Bhoot To Chala Gaya – Part 1

This story is part of the Bhoot To Chala Gaya series

    मैं एक करारी 32 साल की शादीशुदा औरत थी। राज एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में व्यवस्थापक के ओहदे पर काम करता था। उसे मुम्बई और पुणे कार्यालय देखने पड़ते थे। एक हफ्ता वह मुम्बई तो दूसरे हफ्ते पुणे रहता था। हम लोग मुबई में रहते थे। मैं भी कई बार उसके साथ पुणे जाया करती थी पर होटल में अकेली बोर हो जाती थी।

    मेरे पति राज मुझे बहुत चाहते थे। हमारी शादी को सात साल हो चुके थे पर हमें कोई संतान नहीं था। हम सेक्स तो करते थे पर वह पहले जैसा जोश खरोश कहाँ? हालांकि मैं अपने पति से सेक्स में संतुष्ट रहती थी और मुझे कोई शिकायत नहीं थी। मेरे पति राज मुझे हमेशा संतुष्ट रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते थे। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

    मुझे एक बच्चे की बड़ी ख्वाहिश थी। हमने कई डॉक्टरों और विशेषज्ञों से संपर्क किया, पर कोई परिणाम नहीं निकला। हमने कई टेस्ट करवाये, पर राज कहता था की सब डॉक्टर लोग ये कहते थे की सब कुछ सही था। हमें बच्चा क्यों नहीं हो रहा था वह कोई बता नहीं पा रहा था।

    बचपन से ही जब पहली बार मैंने सेक्स के बारे में कुछ सुना तबसे मुझे सेक्स के प्रति एक तरह की उदासीनता थी, जो शादी के समय भी थी। शादी के बाद उसमें कमी जरूर हुई, पर उस कारण से ही मुझे यह भरोसा हो गया था की शायद मुझमें जरूर कोई न कोई कमी थी जिसे राज मुझे बताने से झिझकते थे, ताकि मुझे बुरा न लगे।

    इस कारण से मैं बड़ी दुखी रहती थी। मुझे डिप्रेशन हो गया और मैं लोगों से मिलने में कतरा ने लगी। कोई कभी पूछता की “आपको कितने बच्चे हैं, अथवा क्या आपको बच्चे नहीं है?” तो मैं अपने आपको बड़ी मुश्किल से नियत्रण में रख पाती थी। मुम्बई में हमने छोटा फ्लैट लिया था जिसके रख रखाव में व्यस्त रहने की मैं कोशिश करती थी।

    पर मेरे पति राज जब पुणे जाते थे तो मैं बोर हो जाती थी। राज मुझे हमेशा कोई न कोई नोकरी करने के लिए कहते थे। मैं नौकरी करने में ज्यादा उत्साहित इस लिए नहीं थी क्योंकि अगर मैंने नौकरी की तो मुझे ऑफिस जाना पडेगा। रास्ते में और ऑफिस में भी सारे पुरुष मुझे ताकेंगे और बुरी नजर से देखेंगे, जो मुझे अच्छा नहीं लगता था।

    मुझे एक तरीके से आप रूढ़िवादी कह सकतें हैं। वास्तव में तो शादी से पहले मैं न सिर्फ रूढ़िवादी थी पर एक तरह से मैं सेक्स के नाम से गभरा जाती थी या सेक्स से मुझे घिन आती थी। हमारे परिवार में माहौल ही कुछ ऐसा था। मेरे पति ने मुझे उस स्थिति से कैसे धीरे धीरे निकाला और मुझे सेक्स में प्रेरित किया जिससे की मैं सम्भोग क्रीड़ा में आनंद महसूस करने लगी और मैं अपने पति को सम्भोग का आनंद देने में सक्रीय हो सकी, वह एक अनोखी दास्तान थी।

    इसका मतलब यह मत समझना की मैं बिलकुल नीरस थी। मुझे मेकअप करना और अच्छे कपडे पहनना भाता था। मैं जानती थी की मैं एक सुन्दर एवं अच्छी फिगर वाली औरत थी और मेरी शारीरिक संपत्ति को शालीनता से कपड़ों और मेकअप द्वारा उभारना मुझे अच्छी तरह से आता था और भाता भी था। जब हम पार्टियों में जाते थे तो मेरे पति राज मुझे सेक्सी कपडे पहन कर थोड़ा सा अंग प्रदर्शन करने के लिए उकसाते थे। पर मैं अपने आपको ऐसे सजाती थी जिससे की मैं आकर्षक तो लगूँ पर उपलब्ध नहीं। मेरे बेचारे पति! उन को इसीसे संतुष्ट होना पड़ता था।

    मैं अगर सीधे सादे कपडे भी पहनती थी तो भी मेरी सुंदरता और कामुक अंग रचना के कारण हर जगह पुरुष वर्ग मुझे घूरता रहता था। मुझे यह कतई पसंद नहीं था। पर एक मेरे पति थे जो अन्य पतियों की तरह पुरुषों के मुझे घूरने से नाराज या गुस्सा होने के बजाय खुश होते थे। मेरी अंग रचना ही कुछ ऐसी थी की पुरुष वर्ग मुझ पर से अपनी नजर हटा ही नहीं पाते थे। मैं दूसरी भारतीय महिलाओं से थोड़ी ज्यादा लंबी थी और जहां पुरुषों की नजरें ज्यादा टिकती हैं मेरे उन अंगों और शारीरिक मोड़ बड़ी खूबसूरती से उभरे हुए थे।

    मेरे स्तन मंडल बहुत बड़ी मात्रा में भारी या मोटे नहीं थे, पर सुडौल और काफी उभरे हुए थे। मेरे पति राज मेरे लिए ऐसी नुकीली ब्रा खरीद लाते थे और मुझे पहनने के लिए बाध्य करते थे जिससे मेर स्तनोँ का उभार और भी स्पष्ट रूप से दिखे। वैसे ही मेरे स्तन पहले सी हे भरे हुए और नुकीले थे ऊपर से ऐसी ब्रा पहनने से उनको शालीनता से छुपाना असंभव था। मेरे कूल्हे भी उसी तरह नुकीले और थोड़े से उभरे हुए थे की चाहे साड़ी पहनूँ या सलवार, मरे अंग सहज रूप से ही कामुकता को प्रदर्शित करते थे और मैं कुछ कर नहीं पाती थी।

    मेरे पति राज मुझ पर बड़ा दबाव डालते थे की मैं साड़ी को ऐसे पहनूँ जिससे उसका पल्लू मेरी नाभि से काफी निचे तक हो और मेरा पूरा पेट और मेरी नाभि से भी और निचे का मेरा बदन दिखे। शुरू शुरू में तो मैंने उनकी बात न मानी पर जब वह अड़ ही जाने लगे और हमेशा उस बात को दोहराने लगे तब आखिरमें थक कर मैंने उसी तरह अपनी साड़ी पहननी शुरू कर दी। सोचा, चलो पति की एक बात तो मान ली जाए! हमें पैसों की तो कोई ख़ास कमीं नहीं थी पर मेरी बोरियत भगाने के लिए मेरे पतिने मुझ पर नौकरी करने के लिए दबाव डालना शुरू किया। वह चाहते थे की मैं कोई नौकरी करूँ ताकि मेरा मन लगा रहे और मैं अपने डिप्रेशन से छुटकारा पा सकूँ। पर मुझे मर्दों की लोलुप नज़रों से डर सा लगता था। एक बार जब मेरे पति ने मुझे नौकरी करनेकी बात कही तब मैंने उन्हें मेरी चिंता बताई। मेरी बात सुनकर वह ठहाका मार कर हंसने लगे।

    मेरे पति राज ने मुझसे कहा, “अरे पगली, यह इक्कीसवीं सदी है। तू क्या हमेशा बच्ची ही रहेगी? तू इतनी खूबसूरत है तो मर्द लोग तो तुझे घूरकर देखेंगे ही। अभी तू दुकानों में खरीदारी के लिए जाती है तो क्या तुझे मर्द लोग घूरते नहीं हैं? यह स्वाभाविक है। उसमें घभराने या डरने की कोई बात नहीं है। हाँ अगर कोई तुझसे जबरदस्ती करे या तुझे अभद्र रूप से छेड़े तो महाकाली बनकर उसकी पिटाई कर देना. वह दुबारा ऐसी हरकत नहीं करेगा। डार्लिंग, देख, तू नौकरी करेगी तो तेरे दोस्त या साथीदार भी थोड़ा घूरना, थोड़ी हंसी मजाक, थोड़ी छेड़ छाड़ करेंगे और थोड़ी सेक्सुअल छूट भी लेंगे। यह तो चलता रहता है। उससे गुस्सा होने के बजाय उसका आनंद उठाना सीखो। जब तक हम पति पत्नी एक दूसरे के प्रति सम्पूर्ण रूप से समर्पित हैं तो यह सब चीज़ें कोई मायने नहीं रखतीं।

    मेरे पति राज ने तब मुझे अपनी बात बतायी और कहा की उनके ऑफिस में भी ऐसे ही थोड़ा बहुत चलता रहता था। मेरे पति की भी अपने कॉलेज के समय में कई लड़कियों से घनी मित्रता थी। राज के कहनेसे मैं समझ गयी की उन्होंने उनमें से कई यों से चुम्माचाटी की थी तो कईयों के साथ सम्भोग भी किया था। मैं इस बारें में कुछ भी जानना नहीं चाहती थी। मेरे लिए तो बस यही काफी था की मेरे पति मुझसे बहुत प्यार करते थे और वह मेरा बहुत ध्यान रखते थे। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है।

    मेरे पति राज की अनहद कोशिशों के बाद आखिर में मैंने मुम्बई की प्रख्यात एक अंतरराष्ट्रीय चार्टर्ड एकाउंटेंसी कंपनी में एक असिस्टंट की नौकरी स्वीकार की। मेरे पति ने मुझे पहले दिन ही बड़ा समझाया की रास्ते में और ऑफिस में भी अगर मुझे साधारण मर्द की निगाहों पर ध्यान नहीं देना है। और अगर कोई जबरदस्ती करे तो उनसे कैसे निपटना है, वह मैं अच्छी तरह से जानती थी।

    ‘समीर सर’ मेरे सीनियर थे। वह एक प्रभाव शाली, सुन्दर, सुडौल और लंबे कद के थे। कंपनी में वह पांच साल से काम कर रहे थे। वह मुझसे कोई पांच या छे साल बड़े होंगे। समीर सर और मैं हम दोनों एक ही बॉस के निचे काम करते थे। शुरू शुरू मैं तो मैं बड़ी ही नौसिखिया थी और समीर सर ने ही मुझे बहुत मदद की जिससे की मैं अपने काम में सक्षम बनूँ और हमारे बॉस मुझसे खुश रहें। समीर सर मेरी गलतियों और कमियों को छुपाते थे और मेरी क्षमता को बॉस के सामने उजागर करते रहते थे।

    उनकी ऐसी सहृदयता से मैं बड़ी असमंजस में रहती थी। उनको ऐसा करने की जरुरत नहीं थी। मैं एक पढ़ी लिखी और अपने काम में सक्षम होने का दावा करती थी तो फिर मुझे अपना काम ठीक करना ही चाहिए था। पर मैं वास्तव में इतनी सक्षम थी नहीं और समीर सर यह भली भांति जानते थे।

    मैंने भी कई बार जब बॉस ने मुझे कोई काम दिया तो उनसे यह बात कही की मैं उतनी सक्षम नहीं थी, जितना की मुझे होना चाहिए था। पर समीर सर ने हमेशा मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाया और मुझे सब सिखाया और मेरी भरपूर मदद की। इसी कारण से मैं धीरे धीरे अपनी कार्य क्षमता में आगे बढ़ पा रही थी, जिससे हमारे बॉस मुझसे प्रभावित थे।

    पढ़ते रहिए, क्योंकि ये कहानी अभी जारी रहेगी..

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