Drishyam, ek chudai ki kahani-51

This story is part of the Drishyam, ek chudai ki kahani series

    जब हवस दिमाग पे हावी हो तो तरिका तौर नहीं होता,
    बस लण्ड और चूत ही होती है, बाकी कुछ और नहीं होता।
    लण्ड तगड़ा हो चूत हो राजी दिन रात चुदाई होती है,
    फिर चूत सूजे या पाँव डुले उस पर कोई गौर नहीं होता।

    रमेशजी ने पीछे से अपने हाथ लंबा कर दोनों हाथों से आरती के दोनों स्तनोँ को कस के पकड़ा और उन्हें जोर से मसलते और दबाते हुए एक हल्का धक्का मार कर अपना तगड़ा लण्ड आरती की चूत में कुछ गहराई तक घुसाया।

    कुछ पल के लिए आरती को चक्कर सा आ गया। पर आरती ने रमेशजी को इसकी कोई भी भनक नहीं पड़ने दी। बल्कि आरती ने रमेशजी को चुनौती देते हुए कहा, “चोदिये रमेशजी, मुझे पुरे जोश से चोदिये। अब मैं तैयार हूँ। अब मुझे आपके रहम की कोई जरुरत नहीं है।”

    बस रमेश को और क्या चाहिए था? अब रमेशने अपना पेंडू पीछे किया और अपनी गाँड़ से लेकर अपने पुरे बदन से एक जोर से धक्का मार कर अपना पूरा लण्ड आरती की चूत में पेल दिया। चूत की सुरंग में भरी हुई चिकनाहट के कारण लण्ड चूत में पूरा घुस तो गया पर आरती को तगड़े चक्कर आने लगे।

    आरती की गाँड़ के पीछे खड़े रहने के कारण रमेश उस समय आरती के चेहरे के भाव देख नहीं सकता था। कितनी भी दबाने की कोशिश करने पर भी आरती के मुंह से हलकी सी चीख निकल ही पड़ी। पर रमेशजी के ऊपर चुदाई का तगड़ा भूत सवार था। वह अपने कई महीनों की चुदाई ना कर पाने की कसर निकालना चाहते थे। रमेश ने आरती को वह चीख या तो सुनी नहीं या सुनी अनसुनी कर दी।

    अब रमेश के दिमाग में सिर्फ अपने लण्ड की बेचैनी और उसकी उत्तेजना हावी थी। अब उसे और कुछ भी सूझ नहीं रहा था।

    रमेशजी आरती की चूत में एक से तगड़े एक धक्के मार मार कर आरती की चूत की ऐसी की तैसी करने में लगे हुए थे। आरती भी अपने होंठ अपनी जीभ के तले दबा कर रमेशजी के धक्के सहने में लगी हुई थी।

    आरती का चेहरा पसीने से तरबतर था। साथ ही साथ में रमेशजी आरती के दोनों स्तनों को इतने जोर से मसलने लगे थे की आरती बड़ी मुश्किल से अपनी वेदना दबा रही थी। पर साथ साथमें आरती को चुदाई के दर्द में एक मीठी मादकता और रोमांच का एहसास हो रहा था।

    आरती वैसे तो जब उसके पति उसे चोदते थे तो चाहती थी की उसके पति जल्दी झड़ ना जाए। पर यहाँ आरती मन से भगवान् को प्रार्थना कर रही थी की जल्दी ही रमेशजी झड़ जाएँ और आरती को इस तरह की बेरहम चुदाई से निजात मिले। पर लगता था की रमेशजी जल्दी झड़ने वाले नहीं थे। वह तो पीछे से आरती की चूत को एक के बाद एक तगड़े धक्के मार कर चोदे ही जा रहे थे।

    इस तरह चुदवाते हुए शायद आधा घंटा होनेको था। उस समय आरती के चेहरे के आतंकित भाव देखने वाले थे। सामने से अगर रमेशजी देखते तो उन्हें पता लगता की पीछे से हो रही चुदाई आरती के लिए कितना कष्टदायक थी। पर आरती को जितना कष्ट लगता था उतना ही मजा भी आ रहा था।

    एक तरफ आरती चाह रही थी की रमेशजी रुक जाएँ, तो दूसरी तरफ वह यह भी चाहती थी की रमेशजी ना रुकें चाहे आरती को मौत ही क्यों ना आ जाए।

    आरती इस बिच कम से कम दो बार जरूर झड़ चुकी थी। यह दिखाता था की आरती को दर्द होते हुए भी रमेशजी की चुदाई बहुत ज्यादा उत्तेजक और कामुक लग रही थी। आरती की वासना आग की तह भड़क रही थी और सारा दर्द उस कामना और वासना की ज्वाला में भस्म हो गया था। रमेशजी की चुदाई बेफाम चालु थी।

    हालांकि आरती का एक एक रोम रोम रोमांच से भरपूर था पर अब उसकी धीरज आखरी कगार पर थी। आखिर भोजन कितना भी स्वादिष्ट क्यों ना हो, पर खाने के भी एक लिमिट होती है।

    आरती की चूत रमेशजी के तगड़े लण्ड से घिस घिस कर लाल हो रही थी। चुदाई का दर्द वाकई में बहुत अजीब सा मीठा था, पर अब आरती को आराम की जरुरत थी। आरती को लग रहा था की उसे हार माननी ही पड़ेगी।

    पर आखिरकार औरत का दिमाग इन चीजों में तगड़ा चलता है। आरती इतनी चुदाई के बाद एक बात समझ गयी थी की अगर वह चुदवाती रही तो रमेशजी बगैर झड़े उसे चोदते ही रहेंगे।

    रमेशजी में वह क्षमता थी की अपनी चुदाई और आरती के सारे अंग, जैसे गाँड़, चूँचियाँ, होंठ, नाभि, गर्दन, कान, बाल और जाँघों का बड़ी ही दक्षता से इस्तेमाल करने के कारण से वह बार बार आरती को झड़वा देते थे पर खुद नहीं झड़ते थे।

    आरती ने तय किया की वह ऐसा कुछ करेगी की आरती को अपनी हार माने बगैर रमेशजी की ही कला का रमेशजी के ऊपर ही प्रयोग कर वह रमेशजी को झड़ने के लिए मजबूर कर देगी। अपनी पिछेसे चुदाई करते हुए रमेशजी को करीब एक घंटा होने को आया तब आरती ने पीछे अपनी गर्दन घुमाकर रमेशजी को थमने का इशारा किया।

    आरती को हार मानते हुए देख कर रमेशजी ने कहा, “बस? अभी से हार मानली? अभी तो आधी से ज्यादा रात बाकी है।”

    आरती ने अपने होठोँ को शरारती ढंग से चबाते हुए कहा, “मैं आपसे कोई प्रतिस्पर्धा थोड़े ही कर रही हूँ? आखिर मर्द मर्द ही होता है। आज आपने मुझे इतना आनंद दिया है की आजतक मुझे मेरे पति से चुदाई में इतना आनंद नहीं मिला। मुझे सिर्फ एक ही अफ़सोस है की जो सुख आप मुझे दे रहे हो वह मैं आपको नहीं दे पा रही हूँ। मैं आपसे हार जित की बात नहीं कर रही हूँ। मैं तो पूरी रात चुदवाउंगी, क्यूंकि आप की चुदाई ही ऐसी है की कभी संतुष्टि ही ना हो। पर मैं आपसे असंतुष्ट भी नहीं। अब मेरी बारी है की मैं आपकी पुरे तन मन से सेवा कर आपको वह सुख दूँ, जो आपको आजतक किसी ने नहीं दिया।”

    यह कह कर आरती ने रमेशजी को पलंग के बाजू में खड़ा किया और खुद घुटनों के बल बैठ कर रमेशजी का लण्ड मुंह में ले लिया। पर पहले की तरह रमेशजी का लण्ड सहज रूप से चूसने के बजाय आरती रमेशजी के लण्ड से खेलने लगी।

    कभी आरती रमेशजी के लण्ड के टोपे को चुस्ती और चाटती ही रहती। जब ऐसा होता तो रमेशजी अधीरे हो जाते अपना लण्ड आरती के मुंह में डालने के लिए। पर आरती रमेशजी के आग्रह को नजरअंदाज कर रमेशजी के लण्ड को अपने होँठ और जीभ से ऐसे खेलती की रमेशजी बेसब्र हो जाते आरती के मुंह में अपना लण्ड डलवा कर आरती का मुंह चोदने के लिए।

    बार बार आरती बड़ी ही कामुक नजर से रमेशजी के लण्ड की तरफ देख कर पूछती, “अरे लण्डजी क्या मेरे होँठ क्या मेरी चूत से ज्यादा रसीले नहीं?”

    रमेश के जहन में उस समय ऐसी उत्तेजना की लहार दौड़ जाती की उनका वीर्य उनके लण्ड की रगों में एकदम दौड़ने लगता। कुछ देर तक रमेशजी के लण्ड को इस तरह शरारत करने के बाद आरती ने रेशजी के लण्ड को अपनी चूँचियों से बिच लिया और दोनों स्तनों से उसे उत्तेजक तरीके से सहलाने लगी।

    साथ साथ में हर बार बड़ी ही कामुकता से रमेशजी की आँखों में आँख मिलाकर पूछती रहती, “कैसा फील हो रहा है, डार्लिंग?” बगैरह।

    फिर आरती भी खड़ी हुई और बड़े ही कामुक ढंग से रमेशजी के लण्ड को हाथमें पकड़ कर अपने कूल्हों को मटकाते हुए हलकी लय में धीरे से डान्स करने लगी।

    कभी रमेशजी का लण्ड वह अपनी चूत पर रगड़ती तो कभी लण्ड से अपनी चूँचियों को सहलाती तो कभी घूम कर अपनी गाँड़ के गालों के बिच की दरार में हलके से घुसाकर बाहर निकाल देती। इस तरह करने से रमेशजजी अपने वीर्य के उफान को रोक नहीं पा रहे थे। धीरे धीरे अपने इस तरह के कामकलापों के कारण आरती ने महसूस किया की आखिर रमेशजी किसी भी समय झड़ सकते हैं।

    आरती का पति अर्जुन आरती के बारेमें कहता था की “आरती कभी ना हारती”। मतलब कुछ भी हो जाए, आरती कभी अपनी हार नहीं मानती थी। उसी सत्य को जैसे प्रमाणित करने के लिए और रमेशजी को यह दिखाने के लिए की वह अभी भी चुदाई से थकी नहीं है आरती ने रमेशजी को हलके से धक्का मार कर पलंग पर लेटने के लिए इंगित किया।

    रमेशजी के लेटते ही आरती उनके ऊपर मर्द औरत के ऊपर जैसे चढ़ते हैं ऐसे आरती अपने घुटनों के बल रमेशजी के ऊपर सवार हो गयी और रमेशजी का लण्ड पकड़ कर कुछ देर अपनी चूत की पंखुड़ियों के बिच रगड़ने के बाद हल्का सा धक्का मार कर चूत को लण्ड के ऊपर डाला। उस पर थोड़ा सा वजन देकर आरती ने रमेशजी का लण्ड अपनी चूत में थोड़ा सा घुसाया।

    आरती वैसे तो कई बार इस पोजीशन में अपने पति अर्जुन को चोद चुकी थी। पर ऐसा मौक़ा उसे ज्यादातर नहीं मिलता था क्यूंकि अर्जुन आरती को चोद कर झड़ जाने के तक चोदता ही रहता था। पर जब जब आरती अर्जुन के ऊपर चढ़ कर उसे चोदती थी तो अर्जुन को एकदम जल्दी झड़ जाता था। अर्जुन कहता था की जब आरती उसे चोदती थी तो वह अपना वीर्य रोक नहीं पाता था।

    आरती ने भी रमेशजी पर वही फॉर्मूला आजमाया। जब लण्ड आरती की चूत में घुसा तो फिर थोड़ा ज्यादा वजन देकर आरती ने रमेशजी का लण्ड अपनी चूत में घुसेड़ ही दिया।

    हालांकि रमेशजी का तगड़ा लण्ड आरती की चूत में कई बार काफी अंदर तक घुस जाता था और आरती को काफी कुछ तकलीफ होती थी। पर जब चुदवाना ही है तो डरना क्या। अपने कूल्हे हिला हिला कर आरती रमेशजी की मालकिन बन कर उन्हें उपरसे चोदने लगी।

    बिच बिच में अपने बदन को इधर उधर हिला कर आरती रमेशजी का लण्ड अपनी चूत के हर कोने में रगड़ने का मौक़ा दे रही थी। इससे आरती को दर्द होता था। पर ऐसा करने से आरती एक साथ दो ध्येय हासिल कर रही थी।

    पहला यह की अब आरती के ऊपर था की रमेशजी का कितना लण्ड वह अपनी चूत में घुसाए। मतलब जब आरती को असहनीय दर्द होता था तो थोड़ा ऊपर उठ कर रमेशजी के लण्ड को अंदर कम घुसने देती थी।

    ऐसा करने से आरती को कुछ देर के लिए थोड़ी राहत मिल जाती थी। और दुसरा ध्येय यह था की रमेशजी को इतना उत्तेजित करना की वह अपने वीर्य का फव्वारा रोक नहीं पाए।

    आरती बार बार झुक कर थोड़ा सा अपना बदन खिंच कर रमेशजी के ऊपर लेट जाती थी और जैसा रमेशजी करते थे, उसी तरह आरती रमेशजी के बदन का ऊपर वाला हिस्सा, जैसे कपाल, आँखें, नाक, ख़ास कर होँठ, गला, रमेशजी की निप्पलेँ और छाती के बालों को चूमती और चाटती थी।

    ऐसा करते हुए वह बार बोलती रहती थी जैसे, “रमेशजी, मेरे स्वामी, मेरे मालिक, मुझे खूब चोदो। आज मैं आपकी गुलाम हूँ, मैं कितना ही चिल्लाऊं, कितना ही दर्द हो मुझे छोड़ना मत। मैं अपनी चूत में आपकी सारी मर्दानगी मैं अपने अंदर लेना चाहती हूँ।” और ऐसे ही बोल बोल कर आरती कभी कराहती तो कभी सिसकारियां भर कर अपने आनंद का अतिरेक व्यक्त करती।

    आरती को रमेशजी के बदन की उत्तेजना को इतना ऊपर उठाना था ताकि वह अपने वीर्य को नियंत्रण में रख ना सके और जल्द ही झड़ जाए।

    आरती का कराहना, गहरी साँसें लेकर अपनी उत्तेजना जताना और ख़ास कर आरती की गन्दी गन्दी बातें सुनकर रमेशजी के लण्ड में उनका वीर्य चाप उबलने लगा। रमेशजी के लण्ड की रगों में से वीर्य बाहर निकलने के लिए विवश हो रहा था।

    तो इधर आरती भी का बदन भी रमेशजी को ऊपर से चोदते हुए उत्तेजना और रोमांच से मचल हो रहा था। आरती के दिमाग में और उसकी चूत में गजब के उन्माद के पटाखे फूट रहे थे। आरती भी बस झड़ने वाली थी। अचानक ही रमेशजी ने कहा, “आरती आज तुमने मुझे गजब का चोदा। अब मैं झड़ने वाला हूँ। बोलो कहाँ छोडूं मैं अपने वीर्य को?”

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