पड़ोसन बनी दुल्हन-31

This story is part of the Padosan bani dulhan series

    उस युवा अवस्था में किसी सुन्दर चुदासी लड़की द्वारा इस तरह इतने कड़े शब्दों में इस कदर अपमानित होने की वारदात ने सेठी साहब के पुरे अस्तित्व को हिला कर रख दिया। उन्हें अपने आप पर एक तरह से नफरत सी हो गयी। दाम्पत्य जीवन के जो सपने उन्होंने युवावस्था में देखे थे वह उन शब्दों से चकनाचूर हो गए। युवा अपरिपक्वता से प्रेरित उसी समय उन्होंने ठान लिया की उनकी जिंदगी जीने के लायक नहीं है। उनको आत्महत्या कर लेनी चाहिए।

    सेठी साहब के माँ बाप और बचपन से सेठी साहब भी देवी माँ में बड़ा विश्वास रखते थे। घर जा कर माँ बाप के पाँव छूकर उनको यह कह कर की वह माँ के मदिर जा रहे हैं सेठी साहब घर के नजदीक ही देवी माँ के मंदिर के पास से रेल गाडी की पटरी गुजरती थी वहाँ आत्महत्या करने पहुंचे।

    उसी समय एक मालगाड़ी वहाँ से गुजर रही थी। सेठी साहब जैसे ही पटरी पर कूदने वाले थे की पीछे से मंदिर के पुजारी ने उन्हें देखा तो सेठी साहब के कपड़ों को पकड़ कर एक तगड़ा धक्का मार कर पीछे की और खींचा। दोनों गिर पड़े और माल गाडी गुजर गयी।

    पुजारी सेठी साहब को मंदिर में ले गया और सेठी साहब को कुछ भी उलाहना ना देते हुए बड़ी शान्ति और सौम्यता से सेठी साहब के हाथ में माँ का प्रसाद देकर उनसे सिर्फ एक ही बात कही। पुजारी ने कहा, “तुम्हारी जिंदगी अनमोल है। उसे इस तरह नष्ट मत करो। उसे समाज की और माँ की सेवा में लगाओ। तुम्हारी सारी समस्या माँ सुलझा देगी। तुम माँ की शरण में जाओ।

    यहां से पूरब दिशा में गंजाम जिले में चिलिका और बालुगाओं गाँव के नजदीक एक नारायणी माँ की शक्ति पीठ है। वहाँ के गुरुदेव की सेवा करो और कुछ समय वहाँ रह कर माँ का भजन करो। गुरुदेव बड़े ही कृपालु हैं। उनसे कुछ भी मत मांगो। वह अन्तर्यामी हैं। उनकी कृपा अपने आप ही हो जायेगी। तुम्हारे सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे।”

    सेठी साहब ने तय कर लिया की वह घर नहीं जाएंगे। घर जाएंगे तो माँ बाप उनकी शादी की बात करने लगेंगे और सेठी साहब को उन्हें बताना पडेगा की वह नपुंशक हैं। आत्महत्या नहीं की तो अब दुसरा रास्ता वही है जो पुजारीजी ने उन्हें बताया। और कुछ नहीं हुआ तो वह लोगों की सेवा करने में ही अपना जीवन बिता देंगे। सेठी साहब ने पुजारी को दंडवत प्रणाम किया और वहाँ से निकल पड़े।

    जाते जाते उन्होंने पुजारी से कहा, “माँ पिताजी को कहना की मैं कुछ देर के लिए माँ की शरण में जा रहा हूँ और कुछ ही समय में वापस आ जाऊंगा। मेरी चिंता ना करें।”

    यह कह कर सेठी साहब माँ नारायणी दुर्गा देवी के मंदिर जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े। करीब २०० किलोमीटर का रास्ता उन्होंने चल कर तय किया। रास्ते में जहां मौक़ा मिला सो जाते। कुआं, नलका या नदी देखि तो नहा लेते और गीले कपड़ों में ही चल देते। जो कुछ रास्ते में मिला खा लेते। अक्सर उन्हें भूखों रहना पड़ता।

    वह रास्ते में कोई भी मंदिर या गुरुद्वारा होता वहाँ जा कर किसी ना किसी तरह एक जून खाना जुटा लेते। एक हफ्ते के सफर के बाद वह अपने गंतव्य स्थान नारायणी मंदिर पहुंचे। वहाँ पहुँच कर वह बाबा से मिले। वहाँ जा कर सेठी साहब ने बाबा से कहा उन्हें कुछ सेवा देदो। ना सेठी साहब ने अपनी समस्या बतायी ना बाबा ने कुछ पूछा।

    बाबा के कहने पर सेठी साहब वहाँ के रसोई घर में अपनी सेवा देते रहे। करीब एक महीना गुजर ने के बाद बाबा ने सेठी साहब को बुलाया। बाबा सेठी साहब को माँ के मंदिर में ले गए, माँ को दण्डवत प्रणाम करने को कहा और खुद माँ के दर्शन करते हुए कुछ आँखें मूँद कर देर मौन ध्यान करते हुए खड़े रहे। उसके बाद उन्होंने सेठी साहब के हाथ में कुछ रुपये दिए और माँ का प्रसाद दिया।

    फिर उन्होंने सेठी साहब को आशीर्वाद देते हुए घर वापस जाने को और कोई अच्छी लड़की देख कर शादी करने को कहा और आदेश दिया की जिंदगी भर माँ की पूजा सेवा करना और जितना हो सके लोगों का और समाज का भला करने की कोशिश करना। किसी का बुरा मत करना।

    सेठी साहब के वापस आने पर तो उनका का सितारा बुलंद होने लगा। उनको एक से बढ़ कर एक कम्पनियों से जॉब के ऑफर आने लगे। कई कंपनियों में तो उनको बहुत अच्छी पोजीशन पर नौकरी का ऑफर हुआ। सेठी साहब के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब जो लड़की ने उन्हें इतना जबरदस्त ताना मारा था की वह नपुंशक है, वह नामर्द है वही लड़की उन्हें मिलने आयी।

    वह लड़की सेठी साहब से हाथ जोड़ कर बड़ी ही विनम्रता से माफ़ी मांगने लगी और बोली की उससे बड़ी भारी गलती हो गयी की सेठी साहब को उसने उतने कड़वे शब्द बोले। उसने कहा की सेठी साहब जैसे भी हैं वह उनसे शादी करना चाहती है। जब सेठी साहब ने उस लड़की से चुदाई करने के बारे में पूछा तो वह सोच में पड़ गयी, पर उसने हाँ कह दी। सेठी साहब ने उस लड़की को वहीँ पर पलंग पर लिटा कर इतना चोदा की वह लड़की सेठी साहब को चुदाई ख़त्म करने के लिए मिन्नतें करने लगी।

    जब सेठी साहब ने उसे चुदाई से फारिग किया तब उस लड़की ने सेठी साहब के पाँव छू कर दुबारा माफ़ी मांगी। उस लड़की ने ना सिर्फ माफ़ी मांग कर शादी करने की इच्छा जताई, बल्कि उसने कहा की उसने अपने माता और पिताजी से भी बात कर ली थी और वह भी इस शादी हो सके तो खुश हैं। सेठी साहब ने फ़ौरन शादी के लिए हाँ कह दी। सुषमा ने जब मुझे कहा, “वह लड़की मैं ही हूँ।” तब मैं भौंचक्का सा सुषमा जी को देखता ही रह गया।

    सुषमा और सेठी साहब की यह कहानी सुन कर मेरा सर चकरा गया। मैंने सुषमाजी से कुछ दुरी बनाते हुए उनको प्रणाम करते हुए कहा, “सुषमाजी, तुम्हारी और सेठी साहब की यह कहानी सुनकर मैं अपने आपको दोषी महसूस कर रहा हूँ। तुम्हारा और सेठी साहब का संबंध अटूट और अनूठा है। यह माँ के आशीर्वाद से बना है।

    मरे मन में इस को लेकर दो बातें उठ रहीं हैं। पहली बात तो यह है की मुझे लगता है जैसे मैं इसमें कहीं ना कहीं विलेन का पात्र निभा रहा हूँ। मैं कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहता। मेरा दूसरा सवाल यह है की जब तुम्हारा और सेठी साहब का मिलन माँ की दैवी शक्ति से हुआ है तो फिर यह बच्चे की समस्या क्यों?”

    सुषमा ने मुझे अपने करीब खींचा और वह मेरी बाँहों में आ गयी और मेरी नज़रों से नजरें मिलाकर एक प्यार भरी मुस्कान दी और बोली, “तुम्हारे सवाल में ही तुम्हारा जवाब है। तुम मेरे और सेठी साहब के संबंधों में कबाब में हड्डी नहीं तुम्हीं हमारे लिए कबाब हो।

    तुम हमारे बिच विलेन नहीं हीरो बन कर आये हो। तुम हमारे बच्चे की समस्या का समाधान हो। भला यह नारायणी माँ की इच्छा के बगैर कैसे हो सकता है की तुम हमारी जिंदगी में ऐसे आये जैसे तुम्हें माँ ने हमारी समस्या का समाधान करने के लिए ही भेजा हो? और दूसरी बात कोई भी औरत या मर्द, क्या अपने बच्चे को किसी और को देने के लिए कभी राजी हो सकता है क्या भला? टीना ने तो मुझे बगैर मांगे ही वचन दे दिया की चाहे सेठी साहब से टीना को बच्चा हो या आपसे मुझे बच्चा हो, वह एक बच्चा मुझे देगी।

    विधाता का लिखा हुआ माँ नारायणी भले ही खारिज नहीं करती पर अपने भक्तों के लिए उसका समाधान जरूर करती है। हमने जो चुदाई की या जो चुदाई हम करने जा रहे हैं वह यह समझो की माँ की मर्जी से ही हो रही है। इसमें माँ का दैवी संकेत है।”

    मैं यहां पाठकों को और ख़ास कर महिला पाठकों को यह सन्देश देना चाहता हूँ की चुदाई को पाप के रूप में ना लें। अगर चुदाई किसी का दिल दुखा कर नहीं हो रही और स्त्री और पुरुष की सहमति और प्यार से हो रही है तो वह पवित्र है। एक पति अपनी पत्नी को किसी और मर्द से चुदवाना चाहता है और अगर पत्नी को पति पर भरोसा है और वह दुसरा मर्द पत्नी को स्वीकार्य है तो पत्नी को उसका विरोध नहीं करना चाहिए। पति चाहता है की पत्नी भी दूसरे मर्द से चुदाई करवा कर दूसरे लण्ड का आनंद ले।

    पर हाँ, यह ध्यान रहे की इस चक्कर में पति पत्नी एक दूसरे से दूर ना हों। यह हो सकता है की पहले सम्भोग के बाद पत्नी किसी और मर्द से भी चुदवाना चाहे। या यह भी हो सकता है की पत्नी उसी मर्द से दुबारा तिबारा चुदवाना चाहे। अगर पति को उसमें कोई जबरदस्त आपत्ति ना हो तो पत्नी को दूसरे मर्द से भी चुदवाने देना चाहिए। अक्सर ऐसी चुदाई करने से पति और पत्नी में प्यार बढ़ता ही है। पर यह जरुरी भी नहीं। यह पति, पत्नी और तीसरे मर्द की मानसिकता पर आधारित है।

    आजकल यह आम हो गया है की पत्नियां पति के अलावा दूसरे मर्दों से चुदवातीं हैं। ज्यादा तर मामलों में यह चोरी छुपी होता है। कई मामलों में यह पति की इच्छा से होता है और कई मामलों में पति की परोक्ष रूप से इजाजत होती है। मतलब पति इजाजत नहीं देता पर उसे पता होता है की पत्नी दूसरे मर्द से चुदवा रही है पर वह इस बात का बतंगड़ नहीं बनाता।

    सुषमा की कहानी सुन कर मैं सेठी साहब के कमरे में रखी माँ की तस्वीर को सिर झुकाये बगैर रह नहीं पाया। सुषमा ने मेरी और सुषमा की चुदाई को पवित्र करार दिया यह सुन कर मुझे अच्छा लगा। आखिर चुदाई हम सब करते ही हैं। माँ बाप की चुदाई के बगैर हम थोड़े ही पैदा होते? हर रात हर घर में चुदाई होती है।

    चुदाई का सामाजिक अधिकार पाने के लिए ही स्त्री और पुरुष शादी करते हैं। तो फिर चुदाई को ऐसे हीन दृष्टि से क्यों देखना चाहिए? चुदाई भी हमारे जीवन का एक आम हिस्सा है, जैसे खाना, सोना, पैसे कमाना इत्यादि।

    दूसरी बात यह है की जब स्त्री और पुरुष चुदाई करते हैं तब ख़ास कर स्त्रियां चोदना, चुदाई, लण्ड, चूत ऐसे शब्द बोलने से कतराती हैं। कई महिलायें अगर बोलती भी हैं तो फ़क, कॉक, कंट ऐसे इंग्लिश शब्दों का प्रयोग करती हैं। ऐसा क्यों?

    अपने देसी शब्दों का उपयोग करने में हीनता का भाव क्यों? हम लण्ड, चूत, चोदना आदि शब्दों को गंदा क्यों गिनते हैं? हमें हमारी भाषा का भी सम्मान करना चाहिए और ख़ास कर हम जब चुदाई कर रहे हों या चुदाई की बात कर रहे हों तो इन शब्दों के उपयोग को असभ्य नहीं मानना चाहिए।

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