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चुदाई के रंग में रंगी मेरी चुदक्कड़ मां-3 (Chudai ke rang mein rangi meri chudakkad maa-3)

पिछला भाग पढ़े:- चुदाई के रंग में रंगी मेरी चुदक्कड़ मां-2

स्वागत है आप लोगों का उस सफर पर, जो आगे चल कर मेरी मां को एक चुदक्कड़ औरत बना देगा।

मैंने और गौरव ने मिल कर एक-दूसरे का दूध निकाल दिया, जिससे हम दोनों को बेहद सुकून मिला और हमारे बीच की दोस्ती इतनी मजबूत हो गई कि अब एक-दूसरे से हम कुछ भी कह सकते थे, और बिना संकोच के।

इसके बाद गौरव और मैंने कपड़े पहने और गौरव अपने घर चला गया। कोमल अपने कमरे में कपड़ों की तय कर रही थी और उसने मुझे आवाज दी।

कोमल: समर आज कपड़े तय करने में मेरी मदद कर।

मैं कोमल के पास जाता हूं और कपड़े तय करने लग जाता हूं।

मैं: मम्मी नए पड़ोसी काफी अच्छे है ना? मेरी और गौरव की पहले ही दिन बहुत गहरी दोस्ती हो गई। मेरे और उसके ख्यालात सारे मिलते है।

कोमल: अच्छा, मुझे वो सरोज ज्यादा अच्छी नहीं लगी। कितनी अजीब औरत है वो। छी!

मैं: क्या हुआ, इतनी अच्छी तो है आंटी। पहले दिन ही मिठाई का डिब्बा लेकर आई।

कोमल: पर उसकी सोच बहुत घटिया है।

मैं: क्यों क्या हुआ?

कोमल: कुछ नहीं छोड़ो।

मैं: बताओ तो फिर भी।

कोमल: बेटा, ना तो वो लोग किसी भगवान में मानते है और बिल्कुल बेशर्मों की तरह बात करती है वो।

मैं: अच्छा कुछ कह दिया क्या आपको?

कोमल: नहीं लेकिन वो बहुत गिरी हुई औरत है।

मैं: मम्मी खुल कर बताओ क्या हुआ?

कोमल: तुझे क्या दिलचस्पी है? काम कर चुप-चाप।

मैं: मम्मी प्लीज बताओ ना, अब मैं बच्चा नहीं हूं। सब समझ आता है मुझे।

कोमल: अच्छा।

मैं: हां अब खुल कर बताओ। वैसे भी तुम कभी खुल कर बात नहीं करती।

कोमल: कुछ नहीं हमारी बात चल रही थी और बातों-बातों में मैंने कह दिया कि मेरा पति तो मुझसे सिर्फ लड़ता रहता है और कहीं घूमने वगैरह भी नहीं लेकर जाता। और वो कहती कि अगर मैं आपकी जगह होती तो पहले ही दिन किसी और के साथ भाग जाती। कहती कि उसका पति उसे किसी चीज के लिए नहीं रोकता बेशक वो छोटे कपड़े पहने या बिना बताए किसी के साथ चली जाए। उसे कोई परवाह नहीं। वो कभी अपने सास ससुर के पास भी नहीं जाती,‌ क्योंकि वो लोग ऐसी चीजों से मना करते है। उसका पति भी अपने मम्मी पापा के पास नहीं जाता, क्योंकि वो लोग सरोज को टोकते है उसकी हरकतों को लेकर। बताओ अपने पति को उसके घरवालों से ही अलग कर दिया। लोग क्या सोचते होंगे उसके बारे में?

मैं: ये तो बहुत अच्छी बात है मम्मी। तुम पागल हो। मैं तो खुद कहता हूं मेरा बाप बहुत घटिया है। सरोज आंटी कितनी खुश है। उनके पति उन्हें किसी चीज से नहीं रोकते और उनका साथ देते हैं और वो जो भी पहने उस से आपको क्या दिक्कत? मुझे तो सरोज आंटी की सोच बहुत अच्छी लगी। मैं तो कहता हूं आप भी उन जैसी बन जाओ।

कोमल: चुप कर तू। तुझे कुछ नहीं पता। इस उम्र में उसे ये सब शोभा देता है क्या? और तू अपने बाप के बारे में कैसे शब्द बोल रहा है?

मैं: बहुत सही कह रहा हूं। वो इंसान तुम्हे इतना तंग करता है फिर भी तुम सह रही हो, और मेरे बाप की वो गंदी सी मां आपकी सास आपको कितना सुनाती है। तुम फिर भी उनकी सेवा करती हो। आप सरोज आंटी से कुछ सीखो।

कोमल: कितना बदतमीज़ हो चुका है तू। जुबान पर काबू कर।

मैं: नहीं मम्मी, तुम सरोज आंटी से कुछ सीखो। सरोज आंटी जैसी मॉडर्न सोच रखो और मेरे बाप की मत सुनो।

कोमल: शर्म नहीं है तुझमें। उसे कोई परवाह नहीं उसके बच्चे पढ़े या कहीं आवारा घूमते रहे। ऐसी मां भगवान किसी को ना दे जो अपने बच्चों की भी फिक्र ना करे।

मैं: ये तो बहुत अच्छी बात है मम्मी। तभी गौरव इतना बेफिक्र और मोज में रहता है।

कोमल: ये सब तुझे ठीक लगता है?

मैं: मम्मी देखो सरोज आंटी का मानना है कि एक जिंदगी है, जिसे वो खुल कर जीना चाहती है और अपने बेटे को उन्होंने यही सिखाया है कि जो उसे ठीक लगे वो वही करे ताकि बाद में चल कर उसे कोई पछतावा ना हो। गौरव वही करेगा जिसमें उसे मजा आए। उसके घर वालों ने उस पर कोई दबाव नहीं दिया जिससे गौरव का कॉन्फिडेंस और बढ़ जाता है, क्योंकि उसके घरवाले उसका हर चीज में साथ देंगे।

मैं: सरोज आंटी बिगड़ी हुई नहीं है बल्कि उनकी सोच बहुत ज्यादा अच्छी है। वो ज़िन्दगी का लुत्फ उठा रही है। तुम मेरे बाप की खरी खोटी सुन कर ही अपनी जिंदगी खराब करो। सरोज आंटी को देखो कितने मजे करती है। तुम्हारे बस का कुछ नहीं है बस अपनी किस्मत पर रोती रहती हो तुम।

कोमल: क्या कह रहा है तू? अब इस उम्र में क्या मैं बिल्कुल आवारा बन जाऊं? लोग क्या कहेंगे?

मैं: लोगो का तो काम है भौंकना। मैं तो कहता हूं कि सरोज आंटी के साथ रह कर उन जैसे रहना सीखो और जिंदगी में मजे करो। तुम्हे भी लगता होगा कि काश मैं ये कर लेती काश मैं वो कर लेती।

कोमल: वैसे बात तो तेरी ठीक है। बहुत तंग हूं मैं जिंदगी से। तेरे पापा और वो तेरी खडूस सास मुझे जीने ही नहीं देते।

मैं: बिल्कुल बेफिक्र होकर मजे करो और मैं आपका साथ दूंगा हर चीज में। मैं तो कहता दूसरी शादी कर लो जो आदमी तुम्हें खुश रखे।

कोमल: तू कुछ ज्यादा नहीं बोल रहा। शर्म कर क्या बोल रहा है तू। अपनी मां से ऐसे कौन बात करता है?

मैं: मम्मी अभी आपकी जवानी बची हुई है उसे मजे से जीयो मैं तो ये चाहता हूं। मैं तो खुल कर जीऊंगा।

कोमल: बेटा अब तो ज्यादा बोल रहा है।

मैं: मम्मी मेरे मन में ये बातें बहुत टाइम से है। कभी खुल कर तुम्हे कह नहीं पाया। मैं तो कहता हूं कि मेरे बाप को छोड़ दो और हम दोनों अलग रहते है जिससे दोनों सिर्फ मजे करेंगे और किसी की रोक-टोक नहीं होगी।

कोमल: हद है। वैसे सच बताऊं कभी-कभी मैं सोचती हूं ऐसा। काश तेरे बाप से अलग रह पाती मैं।

मैं: अब भी कुछ नहीं बिगड़ा। मम्मी देखी लाइफ एक बार मिलती है। इसे खुल कर नहीं जिया तो क्या ही किया फिर। तुम्हे जो ठीक लगे वो करो अब से। मैं तुम्हारे साथ हूं।

कोमल: चल ठीक है आज से मैं भी सरोज की तरह रहने की कोशिश करूंगी। मुझे वो बहुत गंदी लगी थी, पर तेरी बातों ने मुझे सच दिखा दिया। लेकिन तेरा बाप बहुत लड़ेगा मेरे साथ, फिर?

मैं: मम्मी आज एक बात गांठ बांध लो कि मेरे बाप की एक नहीं सुननी। ऐसा जरूरी नहीं है कि एक बार जिसके साथ शादी हो गयी वो तुम पर जुल्म करता रहेगा और तुम सहते रहोगे।

कोमल: हां ये तो है। चल अब मैं खाना बना लूं। शाम हो गई और तेरा बाप भी आने ही वाला है।

मैं: छोड़ो आज बाहर खाकर आते है। मेरा बाप वैसे भी कुछ ज्यादा उछलता है आज-कल। कोई जरूरत नहीं उसका खाना बनाने की आज।

कोमल: बकवास बंद कर। तू कुछ ज्यादा बोल रहा है।

मैं: प्लीज एक बार मेरी बात तो मानो। तुम्हे भी हक है अपनी जिंदगी जीने का। मजे करो।

कोमल: चल फिर अब ठान ही लिया है तो चलते है बाहर। देखा जाएगा अब जो होगा।

कोमल तैयार होकर आती है। गुलाबी रंग का सूट जो थोड़ा ट्रांसपेरेंट था। उसमें से उसकी कमर दिख रही थी और उसकी ब्रा भी साफ नजर आ रही थी। और पहली बार उसने जींस डाली, क्योंकि संस्कारों के बंधन में बंधी कोमल ने कभी भी ऐसा कुछ नहीं पहना था जो संस्कृति के खिलाफ हो।

टाइट जींस में उसकी गांड बहुत मस्त लग रही थी। उसका ये रूप देखते ही मेरा लंड झटके मारने लगा। मेरे मन में ना जाने क्या आया मैंने कोमल को कस के गले लगाया और उसे गालों पर जोर से चूम लिया।

कोमल: क्या हो चुका है तुझे? क्या कर रहा है?

मैं: मम्मी आज तक तुमने कभी खुल कर कुछ नहीं किया। बस आज बहुत अच्छा लग रहा है कि तुम बंधनों से मुक्त होने जा रही हो।

कोमल: बस-बस। देखते है क्या होगा।

मैंने कोमल को जब गले लगाया और गालों पर किस्स किया तो उसे लगा कि मैंने बेटे के प्यार से उसे गले लगाया। परंतु मैंने मेरी वासना की नजर से उसे देखा था और मेरी किस्स भी हवस से भरी थी। लेकिन कोमल इस बात से अंजान थी। फिर हम खाना खाने बाहर जाते है और मेरा बाप हमारे घर आने पर बहुत हंगामा करता है।

इस पार्ट में इतना ही। मेरे साथ जुड़े रहिए और अपनी फैंटेसी और सुझाव मुझे अवश्य भेजें।
writersamaragarwal@gmail.com

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