Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 44

This story is part of the Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din series

    सुनीलजी से चुदवाते हुए भी सुनीता को जंगली कुत्तों की दहाड़ने की डरावनी आवाजें सुनाई देती थीं। सुनीता ने जब सुनीलजी से इसके बारे में पूछा तो सुनीलजी ने जस्सूजी से हुई बात के बारे में सुनीता को बताया।

    सुनीलजी ने कहा, “जस्सूजी को शंका है की दुश्मन या आतंकवादियों के जंगली कुत्ते जिनको इंग्लिश में हाउण्ड कहते हैं उनको कुछ ख़ास काम के लिए तैनात किया हो, ऐसा हो सकता है। जस्सूजी को आशंका थी की हो सकता है की अगले दो या तीन दिनों में कुछ ना कुछ दुर्घटना हो सकती है…

    पर मुझे लगता है की जस्सूजी इस बात को शायद थोड़ा ज्यादा ही तूल दे रहे हैं। मुझे नहीं लगता की दुश्मन में इतनी हिम्मत है की हमारी ही सरहद में घुसकर हमारे ही बन्दों को कैदी बनाने का सोच भी सके। यह आवाज जंगली भेड़ियों की भी हो सकती है।”

    सुनीलजी की बात से सेहमी हुई सुनीता बिना कुछ बोले सुनीलजी के एक के बाद एक धक्के झेलती रही। सुनीलजी ने सुनीता की टांगें अपने कंधे पर रखी हुई थी। गाँड़ के निचे रखे तकिये के कारण सुनीता की प्यारी चूत थोड़ी सी ऊपर उठी हुई थी जिससे सुनीलजी का लंड बिलकुल उनकी बीबी सुनीता की चूत के द्वार के सामने रहे और पूरा का पूरा लण्ड सुनीता की चूत में घुसे।

    सुनीलजी धीमी रफ़्तार से सुनीता की चूत में अपना लण्ड पेले जा रहे थे। रफ़्तार जरूर धीमी थी पर धक्का इतना तगड़ा होता था की उनका पूरा पलंग समेत सुनीता का पूरा बदन धक्के से हिल जाता था।

    सुनीता के भरे हुए बूब्स सुनीलजी के लगाए हुए धक्के के कारण हवा में उछल जाते और फिर जब सुनीलजी का लण्ड चूत के सिरे तक चला जाता और एक पल के लिए रुक जाते तो वापस गिर् कर अपना आकार ले लेते। कामोत्तेजना के कारण सुनीता की निप्पलेँ पूरी तरह से फूली हुई थीं।

    निप्पलेँ थोड़े ऊपर उठे हुए फुंसियों से भरी हुई हलकी सी चॉकलेटी रंग की गोल आकार वाली एरोलाओं पर ऐसी लग रहीं थीं जैसे एक छोटा सा डंडा मनी प्लाँट को टिकाने के लिए माली लोग रखते हैं।

    सुनीलजी ने अपनी बीबी के उछलते हुए स्तनों को देखा तो उस पर टिकी हुई निप्पलोँ को अपनी उँगलियों में पिचकाते हुए उत्तेजित हो गए और सुनीता के दोनों स्तनोँ को जोर से दबा कर धक्के मार कर चुदाई का पूरा मजा लेने में जुट गए।

    ज्योति और जस्सूजी सुनील और सुनीता की चुदाई का साक्षात दृश्य पहली बार देख रहे थे। हकीकत में ऐसा कम ही होता है की आपको किसी और कपल की चुदाई का दृश्य देखने को मिले।

    हालांकि उनको सुनीलजी का लण्ड और सुनीता की चूत इतनी दूर से ठीक से दिख नहीं रही थी पर जो कुछ भी अच्छी तरह से दिख रहा था वह वाकई में देखने लायक था। सुनीलजी ने भी देखा की खास तौर से ज्योतिजी सुनीता की चुदाई बड़े ध्यान से देख रही थी।

    शायद वह यह देखना चाहती हो की सुनीलजी अपनी बीबी की चुदाई भी वैसे ही कर रहे थे जैसे की सुनीलजी ने कुछ ही घन्टों पहले ज्योति की की थी। यह तो स्त्री सुलभ इर्षा का विषय था। कहते हैं ना की “भला तुम्हारी कमीज मेरी कमीज से ज्यादा सफ़ेद कैसे?”

    जाहिर है सुनीता की चूत की पूरी नाली में चुदाई के कारण हो रहे कामुक घर्षण से सुनीता को अद्भुत सा उन्माद होना चाहिए था। पर सुनीलजी की बात सुनकर उसका मन कहीं और उड़ रहा था। वह जाँबाज़ जस्सूजी को मन ही मन याद कर रही थी।

    हालांकि सुनीलजी का लण्ड जस्सूजी के लण्ड से उन्नीस बिस हो सकता है, पर काश उस समय वह लण्ड जस्सूजी का होता जिससे सुनीलजी चोद रहे थे ऐसी एक ललक भरी कल्पना सुनीता की चूत में आग लगा रही थी।

    सुनीलजी के बदन की अकड़न से अपने पति का वीर्य छूटने वाला था यह सुनीता जान गयी। उसे भी तो अपना पानी छोड़ना था। वह अपने पति सुनीलजी के ऊपर चढ़ कर सुनीलजी को चोदना चाहती थी जिससे वह भी फ़ौरन अपने पति के साथ झड़ कर अपना पानी छोड़ सके। पर उसे डर था की उधर जस्सूजी उसे चुदाई करते हुए देख लेंगे।

    एक होता है औरत को नंगी देखना। दुसरा होता है किसी नंगी औरत की चुदाई होते हुए देखना। दोनों में अंतर होता है। और यहां तो सुनीता सुनीलजी को चौदेगी। वह तो एक और भी अनूठी बात हो जाती है।

    सुनीता का शर्माना जायज था। फिर भी सुनीता ने अपने पति से हिचकिचाते हुए धीरे से कहा, “ऐसा लगता है की तुम्हारा अब छूटने वाला है। थोड़ा रुको। मुझे भी तो मौका दो।”

    सुनीलजी ने फ़ौरन कहा, “आ जाओ। मेरे पर चढ़ कर मुझे चोदो। दिखादो सबको की सिर्फ मर्द ही औरत को चोदता है ऐसा नहीं है, औरत भी मर्द को चोद सकती है।”

    सुनीता जब हिचकिचाने लगी तब सुनीलजी ने कहा, “यही तो कमी है औरतों में। मर्दों के साफ़ साफ़ आग्रह करने पर भी औरतें अपनी सीमा से बाहर नहीं आतीं। फिर कहतीं हैं मर्द जात ने उन को दबा रखा है? यह कहाँ का न्याय है?”

    सुनीता ने जब यह सूना तो उसे जोश आया। वह चद्दर फेंक कर बैठ खड़ी हुई और अपने दोनों घुटनें अपने पति की दोनों टाँगों के बाहर की तरफ रख अपने घुटनों पर अपना वजन लेते हुए सुनीलजी के ऊपर चढ़ बैठी।

    जस्सूजी ने जब सुनीता को बिस्तर में अपने पति से चुदाई करवाती पोजीशन में से उठ कर अपने पति को चोदने के लिए पति के ऊपर चढ़ते हुए देखा तो वह सुनीता की हिम्मत देख कर दंग रह गए। पहली बार उन्होंने उस रात अपनी रातों नींद हराम करने वाली चेली को पूरा नंगी देखा।

    सुनीता के अल्लड़ स्तन उठे हुए जैसे जस्सूजी को पुकार रहे थे की “आओ और मुझे मसल दो।”

    सुनीता की पतली कमर और बैठा हुआ पेट का हिस्सा और उसके बिलकुल निचे सुनीता की चूत की झांटों की झांकी जस्सूजी देखते ही रह गए। अपनी प्रियतमा को उसके ही पति को चोदते देख उन्हें सीने में टीस सी उठी। पर क्या करे?

    सुनीता ने अपने पति का लण्ड अपनी चूत में डाल कर ऊपर से बड़े प्यार से अपने पति को चोदना शुरू किया। उसका ध्यान सिर्फ अपनी चूत में घुसे हुए जस्सूजी के लण्ड का ही था।

    हालांकि लण्ड उसके पति का ही था पर सुनीता की एक परिकल्पना थी की जैसे वह लण्ड जस्सूजी का था जिसे वह अपनी चूत में घुसा कर चोद रही थी। इस कल्पना मात्र से ही उसकी चूत में से उसका रस जोरशोर से रिस ने लगा और जल्द ही वह अपने चरम के कगार पर जा पहुंची।

    कुछ ही मिनटों में सुनीलजी और सुनीता एक साथ झड़ गए। सुनीता के मुंह से सिसकारी निकली जो उसके चरम की उत्तेजना को दर्शाता था। सुनीलजी के मुंहसे “आहह…” निकल पड़ी।

    दोनों मियाँ बीबी झड़ने के बाद ढेर हो गए। सुनीता जैसे अपने पति पर घुड़सवारी कर बैठी थी वैसी ही अपने पति का लण्ड अपनी चूत में रखे हुए उनपर लुढ़क पड़ी।

    कुछ देर तक पति के ऊपर पड़ी रहने के बाद, चुदाई से थकी हुई सुनीता ऊपर से हट कर पति के बाजु में जाकर गहरी नींद सो गयी। उसके सपने में सारी रात जंगली कुत्तों के चीखने की आवाजें ही सुनाई दे रहीं थीं।

    सुबह चार बजे ही जस्सूजी का पहाड़ी आवाज सारे हॉल में गूंज उठा। वह निढाल सो रहे सुनीलजी और सुनीता पर चिल्ला रहे थे। “अरे सुनीलजी उठिये! ४ बजने वाले हैं। देखिये अब हमें सेना के टाइम टेबल के हिसाब से चलना पडेगा। रात को आपको जो भी करना हो उसे जल्द निपटा कर सोना पडेगा। ऐसे देर तक लगे रहोगे तो जल्दी उठ नहीं पाओगे।”

    जस्सूजी की दहाड़ सुनकर सुनीता और सुनीलजी चौंक कर जाग उठे। सुनीता अपने कपडे पहनना तक भूल गयी थी। जैसे ही उसने जस्सूजी की दहाड़ सुनी सुनीता ने बिस्तरे में ही कम्बल अपनी छाती के ऊपर तक खिंच लिया और बैठ गयी।

    जस्सूजी हमेशा की तरह सुबह बड़ी जल्दी उठ कर तैयार हो कर अपने सुसज्जित सेना के यूनिफार्म में आकर्षित लग रहे थे। सुनीता खड़ी होने की स्थिति में नहीं थी। वह कम्बल के निचे नंगी थी। देर रात तक चुदाई कराने के बाद उसे कपडे पहनने का होश ही नहीं रहा था।

    सुनीलजी ने पजामा पहन लिया था सो कूद कर खड़े हो गए और बाथरूम की और भागे। जस्सूजी ने सुनीता को देखा और कुछ बोलने लगे थे पर फिर चुप हो गए और घूम कर कैंप के दफ्तर की और चलते बने। जैसे ही जस्सूजी आँखों से ओझल हुए की सुनीता ने भाग कर बाहर का दरवाजा बंद किया और फ़टाफ़ट अपना गाउन पहन लिया।

    ज्योतिजी वाशरूम में थीं। वह जानती थी की जब जस्सूजी के साथ आर्मी से सम्बंधित कोई प्रोग्राम होता है तो वह देर बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते।

    सुनीता ने अपने कपडे तैयार किये और सुनीलजी के बाहर आने का इंतजार करने लगी। कुछ ही देर में तीनों: ज्योतिजी, सुनीलजी और सुनीता कैंप के मैदान में कसरत के लिए पहुंच गए।

    सब लोग कतार में लग गए। जस्सूजी कहीं नजर नहीं आ रहे थे। प्राथमिक कसरतें करने के बाद सब को दरी पर बैठने को कहा गया। जो उम्र में बड़े थे उनके लिए कुछ कुर्सियां रखीं हुई थीं।

    सब के बैठने के बाद कर्नल जस्सूजी भी वहाँ उपस्थित हुए। उन्होंने सब को आंतांकियों की गतिविधियों के बारेमें कहा और सबको सतर्क रहने की चेतावनी भी दी। यदि कोई सूरत में किसी का आतंकवादियों से या उनकी हरकतों से सामना होता है तो कैसे आतंकवादियों से मुकाबला किया जा सकता है उसके बारे में भी उन्होंने कुछ जरुरी हिदायतें दीं।

    सबको कैंटीन में नाश्ते के लिए कहा गया। नाश्ते की समय सीमा 30 ममिनट दी गयी। सब ने फ़टाफ़ट नाश्ता किया। अगला कार्यक्रम था पहाड़ो में ट्रैकिंग करना।

    याने पहाडोंमें उबड़ खाबड़ लंबा रास्ता लकड़ी के सहारे चल कर तय करना। करीब दस किलोमीटर दूर एक आर्मी का छोटा सा कैंप बना हुआ था जहां दुपहर के खाने की व्यवस्था थी। सबको वहाँ पहुँचना था।

    सुनीता ने सिल्हटों वाली फ्रॉक पहनी थी। उस में सुनीता की करारी जाँघें कमाल की दिख रहीं थीं। फ्रॉक घुटनोँ से थोड़ी सी ऊपर तक थीं। देखने में वह बिलकुल अश्लील नहीं लग रही थी। ऊपर सुनीता ने सफ़ेद रंग का ब्लाउज पहना था और अंदर सफ़ेद रंग की ब्रा थी।

    उसका परिवेश निहायत ही साधारण सा था पर उसमें भी सुनीता का यौवन और रूप निखार रहा था। सुनीता की गाँड़ का घुमाव और स्तनोँ का उभार लण्ड खड़ा कर देने वाला था।

    ज्योतिजी ने कुछ लम्बी सी काप्री पहन राखी थी। घुटनों से काफी निचे पर यदि से काफी ऊपर वह काप्री में ज्योतिजी की घुमावदार गोल गाँड़ का घुमाव सुहावना लग रहा था।

    ऊपर ज्योतिजी ने मर्दों वाला शर्ट कमीज पहन रखा था। उस शर्ट में भी उनके स्तनोँ का उभार जरासा भी छुप नहीं रहा था। दोनों कामिनियाँ ज्योतिजी और सुनीता गजब की कामिनी लग रहीं थीं। जब वह मैदान में पहुंचीं तो सबकी आँखें उन दोनों की चूँचियाँ और गाँड़ पर टिक गयीं थीं।

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