Drishyam, ek chudai ki kahani-42

This story is part of the Drishyam, ek chudai ki kahani series

    लण्ड मेरा यह बेकाबू है तेरी सूरत देखि जब से,
    चूत से मिलने को पागल है वह खड़ा ही रहता है तब से।
    कैसे उसको मैं शांत करूँ कैसे उसको मैं मनाऊंगा,
    थोड़ा सा सेहला दोगी तो शायद मैं समझा पाउँगा।

    इस सारी कश्मकश में रमेश के लिए अपने घोड़े के लण्ड के जैसा अपना लंबा और तगड़ा लण्ड को तौलिये के अंदर नियत्रण में रखना नामुमकिन सा साबित हो रहा था। जब से आरती के दर्शन हुए थे तबसे रमेश का लण्ड खड़े का खड़ा ही रहा था।

    रमेश की लाख कोशिश करने के बावजूद भी वह बैठने का नाम नहीं ले रहा था। रमेश के पतले से तौलिये में एक बड़ा सा तम्बू जैसा आकार बना कर वह खड़ा था। आरती ने पहली नजर में ही उस फुले हुए बड़े तम्बू को देख लिया था।

    रमेशजी आरती की नजर अपने टांगों के बिच जाते हुए देखि तो अफरातफरी में अपने हाथों से झुक कर अपने लण्ड को छिपाने की नाकाम कोशिश करने लगे ताकि आरती को बुरा ना लगे। पर इससे तो बल्कि आरती को यह साफ़ साफ़ दिखा की रमेशजी का लण्ड रमेशजी के काबू के बाहर था। रमेशजी का लण्ड कुछ भी मानने से इंकार कर रहा था और रमेशजी की कितनी कोशिश करने पर भी बैठ नहीं रहा था।

    रमेशजी के हालात देख कर आरती को एक तरफ तो हंसी आ रही थी तो दूसरी तरफ आरती के मन में रमेशजी के लिए स्त्री सुलभ सहानुभूति (बेचारे रमेशजी! इतने महीनों से औरत को चोदे बगैर कैसे मैनेज करते होंगे?) और प्यार (इन्हें जरूर मदद करनी चाहिए) उमड़ने लगा।

    आरती ने बाथरूम के दरवाजे से हटकर रमेशजी को जाने की जगह देते हुए कुछ शरारत भरी मुस्कान से रमेशजी के खड़े हुए लण्ड से बने हुए तंबू की और देख कर रमेशजी को उलाहना देते हुए कहा, “देखिये, अब आप इसे छिपाने की यह सब फोर्मालिटी छोड़िये। अब आप किसी पराये के घर में नहीं अपने ही घर में हैं। अब हम आपके हैं और आप हमारे हैं। हम से ज्यादा शर्माइये मत। अब आप बिना कोई झिझक के निश्चिन्त हो कर बैडरूम में जा कर कुछ घंटे विश्राम कीजिये…

    हम लोग कहीं नहीं भाग जाने वाले। दोपहर को खाना बन जाने पर मैं आपको उठाउंगी। खाना खाकर आप फिर से सो जाना। क्या पता आप को रात भर जागना पड़े! आप को किसी भी चीज़ की जरुरत हो तो मैं यहीं ही हूँ। मुझे आवाज देना। मैं यहीं आसपास ही रहूंगी। आप थके हुए हैं। आप को आराम की सख्त जरुरत है।”

    यह कह कर आरती ने “रमेशजी” को कई सन्देश दे दिए। पहला यह सन्देश दे दिया की “मैं तुम्हारी ही हूँ, मेरे लिए अब तुम्हारा यह लण्ड कोई पराया नहीं है और अब तुम अपने लण्ड को सम्हालने की बेकार कोशिश मत करो। और दुसरा सन्देश यह भी दे दिया की मुझे चोदने के लिए तुम्हारा फ्रेश होना बहुत जरुरी है। और तीसरा सन्देश यह दिया की तुम्हें मुझे रात भर चोदना है।“

    आरती रमेशजी का हाथ पकड़ कर उन्हें बैडरूम में ले गयी और उनके कपडे दे कर आरती ने उन्हें कपडे पहन कर पलंग पर लेटने को कहा। रमेशजी चुपचाप आरती के कहे अनुसार जा कर कपडे पहन कर पलंग पर लेट गए।

    हालांकि रमेश रात के सफर से थका हुआ था पर उसकी आँखों में नींद कहाँ से आती? उसे तो घर में चारों तरफ घूमती आरती की आवाज सुनाई दे रही थी।

    रमेश के दिमाग में सिर्फ आरती ही घूम रही थी, उसके अलावा और कुछ दिमाग में घुस ही नहीं रहा था। रमेश चुपचाप बैडरूम की खिड़की की दरार में से घर के काम में लगी हुई आरती देख रहा था। आरती भी पता नहीं क्यों, रमेशजी के कमरे के आसपास ही कुछ ना कुछ काम में लगी हुई थी।

    शायद घरमें और जगह का काम हो गया होगा, या फिर वह जानबूझ कर रमेशजी के कमरे के इर्दगिर्द ही घूम रही थी जिससे अगर रमेशजी बुलाएं तो वह फ़ौरन भाग कर उनके पास जा सके और उनको अटेंड कर सके। कभी आरती आगे की और निचे झुक कर कुछ काम करती हुई दिख रही थी तो कभी साडी ऊपर उठा कर अपनी जाँघों के बल बैठी हुई झाड़ू लगा कर सफाई में लगी हुई दिख रही थी।

    आगे झुकने से आरती की साड़ी में लिपटे भरे हुए कूल्हों को देख रमेश का पलंग में सोते हुए भी बुरा हाल हो रहा था। अपने खड़े हुए लण्ड को अपने हाथों से सहलाते हुए रमेश आगे झुकी हुई आरती के लटके हुए स्तनों को देख कर पागल सा हो रहा था। एक बार तो कुछ गिरी हुई वस्तु को उठाने के लिए आरती जब बैडरूम की खिड़की के सामने झुकी तो रमेश को आरती के भरे हुए उरोज की पूरी रूपरेखा स्पष्ट रूप से दिखाई दी।

    जिस तरह से आरती खिड़की के सामने आगे झुकी तो ऐसा लग रहा था जैसे कहीं ऐसा तो नहीं की आरती को पता हो की रमेशजी उसे खिड़की के बिच में से छिप कर देख रहे थे और उनको दिखाने के लिए ही आरती अपना अंगप्रदर्शन कर रही थी?

    रमेशजी के लिए अब अपने लण्ड को काबू में रखना असंभव सा हो रहा था। रमेशजी के पाजामें के अंदर उनका लण्ड पाजामे के कपडे को फाड़ कर बाहर निकलने के लिए जैसे बेताब हो रहा था। रमेशजी ने जैसे तैसे अपना लण्ड पाजामे के बाहर निकाला और अपने हाथ में पकड़ कर उसे सहलाने लग गये।

    अपने लण्ड को जोर से सहलाते हुए उनकी खटिया हिलने लगी, जिसके कारण साथ में ही टेबल पर रक्खा हुआ गिलास धम से निचे गिर पड़ा। आरती वहीँ दरवाजे के नजदीक में ही कुछ काम कर रही थी। गिलास के गिरने की आवाज सुनकर आरती दरवाजा खोल कर “क्या हुआ? आप ठीक तो हैं ना?” कहती हुई कमरे में दाखिल हुई।

    आरती के आने की आहट सुन कर रमेश ने अफरातफरी में अपने लण्ड को जल्दी से ठूंस कर पाजामें में डालने की कोशिश की आरती रमेश को कहीं अपना लण्ड सहलाते हुए देख ना ले।

    आरती ने रमेशजी को अपना लंबा घोड़े के लण्ड के जैसा तगड़ा लण्ड सहलाते हुए देख लिया था। यह पहली बार था की आरती ने रमेशजी का लण्ड एक पल के लिए ही देखा था। पर उसे देखते ही उसे चक्कर आने लगे। साथसाथ में आरती बरबस हॅंस भी पड़ी।

    पर जैसे उसने कुछ देखा ही नहीं वैसे आरती शरारत भरी मुस्कान को छिपाती हुई अपना मुंह दूसरी तरफ कर रमेशजी की तरफ अपनी पीठ कर खड़ी हो गयी और दिवार पर कुछ देख रही हो ऐसा ढोंग करने लगी।

    रमेशजी को अपना लण्ड पाजामे में डालने का मौक़ा देते हुए कुछ समय के बाद घूम कर उसने रमेशजी की और देखा और पूछा क्या बात है? आप कुछ परेशान लग रहे हैं?”

    रमेश ने अपने आप को सम्हालते हुए कहा, “नहीं ऐसी कोई ख़ास बात नहीं, पर कल मेरी ट्रैन कैंसिल हो गयी थी और दूसरी ट्रैन में रिजर्वेशन नहीं होने के कारण मुझे खड़े खड़े आना पड़ा। सारी रात की थकान की वजह से मुझे पाँव में और थोड़ा कमर में दर्द हो रहा था तो मैं मेरे पाँव दबा रहा था। वैसे चिंता की कोई बात नहीं।”

    आरती यह सुन कर कुछ बेचैन सी हो गयी, और रमेशजी की और चिंता भरी नज़रों से देखती हुई बोली, “बापरे! आपने पहले बताया क्यों नहीं? मेरे पास आयोडेक्स का मरहम है, मैं अभी लगा देती हूँ कुछ ही देर में ठीक हो जाएगा।”

    ऐसा कह आरती बिना रमेशजी की “ना ना” सुने आयोडेक्स का मरहम ले आयी और उसने रमेशजी को सोने के लिए और अपने पाँव लम्बे कर अपना पजामा कुछ ऊपर उठाने के लिए कहा। रमेश की हालत अब और खराब हो रही थी। रमेश का लण्ड पाजामे में वैसे का वैसे ही खड़ा था अब आरती के और करीब आने से तो बस उसको कण्ट्रोल करना नामुमकिन सा हो गया था।

    आरती रमेशजी के पाँव के पास बैठ उसने रमेशजी के पाँव अपनी गोद में ले लिए। पाँव सीधा करने के कारण अब रमेश का लण्ड पाजामे में ही इस तरह उठ खड़ा होगया की उसे रोक पाना या छिपाना रमेश के लिए असंभव था। रमेश ने असहायता भरी नज़रों से आरती की और देखा और अपने लण्ड के उभरे हुए तम्बू को अपने हाथों से छिपाने की कोशिश करते हुए बोला, आरती जी, आई ऍम रियली वैरी सॉरी। देखिये, प्लीज आप बुरा मत मानिये।”

    आरती ने वही शरारत भरी मुस्कान से अपने होंठों को चबाते हुए कहा, “ठीक है रमेशजी, उसे ऐसे ही रहने दो। अब आप इसे क्यों छिपाने की कोशिश कर रहे हो? मैंने इसे पहले देखा नहीं क्या?”

    रमेश ने झेंपते हुए कहा, “क्या करूँ आरती जी, सुबह से ही जब से मैंने आपको देखा है, मेरे लिए यह एक बड़ी समस्या बनी हुई है। प्लीज यह मैं जान बुझ कर नहीं कर रहा हूँ।”

    आरती कुछ मुस्कराती हुई बोली, “अच्छाजी? मुझे देख कर यह कण्ट्रोल में नहीं रह रहा है? क्यों? और कोई सुन्दर लड़की को देख कर भी इसका यही हाल होता है क्या?”

    रमेश ने फिर झेंपते हुए कहा, “नहीं आरती जी, ऐसी बात नहीं। मेरे ऑफिस में बड़ी सुन्दर लडकियां काम करतीं हैं। कभी ऐसा नहीं हुआ?”

    आरती ने फिर अपनी आँखें मटकाते हुए कहा, “अच्छाजी? तो यह बताओ की मुझमें ऐसी कौनसी बात है जो किसी और लड़की में नहीं, जिसकी वजह से तुम्हारे इस का यह हाल होता है?”

    रमेश भी आरती की शरारत भरी मुस्कान से कुछ तनाव मुक्त महसूस करने लगा था। रमेश ने आरती का हाथ थाम कर उसे अपनी और खींचते हुए कहा, “मेरे पास आओ, तो बताऊँ की तुममें ऐसी क्या ख़ास बात है जो कोई और लड़की में नहीं।”

    आरती ने रमेश के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा, “देखोजी, शामको हमारे मिलन की विधि है। मेरे पापाजी ने मुझे कहा है की जब तक सारी विधि पूरी ना हो जाए तब तक मैं तुमसे कोई सम्बन्ध ना रखूं।”

    रमेश, “तुम्हारे पापा बड़ा ही विलन का रोल करते हैं। चलो और कुछ नहीं तो मेरे करीब तो आ सकती हो ना?”

    आरती, “मैं आपके इतने करीब तो हूँ।”

    रमेश ने आरती को खिंच कर अपनी बाँहोंमें लेते हुए कहा, “उसको थोड़े ही करीब कहते हैं। करीब तो अब हुआ।”

    आरती, “ठीक है पर अब शाम तक इससे ज्यादा करीबी बनाने की कोशिश मत करना।”

    रमेश, “ठीक है भाई, शाम तक इंतजार कर लूंगा। इतने महीने इंतजार किया तो अब कुछ घंटे और सही, फिर देखते हैं की चोर की माँ कब तक खैर मनाएगी?”

    आरती ने जब यह सूना तो डर के मारे सहम सी गयी। कुछ झिझकती हुई आरती बोली, “रमेशजी मुझे डराइए मत। मैं जानती हूँ, मेरा आपके साथ कोई मुकाबला नहीं। अगर आपने चाहा तो आप मेरी ऐसी की तैसी कर पूरी तरह बजा सकते हैं। मैं इतनी छुटकी भला आपके सामने कैसे टिक पाउंगी?”

    आरती की बात सुन कर रमेश कुछ देर चुप रहा और बोला, “आरती जी आप निश्चिन्त रहिये। जैसा आप चाहेंगी वैसा ही होगा। आप बिलकुल मत डरिये। पर प्लीज आप एक बार मेरे करीब आइये, मैं महीनों से इस पल का इंतजार कर रहा हूँ। मैं आपको बस थोड़ा सा प्यार करना चाहता हूँ। प्लीज मैं ज्यादा कुछ नहीं करूंगा और कोई ऐसी हरकत नहीं करूंगा जिससे आपको तकलीफ पहुंचे, भरोसा रक्खें।”

    रमेश की बात सुन कर आरती खड़ी हुई और रमेशजी के सिरहाने के पास पहुंची और रमेश जी का सर अपनी गोद में रख कर बैठी और बोली, “अब तो ठीक है। मैं आपके एकदम करीब आ गयी हूँ। रमेश ने बैठ कर आरती को अपनी बाँहों में ले लिया। आरती भी रमेशजी ऐसे लिपट गयी जैसे एक बेल बड़े पेड़ से लिपट जाती है…

    रमेश ने आरती के होँठों से अपनी होँठ चिपका दिए और आरती के ब्लाउज और ब्रा में अपना हाथ डालते हुए बोला, “आरती मैं तुम्हें बहुत बहुत प्यार करता हूँ। आज मैं इतना खुश हूँ की तुम मेरी होने जा रही हो।”

    पढ़ते रहिये, यह कहानी आगे जारी रहेगी..

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