पिछला भाग पढ़े:- पड़ोसी ने तोड़ी मेरी दीदी की सील-26
हिंदी सेक्स कहानी अब आगे-
सलीम ने एक गहरी साँस ली और मुस्कुराते हुए दीदी की तरफ़ देखा और बोला: तुम दोनों ने तो आज मुझे मदहोश कर दिया है। अब मैं तुम दोनों की गांड मारने वाला हूँ।
दीदी ने लंड को मुँह से निकाला और शरारत से बोली: हमें भी तो पता है सलीम जी आप क्या चाहते हैं।
दीदी ने मम्मी की तरफ़ देखा और एक मुस्कान दी, जैसे उन्हें भी इस बात पर सहमती थी। सलीम धीरे से उठा और पहले मम्मी की तरफ़ मुड़ा। मम्मी ने करवट ली और अपनी गांड को थोड़ा ऊपर उठा लिया, जैसे वो तैयार हों। उनकी गांड साफ़ दिख रही थी, और उसके बीच का छेद सलीम को बुला रहा था। सलीम ने अपने लंड को मम्मी की गांड पर रगड़ा और धीरे-धीरे उसे गांड के छेद में धकेलने लगा।
मम्मी के मुँह से एक धीमी आह निकली, उनके शरीर में थोड़ी हलचल हुई, पर उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। सलीम धीरे-धीरे अपना पूरा लंड मम्मी की गांड में उतार रहा था। मम्मी की आँखों से हल्के आँसू निकल आए, पर उनके चेहरे पर एक अजीब सी बेताबी भी थी।
फिर, सलीम ने दीदी की तरफ़ देखा। दीदी ने भी अपनी कमर उठाई और अपनी कसी हुई गांड को सलीम की तरफ़ किया। सलीम ने अपना लंड मम्मी की गांड से निकाला और बिना वक़्त गँवाए उसे दीदी की गांड पर टिका दिया। दीदी ने एक गहरी आह भरी, पर फिर खुद ही सलीम को अंदर आने का इशारा किया। सलीम ने दीदी की गांड में भी अपना लंड धीरे-धीरे उतार दिया। दीदी ने होंठ भींच लिए, उनके शरीर में एक तेज़ झुरझुरी दौड़ी, पर वो तैयार थी।
सलीम अब दीदी की गांड को तेज़ी से मार रहा था। दीदी हाँफ रही थी, उनके चेहरे पर पसीना आ चुका था, पर उनकी आँखें वासना से भरी थी। वो बस अपने सिर को इधर-उधर हिला रही थी और तेज़-तेज़ साँसें ले रही थी। सलीम की गति और तेज़ होती जा रही थी, जैसे वो अब रुकना नहीं चाहता था।
मैं अपनी साँसें रोके हुए था। मेरा लंड भी अपनी पैंट में तनाव से फट रहा था। ये नज़ारा इतना तीव्र था कि मुझे लग रहा था कि मैं खुद ही उनके साथ हूँ। कुछ ही पलों में, सलीम का शरीर अकड़ने लगा, उसने एक गहरी, ज़ोरदार आह भरी।
उसके लंड से गर्म वीर्य की धार दीदी की गांड में निकल गई। दीदी भी एक तेज़ सिसकी के साथ ढीली पड़ गई, उनके शरीर में हल्के झटके आए। सलीम हाँफता हुआ दीदी के ऊपर गिर पड़ा, उसका शरीर पसीने से भीगा हुआ था। मम्मी भी बगल में लेटी हुई यह सब देख रही थी, उनके चेहरे पर भी संतुष्टि थी।
तीनों अब बिस्तर पर थके हुए, पर परम सुख से सराबोर लेटे हुए थे। सलीम ने धीरे से अपना हाथ बढ़ाया और मम्मी की जांघ पर रख दिया, उसे हल्के से सहलाते हुए बोला: तुम दोनों ने आज तो मुझे पागल कर दिया, मेरी रंडियों तुम्हारी हर अदा, हर आह… सब कुछ मेरे दिमाग़ में बस गया है।
मम्मी ने एक गहरी साँस ली और मुस्कुराते हुए सलीम की तरफ़ घूमी और बोली: और आपने भी, सलीम जी। आपकी ताकत और आपका प्यार आज तक ऐसा सुख कभी नहीं मिला।
उन्होंने अपनी उँगलियाँ सलीम के सीने पर फेरनी शुरू कर दी, एक शर्मिली मुस्कान उनके होंठों पर थी। दीदी, जो अब सलीम के दूसरी तरफ़ लेटी थी, उसने अपना पैर उठाया और सलीम के लंड पर रख दिया, जो अभी भी थोड़ा ढीला था।
दीदी: तो क्या आप अभी भी हमसे कुछ और चाहते हैं, मेरे राजा?
सलीम ने दीदी की तरफ़ देखा और बोला: मेरी जान, तुम दोनों के साथ तो पूरी ज़िंदगी भी कम पड़ेगी। मैं बस यही चाहता हूँ कि तुम दोनों हमेशा मेरी ऐसी ही सेवा करती रहो, मुझे खुश करती रहो।
मम्मी ने सलीम का हाथ पकड़ लिया और उसे अपने होंठों तक ले जाकर चूम कर बोली: हमारी ज़िंदगी तो अब आपसे ही है, सलीम जी। हम दोनों की हर चाहत, हर इच्छा अब आपके नाम है।
सलीम ने धीरे से मम्मी को अपनी तरफ़ खींचा और उनके होंठों पर एक लंबा किस्स दिया। फिर उसने दीदी की तरफ़ देखा, जिसने बिना बोले ही अपनी टाँगें थोड़ी और फैला दी।
सलीम ने पहले मम्मी के ऊपर अपनी जगह बनाई। मम्मी ने ख़ुद ही अपनी चूत को ऊपर की तरफ़ उठाया, जो अब तक गीली और बेताब हो चुकी थी। सलीम ने बिना किसी रुकावट के अपना कड़ा लंड मम्मी की चूत में पूरा डाल दिया। मम्मी के मुँह से एक मोटी, सुख से भरी आह निकली, और उन्होंने अपनी कमर को सलीम के साथ ऊपर-नीचे करना शुरू कर दिया। चूत से लंड के निकलने-घुसने की गीली आवाज़ें पूरे कमरे में गूँजने लगी।
दीदी ने भी अपनी जगह बनाई। वह सलीम के पीछे थी, और उन्होंने अपने हाथों से सलीम की गांड को पकड़ा।
फिर उन्होंने अपना मुँह सलीम के कान के पास लाकर फुसफुसाया: मुझे भी चाहिए, सलीम जी।
और साथ ही उन्होंने अपनी चूत को सलीम की गांड पर रगड़ना शुरू कर दिया। सलीम अब बीच में था, आगे से मम्मी की चूत मार रहा था और पीछे से दीदी अपनी चूत को उसकी गांड पर रगड़ रही थी। तीनों की साँसें तेज़ हो चुकी थी, और उनकी आहें और भी कामुक होती जा रही थी।
मम्मी और दीदी दोनों ही सलीम को और तेज़ी से करने के लिए उकसा रही थी। “और तेज़, सलीम जी!” मम्मी चिल्लाई. “हाँ, ऐसे ही!” दीदी की आवाज़ भी जोश से भरी थी।
सलीम तेज़ी से मम्मी की चूत मार रहा था, और मम्मी की आहें कमरे में गूँज रही थी। उनकी कमर लगातार ऊपर उठ रही थी, और वो सलीम का पूरा साथ दे रही थी। पीछे से दीदी अपनी गीली चूत को सलीम की गांड पर रगड़ रही थी, उनके मुँह से भी तेज़ सिसकियाँ निकल रही थी।
मम्मी ने अचानक एक ज़ोरदार चीख़ भरी। उनका शरीर अकड़ गया, और वो सलीम को कस कर पकड़ने लगी। उनके पूरे बदन में तेज़ झटके आए, और वो झड़ चुकी थी। मम्मी के ढीले पड़ने के ठीक बाद, दीदी ने भी एक तीखी चीख़ मारी। उन्होंने भी अपनी कमर को ज़ोर से उछाला और सलीम की गांड पर अपनी चूत को रगड़ते हुए वो भी झड़ गई।
सलीम अब बीच में था, उसकी साँसें बेतहाशा तेज़ हो चुकी थी। मम्मी और दीदी दोनों के झड़ जाने के बाद सलीम का शरीर भी अकड़ने लगा। उसने एक गहरी, दहाड़ जैसी आह भरी और उसके लंड से गर्म वीर्य की धार मम्मी की चूत में और दीदी के शरीर पर निकल गई। उसका शरीर मम्मी के ऊपर ढीला पड़ गया, और वह हाँफ रहा था। कमरे में अब सिर्फ़ तीनों की तेज़-तेज़ साँसें, पसीना और वीर्य की महक घुल रही थी। तीनों बिस्तर पर निढाल पड़े थे, पर उनके चेहरों पर परम संतुष्टि की एक गहरी छाप थी।
कुछ ही पलों बाद, मम्मी ने धीरे से अपना सिर उठाया और सलीम के ढीले पड़ चुके लंड की तरफ़ देखा। उस पर अभी भी वीर्य की कुछ बूंदें और उसके रस के निशान थे। मम्मी ने मुस्कुराते हुए दीदी की तरफ़ देखा, जैसे कोई इशारा दे रही हों। दीदी ने भी बात समझ ली और मुस्कुरा दी।
मम्मी सबसे पहले सलीम के पास आई। उन्होंने अपना मुँह सलीम के लंड के सिरे पर रखा और उसे प्यार से चाटना शुरू कर दिया। उनकी जीभ की हर हरकत से लंड पर लगा वीर्य धीरे-धीरे साफ़ होने लगा।मम्मी की आँखें सलीम पर टिकी थी, और उनके चेहरे पर एक अजीब सी ललक थी।
फिर दीदी भी उनके साथ शामिल हो गई। उन्होंने अपना मुँह सलीम के अंडकोषों पर रखा और उन्हें धीरे-धीरे चाटने और चूसने लगीं। अब मम्मी ऊपर से लंड साफ़ कर रही थी और दीदी नीचे से अंडकोषों को।
सलीम ने अपनी आँखें बंद कर ली थी, उसके मुँह से हल्की-हल्की आहें निकल रही थी। मेरी माँ और बहन एक साथ, एक ही आदमी के लिए यह सब कर रही थी। दोनों ने मिल कर सलीम के लंड और अंडकोषों को पूरी तरह से साफ़ कर दिया।उनके होंठ और जीभ उस जगह को ऐसे चमका रहे थे, जैसे वो किसी पवित्र चीज़ को साफ़ कर रहे हों।
जब पूरा काम हो गया, तो मम्मी ने सलीम के लंड पर एक आखिरी किस्स दी, और दीदी ने भी उसके अंडकोषों पर प्यार से होंठ रखे। सलीम का लंड साफ़ करने के बाद तीनों कुछ देर तक शांत लेटे रहे। रात अब गहरी हो चुकी थी और कमरे में हल्की-हल्की ठंडक महसूस होने लगी थी।
थोड़ी देर बाद सलीम ने करवट ली और उठ कर बैठ गया और बोला: मुझे अब चलना होगा।
उसने प्यार से मम्मी और दीदी दोनों के माथे चूमे। मम्मी और दीदी दोनों ने एक साथ, प्यार से सलीम को गले लगाया और बोली: हम आपका इंतज़ार करेंगे, सलीम जी (मम्मी ने फुसफुसाया)।
दीदी ने भी सलीम के कान में कुछ कहा, जो मुझे सुनाई नहीं दिया, पर सलीम मुस्कुरा दिया। सलीम धीरे से उठा और अपने कपड़े पहनने लगा। उसने एक आख़िरी नज़र बिस्तर पर लेटी माँ-बेटी पर डाली, जो अब पूरी तरह नग्न थी। उनके शरीर पर रात भर की वासना के निशान और वीर्य की महक साफ थी।
एक पल को उसने उन्हें देखा, फिर मुस्कुराता हुआ दरवाज़े की तरफ़ बढ़ गया। मैं इतने समय घर में छिप गया था। दरवाज़ा खुलने और बंद होने की हल्की सी आवाज़ आई, और सलीम जा चुका था। सलीम के जाते ही, मम्मी और दीदी एक-दूसरे की तरफ़ मुड़ीं। बिना कुछ कहे, मम्मी ने दीदी को अपनी बाँहों में भर लिया।
दीदी भी मम्मी से चिपक गई, उनका सिर मम्मी के सीने पर था। दोनों अब एक-दूसरे से पूरी तरह नंगी चिपकी हुई थी। मम्मी ने दीदी के बालों को सहलाया, और दीदी ने एक गहरी साँस ली और वो दोनों सो गए।
रात भर की उन चौंकाने वाली घटनाओं के बाद, मैं खिड़की से चुपचाप हट गया। मेरा दिमाग़ सुन्न हो चुका था। मैं सीधे अपने कमरे में गया और बिना किसी शोर के बिस्तर पर लेट गया, पर नींद आँखों से कोसों दूर थी। मेरी माँ और दीदी को उस तरह देखने के बाद, मेरी दुनिया पूरी तरह बदल चुकी थी।
सुबह जब मेरी आँख खुली, मैं धीरे से उठा और बाथरूम गया, फिर हिम्मत करके बाहर हॉल में आया। मुझे उम्मीद थी कि शायद सब कुछ सामान्य दिखेगा, पर एक बेचैनी मेरे अंदर बैठी थी।
किचन से चाय की महक आ रही थी। मैंने देखा, मम्मी और दीदी दोनों डाइनिंग टेबल पर बैठी थी, चाय पी रही थी। उन्होंने अपने आम कपड़े पहने हुए थे। मम्मी ने एक हल्की साड़ी पहनी थी और दीदी ने सूट। रात वाली कोई भी बात उनके चेहरे पर नहीं दिख रही थी। वो बिल्कुल सामान्य लग रही थी, जैसे बीती रात कुछ हुआ ही ना हो।
लेकिन मेरे लिए कुछ भी सामान्य नहीं था। मैं उनकी तरफ़ देख रहा था, और मुझे रात वाले नग्न शरीर, उनकी आहें, और उनकी गहरी बातें याद आ रही थी।
मम्मी ने मुझे देखा और हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए: उठ गए बेटा? आओ, चाय पी लो।
दीदी ने भी मेरी तरफ़ देख कर हल्की सी मुस्कान दी, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। मैं चुप-चाप जाकर उनके सामने बैठ गया। मैं उनकी आँखों में देखने की कोशिश कर रहा था, यह जानने के लिए कि क्या वो भी रात को याद कर रही थी। पर उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी।
सुबह की उस अजीब सी खामोशी के बाद, दिन हफ़्तों में बदल गए, और हफ़्ते महीनों में। रात की वो पागलपन भरी घटनाएँ अब धीरे-धीरे रोज़मर्रा की हकीकत बनती जा रही थी। सलीम का आना-जाना अब घर में आम बात हो गई थी, जैसे वो परिवार का ही हिस्सा हो। मुझे पता था कि वो हर बार आता तो क्या होता था, पर अब मैं खुद को रोक नहीं पाता था।
मैं हर बार रात को खिड़की के पास छिप जाता और उनकी आवाज़ों, उनकी आहों को सुनता। मेरी मम्मी और बहन, दोनों ही अब इस रिश्ते में पूरी तरह ढल चुकी थी, उनके चेहरों पर एक अजीब सी संतुष्टि और ख़ुशी दिखती थी, जो मैंने पहले कभी नहीं देखी थी। मेरे लिए यह सब देखना अब एक आदत बन गया था।
आप को अभी तक की कहानी कैसी लगी मुझे deppsingh471@gmail.com पर मेल करे।