Drishyam, ek chudai ki kahani-16

This story is part of the Drishyam, ek chudai ki kahani series

    कुछ देर बाद अर्जुन को दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी। जब उसने दरवाजा खोला तो सिम्मी को वहाँ खड़ा पाया।

    सिम्मी ने कमरे में आ कर अर्जुन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “ठीक है, तुम जब मुझे इतना कह रहे हो तो फिर मैंने सोचा की तुम्हारी बात भी ठीक है। कालिया को कहो की मैं उससे मिल लुंगी। वह मुझे दोपहर को जब चाचाजी चले जाएँ तब दूकान पर कल मिले। मैं उससे बात करती हूँ।”

    सिम्मी ने जानबूझ कर अर्जुन से कालिया को घर बुलाने की बात नहीं कही। उसने सोचा की अर्जुन ही अगर यह बात कहे तो सही रहेगा।

    सिम्मी की बात सुनकर अर्जुन के मन का मोर मन ही मन में नाचने लगा। अब अर्जुन का शातिर दिमाग ओवर टाइम काम करने लगा। एक तरफ उसे सिम्मी को कालिया के तगड़े लण्ड से चुदवाते हुए देखने की प्रबल इच्छा थी।

    तो दूसरी और वह यह भी चाहता था की चुदवाते समय सिम्मी एक दुल्हन की तरह सज धज कर कालिया के सामने प्रस्तुत हो। यह सोचते ही अर्जुन का लण्ड उसकी निक्कर में खड़ा हो गया। अर्जुन अपने कड़क लण्ड को सहलाते हुए आगे की योजना के बारे में सोचने लगा।

    उसे यह समझ में आ गया था की अगर दीदी ने कालिया को अकेले दोपहर को दूकान में बुलाया तो जो कुछ भी हो जाए, कालिया सिम्मी को चोदे बगैर छोड़ेगा नहीं। चाहे उसके लिए कालिया को जबरदस्ती ही क्यूँ ना करनी पड़े। अर्जुन को पता था की दीदी भी यह भली भाँती जानती थी।

    अर्जुन ने कहा, “नहीं दीदी यह ठीक नहीं रहेगा। दीदी ऐसा करते हैं की चाचाजी और चाचीजी इस सोमवार को गाँव जानेवाले हैं। वह दूकान जल्दी बंद कर सोमवार शाम को निकलेंगे। मंगलवार को दूकान वैसे भी बंद रहती है। वह लोग मंगलवार शाम को वापस आएंगे। क्यों ना हम कालिया को सोमवार शामको चाचाजी और चाचीजी जब निकल जाएँ तो घर बुला लें? तुम आराम से बैठ कर उसे समझाना। मैं अभी जा कर कालिया से बात कर उसे कहता हूँ की दीदी तुमसे बात करेगी। थोड़ी धीरज रखो।”

    दीदी अर्जुन की बात सुनकर थोड़ी देर चुप रही फिर बोली, “ठीक है। वैसे तो मैं वह मवाली मुझे बिलकुल पसंद नहीं है, पर तू कहता है तो मैं उससे बात कर लुंगी।”

    अर्जुन फ़ौरन कालिया से मिलने निकल पड़ा। कालिया अपने कमरे में ही था। जब कालिया ने दरवाजा खोलते ही अर्जुन को देखा तो कुछ झेंपता हुआ बोला, “भाई उस दिन की हरकत के लिए मुझे माफ़ कर देना। मैं बहुत परेशान हूँ। मैं सिम्मी से बहुत प्यार करने लगा हूँ और उसको मिले बगैर मैं पागल हो जाऊंगा।”

    अर्जुन ने कालिया के कंधे पर हाथ रख कर उसे सांत्वना देते हुए कहा, “कालिया, मैं तेरे मन की बात भलीभांति जानता हूँ। आखिर मैं दीदी का भाई जरूर हूँ पर तुम्हारा दोस्त भी तो हूँ। मैं तो चाहता हूँ की तुम्हारी और दीदी की सुलह हो जाए। तू तो जानता है, दीदी तुम्हें बिलकुल पसंद नहीं करती। पर मैंने एक तरकीब सोची है। अगर तू होशियारी से यह काम करेगा तो तेरी बात बन सकती है।”

    यह बात सुनकर कालिया की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। कालिया ने अर्जुन का कंधा पकड़ कर उसे हिलाते हुए पूछा, “सच्ची? तू मेरी तुम्हारी दीदी से प्यार भरी सुलह करवा सकता है? कैसे? तू जल्दी बता।”

    अर्जुन ने कहा, “तू तो जानता है दीदी बड़ी धार्मिक विचार की है।”

    फिर अर्जुन ने अपने शातिर दिमाग में पनप रही शरारत भरी स्कीम कालिया को समझायी।

    अर्जुन की बात सुनकर कालिया के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। उसकी आँखें चौड़ी हो गयीं। उसने कहा, “क्या, यह हो सकता है?”

    अर्जुन ने कहा, “हो सकता है अगर तुम मेरी योजना को अच्छी तरह अमल करे तो।”

    यह सुनकर कालिया ख़ुशी के मारे बाँवरा हो गया। कालिया ने फ़ौरन अर्जुन को गले लगा कर कहा की वह सिम्मी को खुश करने की लिए कुछ भी करने को तैयार है।

    अर्जुन फ़ौरन उलटे पाँव वापस आया और दीदी के कमरे में जा पहुंचा। सिम्मी उस समय अपने पलंग पर बैठी हुई कुछ सोच रही थी। अर्जुन को देखते ही सिम्मी ने कुछ उत्सुकता से पूछा, “कहाँ से आ रहे हो?”

    अर्जुन समझ गया था की सिम्मी का मतलब है की क्या वह कालिया से मिलकर आ रहा था?

    फिर अर्जुन ने झूठमूठ अपना मुंह छोटा करके दुःख भरी आवाज में कहा, “हाँ, मैं कालिया से मिला था। वाकई अगर मैं आज वहाँ ना पहुंचता तो कालिया सब सामान पैक कर ट्रक में भर कर यह गाँव को छोड़कर जाने का प्लान बना रहा था…

    बल्कि उसने कुछ सामान तो पैक भी कर लिया था। पर जब मैंने कहा की दीदी तुमसे मिलने के लिए तैयार है तो उसने मुझे गले लगा लिया और मुझसे कहा की मैं तुम्हें कहूं की वह तुमसे बहुत प्यार करता है और तुम जो कहोगी वह करने के लिए तैयार है। बस वह यही चाहता है की तुम उससे नफरत ना करो। वह सोमवार चाचा चाची के जाने के बाद शामको करीब आठ बजे घर आ जाएगा।”

    भाई की बात सुन कर सिम्मी मन ही मन बहुत खुश हुई। पर अपना उत्साह ना दिखाते हुए अर्जुन से बोली, “बापरे! अब कालिया आएगा, वह भी रातको, और मिलेगा मुझे। पता नहीं क्या क्या करेगा वह?”

    तब अर्जुन ने सिम्मी से कहा, ” दीदी, अब आप ज्यादा बनिए मत। अब आपको कालिया को अपने प्यार से मनाना है। मैं जानता हूँ आपमें वह प्यार करने की शक्ति है। कालिया आपको क्या करेगा? प्यार ही तो करेगा ना, जैसा कोई भी पुरुष अपनी प्यारी स्त्री से करता है? यही तो स्त्री पुरुष का प्यार है? इसमें बुराई क्या है? कालिया आप से दो बार प्यार कर चुका है, अब तीसरी बार करेगा। पर इस बार कालिया आपसे नहीं, आप कालिया से प्यार करोगी। आप कालिया से प्यार करोगी जैसे एक स्त्री, एक प्रियतमा, एक पत्नी अपने पति से प्यार करती है। प्यार करके आप उसे सुधार सकोगी इसका मुझे पूरा विश्वास है।”

    सिम्मी ने भाई की और देखा। वह थोड़ा मुस्कुराई और अपना सर हिलाकर “हाँ, ठीक है।” कह कर अपने कमरे में चली गयी

    सोमवार की शाम के इंतजार में सिम्मी बेचैन हो रही थी। सोमवार के दिन वह एक अभिसारिका सी उत्तेजना से भरी हुई नवल किशोरी की तरह शामको क्या होगा उसकी चिंता में मग्न, शामके लिए तैयार होने में लग गयी।

    शामके करीब छे बजे, चाचाजी और चाचीजी टैक्सी में बैठ कर निकल पड़े। जाते हुए चाचीजी ने गले लगाकर सिम्मी को कान में “आल ध बेस्ट” कह दिया। शर्म की मारी सिम्मी चाचीजी के पाँव छूकर निचे की तरफ नजर झुकाकर चुपचाप खड़ी हो गयी।

    रात के आठ बजे अर्जुन, कालिया और सिम्मी भोजन कर चुके थे। सिम्मी सब काम निपटा कर खाने के टेबल पर ही अर्जुन और कालिया के सामने आकर बैठ गयी और अर्जुन और कालिया की और देखने लगी। कमरे में अचानक ही एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। कोई भी कुछ बोल नहीं रहा था। सब यही उधेड़बुन में थे की क्या बोला जाए।

    कुछ देर की चुप्पी के बाद सिम्मी ने कालिया की और देख कर कुछ तीखे अंदाज में पूछा, “क्या है? तुम मुझसे मिलना चाहते थे ना? बोलो, अब मिल लिए। क्या कहना है, बोलो?”

    सिम्मी की सीधी बात से कालिया कुछ झेंप सा गया। कुछ समझ में नहीं आने से काँपती आवाज में टूटे फूटे शब्दों में बोला, “सिम्मी…. मैं यह कह रहा था की……”

    “क्या कह रहे थे? अर्जुन के सामने तो बड़ी डींगे मार रहे थे? सारी दुनिया को आग लगा दोगे, किसी को मार दोगे, यहां से कहीं चले जाओगे? अब बोलती बंद क्यों हो गयी है? कुछ बोलो भी?” सिम्मी ने वही तीखी आवाज में सवालों की झड़ी लगा दी।

    कालिया कुर्सी पर बैठा इधर उधर खिसकता हुआ कुछ बोल नहीं पा रहा था। सिम्मी के तीखे तेवर देख कर वह एकदम स्तब्ध सा हो गया था। अर्जुन ने तब सिम्मी से कहा, “दीदी, कालिया तुमसे बहुत प्यार करता है। तुम्हें पाना चाहता है। तुम्हारे सामने कुछ बोल नहीं पा रहा है।”

    “अच्छा? मुझसे प्यार करता है? उसे मालुम है प्यार किसे कहते हैं? प्यार का अर्थ मालुम है इसे? इसकी डिक्शनरी में तो प्यार का मतलब है मारना, डाका डालना, जबरदस्ती करना, लड़की का रेप करना। क्यों, यही है ना प्यार तुम्हारे हिसाब से? प्यार करने चले हैं।” सिम्मी ने कटाक्ष से कालिया की और देखते हुए कहा।

    कालिया अचानक निचे झुका और सिम्मी के पाँव में गिर पड़ा। सिम्मी की एक टांग पकड़ कर बोला, “सिम्मी, मुझे माफ़ कर दो, मैं किसीको नहीं मारूंगा, ना किसी से कोई झगडा करूंगा। आगे से कभी तुम पर या किसी और स्त्री पर कोई जबरदस्ती नहीं करूंगा। मैं सुधर जाऊंगा। पर तुम मुझसे नाराज मत हो। मैं तुमसे सच में बहुत प्यार करना चाहता हूँ। मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ।”

    सिम्मी एकदम खड़ी हो गयी और दो कदम पीछे हट कर बोली, “शादी करोगे मुझसे? अरे तुम्हें कोई शर्म है? तुमने सोच भी कैसे लिया की मैं तुमसे शादी करुँगी? एक दो बार तुमने जबरदस्ती मेरा रेप कर लिया और मैं चुप रही तो तुम समझने लगे मैं तुमसे शादी करुँगी?”

    अर्जुन को लगा की अब स्थिति बिगड़ सकती है। वह एकदम खड़ा हो गया और दीदी और कालिया को वापस कुर्सी पर बिठा कर दीदी को देखते हुए बोला, “यही कहा था मैंने कालिया से। उसकी शादी तुमसे नहीं हो सकती। पर दीदी हम शादी का नाटक तो कर सकते हैं ना? एक बार तो तुम उसके साथ शादी का नाटक करके उसे अपना थोड़ा प्यार तो दे सकती हो ना? प्लीज मान जाओ दीदी।”

    अर्जुन की बिनती सुन कर सिम्मी कुछ शांत हुई और बोली, “नाटक तक ठीक है। प्यार तो उसने मुझसे जबरदस्ती दो बार कर ही लिया है। अब क्या बाकी रह गया है?”

    अर्जुन ने कहा, “दीदी, ठीक है। अब वह माफ़ी मांग रहा है, अपने किये पर पछता रहा है। अब उसे माफ़ कर दो ना? उसने तुम पर जबरदस्ती की है। वह मानता है। अब गुस्सा थूक दो और उसे माफ़ कर दो। उसे थोड़ा प्यार कर समझाओगी तो तुम्हारा क्या जायेगा?”

    “ठीक है। अब तुम जाओ यहां से, मैं इसे समझा दूंगी। अब तुम्हारा यहां कोई काम नहीं है। तुम इधर उधर कोई ताकझाँक मत करना। समझे? वरना मैं तुम्हें भी डाँट दूंगी।” सिम्मी ने हलके से लज्जा से शर्माते मुस्काते हुए कहा।

    “ठीक है, बाबा, मैं चलता हूँ। मैं क्यों आप दोनों के बिच में कबाब में हड्डी बनूँ?” कह कर अर्जुन शरारती अंदाज से मुस्कुराता हुआ वहाँ से खिसक लिया। पर उसने बैडरूम के रोशन दान से अंदर का नजारा देखने की सारी व्यवस्था पहले से ही कर रखी थी। सिम्मी को भी पता था की भाई उन दोनों की चुदाई देखे बिना रहने वाला नहीं है।

    पढ़ते रहिये कहानी आगे जारी रहेगी!

    [email protected]

    Leave a Comment