Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 32

This story is part of the Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din series

    मेरी निजी टिपण्णी – जब मेरी यह कहानी अभी चल ही रही थी तब मुझे मेरी एक महिला पाठक, जिनका डिजिटल नाम “चंचल चंचु” है, उन्होंने मुझे सिर्फ एक लाइन का ईमेल लिखा।

    “हाई, मैं एक ** साल की लड़की हूँ। मैं आपकी कहानी को बहुत पसंद करती हूँ। लिखने के लिए शुक्रिया।”

    यह एक सीधा सादा ईमेल मेरे दिल को छू गया। इस एक लाइन में मेरी प्यारी पाठक ने कितना सारा लिख दिया। मैं ऐसे पाठकों के लिए ही लिखता हूँ। मैं ख़ास तौर से अपनी महिला पाठकों को यह कहना चाहता हूँ, की आप को भगवान् ने जो ह्रदय दिया है और उसमें जो भाव दिए हैं उनको मैं बार बार नमन करता हूँ।

    हमारी माँ, बहन, बेटी, प्रियतमा, पत्नी, और कई रूप में आप हम नालायक पुरुषों को झेलतीं हैं और उनको ना सिर्फ जन्म देती हैं और लालन पालन करती हैं बल्कि उनको ढेर सारा प्यार देती हैं। आपके इस ऋण को हम पुरुष लोग कभी अदा नहीं कर सकते। आप के कारण ही हमारा जीवन सफल बना है।

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    जम्मू स्टेशन से कैंप की और टैक्सी चला कर ले जाते हुए पुरे रास्ते में सुनीलजी को ऐसा लगा जैसे टैक्सी का ड्राइवर “शोले” पिक्चर की “धन्नो” की तरह बोले ही जा रहा था और सवाल पे सवाल पूछे जा रहा था।

    आप कहाँ से हो, क्यों आये हो, कितने दिन रहोगे, यहां क्या प्रोग्राम है, बगैरा बगैरा। सुनीता भी उस की बातों का जवाब देती जा रही थी जितना उसे पता था।

    जिसका उसे पता नहीं था तो वह जस्सूजीको पूछती थी। पर जस्सूजी थे की पूरी तरह मौन धरे हुए किसी भी बात का जवाब नहीं देते थे। सुनीता ड्राइवर से काफी प्रभावित लग रही थी। वैसे भी सुनीता स्वभाव से इतनी सरल थी की उसे प्रभावित करने में कोई ख़ास मशक्कत करने की जरुरत नहीं पड़ती थी। सुनीता किसीसे भी बातों बातों में दोस्ती बनानेमें माहिर तो थी ही।

    आखिर में जस्सूजी ने ड्राइवर को टोकते हुए कहा, “ड्राइवर साहब, आप गाडी चलाने पर ध्यान दीजिये। बातें करने से ध्यान बट जाता है। तब कहीं ड्राइवर थोड़ी देर चुप रहा।

    सुनीता को जस्सूजी का रवैया ठीक नहीं लगा। सुनीता ने जस्सूजी की और कुछ सख्ती से देखा। पर जब जस्सूजी ने सुनीता को सामने से सीधी आँख वापस सख्ती से देखा तो सुनीता चुप हो गयी और खिसियानी सी इधर उधर देखती रही।

    काफी मशक्कत और उबड़ खाबड़ रास्तों को पार कर उन चार यात्रियों का काफिला कैंप पर पहुंचा। कैंप पर पहुँचते ही सब लोग हिमालय की सुंदरता और बर्फ भरे पहाड़ियों की चोटियों में और कुदरत के कई सारे खूबसूरत नजारों को देखने में खो से गए।

    सुनीता पहली बार हिमालय की पहाड़ियों में आयी थी। मौसम में कुछ खुशनुमा सर्दी थी। सफर से सब थके हुए थे।

    सारा सामान स्वागत कार्यालय में पहुंचाया गया। जस्सूजी ने देखा की टैक्सी का ड्राइवर मुख्य द्वार पर सिक्योरिटी पहरेदार से कुछ पूछ रहा था। फ़ौरन जस्सूजी भागते हुए मुख्य द्वार पर पहुंचे।

    वह देखना चाहते थे की टैक्सी ड्राइवर पहरेदार से क्या बात कर रहा था। जस्सूजी को दूर से आते हुए देख कर चन्द पल में ही ड्राइवर जस्सूजी की नज़रों से ओझल हो गया। जस्सूजी ने उसे और उसकी टैक्सी को काफी इधर उधर देखा पर वह या उसकी टैक्सी नजर नहीं आये।

    जब कर्नल साहब ने पहरेदार से पूछा की टैक्सी ड्राइवर क्या पूछ रहा था तो पहरेदार ने कहा की वह कर्नल साहब और दूसरों के प्रोग्राम के बारेमें पूछ रहा था। पहरेदार ने बताया की उसे कुछ पता नहीं था और नाही वह कुछ बता सकता था।

    कुछ देर तक बात करने के बाद ड्राइवर कहीं चला गया। जब कर्नल साहब ने पूछा की क्या वह पहरेदार उस ड्राइवर को जानता था। तब पहरेदार ने कहा की वह उस ड्राइवर को नहीं जानता था। ड्राइवर कहीं बाहर का ही लग रहा था।

    जब कर्नल साहब ने और पूछा की क्या आगे कोई गांव है, तो पहरेदार ने बताया की वह रास्ता कैंप में आकर ख़तम हो जाता था। आगे कोई गाँव नहीं था।

    कर्नल साहब बड़ी उलझन में ड्राइवर के बारेमें सोचते हुए जब रजिस्ट्रेशन कार्यालय वापस आये तब सुनीलजी ने जस्सूजी को गहरी सोच में देखते हुए पाया तो पूछा की क्या बात थी की जस्सूजी इतने परेशान थे?

    जस्सूजी ने कहा की ड्राइवर बड़े अजीब तरीके से व्यवहार कर रहा था। ड्राइवर ऐसे पूछताछ कर रहा था जैसे उसको कुछ खबर हासिल करनी हो।

    कर्नल साहब ने यह भी कहा की जम्मू स्टेशन पर उनको जो मालाएं पहनाई गयीं और फोटो खींची गयी, वैसा कोई प्रोग्राम कैंप की तरफ से नहीं किया गया था।

    जस्सूजी की समझ में यह नहीं आ रहा था की ऐसा कौन कर सकता है और क्यों? पर उसका कोई जवाब नहीं मिल रहा था।

    सुनीलजी ने तर्क किया की हो सकता है की कोई ग़लतफ़हमी से ऐसा हुआ।

    जस्सूजी ने सोचते सोचते सर हिलाया और कहा, “यह एक इत्तेफाक या संयोग हो सकता है। पर पिछले कुछ दिनों में काफी इत्तेफ़ाक़ हो रहे हैं। मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा। मैं उंम्मीद करता हूँ की यह इत्तेफ़ाक़ ही हो। पर हो सकता है की इसमें कोई सुनियोजित चाल भी हो। सोचना पडेगा।”

    कर्नल साहब यह कह कर रीसेप्प्शन की और कमरे की व्यवस्था करने के लिए चल पड़े।

    सुनीलजी और सुनीता की समझ में कुछ नहीं आया। सब रिसेप्शन की और चल पड़े।

    जस्सूजी ने दो कमरे का एक सूट बुक कराया था। सूट में एक कॉमन ड्राइंग रूम था और दोनों बैडरूम के बिच एक दरवाजा था। आप एक रूम से दूसरे रूम में बिना बाहर गए जा सकते हो ऐसी व्यवस्था थी।

    दोनों बैडरूम में अटैच्ड बाथरूम था। कमरे की खिड़कियों से कुदरत का नजारा साफ़ दिख रहा था। सुनीता ने खिड़की से बाहर देखा तो देखती ही रह गयी। इतना खूबसूरत नजारा उसने पहले कभी नहीं देखा था।

    सुनीता ने बड़ी ही उत्सुकता से ज्योतिजी को बुलाया और दोनों हिमालय की बर्फीली चोटियों को देखने में मशगूल हो गए।

    सुनीलजी पलंग पर बैठे बैठे दोनों महिलाओं की छातियोँ में स्थित चोटियों को और उनके पिछवाड़े की गोलाइयोँ के नशीले नजारों को देखने में मशगूल थे। जस्सूजी उसी पलंग के दूसरे छोर पर बैठे बैठे गहराई से कुछ सोचने में व्यस्त थे।

    सुनीता ने ज्योतिजी कैंप के बिलकुल नजदीक में ही एक बहुत ही खूबसूरत झरना बह रहा था उसे दिखाते हुए कहा, “ज्योतिजी यह कितना सुन्दर झरना है। यह झरना उस वाटर फॉल से पैदा हुआ है। काश हमलोग वहाँ जा कर उसमें नहा सकते।”

    जस्सूजी ने यह सुन कर कहा, “हम बेशक वहाँ जा कर नहा सकते हैं। वहाँ नहाने पर कोई रोक नहीं है। दर असल कई बार आर्मी के ही लोग वहाँ तैरते और नहाते हैं। वहाँ कैंप वालों ने एक छोटा सा स्विमिंग पूल जैसा ढ़ाँचा बनाया है…

    आप यहां से घने पेड़ों की वजह से कुछ देख नहीं सकते पर वहाँ बैठने के लिए कुछ बेंच रखे हैं और निचे उतर ने के लिए सीढ़ियां भी बनायी हैं…

    आपको एक छोटा सा कमरा दिखाई रहा होगा। वह महिलाओं और पुरुषों का कपडे बदलने का अलग अलग कमरा है। वहाँ वाटर फॉल के निचे और झरने में हम सब नहाने जा सकते हैं।“

    जस्सूजी ने सुनीलजी को आंख मारते हुए कहा, “अक्सर, वाटर फॉल के पीछे अंदर की और कई बार कुछ कपल्स छुपकर अपना काम भी पूरा कर लेते हैं! पर चूँकि यह कैंप की सीमा से बाहर है, इस लिए कैंप का मैनेजमेंट इस में कोई दखल नहीं देता…

    हाँ, अगर कोई अकस्मात् होता है तो उसकी जिम्मेदारी भी कैंप का मैनेजमेंट नहीं लेता। पर उसमें वैसे भी पानी इतना ज्यादा गहरा नहीं है की कोई डूब सके। ज्यादा से ज्यादा पानी हमारी छाती तक ही है।“

    सुनीता यह सुनकर ख़ुशी के मारे कूदने लगी और ज्योतिजी की बाँहें पकड़ कर बोली, “ज्योतिजी, चलिए ना, आज वहाँ नहाने चलते हैं। मैं इससे पहले किसी झरने में कभी भी नहीं नहायी। अगर हम गए तो आज मैं पहेली बार कोई झरने में नहाउंगी।”

    फिर ज्योतिजी की और देख कर शर्माते हुए सुनीता बोली, “ज्योतिजी, प्लीज, मैं आपकी मालिश भी कर दूंगी! प्लीज जस्सूजी को कह कर हम सब उस झरने में आज नहाने चलेंगे ना?”

    ज्योतिजी ने अपने पति जस्सूजी की और देखा तो जस्सूजी ने घडी की और देखते हुए कहा, “इस समय करीब बारह बजे हैं। हमारे पास करीब दो घंटे का समय है। डेढ़ से तीन बजे तक आर्मी कैंटीन में लंच खाना मिलता है। अगर चलना हो तो हम इस दो घंटे में वहा जाकर नहा सकते हैं।”

    सुनीता जस्सूजी की बात सुनकर इतनी खुश हुई की भागकर छोटे बच्चे की तरह जस्सूजी से लिपटते हुए बोली, “थैंक यू, जस्सूजी! हम जरूर चलेंगे। फिर अपने पति की और देख कर सुनीता बोली, “हम चलेंगे ना सुनीलजी?”

    सुनीलजी ने सुनीता का जोश देखकर मुस्कुरा कर तुरंत हामी भरते हुए कहा, “ठीक है, आप इतना ज्यादा आग्रह कर रहे हो तो चलो फिर अपना तौलिया, स्विम सूट बगैरह निकालो और चलो।”

    स्विमिंग सूट पहनने की बात सुनकर सुनीता कुछ सोच में पड़ गयी। उसने हिचकिचाते हुए ज्योतिजी के करीब जाकर उनके कानों में फुसफुसाते हुए पूछा, “बापरे! स्विमिंग कॉस्च्यूम पहन कर नहाते हुए मुझे सब देखेंगे तो क्या होगा?”

    ज्योतिजी सुनीता की नाक पकड़ कर खींची और कहा, “अभी तो तुम जाने के लिए कूद रही थी? अब एकदम ठंडी पड़ गयी? हमें नहाते हुए कौन देखेगा? और मानलो अगर देख भी लिया तो क्या होगा? भरोसा रखो तुम्हें कोई रेप नहीं करेगा। अभी वहाँ कोई नहीं है। बस हम चार ही तो हैं…

    फिर इतने घने पेड़ चारों और होने के कारण हमें वहाँ नहाते हुए कोई कहीं से भी नहीं देख सकता। इसी लिए तो जस्सूजी कहते हैं की यहां कई प्यार भरी कहानियों ने जन्म लिया है।”

    यह सुन कर सुनीता को कुछ तसल्ली हुई। वह फ़टाफ़ट अपनी सूटकेस खोलने में लग गयी और ज्योतिजी को धक्का देती हुई बड़े प्यार और विनम्रता से बोली, “ज्योतिजी अपने कमरे में जाइये और अपना स्विमिंग कॉस्च्यूम निकालिये ना, प्लीज? चलते हैं ना?”

    ज्योतिजी सुबह से ही कुछ गंभीर सी दिख रही थीं। पर सुनीता की बचकाना हरकतें देख कर हँस पड़ी और बोली, “ठीक है भाई। चलते हैं। पर तुम मुझे धक्का तो मत मारो।”

    सुनीलजी कल्पनाओं की उड़ान में खो रहे थे। वह सोच रहे थे ज्योतिजी जब स्विमींग सूट पहनेंगीं तो अपने स्विमिंग सूट में कैसी लगेंगी?

    उसदिन वह पहेली बार ज्योतिजी को स्विम सूट में देख पाएंगे। उनके मन में यह बात भी आयी की सुनीता भी स्विमिंग सूट में कमाल की दिखेगी।

    सुनीलजी सोच रहे थे की उनकी बीबी सुनीता को देख कर जस्सूजी का क्या हाल होगा? इस यात्रा के लिए सुनीलजी ने सुनीता को एक पीस वाला स्विम सूट लाने को कहा था।

    वह ऐसा था की उसमें सुनीता को देख कर तो सुनीता के पति सुनीलजी का लण्ड भी खड़ा हो जाता था तो जस्सूजी का क्या हाल होगा?

    खैर, कुछ ही देर में यह सपना साकार होने वाला था ऐसा लग रहा था। बिना समय गँवाए दोनों जोड़ियाँ अपने तैरने के कपडे साथ में लेकर झरने की और चलदीं। बाहर मौसम एकदम सुहाना था। वातावरण एकदम निर्मल और सुगन्धित था।

    पढ़ते रहिये, क्योकि यह कहानी अभी जारी रहेगी और इसके साथ साथ आप सभी पाठकों को दीपावली की हादिक शुभकामनाए!

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