Drishyam, ek chudai ki kahani-48

This story is part of the Drishyam, ek chudai ki kahani series

    जहां लण्ड और चूत में गर्मी हो वहाँ रस्मोरिवाज का क्या करना?
    जब प्यार हवस से चुदता है, कोरे अलफ़ाज़ का क्या करना?
    चूत छोटी सी हो लण्ड बड़ा तगड़ी चुदाई तब होती है
    लण्ड ठोक रहा नाजुक चूत को चूत हो नासाज़ तो क्या करना?

    आरती भली भाँती समझ गयी थी की रमेशजी से चुदवा कर उसका हाल बुरा होने वाला है। अच्छी अच्छी वेश्याएं भी जिनका लोहा मान चुकी थीं उनके सामने नाजुक, छुटकी, छोटी सी चूत वाली आरती का क्या मुकाबला? उसे मालुम था की रमेशजी जब चोदना शुरू करेंगे तो फिर रुकेंगे नहीं और जल्दी झड़ेंगे भी नहीं।

    आरती को डर था की कहीं रमेशजी चोदते हुए इतने आक्रामक ना हो जाए की अपने तगड़े लण्ड से आरती की चूत को फाड़ ही डाले। शायद रमेशजी का आरती के प्रति जो प्यार था उसके कारण आरती को भरोसा था की वह चुदाई शुरू होने से पहले समझा बुझा कर रमेशजी से अपना जोश नियत्रण में रखने के लिए मना पाएगी और सब कुछ ठीक हो जाएगा।

    आरती की चूत को चाटते चाटते धीरे धीरे रमेश आरती की जाँघें, आरती के घुटने, आरती के पांव की पिंडियां और आरती के पाँव के तलवे भी एक के बाद एक चाटने लगा। आरती के लिए यह सब इतना रोमांचकारी और उत्तेजक था की आरती की चूत से उसके स्त्री रस की धार रिसने लगी। पर दूध और दही की धार में वह आरती की स्त्री रस की बूंदें कहाँ दिखती? आरती रमेशजी की इस चूत भक्ति से बड़ी ही विवश लग रही थी। रमेशजी की विधि से वह बार बार मचल उठती और उसके मुंह से सिसकारियां निकलती रहती थीं।

    रमेश को आरती के स्त्री रस का कुछ अलग सा स्वाद महसूस जरूर हुआ। वह स्वाद शहद, दूध, दही बगैरह से कुछ अलग ही था। रमेश के लिए भी उस रात का एहसास एक गजब का एहसास था। आरती के पुरे बदन की कोमल त्वचा दूध, दही, मलाई शहद और चीनी के मीठे स्वाद के कारण रमेश को और भी मादक महसूस हो रही थी। रमेश ने आरती के पेट, नाभि, उसके दोनों मस्त स्तनोँ को खूब चाटा और सारा ही पंचामृत चाट कर साफ़ कर गया।

    जब रमेशजी ने इतने चाव से आरती की पूजा और अभिषेक किया तो आरती कहाँ पीछे रहने वाली थी? आरती ने भी मुझे कहा, “अंकल मैं भी रमेशजी का अभिषेक करुँगी और पूजा करुँगी। आप श्लोक बोलेंगे?”

    मैंने आरती को कहा, “आखरी श्लोक लण्ड पूजा का है। इसमें तुम्हारी लण्ड बाबा से बिनती है। इसमें तुम्हारे मन में जो आतंक सा भय है उसको मैंने जबान दी है। मेरे पीछे बोलो,

    हे लण्ड बाबा करूँ प्रार्थना चूत मेरी से प्यार करें खूब चुदाई भले करें पर होले से सरकार करें।
    तुम विशाल हो चूत है छोटी कैसे तुम घुस पाओगे चिकना होकर घुसोगे हलके से अंदर जाओगे।
    कहीं जोश में आकर बाबा फाड़ ना देना चूत मेरी, सालों साल चुदुँगी तुमसे बन के रहूंगी मैं तेरी।”

    मेरे श्लोक सुन कर आरती के चेहरे के भाव मैं समझ नहीं पाया। आरती की आँखों में आतंक था या उत्तेजना? भय था या मस्ती? खैर आरती ने मेरे कहे पदों को रमेशजी के लण्ड को एक हाथ में पकड़ कर उसे प्यार से देखते हुए दोहराया और फिर लण्ड के टोपे को झुक कर चूमा।

    वही पंचामृत की सामग्री से आरती ने भी रमेशजी का अभिषेक किया। पहले आरती ने थोड़ा सा रमेशजी के कन्धों पर डाला। उसके लिए आरती को रमेशजी को झुकने के लिए कहना पड़ा। फिर रमेशजी की कमर से ले कर पाँव तक बह रही स्वादिष्ट पंचामृत की धारा को आरती ने उतने ही चाव से चाटा जितने चाव से रमेशजी ने आरती के बदन को चाटा था।

    रमेशजी के कपाल को आरती ने खूब चूमा और फिर रमेशजी की आँखें, नाक चाटते और चूमते हुए आरती के होंठ रमेशजी के होँठों पर पहुंचे तो फिर जो मिलन हुआ वह सिर्फ होँठ से होँठ का ही नहीं हुआ।

    आरती रमेशजी की आँखों में आँखें डाल कर कामुकता के उन्माद से भरी नज़रों से ऐसे देख रही थी जैसे उस सुहाग रात को अपने पुरे बदन को रमेशजी को समर्पित कर कितना धन्य अनुभव कर रही हो। उस सुहाग रात में आरती का एक ही ध्येय था की कैसे वह अपने प्रियतम को अपने पुरे बदन की मादकता से इतना आनंद दे पाए जैसा उन्होंने पहले कभी किसी भी औरत से अनुभव किया ना हो।

    रमेशजी के गले और विशाल कँधों और बाज़ूओं से बह रही अमृत धारा को चाटते हुए आरती जब रमेशजी की छाती पर पहुंची तो रमेशजी के छाती पर बिखरे घने बालों में जैसे खो गयी।

    अर्जुन को आरती ने कभी इस तरह ऊपर से निचे तक चाटा और चूमा नहीं था। रमेशजी के पीछे जा कर आरती ने रमेशजी की पीठ पर बह रही अमृत धारा को चाटा और चाटते चाटते आरती ने रमेशजी के कूल्हे के गालों को भी बड़े चाव और प्यार से चूमा और चाटा।

    आरती की जीभ अनायास ही रमेशजी के कूल्हे के गालों के बिच की दरार को कुरेद रही थी तब रमेशजी से रहा नहीं गया और घूम कर अपने काले नाग समान चमकते और शहद दही दूध मलाई बगैरह से लिपटे हुए बिशाल लण्ड को आरती के मुंह के सामने पेश किया। जब आरती के होँठों ने रमेशजी के लण्ड को छुआ तब वाकई में आरती को महसूस हुआ की जो मैंने पंक्तियाँ बनायीं थीं वह कितनी सच थीं।

    आरती ने रमेशजी के लण्ड को दूध और पानी से धोया। बादमें शहद लगा कर आरती ने अपना मुख झुका कर रमेशजी के लण्ड पर अपनी जीभ फिराई।

    उस समय रमेश के शहद, चीनी पाउडर, दूध, मलाई इत्यादि से चिकने और स्वादिष्ट काले चमकते हुए विशालकाय लण्ड की शोभा अद्भुत थी। जैसे ही आरती की जीभ ने रमेशजी के लण्ड को छुआ तो रमेशजी का पूरा बदन जैसे कांपने लगा।

    लण्ड पर लगे हुए शहद को आरती चाटते हुए रमेशजी की आँखों में आँखें मिला कर जैसे अपने मन के भाव उन्हें कह रही हो की “हे मेरे आज रात के स्वामी, अब मैं आपके समर्पित हूँ। अब आप मुझे और मेरी चूत को पूरी रात चोदिये, स्वयं आनंद लीजिये और मुझे भी कामक्रीड़ा का आनंद दीजिये..

    पर साथ में मेरे स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें। कहीं ऐसा ना हो की चोदने के जोश में तुम मेरी छोटी सी सुकोमल चूत और मेरे चूत के अंदर लण्ड जाने के लिए बनी संकड़ी सी सुरंग को अपने इस भयानक विशालकाय लण्ड से इतने जोर से ना चोदो की वह फ़ट जाए और मेरी चूत में से खून बहने लगे और मैं कहीं चुदवाते चुदवाते मर ना जाऊं।”

    आरती के छोटे से मुंह में रमेशजी का लण्ड पूरा तो घुस नहीं पाया पर आरती ने पहले रमेशजी के लण्ड के टोपे पर अपनी जीभ फिरा कर उसे चाटा और ऊपर सर उठाकर रमेशजी को देखते हुए, उनकी नज़रों से नजर मिलाते हुए थोड़ा सा मुंह में लेकर उसे चूसा। आरती की जीभ और मुंह की कोमल त्वचा का स्पर्श पाते ही रमेशजी का घण्टा और सख्त हो गया और फ़ैल गया। आरती ने उसे एक हाथ में पकड़ कर प्यार से उँगलियों से सहलाते हुए धीरे धीरे अपने मुंह में डाल कर अंदर बाहर करती हुई लण्ड को चाटने और चूसने लगी।

    आरती रमेश के लण्ड को ऐसे चूस और चाट रही थी जैसे वह कोई बड़ा ही स्वादिष्ट आइसक्रीम का मोटा कॉन हो। अपना मुंह आगे पीछे कर आरती रमेशजी के लण्ड को मुंह चुदाई का सुख देना चाहती थी। रमेशजी भी अपनी कमर और पेंडू आगे पीछे कर जैसे आरती के मुंह को चोद रहे थे।

    आरती रमेशजी से चुदवाने के लिए बेताब भी थी और चुदाई करवाते हुए उसका अपना क्या हाल होगा यह सोच कर आतंकित भी थी। पर चुदवाने का उन्माद और उत्तेजना आरती की मदहोश आँखों में दिख रही थी।

    मैंने तब आरती को कहा की उसकी और रमेशजी की शादी और सुहाग रात मनाने से पहले की सारी विधि और रीती रिवाज पुरे हो चुके थे। अब उन दोनों का शॉवर से नहा कर अपना बदन शुद्ध पानी से साफ़ कर एक दूसरे को तौलिया से पोंछ कर बैडरूम में जा कर सुहाग रात मनाने का समय आ गया है।

    रमेश तो इसी मौके की ताक में था। मेरी बात सुनते ही रमेश ने आसांनी से दुबारा नंगी आरती को उठाया और बाथरूम में रमेश और आरती दोनों ने एक दूसरे को नहला कर अपने बदन को तौलिये से अच्छी तरह से पोंछा

    रमेश आरती को फ़ौरन आसानी से अपनी बाँहोँ में उठा कर बैडरूम में ले आया और संगमरमर सी मूरत जैसी नंग्न आरती को पलंग पर लिटा दिया। नंगी पलंग पर लेटी हुई आरती की मूरत को देखते हुए उसकी सुंदरता से स्तब्ध रमेश कुछ पल के लिए यह भूल गया की आरती अपनी टाँगें चौड़ी कर रमेशजी के विशाल काय लण्ड को अपनी चूत के प्रवेशद्वार पर पहुँचने का आतंकित नज़रों से इंतजार कर रही थी।

    कुछ देर तक टकटकी लगा कर पलंग पर लेटी हुई नंगी आरती को देखने के बाद गहनों से लदी हुई आरती को रमेश ने पलंग के सिरहाने पर बैठाया। नाक में बड़ी गोलाई वाली नथनी, गले में सोने की कईं लड़ियों से भरा हुआ सोने का हीरा जड़ित हार, माँग में सोने की रेशम के धागे से मढ़ी हुई मांग सूत्र। आधे दिख रहे गोर भरे हुए स्तन मंडल, हाथों में नाना प्रकार की चूड़ियां, पाऊँ में सोने के पाजेब।

    आरती अद्भुत दिख रही थी जिसे निहारते हुए रमेशजी का मन भर नहीं रहा था। शर्म की मारी आरती ने साथ में रक्खी गाढ़े नील रंग की चुनरी अपने सिर पर डाल दी और अपने घुटने ऊपर कर अपने घुटनों से अपनी चूत को और अपनी बाजुओं को थोड़ा सा अपने स्तनोँ के आगे ला कर अपने स्तनोँ की निप्पलों को छिपा दिया। पर रमेशजी की नजर में तो ऐसे बैठी हुई आरती की मूरत और भी गजब की कामुक लग रही थी। आरती की गाँड़ की गोलाई और करारी जाँघों की नक़्शकारी रमेश को सम्मोहिनी सी लग रही थी।

    आरती की छोटी सी सुकोमल चूत को देख रमेशजी की जीभ उसे चाटने और चूमने के लिए लपलपा रही थी। रमेशजी को अपनी महबूबा आरती को कुछ हद तक जो सख्त चुदाई होने वाली थी उस के आतंक से भी तो मुक्त करना था। इसलिए रमेशजी ने अपना लण्ड आगे ना कर अपना मुंह आरती की चौड़ी फैलाई हुई टाँगों के बीच में रखा।

    आँखें बंद कर पड़ी हुई आरती ने जब रमेशजी की जीभ और होँठों को अपनी चूत की पंखुड़ियों पर महसूस किया तो उसने अपनी आँखें खोलीं और रमेशजी के काले घने बालों से आच्छादित सर को अपनी फैलाई हुई टाँगों के बिच देखा। उस समय आरती की चूत की सतह साफ़ थी, हालांकि आरती चूत में से उसका स्त्री रस रिसता ही जा रहा था।

    वह स्त्री रस को रमेशजी जिस तरह से अपनी जीभ से चाट रहे थे और आरती की चूत की पंखुड़ियों को अपनी जीभ से अलग कर चूत के भग्न बिंदु को जैसे टटोल रहे थे, उसे देख कर मेरी बोलती बंद हो गयी। आरती के हाथ में उसका सेल फ़ोन था जिसमें मैं कैद था और रमेश की आरती की चूत को की जा रही जिव्हा क्रीड़ा देख रहा था। वह दृश्य इतना अद्भुत था।

    सेल फ़ोन जब चुदाई के आवेश में इधर उधर हिल रहा था तब मेरी नजर कमरे की दीवारों पर रखे हुए कई नाइट विज़न कैमराओं पर पड़ी। तब मैं समझा की अर्जुन रमेश और आरती के कमरे का दरवाजा बंद होते हुए भी क्यों नाराज नहीं लग रहा था।

    हालांकि आरती ने अर्जुन को बैडरूम में हाजिर रह कर उसकी रमेश से चुदाई देखने की इजाजत नहीं दी थी, पर बैडरूम में जगह जगह पर यह कैमरा लगवा दे कर उसे चुदाई बाहर दूसरे कैमरे में बैठ कर देखने देने की इजाजत दी थी।

    रमेश को उस बात से कोई शिकायत नहीं थी। रमेश आरती की रस बहाती हुई चूत को अपनी जीभ से कुरेद कर, चाट कर आरती को पागल कर रहा था।

    रमेश की जीभ जिस तरह से आरती की चूत के अंदर बाहर हो रही थी, और उसके कारण आरती जिस तरह पलंग पर इधर उधर अपने कूल्हे खिसका कर मचल रही थी, मुझे लगा की आरती उसी चुदाई से ही बेबस हो कर झड़ जायेगी। पर आरती झड़े उसके पहले ही रमेश ने अपनी उंगलियां आरती की चूत में डालकर आरती की चूत को अपनी उँगलियों से चोदना चालु कर दिया।