पड़ोसन बनी दुल्हन-46

This story is part of the Padosan bani dulhan series

    दीदी मेरे शरीर के इस हाल पर मत जाइये। जो हुआ इससे मैं बहुत खुश हूँ। मैं आपका बहुत बहुत शुक्रिया अदा करती हूँ की आपने मुझे सही रास्ता दिखाया। आज आपने मुझे जबरदस्ती उनके कमरे में भेजा और मेरी जिंदगी बन गयी। अगर मैं आज नहीं जाती तो पता नहीं मैं जीवन में यह सुख दे पाती या नहीं। अब आप को मैं बिना कुछ भी छिपाये सब बताती हूँ।”

    मैंने माया को मेरे एकदम करीब बिठाया और उसकी पीठ पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे पूछा, “अब तुम बिलकुल निश्चिन्त हो कर खुले दिल से मुझे साफ़ साफ़ बताओ की क्या हुआ। कुछ भी छोड़ना मत।”

    माया ने अपनी मुंडी हिला कर अपना बयान शुरू किया। जो माया ने कहा उसे मैं अपने शब्दों में कह रही हूँ। मेरे धक्के मार कर माया को बड़ी मुश्किल के साथ जेठजी के ऊपर वाले कमरे में भेजने के बाद माया जब कमरे के दरवाजे पर पहुंची तो मैने नीचे से देखा की वह दरवाजे पर ही कुछ देर खड़ी रही और ऊपर से मुझे देखती रही। निचे से मैंने उसे बार बार इशारा किया की धक्का मार और दरवाजा खोल कर अंदर चली जा।

    आखिर में माया घबराती हुई दरवाजे को धक्का मार कर कमरे में दाखिल हुई। जेठजी अपने कमरे का दरवाजा अक्सर अंदर से बंद नहीं करते थे। उनको दरवाजा बंद करने की जरुरत ही नहीं पड़ती थी क्यूंकि हम में से किसी की हिम्मत नहीं होती थी की कोई भाई साहब के कमरे में बिना बुलाये जाए। सिर्फ माया ही थी जो साफ़ सफाई बगैरह करने के लिए दिन के समय में जेठजी के कमरे में जाती थी।

    जब माया कमरे में दाखिल हुई तो जेठजी बिकुल नंगे पलंग पर बैठे हुए थे। उनके पलंग पर उनके बाजू में एक किताब पड़ी थी। ऊपर पंखे के चलते हुए किताब के पन्ने फरफरा रहे थे। माया ने देखा की उसमें कई युवा सुन्दर लड़कियों के नग्न चित्र और नग्न पुरुष और स्त्रियों के मैथुन के दृश्य दिख रहे थे।

    जेठजी की आँखें बंद थीं और वह एक हाथ में अपना लण्ड रखे हुए मुठ मार रहे थे। माया झिझकती हिचकिचाती हुई आगे बढ़ी। माया के क़दमों की आहट सुन कर जेठजी ने आँखें खोली और माया को कमरे में आते हुए देखा।

    माया को देखते ही वह एकदम सकपका गए। हड़बड़ाहट में अपने बदन को चद्दर में ढकते हुए उन्हों बड़े ही आश्चर्य के साथ माया की और देखा। माया डरी हुई आतंकित नजरों से जेठजी के पलंग के पास आ कर कुछ समझ ना आने पर की वह क्या बोले, बोल उठी, “क्या मैं अंदर आऊं?”

    जेठजी को समझ नहीं आया की माया का सवाल सुनकर क्या कहे। पर उनका गुस्सा अब उनके चेहरे पर साफ़ दिख रहा था। जेठजी ने तीखी आवाज में कहा, “आ तो तुम गयी ही हो, कमरे में। अब क्यों पूछ रही हो? क्या तुम्हें पता नहीं की कमरे में बेवक्त आने पर दरवाजे पर दस्तक देते हैं? तुम इस वक्त मेरे कमरे में क्यों आयी?”

    जेठजी का ग़ुस्सेलि डाँट सुनकर माया की सूरत रोनी सी हो गयी। वह डरी हुई बोली, “जी, आपकी तबियत ठीक नहीं थी तो मैं आपको चाय देने के लिए आयी थी और आपके हाल पूछने के लिए आयी थी।”

    जेठजी का पारा यह सुनकर और ऊपर चढ़ गया। उन्होंने दहाड़ते हुए पूछा, “तो तुम्हें यही वक्त मिला था चाय के लिए और खबर पूछने के लिए? दिन में नहीं आ सकती थी क्या?”

    जेठजी की ऊँची गरजती हुई आवाज सुनकर माया आतंकित सी हो कर डर गयी और अचानक से फफक फफक कर रोने लगी। उसने रोते हुए कहा, ” आज जल्दी सुबह यहां से कमरा साफसूफ करने के बाद जब मैं निचे गयी तब अंजू दीदी ने मुझे बताया की आपकी तबियत ठीक नहीं है। उन्होंने आज मुझे दिनमें कई बार कहा की मैं आपके हाल पूछूं और चाय दे कर आऊं।

    पर दिन में आप कमरे में कुछ काम कर रहे थे तो मेरी हिम्मत नहीं हुई आपके कमरे में आने की। अब जब मैं रात की रसोई के काम से फारिग हुई तो दीदी ने मुझे जबरदस्ती आपके पास भेजा तो मैं आयी। मुझे देर हो गयी, तो आप ने मुझे इतनी डाँट लगा दी।” यह कह कर माया फर्श पर बैठ कर रोने लगी।

    माया को रोते हुए देख जेठजी का दिल कुछ पसीजा। वह तो बिलकुल नंगे पलंग पर बैठे थे, जल्दी से आननफानन में उन्होंने एक चद्दर अपनी कमर पर लपेटी और उठ कर खड़े हुए और माया के पास जा कर उसके हाथ थाम कर उसे खड़ा किया और उसे अपने पास खींच कर ढाढस देते हुए माया की पीठ पर हाथ फिराते हुए बोले, “माया, ठीक है, कोई बात नहीं। पर अब रोना बंद कर। चुप हो जा। मुझे कोई महिला दुखी हो या रोये यह बिलकुल पसंद नहीं।

    यह ध्यान रहे की हमेशा जब भी आना हो पहले दस्तक दे कर जब इजाजत मिले तब कमरे में आते हैं। देख तूने आज इस तरह अचानक आकर मुझे कितना जलील महसूस कराया। अब तू चाय यहां छोड़ दे और यहां से जा। बहु को कह देना मेरी तबियत अब ठीक है।“ फिर अपनी नग्नता और चद्दर की और इशारा करते हुए बोले, “पर खबरदार, जो इस सब के बारे में किसीको कुछ बताया तो।”

    माया ने रोते हुए ऊपर नजरें उठा कर जेठजी की आँखों से आँखें मिलायीं और अपनी मुंडी हिला कर बोली, “जी, मुझे माफ़ कर दीजिये। आगे से ध्यान रखूंगी और ऐसी गलती कभी नहीं करुँगी। पर मुझे डाँटिए मत। मुझे डर लगता है।”

    माया की भोली सरल बात सुन कर जेठजी का गुस्सा गायब हो गया। उनसे अपनी मुस्कुराहट रोकी नहीं गयी। उन्होंने कुछ मुस्काते हुए माया की और देखा। जब माया ने देखा की मेरे जेठजी गुस्से में नहीं थे तब उसकी हिम्मत बढ़ गयी। जब माया ने जेठजी से आँखें मिलायीं तो उसके स्त्री सहज स्वभाव ने जेठजी की आँखों में स्त्री के सहवास की अतृप्त छिपी हुई वासना देखि। हरेक स्त्री को भगवान ने यह जन्मजात क्षमता दी है की वह पुरुष की आँखों में झाँक कर कह सकती है की पुरुष की नजर में कामना या लोलुपता है या नहीं।

    माया ने पहले भी कई बार जेठजी के कमरे में काम करते हुए उसकी पीठ के पीछे जेठजी की कामुक नज़रों को महसूस किया था। पर जैसे माया की नजर जेठजी पर पड़तीं, जेठजी फ़ौरन अपनी नजरें माया के बदन से हटा लेते। कई बार अचानक जब माया जेठजी को अपने बदन को झाँकते हुए देख लेती तो आँखें मिलने पर जेठजी खिसिया जाते और अपनी नजरें फेर लेते।

    माया का बदन जवानी में पुरबहार खिला हुआ था। माया की बिना कपड़ों से ढकी हुई पतली कमर और माया के ब्लाउज और ब्रा के बाहर उसके भरे हुए स्तनोँ का कामुक उभार जो माया के काम करते हुए झुकने से और भी फुला हुआ नजर आता था, उसकी गाँड़ का उसकी कमर के निचे फैलाव, जब कमरे में घुटनों के बल बैठ कर अपनी साड़ी उठा कर कमरे में झाड़ू लगाती या पोछा करती तो माया की लम्बी सुआकार जांघें, यह सब जेठजी की नज़रों से माया छिपा नहीं पाती थी।

    शायद कहीं ना कहीं माया यह छिपाना भी नहीं चाहती थी या यूँ कहिये की माया उन्हें जेठजी को शातिर तरीके से दिखाना चाहती थी पर वह इस तरह की किसीको ऐसा भी ना लगे की वह दिखा रही थी।

    जैसे जेठजी ने माया को अपने पास लिया और माया की पीठ पर ढाढस देते हुए हाथ फिराने लगे तो माया को मेरी कही हुई बात याद आयी। जेठजी का उसकी पीठ पर हाथ फिराने से माया की कामुकता भी जागृत हो उठी थी। माया ने जेठजी की आँखों में भी वही कामुकता का भाव देखा था।

    अब अगर यह मौक़ा गँवा दिया तो ऐसा मौक़ा दुबारा पता नहीं कब मिले। माया को यह भी पता था की अगर उसने कुछ नहीं किया और वैसे ही वापस आ गयी तो मैं उसे जबरदस्त डाँटूंगी और शायद मैं माया से बोलचाल भी बंद करदूँ वह भी माया जानती थी। बिना कुछ सोचे समझे माया तब जेठजी से लिपट गयी और रोते हुए बोली, “देखिये जी, मैं आपको ऐसे हाल में देख नहीं सकती। यह ठीक नहीं।”

    माया को अपने से इस तरह सख्ती से लिपटते हुए देख जेठजी के होशोहवास उड़ गए। वह हैरान होते हुए बोले, “तुम क्या नहीं देख सकती? क्या ठीक नहीं? यह तुम क्या कर रही हो, माया?”

    माया ने जेठजी के सवाल का कोई जवाब ना देते हुए चद्दर में छिपाए हुए जेठजी के लण्ड को चद्दर के ऊपर से ही अपनी हथेली में पकड़ कर कहा, “देखिये जी, मेरे होते हुए आपको अपने हाथ से इस तरह इसे सहलाने की क्या जरुरत पड़ गयी? क्या मैं मर गयी थी? मैं आपकी दासी हूँ। आप ने मुझ पर इतने एहसान किये हैं की आज मेरी यह जिंदगी, मेरा वजूद, मेरी इज्जत सब आपकी ही बदौलत है।

    आप मुझे जैसे चाहें इस्तेमाल करें। ना तो मैं आपको मना करुँगी, ना मैं ज़रा सा भी बुरा मानूंगी और ना तो मैं आप के ऊपर कोई भी हक़ जताऊँगी। आपने मुझे नया जीवन दिया है। आपने मुझे बिना मोल खरीद लिया है। मुझे आप से कोई पद या अधिकार नहीं चाहिए। मैं अपना बचा खुचा जीवन आपके चरणों में आपकी रखैल बनकर गुजारना चाहती हूँ। आपको नजरें छिपा कर मुझे देखते रहने की क्या जरुरत है? आप मुझे पुरे अधिकार से मेरे कपडे निकाल कर या जैसे चाहे मुझे देखिये।

    आप मुझे कहिये मैं आपके लिए क्या करूँ? मैं आपको मेरे पुरे बदन पर सम्पूर्ण अधिकार देती हूँ। बस मुझे आप अपनी सेवा का मौक़ा दीजिये। और आप यह विश्वास रखिये की मैं हमारे बिच की बात किसीको भी नहीं जाहिर करुँगी। जैसे मैं अब तक आपकी नौकरानी बन कर रह रही हूँ ऐसे ही रहूंगी।”

    जैसे ही माया ने जेठजी के लण्ड को हाथ में लेने के लिए चद्दर पकड़ी तो बदन के ऊपर आननफानन में लपेटी हुई चद्दर खिसक कर निचे गिर पड़ी और जेठजी माया के सामने बिलकुल नंगे हो गए। जेठजी का कसरती सख्त बदन और लंबा कद माया के पतले कमसिन बदन के सामने एक छोटे से पतले पेड़ के सामने जैसे पहाड़ खड़ा हो ऐसा लग रहा था। जेठजी का तगड़ा मोटा लंबा लण्ड माया की नजर के सामने सख्ती से खड़ा हो गया।

    माया ने जेठजी का लण्ड इतने करीब से पहली बार साक्षात रूप में जब देखा तो उसके होश ही उड़ गए। पहली बार उसने देखा था वह दूर से और साफ़ नहीं देखा था। नजदीक से देख कर माया को चक्कर आने लगे। माया ने कभी इतना बड़ा और इतना मोटा लण्ड देखा नहीं था।

    वैसे माया ने अपने पति के आलावा किसी और का लण्ड ही नहीं देखा था। माया ने बिना कुछ सोचे समझे जेठजी के लण्ड को अपनी हथेली में लिया और उसे प्यार से सहलाने लगी। जेठजी की सख्ती और गुस्सा पल भर में गायब हो गया। माया के छूते ही जेठजी का लण्ड फुंफकारने लगा। जेठजी अपने आप पर काबू नहीं पा रहे थे।

    जेठजी का बुरा हाल हो रहा था। जब माया जेठजी के कमरे में दाखिल हुई थी उस समय जेठजी किसी पोर्न किताब पढ़ रहे थे और पढ़ कर आँखें मूँद कर उसे याद कर अपना लण्ड सेहला रहे थे। उस उत्तेजना से वैसे ही जेठजी का लण्ड पुर बहार था।

    जैसे जेठजी का लण्ड काफी लंबा और मोटा था वैसे ही उनके लण्ड के मूल पर स्थित लण्ड का अण्डकोष भी बड़ा मोटा, फुला हुआ, गोरा और गोलाकार था। जेठजी के ब्रह्मचर्य का पालन करने के कारण जेठजी के लण्ड का अण्डकोष वीर्य से लबालब भरा हुआ था। जेठजी का लण्ड कम से कम आठ इंच लंबा तो होगा ही और गोलाई में छः इंच से ज्यादा ही होगा।

    माया के पति के लण्ड के मुकाबले तो जेठजी का लण्ड राक्षसी लण्ड ही कहा जा सकता था। जेठजी के लण्ड पर कई रक्तपेशियाँ कुछ गोरी और कुछ थोड़ी सी नीली लण्ड की गोलाई पर फैली हुईं दिख रहीं थीं।

    माया जेठजी का गोरा, चिकना लण्ड देख कर मोहित सी कुछ देर तक टकटकी लगाए हुए उसे देखती ही रही। अचानक माया फर्श पर जेठजी की टाँगों के बिच अपने घुटनों के बल, निचे गिरी हुई चद्दर पर आधी बैठी और आधी खड़ी हुई। उसके पहले की माया को ढाढस देने के लिए आये हुए जेठजी कुछ समझ सकें, माया ने जेठजी की दोनों टाँगों को अलग किया और उनके बिच में अपने लिए जगह बनाने के लिए उनको अपने हाथों से खिसका दिया।

    जेठजी को अपनी टाँगें फैला कर खड़ा कर माया उनके लण्ड के पास अपना मुंह ला कर अपनी जीभ से माया जेठजी के लण्ड का टोपा चाटने लगी। जब जेठजी ने माया को अपना लण्ड चाटते हुए पाया तो उनकी सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था की माया ऐसा कुछ करेगी।

    माया ने धीरे धीरे फर्श पर अपनी टाँगों के बल आधे खड़े हुए जेठजी का जितना लण्ड मुंह में जा सकता था मुंह में लिया और उसे काफी शिद्दत से चूसने लगी। जेठजी अपने ऊपर का सारा नियंत्रण खो चुके थे। अब उनका सारा ध्यान उनके लण्ड पर था जो माया के मुंह में वी.आई.पी ट्रीटमेंट पा रहा था। जेठजी ने बगैर प्रयास किये अनायास ही माया के मुंह को अपने लण्ड से चोदना शरू किया।

    उन्होंने यह सब कहानियों में जरूर पढ़ा था और वीडियो में देखा था। उससे पहले उनको ऐसा कोई अनुभव था ही नहीं। कुछ देर तक माया जेठजी का लण्ड उसी पोजीशन में चूसती रही।

    माया ने देखा की जेठजी खड़े खड़े लण्ड चुसवाने में कुछ दिक्कत महसूस कर रहे थे तब उसने अपने मुंह से जेठजी का लण्ड निकाला और जेठजी को साथ में ले कर उन्हें पलंग के किनारे पर बिठा दिया और खुद बिलकुल उसी तरह घुटनों के बल जेठजी की दोनों टांगों के बिच में बैठ कर दुबारा जेठजी का लण्ड मुंह में लेकर इस बार बड़ी ही मशक्क्त से चाटने और चूसने लगी।

    चूसते हुए वह अपने मुंह की चिकनी चिकनी लार को निकाल कर जेठजी के लण्ड पर चुपड़ती रही। वह लार जिसमें से धागे जैसे चिकनाहट निकलती है जिसे वह जेठजी के लण्ड के ऊपर चुपड़ रही थी। जेठजी का इतना तगड़ा लण्ड देख कर माया बहुत ज्यादा डरी हुई थी। वही लण्ड उसे अपनी चूत में डालना होगा यह एक भयावह प्रस्ताव था जिससे वह पीछे नहीं हट सकती थी और हटना भी नहीं चाहती थी।

    माया इतनी दक्षता से जेठजी का लण्ड चूसने लगी की जेठजी अपने होशोहवास खो बैठे। उन्हें अब यह ध्यान ही नहीं रहा की क्या सही था और क्या गलत। जेठजी माया का सर अपने हाथों में पकड़ कर वह माया का मुंह आगे पीछे करवा कर अपने लण्ड से माया का मुंह चोद रहे थे। माया बार बार ऊपर जेठजी की और देख कर खुश हो रही थी की जेठजी उसके लण्ड चूसने से बड़े ही उत्तेजक स्थिति में खो गए थे।

    कुछ देर बाद जब माया ने देखा की जेठजी कहीं उसके मुंह में अपना वीर्य ना छोड़ दें, माया ने जेठजी का लण्ड अपने मुंह से निकाला। माया जेठजी का हाथ थाम कर खुद पहले पलंग पर लेट गयी। जेठजी बेचारे नंगधडंग, चुपचाप माया के पास पलंग पर जब जा पहुंचे तब माया ने उनको अपने ऊपर खींचा और संकेत दिया की वह उसके ऊपर चढ़ जाएँ। जेठजी अब पूरी तरह माया के वश में आ चुके थे।

    माया ने जेठजी को अपनी बाँहों में लिया और उनके होंठ से अपने होंठ चिपका दिए। अब जेठजी पूरी तरह से माया की माया में खो चुके थे। अब उनमें अपनी कोई समझ या विवेक बचा नहीं था। उनका पूरा ध्यान उस वक्त सिर्फ और सिर्फ अपने लण्ड के अलावा कहीं और नहीं था।

    जैसे माया ने अपने रसीले होँठों को जेठजी के होँठों से चिपका दिए, जेठजी बेतहाशा माया के होँठों को पागल की तरह चूमने, चूसने और काटने लगे। अब उनके हाथ भी माया के पुरे बदन को खंगालना चाहते थे। वह माया के बदन के एक एक घुमाव, मोड़, उभार और दरार को महसूस करना चाहते थे।

    उन्होंने उसके पहले माया को जरूर कुछ हद तक कामुकता की दृष्टि से देखा होगा, पर उस रात माया पूरी तरह से उनके कब्जे में थी और उन्हें कोई रोक या बंदिश नहीं थी। वह माया के साथ जो चाहे कर सकते थे। माया ने अपने आप को सौ फीसदी जेठजी के हाथों में सुपुर्द कर दिया था।

    जेठजी बिना कुछ सोचे, माया के ब्लाउज के ऊपर से ही उसके फुले हुए मदमस्त स्तनोँ को सेहलाने और मसलने लगे। माया ने जेठजी की और देखा और हल्का सा मुस्कुरा कर बोली, “देखिये जी, आप मेरे मालिक हैं। आप ज़रा भी झिझकिये मत। आप मुझे जो चाहे कर सकते हैं। मैं आपकी रखैल हूँ और अबसे जीवन भर रहूंगी। आप अपने बदन की सारी भूख मिटा दीजिये।

    आज के बाद आपको अपना यह (माया ने जेठजी के लण्ड की और इशारा करते हुए कहा) अपने हाथ से हिलाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। मैं उसे अपने मुंह से चूसूंगी और आप उसे मेरे यहां (माया ने अपनी चूत की और इशारा कर कहा) इसमें डाल कर अपनी सारी हवस पूरी कर सकते हैं। यह आज से आपकी ही है। आज से मेरा सब कुछ आपका ही है।” यह कह कर माया ने जेठजी के हाथ उस के ब्लाउज के बटनों के ऊपर रख दिए।

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