Badi Mushkil Se Biwi Ko Teyar Kiya – Part 22

This story is part of the Badi Mushkil Se Biwi Ko Teyar Kiya series

    अब आगे की कहानी – मैंने देखा तो मेरे पति अनिल और राज दोनों के मुंह पर हवाइयां उड़ रही थीं। इनके मुंह खुले के खुले रह गए। वह कुछ बोल न पाए। तब मैंने मेरे पति को कोहनी मार कर कहा, “अरे भाई जो हुआ सो हुआ। अब जो तुमने शुरू किया है उसे पूरा भी करो।”

    मेरे दो प्रेमियों के हाल देख मुझे बड़ी हँसी आ रही थी। पर सच तो यह था की मैं उस हालात में दो लन्ड से चुदवाने के लियी बेताब हो रही थी। मैंने सोचा नहीं था की जिंदगी में कभी ऐसा मौक़ा मिलेगा जब मैं एकसाथ दो लन्ड से चुदवाऊँगी। मैंने पैर पति की कमर में हाथ डाल कर उनके पाजामे का नाडा खोल दिया और उनका लन्ड अपने हाथ में लिया। उस समय मैं बेबाक हो कर मेरे दोनों प्रेमियों से चुदने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो चुकी थी। अब मुझे किसीसे कुछ भी छुपाने की आवश्यकता नहीं थी। दूसरे हाथ से मैंने राज के पाजामे का नाडा भी खोल डाला।

    मेरे पति का लन्ड तब कडा नहीं हुआ था पर राज का लन्ड तो देखते ही बनता था। राज का लन्ड एकदम “अटेंशन” हो कर अकड़ा हुआ था। उसके छिद्र से धीरे धीरे उसका पूर्व रस झर रहा था और उसके खड़े सख्त लन्ड पर फ़ैल रहा था। मैंने राज के लन्ड को धीरे से अपनी उँगलियों से सहलाना शुरू किया और उसका पूर्व रस उसके पुरे लन्ड पर फैलाने लगी। तो राज के मुंह से एक सिसकारी सी निकल गयी।

    मैं अपनी पीठ पैर लेटी हुई थी। मेरे पति अनिल ने मेरे नाइट गाउन को निचे खिसकाया। मैंने मेरे कूल्हे ऊपर किये ताकि वह उसे निचे से खिसका कर निकाल सके।

    मैंने राज के लन्ड की चमडी को अपनी उँगलियों में कस के दबाया और उस चमड़ी के साथ मैं अपनी उँगलियों से राज के लन्ड को धीरे प्यार से सहलाने लगी। राज उत्तेजना से बल खाने लगे। मैं समझ गयी की राज की यह कमजोरी थी।

    राज ने धीरे से अपना पजामा निचे उतार दिया और मेरे सामने नंग धड़ंग हो गया। अनिल ने भी अपना पजामा उतार दिया और हम तीनों सम्पूर्ण रूप से निर्वस्त्र नग्नावस्था में थे। मैं मेरे जीवन में पहली बार मेरे पति के सिवाय किसी और मर्द के सामने नग्नावस्था में उपस्थित थी। मुझे काफी विचित्र तो लगा पर जो होना था वह तो हो गया अब शर्म क्या और लाज क्या।

    मेरा पति पीछे से धक्के मार कर अपना लन्ड मेरे पिछवाड़े में घुसेड़नेकी कोशिश में लगे हुए थे और मेरे पोगुमल राज मेरे सामने बुध्धु की तरह मेरे पहल करने का इन्तेजार कर रहे थे। अनिल ने जब यह महसूस किया की राज शायद अनिल की उपस्थिति के कारण थोड़ा झिझक रहे थे तो वह पलंग पर तकिये को पीठ पीछे दबाकर बैठ गए और मुझे खींचकर अपनी दो टाँगों बिच में बिठा दिया। एक झटका देकर अनिल ने हम सबको ढँक रही रजाई को एक और फेंक दिया। अब हमारे ऊपर कोई आवरण नहीं था। मेरे पति का मोटा कड़ा लन्ड मेरी गाँड़ की दरार पर टक्कर मार रहा था।

    मैं मेरे पति की गोद में बड़े ही असमंजस में थी पर बदन की कामुकता के वशीभूत, राज के आगे बढ़कर मेरी चूँचियों को दबाने का इन्तेजार करने लगी। तब भी राज की हिचकिचाहट दूर नहीं हो रही थी। एक बार मेरे स्तनों का अनुभव करने के बाद भी वह मेरे गुप्त अंगों को छूने में झिझक रहे थे, क्योंकि मैं तब मेरे पति गोद मैं थी। जब अनिल ने राज को हिचकिचाते हुए देखा तो बोल पड़ा, “कैसा इंसान हे तू यार। इतना मत सोचा कर।”

    अनिल ने राज का हाथ पकड़ा और उसे खिंच कर मेरे स्तनों पर रख दिया। राज के मेरे स्तनों के छूटे ही मैं पगला सी गयी और मेरे मुंह से एक सिसकारी निकल गयी। मेरे पुरे बदन में कामुकता की ज्वाला भड़क उठी। मेरे पाँवों के बिच में से मेरे स्त्री रस की धार बहने लगी।

    राज को बस इतना ही निमंत्रण चाहये था। राज की कई महीनों की मेरे बदन की भूख उनके दिमाग पर हावी हो गयी और वह झुक कर मेरी चूँचियों को अपने मुंह में लेकर उन्हें चूमने और चूसने लगे। तब राज को कोई भी नहीं रोक सकता था। मैं मेरे पति की गोद में आधी लेटी हुई आधी बैठी हुई थी। मेरे पति भी पलंग के सिरहाने पर आधे बैठे आधे लेटे हुए थे और राज मेरी छाती में अपना मुंह लगा कर नंग धड़ंग अपने लन्ड को गद्दी पर रगड़ते हुए और उनकी सुन्दर गठीली गाँड़ साफ़ साफ दिखाते हुए मेरे स्तनों को एक के बाद एक चूस रहे थे। उन्हों ने अपने दोनों हाथों से मेरी कमर को जकड रखा था।

    एक हाथ से मैं राज के घने बाल को सहला रही थी। दुसरा हाथ मैं राज की पीठ पर फेर रही थी। मेरे पति जैसे राज की पीठ पर कोई बाल नहीं थे। मुझे राज की पीठ पर हाथ फिराना अच्छा लग रहा था ।

    अनिल ने राज का सर अपने हाथों में लिया और उसे ऊपर अपनी और खींचते हुए उसके बालोंको चूमने लगे। इस कारण राज का मुंह मेरे स्तनों को छोड़ मेरे होंठों पर आ गया। शायद अनिल राज और मुझे होंठ से होंठ मिलाकर चूमते हुए देखने चाहते थे। हमारे होंठ मिलने पर राज ने एक नजर मेरे पति अनिल कीऔर देखा।

    अनिल ने राज के सर पर हाथ फिराकर जैसे उन्हें मेरा होंठ चूमने की इजाजत दे दी। मैं तो इन्तेजार ही कर रही थी। राज के उष्मा भरे होंठ जब मेरे होंठों से मिले तो मेरे दिमाग में बत्तियां जलने लगीं। मैं चाहती थी की राज मुझे जोश से चूमे। राज की गरम गरम साँसे मेरे नाक और आँखों पर टकरा रही थी। हमारे होंठ मिलने पर राज की धड़कन भी बढ़ ही गयी होगी क्योंकि मेरा ह्रदय तो दुगुनी तेजी से धड़क रहा था। मैं राज की तेज धड़कन मेरी छाती पर अनुभव कर रही थी। राज भी मेरे ह्रदय की तेज धड़कन का अनुभव कर रहे होंगे।

    मेरे पति अनिल पलंग पर लेटे थे। मैं उनके ऊपर उनकी और और अपनी गांड किये लेटी हुई थी और राज मेर ऊपर सवार हो रहे थे। मैं उन दो साँडों के बिच में फँसी हुयी थी। निचे से मेरे पति का लन्ड मेरी गाँड़ को टक्कर मार रहा था तो ऊपर राज का तना हुआ लन्ड ऐरी जांघों को दबा रहा था। राज पूरी तरह मेरे ऊपर चढ़ा नहीं था। अगर वह पूरी तरह चढ़ गया होता तो जरूर एक का लन्ड मेरी गांड में तो दूसरे का मेरी चूत में होता। मैंने कभी मेरे पति से अपनी गांड नहीं मरवाई थी। ना ही मुझे गांड में लन्ड डलवाना अच्छा लगता था। पर उस दिन मैं इतनी ज्यादा उत्तेजित थी कीअगर अनिल मेरी गांड में अपना लन्ड डाल देते तो मैं ले लेती।

    राज के साथ जैसे ही मैं एक गहरे चुम्बन में जुड़ गयी की उनके शरीर के दबाव से मुझे निचे की और खिसकना पड़ा। मेरा वजन उस समय मेरे पति लन्ड पर पड़ रहा होगा। उनका तना हुआ खड़ा लन्ड मेरी पीठ से रगड़ रहा था। मेरे पति अनिल ने भी मुझे जगह दी जिससे मैं उनकी गोद में से हट कर बिस्तरे के ऊपर सीधी लेट गयी। राज ने मुझ पर सवार हो कर अपना चुम्बन जारी रखते हुए अपने हाथोंसे मेरे पुरे नंगे बदन को बड़े प्यार से सहलाने लगे। उनका हाथ मेरे बदन की एक एक गहराईयों को छूने लगा। उनकी उंगलीयाँ मेरी नाभि, मेरी गर्दन, मेरी नाक, मेरी आँखों इत्यादि को प्यार से छूने लगी।

    राज की महीनों की मेरे नग्न बदन को देखने एवं स्पर्श करने की कामना आज पूरी हो रही थी। मैंने मेरे दोनों हाथों में राजका सर पकड़ा और ताकत से उसे मेरे सर पर दबाया। वह राज को मेरी उत्कटता दिखाने का एक प्रयास था। राज के मुंह से मेरे मेरे मुंह में राज की लार की जैसे धार बह रही थी। मैं राज की लार को बड़े चाव से निगल रही थी। वहीँ राज भी मेरी जीभ को चाटकर और चूस कर मेरी लार का आस्वादन ले रहे थे।

    मैंने मेरे एक हाथ में मेरे पति अनिल का लन्ड पकड़ा और उसे हिलाने लगी। अनिल भी काफी उत्तेजित हो रहे थे। उनके जीवन की एक इच्छा उस दिन पूरी जो हो रही थी। राज अपनी जीभ से मेरे बदन को चाटने लगे। उन्होंने पहले मेरे नाक पर अपनी जीभ लगाई और धीरे धीरे मेरे गालों को चाटते हुए वह मेरी गर्दन पहुंच गए। उनका यह कार्यकलाप मुझे उन्मादित करने के लिए पर्याप्त था।

    मैंने दूसरे हाथ से राज का लन्ड पकड़ा। राज का लन्ड लोहे की छड़ की तरह सख्त हुआ पड़ा था। मैंने राज के अंडकोष को अपने हाथों में लिया। राज के अंडकोश बड़े थे। मैंने हलके से उसकी गोलियां दबायीं। मैं उन्हें प्यार से सहलाने और लाड लड़ाने लगी। मैं जानती थी की पुरुषों को अपने अंडकोषों को सेहेलवाना बहुत भाता है। अनिल हमेशा मेरे इस तरह प्यार करने के लिए उत्सुक रहते थे।

    मेरी ऐसी प्यारी हरकतों से राज के लन्ड का तापमान बढ़ता जा रहा था। उस दिन मेरा राज से चुदना तय था। मेरे पति ही जब मुझे चुदवाने को अधीर हो रहे थे तो भला मैं क्यों पीछे हटती? मैंने उस दिन तक किसी गैर मर्द से चुदवाना तो दूर, किसी गैर मर्द का लन्ड भी नहीं देखा था। हाँ, उस दिन जरूर पानी के फव्वारे में राज का खड़ा लन्ड उसके कपड़ों की पारदर्शिता के कारण देखा था। उसी लन्ड को मैं प्यार से सहला कर मुझे चोदने के लिए मैं उकसा रही थी। और इस काम में मेरे पति मेरे सहभागी थे। मेरे पति ने मुझे खिसका कर वह एक साइड में लेट गए और मुझे उनके और अपने मित्र राज के बिच में लिटा दिया और अपना हाथ लंबा कर मेरी चूत की सपाटी पर प्यार से मसलने लगे।

    जब अचानक ही मेरे बैडरूम की बत्ती जल उठी। हम तीनों की आँखें चौंधियाँ गयीं। अचानक ही एकदम करीब से एक स्त्री की आवाज आयी, “यह क्या हो रहा है? अनीता, यह क्या है?”

    एक दूसरे से लिपटे हुए हम तीनों चौंक उठे। कुछ देर बाद जब हमारी आँखें तेज रौशनी से ठीक से समायोजित हुई तो हमने नीना को पलंग के सिरे पर खड़ा पाया। वह हम तीनों को अर्ध नग्न हालात में सरसरी नजर से देख रही थी। तब भौंचक्का होनी की बारी मेरी थी। उस समय नीना तो शहर में थी ही नहीं ऐसा राज ने कहा था। फिर वह अचानक कैसे प्रकट हुई? मैं अपने आपको इस हालात में मेरी सखी के प्रत्यक्ष होने पर बड़ा सकुचाई।

    मैं तो रँगेहाथ पकड़ी गयी थी। पर नीना भी तो इन दोनों मर्दों से चुदवा चुकी थी। फिर उसे मुझे लताड़ने का क्या अधिकार था? पर मैं कुछ बोलूं उसके पहले ही नीना एक ठहाका मार कर हंसने लगी और आगे बढ़कर मुझसे मेरी उसी अर्ध नग्न अवस्था में ही लिपट गयी और बोली, “वाह, मेरी छोटी बहिन अनीता। आज मैंने अपने पति को माफ़ किया क्योंकि तुझे और तेरी यह कामोद्दीपक कमसिन सुन्दरता देख कर तो मेरा मन भी ललचा गया है।

    अगर मैं पुरुष होती तो तुझे छोडती नहीं। और तू भी तो बड़ी तेज निकली। आज तुमने वह कर दिखाने की हिम्मत की जो अक्सर शादी शुदा औरतें अपने पति के उकसाने पर भी नहीं कर पाती हैं। अगर कुछ करती भी हैं, तो चोरी छुपके। पर हम सब आज एक साथ हैं। अनिल ने जो पहले कहा था की हम दोनों पत्नियां इन दोनों पतियों को अपना पति माने यह बात आज वास्तविक रूप में सार्थक हुई। यह सब हमारे पतियों की लंपटता से मुमकिन हुआ।“

    तब मेरे पति अनिल ने नीना को खिंच कर अपनी बाहों में ले लिया और हंसकर बोले, “जब तुमने हमें लम्पट करार कर ही दिया है और फिर अब जब हम एक दूसरे को इतनी अच्छी तरह जान ही गए हैं, तो तुम वहाँ कपडे पहने हुए क्यों खड़ी हो? मेरी बांहों में आ जाओ। मैं तुम्हें तुम्हारे पति राज और मेरी पत्नी अनीता के सामने ही निर्वस्त्र करने की घृष्टता करता हूँ। आशा है वह मुझे क्षमा करेंगे।“

    और अनिल ने मेरे और राज के सामने ही कुछ असमंजस में खड़ी हुयी नीना को बोलने का मौक़ा न देते हुए, अपनी बाहों में जकड लिया और उसे अपनी और खिंच अपनी गोद में बिठाकर चूमने लगे और उसके कमीज़ के बटन खोलने में लग गए।

    मैं मेरे पति की निर्लज्जता से बड़ी दुखी हो गयी। अपने पति के बारे में ऐसी बातें सुनना और उनको अपनी आँखों के सामने किसी और औरत को प्यार करते हुए देखने में बहुत अंतर है यह मैंने तब अनुभव किया। तब तो वह मात्र नीना को चूम रहे थे और उसके कपड़ों को हटा ने की चेष्टा कर रहे थे। जब वह उसे चोदेंगे तो मुझ पर क्या बीतेगी यह सोचना भी मेरे लिए मुश्किल था। हालांकि मैं जानती थी की उनका नीना को चोदने का यह कोई पहला मौका नहीं था।

    फिर क्या था? राज को तो जैसे खुला लाइसेंस मिल गया। अब तो वह जैसा मेरा पति हो ऐसा अधिकार जताते हुए निःसंकोच मेरे सारे अंगों को चूमने लगे। एक और मैं अपने पति की निर्लज्जता के बारे में सोच रही थी, तो दुसरी और मैं स्वयं भी तो नग्न अवस्था में किसी और मर्द की बाहों में थी न? मैं बड़ी दुविधामें डूबी जा रही थी।

    पर कहावत है न की जब सर ओखल में रखा तो फिर मुशल से क्या डरना? एक बार जब मनमें निश्चय कर ही लिया था तो अब पीछे हटने का तो कोई सवाल ही नहीं था, और ना हीं में हटना चाहती थी। मैं भी पूरी तरह अपनी लज्जा का चोला फैंक देते हुए मेरे पति अनिल से थोड़ी दूर हट कर मेरे पागल भोंदू प्रेमी राज के साथ लेट गयी। राज ने मुझे अपनी दो टांगों के बिच में जकड लिया। मैं भी राज के बटनों के साथ खेलते हुए उन्हें खोलने में लग गयी। राज अब पूरी तरह नग्न थे। उनकी बालों से भरी हुई छाती मेरे स्तनों से रगड़ रही थी।

    मैंने उनको अपने ऊपर चढ़ने को प्रेरित किया और मेरे होंठ को चूमने के लिए मैं अपने होंठ की चूमने की मुद्रा बना ली वह मुझ पर झुक कर मेरे होठों को बड़े दुलार से चूमने लगे। मुझे अब मेरे पति और नीना की कोई शर्म न थी और ना ही उनसे कोई जलन। पर स्त्री सहज उत्सुकता जरूर थी।

    मैंने जब मुड़कर देखा तो पाया की अनिल नीना को करीब पूरी तरह निर्वस्त्र कर चुके थे। मैं तो नीना की नग्न छबि देखती ही रह गयी। उसकी नग्नता में उसका सौन्दर्य इतना निखर रहा था की जैसे स्वर्ग से कोई अप्सरा निचे उतर आयी हो। मैं मन ही मन मुस्करा ने लगी। भाई इतनी सुन्दर एवं सेक्सी स्त्री को देख कर भी अगर मेरे पति का मन न ललचाता तब तो मुझे भी उनकी पौरुषता पर शक होता। मुझे मेरे पति पर दया आगयी। मैं उनको भली भाँती जान गयी थी। अनिल इतने रसिक (या फिर लम्पट कह लीजिये) थे की इतने सालोँ से एक मात्र स्त्री के साथ ही सम्भोग करना उनके लिए बहुत कठिन रहा होगा। मैं भी तो उस सम्भोग के नित्यक्रम से ऊब ही गयी थी न? सालों से हररोज रोटी सब्जी खाने वाले को अगर खीर नजर आये तो उसका मन तो लचायेगा ही।

    मैंने राज के कानों में कहा, “एक मिनट” और पलट कर मैं मेरे पति के पास गयी जो के नीना के उरोजों और उसके रसीले नितम्ब को कभी सहलाते तो कभी चूंटी भर रहे थे। नीना के हाथ में मेरे पति का लन्ड था और उसे वह प्यार से सहला रही थी। मैंने अनिल को खिंच कर मेरी बाहोंमें लिया और कहा, “अनिल, प्यारे, तुम मेरे सर्वस्व हो। आज मैं खुश हूँ और मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है। तुम दोनों खुल कर चोदो और सम्भोग का पूरा आनंद लो। पर याद रहे नीना तुम्हारी प्रेमिका और शय्या सह भागिनी भले ही हो पर हमेशा के लिए तुम्हारी धर्म पत्नी तो मैं ही रहूंगी।”

    अनिल मेरी और थोड़ा आश्चर्य से देखते रहे फिर बोले, “मेरी अपनी अनीता! मैं तुम्हारा ही था, हूँ और हमेशा रहूंगा। नीना कभी भी मेरी धर्म पत्नी नहीं बन सकती। उसका पति उसीका है और मैं हमेशाके लिए तुम्हारा ही हूँ। यह तो हम एक प्रयोग कर रहे हैं, पर यह प्रयोग हमारा जीवन नहीं बदल सकता। हमारे बच्चे है, रिश्तेदारी है, समाज है। पति पत्नी हमेशा पति पत्नी ही रहेंगे। तुम निश्चिन्त होकर जाओ और तुम्हारे प्रेमी के साथ उच्छ्रुन्ख्लता से चुद्वाओ और चोदो।”

    अब मैंने अपने आपको पूरी तरह स्वतंत्र पाया। मेरे मन में कोई दोष या अपराधी भाव नहीं रहा। अब मैं मेरे प्रेमीको पूरी तरह मेरा शारीरिक भोग करनेके लिए आझाद थी। राज भी हमारा संवाद सुन रहा था। उसने सब सुन सके ऐसे कहा, “पति और पत्नी के बिच में मात्र शारीरिक सम्बन्ध के अलावा सामाजिक, आर्थिक और मानसिक सम्बन्ध भी होता है और वह ऐसे प्रयोगों से आहत नहीं होना चाहिए। पति हमेशा अपनी पत्नी के साथ बंधा हुआ है और होना भी चाहिए। हमने तो मात्र एक ऐसा प्रावधान चुना है की जिससे हम मर्यादित दायरेमें अपनी कामुकता को थोड़ी छूट दे सकें।”

    और फिर उसने मेरे होठों पर अपने होंठ ऐसे दबाये की मैं देखती ही रह गयी। राज का लन्ड बड़े उफान पर था। मैं जानती थी की वह मुझे चोदने के लिए बडा ही उतावला हो रहा था। मैं आज उससे बहुत बहुत प्यार करना चाहती थी। मेरे मनमें भी जो घुटन थी वह आज अनावृत हो रही थी। मैं आज पूरी उच्छ्रुन्ख्लता से राज और अनिल दोनों से चुदवाना चाहती थी।

    मैंने राज के लन्ड को जोर से हिलाना शुरू किया। मेरे नरम हाथों से अपना लन्ड फुर्ती से हिलाने के कारण राज के मुंहसे अनायास ही आह.. निकल पड़ती थी। जिसे सुन नीना अपने पति की और टेढ़ी नजर से देखना और कटाक्ष भरी मुस्कान देना नहीं चुकती थी। राज का लन्ड एकदम स्निग्ध हो चुका था। राज झुक कर मेरे मम्मों को चाटने लगा।

    अपना एक हाथ उसने मेरी चूत पर रखा और मेरी साफ़ स्निग्ध चूत को महसूस करने लगा। फिर धीरे से उसने मेरी चूत में अपनी दो उंगलियां डाल दी। उसका दुसरा हाथ मेरी गांड को प्यारसे सहलाने, दबाने और हल्कीसी चूंटी भरने में जुटा हुआ था। राज की यह कारवाई से मैं गरम होती जा रही थी। पुरे कमरे का माहौल सेक्स की खुशबु से जैसे लिप्त था। बिच बिच में हम में से किसी न किसी के मुंह से हलकी सी आह या सिसकारी निकल पड़ती थी जिससे हम दोनों युगल एक दूसरे की गति विधियां एक तिरछी नजर देख लेते थे।

    उधर मैंने देखा की मेरे पति अनिल और नीना रुक रुक कर मेरी और राज की प्रेम क्रीड़ा देख कर जैसे उसका आस्वादन कर रहे थे। मेर पति नीना की चूँचियों को झुक कर बड़े प्यार से चाट रहा था और एक हाथसे नीना की चूत सहला रहा था। शायद उसकी उंगलियां भी नीना की चूत की गहराईयों का मुआइना कर रही थी जिस कारण नीना भी काफी गरम लग रही थी और अपना चूतड गद्दे पर रगड़ रही थी। नीना के हाथ मेरे पति का कड़क और चिकनाई से पूरी तरह लिप्त लन्ड को प्यार से धीरे धीरे सहला रहे थे। पर यह सब करते हुए भी उनकी नजरें हम पर टिकी हुयी थीं।

    मैंने अपना हाथ बढाकर नीना का हाथ मेरे हाथ में लिया। नीना ने भी बड़े प्यार से मेरे हाथ में अपना हाथ दिया और वह मेरी उँगलियों और मेरे हाथ को प्यार से दबा कर जैसे अपने मन के अंदर हो रही हलचल से मुझे अवगत करा रही थी। उस समय मुझे औरतों को अपने प्रिय पराये मर्द से पहली बार चुदवाने में कैसी उत्तेजना, झिझक और रोमांच का अनुभव होता है उसका कुछ आभास हो रहा था। यह एक ऐसा अनुभव है जिसको समझना शायद पुरुषों के लिए नामुमकिन है।

    राज ने मुझे पलंग पर लीटा दिया और धीरे से मेरे ऊपर चढ़ने को तैयार हुआ। जैसे ही राज ने मुझे अपनी टांगों के बिच में लिया की मैंने अपनी टांगें राज के कन्धों पर रख दी। राज को मेरी गीली और रस बहाती हुई चूत अपनी आखों के सामने नजर आ रही थी। मेरी नंगी चूत देख कर उसकी हालत क्या रही होगी यह समझना कठिन नहीं था। राज ने झुक कर मेरी चूत को प्यार से चूमा और उसे वह अपनी जीभ से चाटने लगा। फिर अपनी जीभ का सिरा मेरी चूत में डाल कर मुझे चुदवाने के लिए उकसाने लगा। मैं तो वैसे ही मेरी गरमाई चूत मैं उसका लन्ड डलवाने के लिए पागल हो रही थी।

    जब राज मुझे चोदने के लिए अग्रसर हुए और अपना लन्ड मेरी चूत के आसपास लहराने लगे तो मैंने उसे बड़े प्यार से पकड़ा और धीरे धीरे से उसे सहलाते हुए मेरी चूत के केंद्र बिन्दु पर रखा। फिर उसे मेरी चूत में दबा कर मैंने जैसे राज को अपना लन्ड मेरी चूत में डालने के लिए आमंत्रित किया। यह करते हुए मेरे दिल की धड़कनें कितनी तेजी से चल रही थीं और मेरे मन का क्या हाल हो रहा होगा यह तो वाचक (और खासकर महिलाएं जिन्हें ऐसा करने का मौक़ा मिला है) ही समझ सकते है।

    उस समय राज ने मेरी भावनाओं को समझते हुए अपना लन्ड मेरी चूत में डालने से पहले झुक कर मेरे होठों पर अपने होंठ रखे और मुझे प्यार भरा चुम्बन करते हुए बोले, “अनीता, मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ और जब से हम मिले तब से तुम्हें चाहने और चोदने की इतनी प्रबल प्रगाढ़ इच्छा थी की मैं पागल हो रहा था। पर मैं तुहारी भावनाओं का सम्मान करता हूँ और तुमने मुझे अपना सर्वस्व देकर जो सम्मानित किया है इससे मैं अभिभूत हूँ। मैं और नीना आप और अनिल के पति पत्नी के रिश्ते का पूरा आदर करते हैं और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ की न तो मैं आप पर और न ही नीना आप के पति पर किसी भी तरह का अधिपत्य जमाने की इच्छा रखेंगे या कोशिश करेंगे। हमारे एक दूसरे से सेक्स करने से हमारे मूल संबंधों में कोई भी तरह की दरार या दुरी नहीं आएगी बल्कि पति पत्नी के रिश्ते और मजबूत होंगे यह विश्वास आपको दिलाना चाहता हूँ।”

    राज की बात सुनकर मेरी आँखें नम हो रही थी। तब राज ने एक हल्का धक्का देकर मेरी गीली चूत में अपना स्निग्ध, तना हुआ मोटा लंबा लन्ड घुसेड़ा। मेरी चूत की भग्न रेखा से अंदर जाते हुए मुझे पहली बार राज के लन्ड के स्पर्श और घर्षण से इतनी उत्तेजना और रोमांच का अनुभव हुआ जिसे वर्णन करना मेरे लिए संभव नहीं है। बस मैं इतना ही कहूँगी की मैं अपने आपको बड़ा भाग्यशाली मान रही थी की मुझे ऐसा अवसर प्राप्त हुआ जिसमें मुझे मेरे पति को किसी तरह के अँधेरे में रखने की जरुरत नहीं पड़ी और फिर भी मुझे ऐसा रोमांचक अनुभव हो रहा था।

    जैसे राज ने मुझे चोदने की फुर्ती बढ़ाई वैसे ही मैं भी अपने चूतड़ को उठा उठा कर राज के धक्कों का जव्वाब दे रही थी जिससे मैं उसका लन्ड मेरे पुरे अंदरूनी सुरंग में ले पाऊं। मेरे पुरे बदन में राज की चुदाई से जैसे आग फ़ैल रही थी। मैं राज को और चोदने के लिए प्रोत्साहित कर रही थी। मैं बोल पड़ी, “राज आज मुझे खूब चोदो। मेरे पति और तुम्हारी पत्नी को भी आज हम दिखाएँगे की हम भी कुछ कम नहीं। तुम बे झिझक मेरी गर्म चूत में अपना सारा वीर्य उंडेल दो।”

    मेरी उत्तेजना चरम सीमा पर पहुँचने वाली थी। अचानक मेरे पुरे बदन में एक झटका सा लगा और मेरी चूत में से जैसे फव्वारा निकल पड़ा। मैं ऐसे झड़ रही थी जैसे मैं पहली बार अनिल से उस जंगल में पेड़ के निचे चोदने पर झड़ी थी। मेरे बदन की हलचल देख राज भी तेजी से अपनी चुदाई की गति बढ़ाते हुए अकडने लगे और एक जोरदार धक्का देकर कराहते हुए उन्होंने अपना वीर्य मेरी चूत में एक फव्वारे की तरह छोड़ा। राज के गरमा गर्म वीर्य से मेरी चूत भर गयी और मेरी कोख जैसे संतृप्त हो गयी। मेरी और राज की चिकनाहट से भरा वीर्य मेरी चूत में से उभर कर गद्दे पर गिरने लगा।

    तब मेरे पति अनिल और नीना मिलकर तालियां बजाने लगे। मैंने शर्माते हुए जब उनकी और देखा तो नीना बोली, “आज मेरी प्यारी अनीता भाभी, न सिर्फ मेरी भाभी रही बल्कि मेरी सौतन भी बन गयी। पर मैं अब तुम्हें मेरी बड़ी प्यारी मीठी और अपनी सौतन बहन कहूँगी और तुम भी मुझे ऐसे ही बुला सकती हो। पर हम एक दूसरे के पति को छिनने नहीं बल्कि अपने पति को एक दूसरे से बांटने के लिए ही अग्रसर रहेंगे और हमारे इस नए रिश्तों का आस्वादन करेंगे। हमारे पति तो हमारे ही रहेंगे।”

    और फिर मेरे और राज के कहने पर मेरे पति अनिल और मेरी सौतन बहन नीना एक दूसरे पर ऐसे झपट कर चुदाई में लग गए की मैं और राज देखते ही रह गए।

    हमारी कहानी करीब दो साल तक ऐसे ही चलती रही। कभी मैं मेरे दोनों पतियों से चुदती रही तो कभी नीना। तो कभी मैं और नीना पूरी रात एक दूसरे के आगोश में एक दूसरे के बदन का आनंद लेते रहे। आगे भी काफी कुछ हुआ। पर वो कभी और।

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