। सुनीता के पूछने पर जस्सूजी ने बताया की करीब आधा रास्ता ही तय हुआ था। कुछ आगे जाने पर दूर से जस्सूजी ने ऊपर की और नजर कर के सुनीता को दिखाया की उसके पति सुनीलजी ज्योतिजी पास पास में एक पत्थर लेटे हुए सूरज की रौशनी अपने बदन को सेकते हुए आराम कर रहे थे।

    इतने सर्द मौसम में भी सुनीलजी के पसीने छूट रहे थे। पहाड़ों की चढ़ाई के कारण वह बार बार रुक रहे थे। सुनीता और ज्योतिजी भी करीब चार किलो मीटर चलने के बाद थके हुए नजर आ रहे थे।

    नीतू और कुमार ज्यादा दूर नहीं गए थे। वह एक दूसरे के साथ बातें करते हुए, खेलते हुए आगे बढ़ रहे थे। पर जैसे चढ़ाई आने लगी, नीतू भी थकान और हाँफ के कारण थोड़ा चलकर रुक जाती थी। चुदाई में हुए परिश्रम से वह काफी थकी हुई थी।

    कैप्टेन कुमार और कर्नल साहब को ऐसे चलने की आदत होने के कारण उनपर कोई ज्यादा असर नहीं हुआ था पर असैनिक नागरिकों के धीरे धीरे चलने के कारण सैनिकों को भी धीरे धीरे चलना पड़ता था।

    अचानक ही सब को वही जँगली कुत्तों की डरावनी भौंकने की आवाज सुनाई पड़ी। उस समय वह आवाज ज्यादा दूर से नहीं आ रही थी। लगता था जैसे कुछ जंगली भेड़िये पहाड़ों में काफी करीबी से दहाड़ रहें हों।

    काफिला तीन हिस्सों में बँटा था। आगे ज्योतिजी और सुनीलजी थे। उसके थोड़ा पीछे नीतू और कैप्टेन कुमार चल रहे थे और आखिर में उनसे करीब १०० मीटर पीछे सुनीता और जस्सूजी चल रहे थे।

    भेड़ियों की डरावनी चिंघाड़ सुनकर ख़ास तौर से महिलाओं की सिट्टीपिट्टी गुम होगयी। वह भाग कर अपने साथी के करीब पहुँच कर उनसे चिपक गयीं। नीतू कुमार से, सुनीता जस्सूजी से और ज्योतिजी सुनीलजी से चिपक कर डरावनी नज़रों से अपने साथी से बिना कुछ बोले आँखों से ही प्रश्न कर रहीं थीं की “यह क्या था? और अब क्या होगा?”

    तब जस्सूजी सुनीता को अपने से अलग कर, अचानक ही बिना कुछ बोले, भागते हुए रास्ते के करीब थोड़ी ही दुरी पर एक पेड़ था उस पर चढ़ गए।

    सब अचरज से जस्सूजी क्या कर रहे थे यह देखते ही रहे की जस्सूजी ने अपने बैकपैक (झोले) से एक जूता निकाला और उसको एक डाल पर फीते से बाँध कर लटका दिया। फिर फुर्ती से निचे उतरे और जल्दी से सब को अपने रास्ते पर जल्दी से चलने को कहा।

    जाहिर था जस्सूजी को कुछ खतरे की आशंका थी। सब सैलानियों का हाल बुरा था। सब ने जस्सूजी को पूछना चाहा की वह क्या कर रहे थे? उन्होंने अपना एक जूता डाली पर क्यों लटकाया? पर जस्सूजी ने उस समय उसका कोई जवाब देना ठीक नहीं समझा।

    उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा, “अब एकदम तेजी से हम अपनी मंजिल, याने ऊपर वाले कैंप में पहुँच जाएंगे, उसके बाद मैं आपको बताऊंगा।”

    सब फुर्ती से आगे बढ़ने लगे। जस्सूजी ने सब को एकसाथ रहने हिदायत दी तो पूरा ग्रुप एक साथ हो गया। जस्सूजी और कैप्टेन कुमार ने अपनी अपनी पिस्तौल निकाल लीं। कर्नल साहब (जस्सूजी) ने कैप्टेन कुमार को सबसे आगे रह कर निगरानी करने को कहा।

    उन्होंने नीतू और बाकी सबको बिच में एकजुट रहने के लिए कहा और खुद सबसे पीछे हो लिए। जब जस्सूजी सबसे पीछे हो लिए तब सुनीता भी जस्सूजी के साथ हो ली।

    जस्सूजी ने जब सुनीता को सब के साथ चलने को कहा तो सुनीता ने जस्सूजी से कहा, “मैं आप के साथ ही रहूंगी। हमने तय किया था ना की इस ट्रिप दरम्यान मैं आप के साथ रहूंगी और ज्योतिजी सुनीलजी के साथ। तो मैं आप के साथ ही रहूंगी।”

    जस्सूजी ने अपने कंधे हिलाकर लाचारी में अपनी स्वीकृति दे दी।

    काफिला करीब एक या दो किलोमीटर आगे चला होगा की सब को फिर वही जंगली कुत्तों की भयानक आवाज दुबारा सुनाई पड़ी। उस समय वह आवाज निचे की तरफ से आ रही थी।

    सब ने निचे की और देखा तो पाया की जिस पेड़ पर जस्सूजी ने अपना एक जूता लटकाया था उस पेड़ के आजुबाजु दो भयानक बड़े जंगली कुत्ते भौंक रहे थे और उस पेड़ के इर्दगिर्द चक्कर काट रहे थे।

    तब जस्सूजी ने कहा, “मेरा शक ठीक निकला। वह भेड़िये नहीं, हाउण्ड हैं। अब यह साफ़ हो गया है की दुश्मन के कुछ सिपाही हमारी सरहद में घुसने में कामियाब हो गए हैं और दुश्मन कुछ चाल चल रहा है। धीरे धीरे सारी कहानी समझ आ जायेगी। फिलहाल हमें ऊपर के कैंप पर फ़ौरन पहुंचना है।”

    आर्मी के हाउण्ड की चिंघाड़ने की डरावनी आवाज सुनकर और हकीकत में उन भयानक बड़े डरावने जंगली कुत्तों को देख कर सब सैलानियों में जैसे बिजली का करंट लग गया।

    सबके पॉंव में पहिये लग गए हों ऐसे सब की गति तेज हो गयी। सबकी थकान और आराम करने की इच्छा गायब ही हो गयी, दिल की धड़कनें तेज हो गयी।

    कैप्टेन कुमार को किसीको तेज चलने के लिए कहना नहीं पड़ा। सब प्रकाश के सामान गति से ऊपर के कैंप की और लगभग दौड़ने लगे। अगर उस समय कोई गति नापक यंत्र होता तो शायद तेज चलने के कई रिकॉर्ड भी टूट सकते थे।

    रास्ते में चलते चलते कर्नल साहब ने सब के साथ जुड़कर ख़ास तौर से सुनीता की और देख कर कहा, “आप लोगों के मन में यह प्रश्न था ना की मैं किस उधेड़बुन में था और मैंने पेड़ पर जूता क्यों लटकाया? और यह जंगली भेड़िये जैसे भयानक कुत्ते क्या कर रहे है? तो याद करो, क्या तुम्हें याद है की कुछ हफ्ते पहले मेरे घर में चोरी हुई थी जिसमें मेरा एक पुराना लैपटॉप और सिर्फ एक ही जूता चोरी हुआ था?

    घर में इतना सारा माल पड़ा हुआ था पर चोरी सिर्फ दो चीज़ों की ही हुई थी? वह चोरी दुशमनों की खुफिया एजेंसीज ने करवाई थी ताकि मेरे लैपटॉप से उन्हें कोई जानकारी मिल सके। एक जूता इस लिए चुराया था जिससे उस जूते को वह लोग अपने हाउण्ड को सुंघा सके जो मेरी गंध सूंघ कर मुझे पकड़ सके।

    मुझे इसके बारेमें पहले से कुछ शक पहले से ही हो गया था। पर मैं भी इतना समझ नहीं पाया की दुश्मन की इतनी जुर्रत कहाँ से हुई की वह हमारी ही सरहद में घुसकर ऐसी हरकतें कर सके? जरूर इसमें हमारे ही कुछ लोग मिले हुए हैं।

    मैंने दूसरे जूते को सम्हाल कर रक्खा हुआ था, ताकि जरुरत पड़ने पर मैं उन हाउण्ड को बहका कर भुलावा दे सकूँ और उनको गुमराह कर सकूँ। आज सुबह जब मैंने देखा की वह हाउण्ड मेरा ही पीछा कर रहे थे तब मैंने पेड़ पर वह जूता लटका कर कुछ घंटों के लिए उन हाउण्ड को गुमराह करने की कोशिश की और वह कोशिश कामयाब रही। वह हाउण्ड मेरा पीछा करने के बजाय उस पेड़ के ही चक्कर काट रहे थे यह लड़ाई मेरे और उनके बिच की है। आप में सी किसी को कुछ भी नहीं होगा।”

    उस समय सब एक पहाड़ी के निचे से गुजर रहे थे। अचानक जोरों से वही डरावनी हाउण्ड की चिंघाड़ सुनाई दी। उस वक्त एकदम करीब ऊपर की और से आवाज आ रही थी।

    सब ने जब डर कर ऊपर देखा तो सब चौंक गए। उपर से दो भारी भरखम जंगली हाउण्ड, जिन्होंने सब लोगोंका जीना हराम कर रखा था, वह जोरों से दहाड़ते हुए कर्नल साहब के ऊपर कूद पड़े।

    लगभग पंद्रह फुट की ऊंचाई से सीधे कर्नल साहब के ऊपर कूदने के कारण कर्नल साहब लड़खड़ा कर गिर पड़े। इस अफरातफरी में एक हाउण्ड ने बड़ी ताकत के साथ कर्नल साहब के हाथ से उनका रिवाल्वर छीन लिया।

    दुसरा हाउण्ड कैप्टेन कुमार पर कूद पड़ा और उसने उसी तरीके से कुमार के हाथ से रिवाल्वर छीन लिया। उतनी ही देरमें उनके बिलकुल पीछे लगभग दस से बारह घुड़सवारों ने बन्दुक तानकर सब को घेर लिया।

    सबा को “हैंड्स अप” करवा कर काफिले के मुखिया ने पूछा, “आप में से जनाब सुनील मडगाओंकर कौन है?” फिर सुनीलजी की और देख कर उसने अपनी जेब में से एक तस्वीर निकाली।

    तस्वीर जम्मू स्टेशन पर ली गयी थी जब सब ट्रैन से सुबह उतरे थे। उसमें सब के नाम एक कलम से लिखे हुए थे।

    सुनीलजी का नाम पढ़कर सरदार ने सुनीलजी को ढूंढ लिया और बोले, “आप जाने माने रिपोर्टर सुनील मडगाओंकर है ना? हमें आप की और कर्नल साहब की आवश्यकता है।”

    बाकी सब की और देखा और बोले, “अगर आप सब चुपचाप यहां से बगैर कोई हरकत किये चल पड़ोगे तो आप को कोई नुक्सान नहीं होगा।।” ज्योतिजी, कैप्टेन कुमार और नीतू चुपचाप बिना कुछ बोले वहीँ स्तंभित से खड़े रहे।

    कर्नल साहब और सुनीलजी की और देखकर मुखिया ने एक साथीदार को कहा, “इन्हें बाँध दो”

    जैसे ही जस्सूजी को बाँधने के लिए साथीदार आगे बढ़ा की सुनीता भी आगे बढ़ी और उस आदमी को कंधे से पकड़ कर कस के एक तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया और एक धक्का मार कर उसे गिरा दिया। फिर उनके मुखिया की और भाग कर उसे भी पकड़ा और उसे उसकी बन्दुक छीनने की कोशिश की।

    सुनीता साथ ही साथ में चिल्ला कर कहने लगी, “अरे कुत्तों, शर्म करो। धोखा देकर हमला करते हो? यह कर्नल साहब और सुनीलजी क्या तुम्हारे बाप का माल है की उन्हें पकड़ कर तुम ले जाओगे? जब तक हिन्दुस्तान का एक भी मर्द अथवा औरत ज़िंदा है तब तक तुम्हारी यह चाल कामयाब नहीं होगी। यह वीरों का देश है बुझदिल और कायरों का नहीं।”

    मुखिया सुनीता की इस हरकत से कुछ पलों तक तो स्तब्ध होकर मौन हो गया और सुनीता के भयानक रूप को देखता ही रहा। उसने सोचा भी नहीं था की एक औरत में इतना दम हो की इतने सारे बन्दुक धारियों के सामने ऐसी हरकत कर सके। फिर सम्हल कर वह आगे बढ़ा और बड़ा ही जबरदस्त थप्पड़ उसने सुनीता के गाल पर दे मारा।

    सरदार का हाथ भारी था और थप्पड़ इतना तेज था की सुनीता गिर पड़ी और बेहोश हो गयी। उसके गाल लाल हो गये। सुनीता के मुंह में से खून निकलने लगा। निचे गिर पड़ने से सुनीता की स्कर्ट ऊपर उठने से सुनीता की जाँघें नंगीं हो गयीं। सुनीता ऐसे गिरी थी की उसका टॉप भी ऊपर से कुछ खुल गया और सुनीता के करारे बूब्स का उभार साफ़ दिखाई देने लगा।

    मुखिया सुनीता की खूबसूरती और बदन देख कर कुछ पल चुपचाप सुनीता के बदन को देखता ही रहा। सुनीता की दबंगाई देख कर बाकी सब सिपाही फुर्ती सेअपनी बंदूकें सबकी और तान कर खड़े हो गए।

    उनका सरदार हंस पड़ा और ठहाका मार कर हँसते हुए बोला, “बड़ी करारी औरत हे रे यह तो। बड़ा दम है रे इसके अंदर। क्या कस के थप्पड़ मारा है इस बेचारे को। साला गिर ही पड़ा। बड़ी छम्मक छल्लो भी है यह औरत तो।”

    फिर मुखिया अपने साथीयों की और देख कर बोला, “बाँध दो इस औरत को भी। ले चलते हैं इसे भी। बड़ी खूबसूरत जवान है ये। साली पलंग में भी इतनी ही गरम होगी यह तो। चलो यह औरत जनाब का बिस्तर गरम करेगी आज रात को। ऐसा माल देख कर बहुत खुश होंगें जनाब। मुझे अच्छा खासा मोटा सा इनाम देंगे। जनाब का बिस्तर गरम करने के बाद में हम सब मिलकर साली का मजा लेंगे।”

    एक मोटा सा काला सिपाही सुनीता के पास आया। उसके बदसूरत काले मुंह में से उसके सफ़ेद दांत काली रात में तारों की तरह चमक रहे थे। सुनीता को देख कर उसके मुंह में से एक बेहूदी और कामुक हंसी निकल गयी। उसने सुनीता के दोनों हाथ और पाँव पकड़ कर बाँध दिए।

    काफिले का सरदार जल्दी में था। उसने वही कालिये को कहा, “इस नचनिया को तुम अपने साथ जकड कर बाँध कर ले चलो। वक्त जाया मत करो।

    कभी भी इनके सिपाही आ सकते हैं।” बाकी दो साथियों की और इशारा करके मुखिया बोला, “इस कर्नल को और इन रिपोर्टर साहब को बाँध कर तुम दोनों अपने साथ ले चलो।”

    मुखिया के हुक्म के अनुसार सुनीलजी, कर्नल साहब और सुनीता को कस के बाँध कर तीनों सिपाहियों ने अपने घोड़े पर बिठा दिया। सुनीता को मोटे बदसूरत सिपाही ने अपने आगे अपने बदन के साथ कस के बांधा और अपना घोडा दौड़ा दिया। देखते ही देखते सब पहाड़ों में गायब हो गए।

    कहानी अभी जारी रहेगी..

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