Ek Ajnabi Hasina Se Mulakat Ho Gayi

नमस्कार दोस्तों, आपका अपना दीप पंजाबी आपकी सेवा में एक नई कामुक मेरी हिन्दी चुदाई कहानी लेकर हाज़िर है। ये कहानी भी पिछली कहानी की तरह मेल केे द्वारा एक नए दोस्त ने भेजी है। सो आगे की कहानी उसी की ही ज़ुबानी…

सबसे पहले तो देसी कहानी डॉट नेट साईट के सभी चाहने वाले समीर का प्यार भरा नमस्कार कबूल करे । मेरा खुद का अपना टेलिकॉम का बिज़नस है और मैं पंजाब से ही हूँ| मेरी उम्र 25 साल है। मैं इस साईट से कई महीनो से जुड़ा हुआ हूँ। ये मेरी पहली कहानी है। सो कृपया यदि कोई गलती लगे तो नौसिखिया बच्चा समझ के माफ़ कर देना।

आपका ज्यादा समय बर्बाद न करते हुए सीधा आज की कहानी पे आते है।

इस कहानी का बनना एक महज एक संयोग कह सकते है। हुआ यूं के एक दिन मैं अपनी दूर की रिश्तेदारी हरियाणा में किसी काम से गया हुआ था। वहां से हफ्ते बाद अपना वो काम निपटाकर वापिस अपने घर की तरफ लौट रहा था।

मेरा घर एक छोटे से गांव में होने की वजह से शहर से बस, ऑटो या टैक्सी लेकर आना पड़ता था। जो के मेरे गांव से 20 किलोमीटर दूरी पे था। सो उस दिन जैसे ही हरियाणा से सुबह की चली बस, पंजाब में एक चौक पे शाम को आकर रुकी। तो मैं नीचे उत्तर कर अपने घर की तरफ जाने वाले किसी वाहन की प्रतीक्षा करने लगा। इतने में मौसम एकदम बिगड़ गया और एक दम बरसात होने लगी। मैं भीगने से बचने के लिए भागकर किसी सुरक्षित स्थान की और दौड़ने लगा।

लेकिन दूर दूर तक कोई ठहर दिखाई न दी। वहां से काफी दूर थोड़ी देर आर्ज़ी तौर पे तयार की घास फूस की झोपडी की आड़ में सहारा लेकर भीगने से बचने का असफल प्रयास करने लगा। मैंने खुद को ज्यादा भीगता देखते हुए कोई और सुरक्षित ठिकाना ढूंढने का विचार बनाया। उस जगह से लगभग एक किलोमीटर दूर एक घर दिखाई दिया। जिसकी अंदर वाली लाइट रोशनदान से जलती हुई दिखाई दे रही थी। मैंने वहां जाकर उस घर का दरवाजा खटखटाया।

कुछ ही पलो में एक सुंदर सी लड़की जिसकी उम्र यही कोई 25 साल होगी, रंग गोरा, लम्बा गाउन पहने थी, उसने दरवाजा खोला। मेरे चेहरे और मुझे भीगा हुआ देखकर…
वो — हांजी कहिये ??

मेरे गले में लटके बैग को देखकर उसने मुझे शयद कोई सेल्समन समझ लिया होगा ऐसा मेरा मानना था।

मैं — जी मैं यहाँ से 20 किलोमीटर दूर के गांव का रहने वाला हूँ, अपनी दूर की रिश्तेदारी से वापिस आ रहा था, तो रास्ते में बारिश शुरू हो गयी, अब क्या पता कब तक बारिश रुके तब तक के लिए आपके घर में थोड़ी देर रुकने की इज़ाज़त लेने आया था।

वो — वो सब तो ठीक है लेकिन एक अजनबी को मैं कैसे पनाह दे सकती हूँ। माफ़ करना घर में अकेली हूँ और कोई खतरा मोल नही ले सकती। कृपया कोई और घर आगे देखो और ये कोई धर्मशाला नही है। इतना सब कुछ वो एक ही पल में चाबी भरे खिलोने की तरह बोल गई और दरवाजा बन्द कर लिया।

उसके ऐसे रूखे व्यवहार से मेरा दिल एक दम चकनाचूर हो गया और सोचने लगा यार, कैसे लोग है शहर के किसी की मज़बूरी भी नही देख सकते ?
सो मैं वहां से भीगता हुआ क़िसी और सहारे की तलाश करने लगा। मेरे मन में तरह तरह के सवाल उठ रहे थे।
इन्ही सवालो से झूँझता मैं दुबारा एक पार्क के नाम पे तयार हो रहे एक कमरे में जाकर रुक गया। उस वक़्त मैं पूरी तरह से भीग चूका था और ठण्डी चलती हवा की वजह से कपकपी भी उठ रही थी। थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद एक कार मेरी तरफ आती दिखाई दी तो मैंने सोचा पूछता हूँ ड्राईवर से शायद शहर तक जायेगी तो इसपे ही चला जाउगा। मैं इन्ही सोचो में खोया था के तभी वो कार मेरे पास आकर ही रुक गयी। मैं कपकपाता उस कार को देख रहा था। उसमे रेनकोट पहने एक सक्ष जिसका चेहरा कोट के साथ लगी टोपी से ढका हुआ था, बाहर आया और हाथ में बैटरी जलाये मेरी तरफ ही आ रहा था।

एक दम मेरे पास आकर उसने अपने सर से वो टोपिनुमा नकाब निकाला और मेरी तरफ देखा।

एक दम मुझे याद आया, अरे यार ये तो वही लड़की है जिसने 20 मिनट पहले मेरा प्रस्ताव ठुकराया था।

मैं — (थोडा नराजगी से) — हाजी कहिये, अब क्या दिक्कत है आपको ?
यहां खडना भी ज़ुर्म है क्या ??

वो — मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी। दरअसल उस वक़्त मेरा मूड थोड़ा खराब था। बस ऐसे ही किसी का गुस्सा आप पे निकाल दिया। आइये अब घर चलते है। अब चाहे एक रात रुक भी जाना। मुझे कोई आपत्ति नही है।

मैं — नही धन्यवाद मैडम, पहले ही आप मेरी बहुत सेवा कर चुकी है। आप जाइये मैं अब अपने ही घर जाऊँगा। चाहे देरी से ही जाऊ लेकिन अब आपके साथ तो बिल्कुल भी नही आउगा।

वो — अब गुस्सा थूक भी दीजिये न कह तो दिया बस मूड खराब की वजह से गलती हो गयी। मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हूँ। प्लीज़ मुझसे माफ़ करदो।

मैं — (गुस्से से) — क्यों अब क्या हो गया। अब कोनसी फ़ौज़ आपके पास होगी और वैसे भी आप मेरी वजह से डिस्टर्ब ही होंगी । सो कृपया आप मुझे भी माफ़ करे और अपने घर जाइये। मैं चला जाउगा अपने घर। साली इंसानियत नाम की चीज़ ही खत्म हो गयी है आप जैसे लोगो की वजह से, अब खडी क्यों हो जाइये न, क्यों अपना वक्त खराब कर रही हो। सो जाओ जाकर घर अपने।

गुस्से में मुझे पता ही नही चला उसे न जाने कितनी ही उलटी सीधी बाते बोल गया।

वो — मान भी जाइये न प्लीज़, एक बार घर तो चलिए न वहां जाकर जितना मर्ज़ी डांट लेना।

वैसे भी यहां कब तक खड़े रहोगे। ऊपर से ठंडी रात है। यहाँ आपकी कुल्फी जम जायेगी।

वो मुझे ऐसे मना रही थी के जैसे मेरी बीवी या गर्ल फ्रेंड हो।

उसकी आवाज़ में निवेेदन, मायूसी, पछताचाप साफ साफ दिखाई दे रहा था।

उसकी बात मानते हुए मैं उसकी गाडी में बैठ गया और उसके साथ उसके घर तक पहुँच गया।

अंदर जाकर उसने मुझे सोफे की तरफ इशारा करके बैठने को कहा।

परन्तु भीगा होने की वजह से मैंने खड़ा रहना ही उचित समझा।

मैं अभी भी इसी कशमश में था के इसको ऐसा क्या सूझा के पहले धक्के मार रही थी और अब मिन्नते कर रही है। इसी उलझनतानी में पता ही नही चला के कब वो मेरे लिए एक जेंट्स कुर्ता पायजामा और तौलिया लेकर मेरे सामने खड़ी थी।

वो — बाकी की बाते बाद में पहले ये लो कपड़े बदल लो, वरना सर्दी लग जायेगी और बीमार पड जाओगे।

मेरे ना ना करने के बावजूद भी उसने मुझे कपड़े दे दिये और बाथरूम की तरफ इशारा करके जल्दी वापिस आने को बोला।

मैं बाथरूम में भी यही सोचता रहा के एक अजनबी लड़की इतना अपनापण क्यों दिखा रही है।

उस वक़्त बड़े अजीब अजीब ख्याल मेरे दिमाग में आ रहे थे।

कई बार खुद ही अपने सवाल का जवाब देने लग जाता के यार फेर क्या हुआ उसने गुस्से में बोल दिया, इंसानियत भी एक चीज़ होती है और अब माफ़ी भी तो मांग रही है। मैं अपने कपड़े बदल कर वही अपने भीगे कपड़े सुखा कर उसके पास बाहर सोफे पे जाकर बैठ गया। तब तक वो टेबल पे गर्म चाय के दो कप, गरमा गर्म पकोड़े ट्रे में लेकर वही मेरा इंतज़ार कर रही थी।
मेरे सोफे पे बैठते ही उसने प्लेट, कप मेरी तरफ उठाकर आगे बढ़ाया और खुद दूसरा कप अपने होठो से लगा लिया। दो तीन मिनट तक चुपी छाई रही। जब हमने चाय पीली तब वो बोली हांजी अब दिल में जितनी भी भड़ास है निकाल लीजिये।

सबसे पहले एक बार फेर आपसे माफ़ी चाहती हूँ के शाम को जो भी हुआ। आज रात आप यहा रुक सकते हो। जब सुबह बारिश बन्द हो जाये अपने घर चले जाना।

वो दरअसल उस वक़्त मैं अपने पति से फोन पे झगड़ा करके हटी थी। जो के किसी कम्पनी में मैनेजर की पोस्ट पे तैनात है। एक हफ्ते से घर नही आये है। ऊपर से मेरी सासु माँ, मेरी नन्द के यहाँ चली गयी है। आप तो समझदार हो बिना परिवार के अकेली पत्नी कैसे रह सकती है ?

इसे मेरी मज़बूरी समझो या कुछ और मुझे कोई फर्क नही पड़ने वाला।

हाँ अकेली का दिल नही लग रहा था । सो सोचा आपको रात गुजारने के लिए छत मिल जायेगी और मुझे एक पार्टनर ।

उसकी दोगली बातो के अर्थ को मैं अच्छी तरह से समझ रहा था।

करीब आधा घण्टा बाते करने के बाद वो उठी और रसोई में खाना बनाने चली गई। बाद में हमने साथ में खाना खाया और बातो में पता चला के उसका नाम मीनाक्षी अरोड़ा है और वो यहां अपने पति और सासु माँ के साथ रहती है। उसकी शादी को डेढ़ साल हो गया है और अभी तक माँ नही बनी है, और वो एक हफ्ते से सेक्स की भूखी है। अब पूरी बात मेरी समझ में आ चुकी थी के उसे अपनी काम अग्नि शांत करने के लिये मेरा शिकार किया है।

सारा काम निपटाने के बाद उसने मुझे मेरा कमरा दिखाया, बातो बातो में मुझे याद आया के मेरे घर वाले मेरा रास्ता देख रहे होंगे। मैंने ऐसे ही उसे ऐसे बोल दिया खाना खा लिया अब मुझे जाना चाहिये घर वाले मेरी चिंता कर रहे होंगे। मेरी इस प्रतिकिर्या से जैसे उसके सारे अरमानो पे पानी फिर गया हो।

उसने अपना मोबाईल मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा,” ये लो फोन अपने घर पे फोन लगाकर बोल दो के बारिश की वजह से आज नही आ पाउँगा ! आज की रात किसी दोस्त के यहाँ रुका हुआ हूँ। सुबह बारिश के बन्द होते ही आ जाऊंगा। एक बात तो पक्की हो गयी थी के वो मुझे जाने नही देना चाहती। मैंने उसके मोबाईल से घर पे फोन कर दिया के किसी दोस्त के घर पे रुका हूँ सुबह बारिश रुकते ही घर आ जाउगा।‌‌‌‌‌

मेरे फोन बंद करते‌ ही उसने मुझे थॆकस बोला ऒर पास ही बेठते हुए कहा,” हाजी ये हुइ ना बात, अब बताओ कहा से आ रहे हो?

में — वो दरअसल आपके शहर के पास के गाँव मे हमारी एक रिश्तेदारी है। उनकी बेटी का रिशता तॆय हुआ हॆ। सो इसी सिलसिले में वहां गया हुआ था ओर आते वकत बारिश की वजह सॆ आपसे सामना हो गया। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

इसपे वो थोडा सा मुसकुरायी ऒर एक बार फिर अपने किए बर्ताव के लिये एक बार फिर माफी मांगी।

वो — आपका नाम और आपके परिवार में और कौन कौन है ?

मैं — जी मेरा नाम समीर है और मेरी फैमली में मैं, मेरी बीवी, दो बच्चे, मेरे माता पिता, मेरे भाई भाभी और उनके दो बच्चे कुल मिलाकर 10 मेंबर है।

वो — फेर तो आप मेरी मज़बूरी अच्छी तरह से समझ सकोगे ?

मैं — कैसी मज़बूरी ? मैं समझा नही मैडम ?

वो — पहले तो आप मुझे मैडम नही मीनाक्षी कहकर पुकारे। मुझे अच्छा लगेगा। मेरे पति तो मुझे कामिनी कह कर भी बुलाते है।

मैं — अच्छा जी, अब आपको मीनाक्षी बोलू या कामिनी ।

वो — जो आपका दिल करे बुला सकते हो। आज की रात आपकी मर्ज़ी चलेगी।

मैं इतना तो पक्का समझ गया था वो चुदवाने की खातिर इतने पापड़ बेल रही है।

परन्तू मैं अपनी तरफ से पहल नही करना चाहता था। वो बार बार ग्रीन सिग्नल के तौर पे बात करते करते आँख मारना, होंठो पे जीभ फेरना, अपनी चूत को खुजलाना आदि कामुक इशारे कर रही थी।

आग के पास घी कब तक ठोस रहता। सो एक तो ठण्ड, ऊपर से कई दिनों तक बीवी से दूर रहना पड़ा। जिसकी वजह से कई दिनों से सोये अरमानो को उसकी अदाओं ने रोम रोम में काम जग दिया। मन में सोचने लगा, सच में ही इसके पति ने इसका कामनी नाम बड़ा सोच समझ कर रखा होगा। मेरा आधे घण्टे में ये हाल है। उसका तो इस से भी बुरा हाल होता होगा।

जब रोज़ाना इसकी कातिलाना अदाओ के तीर उसके दिल पे लगते होंगे। मैने उसके नज़दीक् होकर उसको बाँहो की ग्रिफत में ले लिये। उसने जरा सा भी विरोध नही किया। जिससे साफ साबित होता था के वो भी कब से ऐसा ही चाहती थी। मैंने उसका चेहरा पकड़कर उसके नरम होंठो में अपने गर्म होंठ रख दिए। उसने आँखे बन्द करके खुद को मुझे समरपित्त कर दिया।

उसने मेरे गले में अपनी बाँहो का हार डाला और मेरी छाती से अपने नरम नरम मुम्मे रगड़ने लगी। मैंने उसका इशारा समझ गया और उसको गोद में उठाकर उसके बैडरूम में ले गया। वहां लिजाकर उसको बेड पे लिटा दिया। फेर उसके ऊपर लेटकर उसके माथे, होंठ, गाल, ठोड़ी, गर्दन आदि पे चुम्बनो की बोछार करदी। उसके मुंह से आह्ह्ह्ह…अाह्ह्ह्ह् की कामुक सिसकिया निकल रही थी।

लेकिन मुझे उसे चूमने में दिक्कत हो रही थी। इस लिये मैंने उसे कपड़े उतरने को कहा। इसने शरमाते शर्माते अपना लम्बा नाईट सूट उतार दिया। अब वो एकदम नंगी हो चुकी थी मैंने उसे बड़ी गौर से देखा। उसे बदन का रोम रोम खड़ा हो चूका था। सेक्स की भूख में वो इतना पागल हो चुकी थी के उसका शरीर गर्म भट्ठी की तरह धहक रहा था। उसकी आँखे काम उतेज़ना से भर गयी थी और ज़ुबान भी लड़खड़ाने लग गई थी।

वो — समीर जल्दी दे डाल दो न पलीज़ अब और सब्र नही हो रहा। मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ। मुझे और न तड़पाओ, मेरे सब्र की और परीक्षा न लो, एक हफ्ते से चुदी नही हूँ। जिसकी वजह से न तो अच्छी तरह से नींद आती है और न ही कही दिल लगता है।

मैं उसकी व्याकुलता को समझते हुए उसे पहले अपना लण्ड चूसने को कहा। उसने एक पल भी व्यर्थ न गंवाते हुये, उठकर मेरा इलास्टिक वाला पयज़ामा घुटनो तक निचे करके, मेरा तना हुआ 6’3″ लण्ड को मुंह में लेकर बेसब्री से चूसे जा रही थी।

मैं — जरा धीरे करलो अपना काम, हमे कोनसी जल्दी है। यह में सुबह तक हम दोनों ही तो है। आराम से करो तुम्हे भी मज़ा आएगा और मुझे भी, इतनी तेज़ी से तुम्हे भी खांसी लग जायेगी और मेरा भी काम जल्दी हो जायेगा।

वो — क्या करू समीर, सब्र ही तो नही हो रहा, चूत में आग ही इतनी लगी है के बस पूछो मत। इस से पहले भी कई बार पति कई कई दिन बाहर रहते थे। लेकिन आज जितनी तड़प कभी नही दिल में उठी।

मैं — ओह्ह.. अब समझ आया क मुझे वापिस क्यों लेकर आई।

वो — (लण्ड चूसना एक पल के छोड़कर) — हाँ सही कहा आपने, आज से पहले के 5-6 दिन तो जैसे तैसे ऊँगली, वाइब्रेटर की मदद से निकाल लिए थे। लेकिन आज सुबह से ही मोटा तगड़ा लण्ड लेने की चाह हो रही थी। इस लिए पति को फोन किया के कब आओगे। उसने ये कहकर डाँट दिया के मीटिंग में बिज़ी हूँ, शाम को बात करेंगे। जिसकी वजह से मुझे गुस्सा आ गया के अब इनको कभी भी फोन नही करूगी और अपनी काम अग्नि को ठंडी करने का खुद इंतज़ाम करूंगी।

इस लिऐ आज सारा दिन बाज़ार घूमती रही। वहां मुझे कोई मेरी पसन्द का सक्ष नही मिला। फेर शाम को घर आकर बैठी ही थी के आप आ गए। जिसकी वजह से आपसे मैने बुरा बर्ताव किया। लेकिन बाद में ख्याल आया के पागल, कही यही वही तो नही है, जिसे सारा दिन बाज़ार में ढूंढती रही। फेर मैं आपके पीछे गाड़ी लेकर आ गयी और आपको लेकर अपने घर आ गयी। अब बताओ मैंने कुछ गलत किया?

मैं — नही नही मैडम, अपने कुछ गलत नही किया, आपकी कहानी सुनकर आप पे बेपनाह प्यार आ रहा है। चलो अब लेट जाओ ताजो आपकी भी कुछ सेवा कर सकु।

वो मेरा लण्ड चूसना छोड़कर बेड पे टांगे खिलकर लेट गई। मैंने अपने बचे खुचे कपड़े भी उतार दिए और उसके ऊपर जाकर लेट गया। उसने मेरे कान में कहा अब चूमना चाटना छोडो पलीज़ अब लण्ड डाल्दो।

मैंने उसकी बात मानते हुए थोड़ा पीछे हटके उसकी चुत का जायजा लिया। जो लबालब पानी छोड रही थी। मैंने अपना लण्ड उसकी चूत के मुंह पे सेट करके उसकी एक टांग आपने कंधे पे रखकर हल्का सा झटका फिया। लण्ड चूत की चिकनाहट की वजह से गहरायी में फिसलता हुआ उसके गर्भाश्य से जा टकराया। जिसकी वजह से इसकी हलकी सी चीख निकल गयी और थोडा मुझे भी दर्द हुआ। मैंने कुछ पल रुककर एक बार फेर हल्का सा धक्का दिया। तो उसकी सीसीसी…आह…अहह्ह…आआह्ह की हल्की हल्की सिसकिया निकलने लगी।

उसकी आँखे बन्द थी और उसने अपने हाथ पीछे की और मोड़कर तकिया को जकड़ रखे थे। उसके चेहरे के हाव भाव से पता चल रहा था के उसे बहुत मज़ा आ रहा था। उसकी एक टांग उठाये रहने की वजह से मैंने थोडा थक गया। तो मैंने अपनी कमर हिलानी बन्द करदी। जिसकी वजह से उसकी बन्द आँखे खुल गयी और उसने लेटे ही मेरी तरफ देखके पूछा, क्यों जी आपने हिलना बन्द क्यों कर दिया कोई दिक्कत है क्या ?

मैंने उसे अपने थक जाने का कारण बताया तो उसने कहा,” बस इतनी सी बात एक मिनट पीछे हटो, मैं हट गया। मेरा लण्ड उसकी चूत में से निकल गया। अब वो तकिये को ठीक करके उसपे डौगी स्टाइल में हो गई। मुझे उसकी बात पे हंसी भी आई के औरते अपने मज़े के लिए कुछ भी कर सकती है। अब मैं अपने घुटनो को मोड़कर उसकी गांड के पीछे खड़ा हो गया और उसे अपनी गांड थोड़ी ऊँची उठाने को कहा। वो आज्ञाकारी बच्चे की तरह मेरा हर हुकम माने जा रही थी।

मैंने एक बार फेर अपना तना हुआ लण्ड उसकी टाँगो के पीछे से उसकी चूत पे डाला तो उसकी तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गयी हो। उसने पीछे की और मुंह करके मुझे कहा आप ऐसे ही खड़े रहो अब मैं हिलती हूँ और अगले ही पल वो डॉगी स्टाइल में अपनी गांड हिला हिलाकर चुदने लगी। पहले धीरे धीरे और बाद में उसकी स्पीड तेज़ हो गयी और करीब 10 मिनट बाद एक लम्बी आह्ह्ह्ह लेकर झड़ गयी और कुछ पल के लिए तकिये पे ही लेट गयी।

उसका काम तो हो गया ता लेकिन मेरा अभी होना बाकी था। कुछ पल आराम करने के बाद उसने मुझे कहा अब आप नीचे आ जाओ मैं ऊपर आती हूँ। अगले ही पल मैं बैड पे पीठ के बल लेट गया और वो मेरे लण्ड को हाथ में लेकर हिलाने लगी और चूसने लगी। थोड़ी देर तक ऐसे ही करने के बाद वो मेरे ऊपर आकर लण्ड को अपनी चूत पे सेट करके धीरे धीरे निचे की और वजन देने लगी ताजो मेरे फूले हुए लण्ड का सुपाड़ा उसकी गीली चूत में आसानी से जा सके।

थोड़ी जद्दो जेहद के बाद लण्ड उसकी चूत में घुस गया और वो मेरे उपर लेटी ही उठक बैठक करने लगी। वो कभी झुक कर अपने मम्मे मेरे मुंह में देती तो कभी मेरे होंठो को चूमने लगती। जब मुझे लगा के मेरा काम भी होने वाला है तो मैंने भी उसकी कमर को हाथो में लेकर नीचे से अपनी कमर हिलाकर उसकी चूत में लण्ड अंदर बाहर करने लगा और अगले 5 मिन्ट तक मैं भी एक लम्बी आःह्ह्हह लकेर उसकी चूत में पिचकरियां छोडता ही झड़ गया।।

वो मेरे ऊपर मैं उसके निचे, सर्दी की रात होने की वजह से भी पसीने से भीगे लेटे हुए थे के इतने में उसके पति का फोन आ गया । उसने मेरी छाती पे बैठे ही बैड के दराज से फोन उठाया और हलो कहा,

उसका पति — इतनी देर से फोन कर रहा हूँ उठाया क्यों नही ?

वो — वो मैं काम कर रही थी सो ध्यान नही आया।

उसका पति रुमांटिक होकर बात करने लगा। इधर मीनाक्षी ने ये कहकर फोन काट दिया के बारिश की वजह से आवाज़ साफ नही आ रही।

फोन काटने के बाद वो हंस पड़ी और बोली आज इसे सबक सिखाया मैंने, सुबह बड़ा डाँट रहा था, अब प्यार से बोला तो मैंने बात नही की ।

फोन रखने के बाद वो बोली,” चलो समीर बहुत रात हो गयी है, अब इकठे साथ में नहाकर सोते है।

मैंने कहा,” इतनी सर्दी में नहाना न बाबा न, अब नहाकर मरना है क्या, सर्दी तो शाम वाली अब तक शरीर से नही निकली।

वो — अरे ! डरते क्यों हो गर्म पानी है गीज़र वाला।

मैं उसके साथ बाथरूम चला गया और उसने गीज़र चालू कर दिया। करीब 5-7 मिनट में पानी हमारे नहाने लायक हो गया और हम दोनों शावर के निचे खड़े होकर एक दसरे को मल मल कर नहलाने लगे। उसने बैठकर मेरे लण्ड पर साबुन लगाया। जिस से उसके हाथ का स्पर्श पाकर एक बार फेर से खड़ा हो गया। उसने मेरी तरफ देखा और मुस्करकर कहा,” अब इसका कया करू ?

मैं — (हँसते हुए) — मुझे क्या पता तुमने जगाया ह तुम ही सुलाओ !

वो मेरे इशारे को समझ गयी और मुंह में लेकर चूसने लगी। ऊपर से गर्म पानी और निचे से उसकी गर्म सांसे सर्दी में गर्माहट का एहसास दिला रहे थे। जब लण्ड पूरा तन गया तो खुद ही घोड़ी वाली पोज़िशन में आ गयी।

मैंने तना हुआ लण्ड फेर उसकी चूत में डाल दिया और अपनी कमर हिलानी चालू कर दिया। वो आँखे बन्द किये इस चुदाई का मज़े लेने लगी। करीब 10 मिनट के बाद हम दोनों इकठे रस्खलित हुए। बाद में हम नहा कर इकठे ही सो गए। सुबह उसने करीब 7 बजे मुझे उठाकर चाय पिलाई और मैंने उसे वही दबोच लिया।

वो — थोड़ा सब्र करलो जी, खाना खाकर फेर मौज़ मस्ती करेंगे। उस वकत उसे मैंने लिप किस करके छोड़ दिया। इतने में मेंरे घर से फोन आ गया के कब तक आओगे। मैंने उनकी दीवार घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के सवा 7 बज रहे थे। मैंने उन्हें 12 बज़े तक आ जाने का कहके फोन काट दिया।

वो — क्या हुआ किसका फोन था ?

मैं — घर से था, पूछ रहे थे कब तक आओगे ?

वो — तो क्या कहा आपने ?

मैं — 12 बजे तक का कह दिया।

मेरी बात सुनकरर वो उदास हो गयी और उसकी आँखों में आसु आ गए।

मैं — क्या हुआ, रो क्यों रही हो ?

वो — एक रात में ही आपसे इतना गहरा रिश्ता जुड़ गया जो शयद मेरे पति से पिछले डेढ़ साल से भी नही जुड़ा। आपको अपने से दूर करने को दिल नही मान रहा। इस लिए मन भर आया और वो मेरे गले लगकर फक फक रोने लगी।

मैं — हट पगली, ऐसे ही मन हल्का कर रही है। ये समझ लो के हमारा साथ एक ही रात का लिखा था। यदि भगवान ने चाहता तो फेर कभी भी मिलेंगे।

उसने मेरी बात में हाँ मिलायी और उसके बार बार रोने की वजह से थोडा मेरा मन भी भर आया। मैने उसे अपना मोबाईल नम्बर ये कहके दे दिया के जब दिल करे मुझेे काल कर लेना। जिस से उसे थोडा इसको तसल्ली हो गयी के मैं दूर जाकर भी दूर नही हूँ।

उसने अपने मोबाईल से मेरा नम्बर डायल करके मुझे अपना नम्बर दे दिया। जो मैंने वहीँ सेव कर लिया

वो — जाते जाते एक बार मुझे बहुत सारा प्यार करलो। मेरा दिल आपके स्पर्श के लिए तड़प रहा है। मैेने उसे गोद में उठाकर उसे बैड पे लिटा दिया और एक एक करके उसके और अपने सारे कपड़ेे निकाल दिए। उसने मेरा लण्ड सहलाना शुरू किया और अपने होंठो के स्पर्श से सोये हुए लण्ड को जगाया और 5-7 मिनट चूस्ती रही।

जब मेरा लण्ड कडक हो गया तो उसने अपनी टाँगे उठाकर उसमे पेलने का इशारा किया। मैंने उसका इशारा पाकर अपनी कमान सम्भाल ली और अपनी कमर हिलाने लगा। इस बार हमने यादगार बनाने के लिए 10 मिनट वाला काम आधे पौने घण्टे तक किया। जब हमारा दोनों का रस्खलन हुआ तो इकठे ही नहाये। दिन के 10 बजे मैंने उसके साथ ढेर सारी सैलफिया ली और उससे विदा ली।

उसने आते वक्त मुझे 5 हज़ार रूपये भी दिए। जिसे मैंने ये कहकर वापिस कर दिए के मैंने दिल से आपकी ख़ुशी की खातिर आपके साथ सेक्स किया है, पैसो की खातिर नही।

अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो प्लीज निचे कमेंट लिखिए और कहानी को लाइक कीजिये।

वो — मेरे लिए कल रात से पिघल रहे हो। इन पैसो से कुछ खा लेना। मेरे ना ना करने के बावजूद भी उसने 2000 रुपये मेरी जेब में डाल दिए और कहा यदि वापिस किये तो मैं आपसे कभी भी बात नही करूगी।

मैंने उसका दिल रखने के लिए वो पैसे रख लिए। वो अपनी गाड़ी से मुझे शहर से गांव जाने वाली बस में बिठाकर आई। बस में बिठाते वक्त भी गले लगकर खूब रोई और पहुंचकर फोन करने का कहा। इस तरह मैं उसे रोती बिलखती छोड़ अपने गांव वापिस चला आया। घर आकर मैंने इसे फोन पे अपने पहुँच जाने का सन्देस दिया।

अब कई बार उसका फोन आ जाता है।

सो ये थी मेरो अपनी इमोशनली और कामुक आप बीती। आपको कैसी लगी मुझे मेरे इस ईमेल पते “[email protected]” पे अपने कीमती विचार भेजने की कृपालता करनी। आगे आने वाले दिनों में फेर एक नई मेरी हिन्दी चुदाई कहानी के साथ हाज़िर होऊँगा। तब तक के लिए अपने दीप पंजाबी को जाने की इज़ाज़त दो। नमस्कार, रब राखा…

Leave a Comment