पड़ोसन बनी दुल्हन-34

This story is part of the Padosan bani dulhan series

    तब साले साहब ने मुझे कहा, “जी हाँ, मैं अलवर टूर पर गया था। मेरा तीन दिन का काम था। पर दो ही दिन में खतम हो गया। मैं वापस जा ही रहा था की उसी समय मुझे अंजू का फ़ोन आया और उसने मुझे सेठी साहब और टीना के बारे में और आप और सुषमाजी के बारे में काफी विस्तार से बताया।

    मुझे सारे समाचार सुन कर बड़ी ख़ुशी हुई। अंजू ने मुझे कहा की बेहतर होगा की मैं दिल्ली आपके पास पहुंचूं। सुषमाजी से तो मेरी बात होती ही रहती है। टीना कल आ जायेगी तो मैं उससे भी कल मिल लूंगा। जब मैं यहां यहां पहुंचा तो आप का घर बंद पाया। मैंने फिर सुषमा जी के घर का दरवाजा खटखटाया। सुबह से मैं यहीं हूँ। मैंने सोचा की आपको फ़ोन करूँ। पर सुषमा जी ने मना किया। उन्होंने कहा की शामको आपको सरप्राइज देंगे।”

    मेरे साले साहब सरकारी दफ्तर में अच्छी खासी पोजीशन पर थे। दिखने में बड़े ही हैंडसम वह काफी फिट थे। वह हमारे घर जब भी आते थे सेठी साहब को मिलने जरूर जाया करते थे।

    सेठी साहब के घरमें सुषमा जी से तो उनकी मुलाक़ात हुआ ही करती थी। जो भला सुषमाजी को एक बार मिल जाए उनको कैसे नजरअंदाज कर सकता है? साले साहब भी सुषमाजी से बड़े ही प्रभावित थे और वापस जाने पर भी फ़ोन से उनके संपर्क में रहते थे। हालांकि मामूली छेड़छाड़ और कभी कभी एक दूसरे की टांग खींचने को छोड़ उनकी बातचीत ज्यादातर औपचारिकता की सीमा में ही होती थी। एक दूसरे की सकुशलता और जन्म दिवस पर बधाई इत्यादि तक सिमित रहती थी।

    वाकई में साले साहब का आना मेरे लिए एक सरप्राइज़ नहीं शॉक था। आश्चर्य नहीं एक झटका था जिसे मैं झेल ने की कोशिश कर रहा था। मेरे चेहरे के भाव देख कर साले साहब बोल पड़े, “लगता है जीजूजी मेरे आने से ज्यादा खुश नहीं लग रहे। जिजुजी अगर आपको मेरा आना ठीक नहीं लगा तो मैं वापस चला जाता हूँ।”

    उतनी ही देर में सुषमा पीछे से दिखाई दीं। सुषमा ने मेरा बचाव करते हुए कहा, “संजू जी (मेरे साले साहब का नाम संजय था उसे प्यार से सब संजू कह कर बुलाते थे) राजजी आपके आने से बड़े ही खुश हैं। साले साहब के आने से कोई नाखुश हो सकता है भला? दरअसल राजजी हमारे सरप्राइज को हजम करने की कोशिश कर रहे हैं।”

    सुषमा फिर आ कर ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठी और मुझे और साले साहब को अपने दोनों तरफ बैठने को कहा। सुषमा के दायीं तरफ मैं और बांयी तरफ साले साहब बैठे। सुषमा ने जब कहा की “हमारा सरप्राइज” तब मैं समझ गया की सुषमा को साले साहब के आने से कोई ख़ास शिकायत नहीं थी। यह मेरे लिए बड़े ही आश्चर्य की बात थी।

    आजकी रात हमारी आखरी और चरम रात थी। और अब यह तय था की साले साहब हमारे रंग में भंग जरूर करेंगे। खैर जैसा भी हो मुझे अब इस बारे में कुछ भी नकारात्मक प्रक्रिया देना कोई फायदेमंद नहीं लगा। मैं चुपचाप रहा और सुषमा क्या कहेगी यह सुनने के लिए अपने आप को तैयार करने लगा। सुषमा ने मेरी और और संजू की और बारी बारी से देखते हुए जो बातें कहीं वह मेरे लिए आजतक एक अँधेरे में दिप जलाने के बराबर थीं।

    सुषमा ने कहा, “राजजी, आप संजयजी के आने का ओछा मत लिजीयेगा। आज पुरे दिन मैंने और संजयजी ने बैठ कर उनके जीवन का वह अजीबोगरीब पन्ना खोला और समझा है जिसे सुन कर आपभी करुणा, उत्साह और उत्तेजना से अभिभूत हो जाएंगे।

    विधाता हमारी जिंदगी में कैसे कैसे मोड़ लाती है और हम इंसान उन मोड़ों और घुमावों को किस नजरिये से देखते हैं और उन्हें कैसे पार करते हैं उससे यह तय होता है की हम जिंदगी में खुश रहेंगे या फिर जिंदगी से शिकायत ही करते रहेंगे।

    संजयजी ने वह मोड़ और घुमाव पार किये हैं और आज उनका आना इस लिए है की जब मैं और सेठी साहब इस अजीबोगरीब मोड़ पर खड़े थे तब संजयजी ही थे जिन्होंने हमें अपने ही अनुभव से मार्गदर्शन दिया और अँधेरे में एक दिप जलाकर आगे का रास्ता दिखाया।”

    सुषमा की बात मेरे लिए कोई पहेली से कम नहीं थी। मैं सुषमा से कुछ पूछने ने के बजाय सुषमा की और जिज्ञासापूर्ण नजरों से आगे बोल कर बात को समझाने के इंतजार में चुप रहा।

    सुषमा ने कहा, “जब हम बच्चे के बारे में बड़ी ही जद्दोजहद में उलझे हुए थे उसी अर्से में एक दिन मुझे संजयजी का फ़ोन आया। बातों बातों में संजयजी ने ताड़ लिया की मैं कुछ चिंतित थी।

    उनके बार बार पूछने पर भी जब मैं टालती रही तब उन्होंने मुझे सीधा पूछ लिया की क्या बात आपको बच्चा नहीं हो रहा उसको ले कर तो नहीं है? जब मैं उनकी बात का प्रत्युत्तर नहीं दे पायी तब वह समझ गए की वही बात थी।

    उन्होंने मुझे साफ़ साफ़ अपनी समस्या बिना छिपाए बता ने के लिए कहा। उन्होंने बिना कोई लागलपेट के कहा की उनके जीवन में भी बिलकुल ऐसा ही मोड़ आया था और फिर उन्होंने मुझे बताया की उसे उन्होंने कैसे सुलझाया।

    मतलब, पहले उन्होंने अपनी लम्बी कहानी कही जिसमें उन्होंने अपनी ही यह समस्या कैसे सुलझायी वह बताया। जब मैंने संजयजी को अपनी समस्या के बारे में बताया तब वह सोच में पड़ गए। उसके बाद उन्होंने कहा की वह सोच कर मुझे बताएँगे की उनका इस मामले में क्या सोचना है।”

    अब मेरी जिज्ञासा हद के बाहर हो रही थी। मुझसे सुषमा से पूछे बिना रहा नहीं गया, “फिर उन्होंने क्या बताया?”

    सुषमा ने कहा, “उन्होंने वही बताया जो हमने अमल किया है। आप और टीना के साथ मेरे और सेठी साहब के कितने अच्छे नजदीकी सम्बन्ध हैं वह तो संजयजी जानते ही थे।

    उन्होंने मुझसे पूछा की अगर हम दोनों कपल के एक दूसरे की पति अथवा पत्नि के साथ सेक्सुअल सम्बन्ध हों तो इससे क्या किसीको कोई तकलीफ होगी? तब मैं उनकी बात सुनकर चौंक गयी। मेरा माथा ठनक गया। यह संजयजी क्या बात कर रहे थे? मेरी समझ में नहीं आ रहा था।

    पहले तो मैं उनकी बात सुनकर काफी नाराज हुई की ऐसी उलटपुलट बात संजयजी क्यों कह रहे थे? पर फिर उनकी बातों में गंभीरता देखते हुए उसके बारे में सोचने लगी।“

    सुषमा ने फिर मेरी और मुड़ कर मुझे देखा और बोली, “यह तब की बात है जब सेठी साहब टीना को हंसी मजाक में छेड़ते रहते थे पर तुम वहाँ होने के बावजूद भी उसे बुरा नहीं मानते थे।

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