Drishyam, ek chudai ki kahani-49

This story is part of the Drishyam, ek chudai ki kahani series

    जिंदगी प्यार की दो चार घडी होती है चाहे छोटी भी हो यह उमर बड़ी होती है।
    कड़ी चुदाई हो तेरी अगर मोहब्बत से आखिरी लम्हें तक वह याद खड़ी होती है।

    आरती अपने कूल्हे हिला कर अपनी उत्तेजना को सम्हालने की कोशिश कर रही थी। आरती के मुंह से जिस तरह “आह…… ओह…… हाय्यय….”

    इत्यादि सिसकारियां निकल रहीं थीं, मुझे ज़रा भी शक नहीं था की आरती चुदाई होने के पहले ही झड़ने लगेगी। और हुआ भी कुछ ऐसा ही। रमेश की उँगलियों के चोदन से पगलाई आरती ने एक गहरी साँस ली और पलंग पर ढेर बन कर शांत हो गयी।

    आरती पहली बार उस रात को झड़ गयी। रमेशजी भी आरती को झड़ते हुए देख थोड़ी देर उंगली चोदन कर फिर उन्होंने आरती की चूत में से अपनी उंगलियां हटा दीं।

    आरती को आखिर में तो स्विकारना ही था की रमेशजी उसकी चूत तगड़ी तरह से चोदेंगे ही और आरती खुद भी चाहती थी की रमेशजी उसे अच्छी तरह से चोदे।

    पर फिर भी जैसे मरीज को डॉक्टर की सुई का डर होता है, हालांकि वह जानता है की उसे सुई तो लगवानी ही है, वैसे ही आरती रमेशजी के लण्ड के मार से घबड़ा रही थी। पर अब लण्ड को चूत में डलवाने की घडी आ गयी थी और उसे टालने से कोई फायदा नहीं था। पर कुछ सावधानी जरूर बरतनी थी।

    आरती ने पलंग के पास ही छोटे से स्टूल पर क्रीम की बोतल रखी हुई थी। हालांकि रमेश का लण्ड चिकनाहट से लथपथ था पर फिर भी अपनी संतुष्टि के लिए आरती ने लेटे रहते हुए ही क्रीम की बोतल में उंगली डालकर क्रीम निकाल कर रमेशजी के लण्ड पर काफी मात्रा में क्रीम लगाई।

    फिर आरती ने कांपते हुए हाथ से रमेशजी का महाकाय लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा और डरते, घबड़ाते हुए उसे अपनी चूत पर थोड़ा सा रगड़ते हुए रखा। आरती की चूत की पंखुड़ियों को छूते हुए ही रमेशजी का लण्ड फड़फड़ाने लगा। अब वह किसी की भी सुनने वाला नहीं था। उसे तो आरती की चूत की सुरंग में अपना घर बनाना था।

    रमेश जी ने बरबस एक हल्का सा धक्का मारा। आरती ने रमेशजी के लण्ड को अपनी चूत की पंखुड़ियों पर रगड़कर चूत के होँठों को अलग कर बिच में रमेशजी के लण्ड के प्रवेश के लिए जगह बनाने की कोशिश की। कहाँ रमेशजी का महाकाय लण्ड और कहाँ आरती की छोटी सी चूत का छोटा सा प्रवेशद्वार! लण्ड के इर्दगिर्द पूरी तरह से लगी हुई चिकनाहट के कारण रमेशजी के लण्ड को प्रवेश तो मिल गया। पर अब बारी थी उस लण्ड को अंदर घुसने की। आरती ने अपनी उँगलियों से अपनी चूत को खोलने का प्रयास किया और चूत थोड़ी फैली भी सही।

    रमेशजी के लण्ड के लिए अब सब्र रखना नामुमकिन सा था। रमेशजी के ना चाहते हुए भी एक धक्का लग ही गया और उनका लण्ड कुछ फाॅर्स से आरती की चूत की सुरंग की दीवालों को जबरदस्ती फैलाकर अंदर कुछ गहराई तक घुस ही गया।

    इर्दगिर्द फैली हुई चिकनाहट के कारण आरती की चूत की त्वचा को लण्ड के रगड़ ने से दर्द नहीं हुआ पर चूत की दीवारों को इतनी ज्यादा खिंच जाने से आरती को शूल सा दर्द हुआ और वह कराह उठी और रमेशजी को पीछे हटने के लिए एक धक्का मारा। पर बेचारी लेटी हुई आरती के हलके से धक्के को तो रमेश ने महसूस तक नहीं किया।

    रमेश का ध्यान तो बस अपने लण्ड की बेसब्री पर ही था। चिकनाहट के कारण आरती को भी रमेशजी के लण्ड के घुसने से जितना डर था उतना ज्यादा दर्द नहीं महसूस हो रहा था। धीरे धीरे रमेश ने अपना आधा लण्ड आरती की चूत में घुसा ही दिया। धीरे से वह अपना लण्ड थोड़ा घुसाता और फिर बाहर निकाल लेता।

    फिर थोड़ा और घुसाता और फिर बाहर निकाल लेता। पर रमेश के आधे लण्ड के घुसते ही आरती चूत पूरी भर गयी। जब रमेश ने और चुदाई के लिए धक्का मारा तो आरती चीख उठी। आरती के बच्चेदानी को रमेश का लण्ड ठोकर मार रहा था।

    आरती दर्द के मारे चीखती हुई बोली, “रमेशजी बस करो यार, फाड़ दोगे क्या? मार दोगे मुझे पहली रात को ही क्या? अंकल ने सही कहा था।

    कहीं जोश में आकर बाबा फाड़ ना देना चूत मेरी, सालों साल चुदुँगी तुमसे बन के रहूंगी मैं तेरी।

    अगर तुम मुझे प्यार से चोदोगे तो सालों साल चुदवाती रहूंगी मैं। अभी थोड़ा धीरे से चोदो। जब चूत खुल जायेगी फिर खूब चोदना जोरों से। फिर नहीं रोकूंगी मैं। फिर मैं ही तुम्हें जोरसे चोदने के लिए कहूँगी।”

    रमेश ने भी आरती को झुक कर होँठों से होँठ मिलाकर चूमते हुए आरती के कानों में कहा, “ठीक है बाबा। ध्यान रखूंगा। तुम डरो मत। नहीं फाड़ दूंगा तुम्हारी चूत को। अब यह चूत मेरी बीबी की है। इसे तो मुझे सालों साल चोदना है।” यह कह कर रमेश आरती को धीरे धीरे हलके हलके धक्के मार कर आरती की चूत को अपने लण्ड से एडजस्ट होने का मौक़ा मिले ऐसे चोदने लगा।

    आरती ने भी यह देख कर चैन की साँस ली की रमेशजी अपना पूरा लण्ड चूतमें हफडाताफड़ी में घुसेड़ने की कोशिश नहीं कर रहे थे, बल्कि आधे के करीब लण्ड अंदर जाने पर उसे बाहर खिंच लेते थे। धीरे धीरे आरती को रमेशजी के तगड़े लण्ड से चुदवाने का मजा आने लगा। चूत की सुरंग की जो दिवार खिंच कर एकदम सख्त हो गयी थी वह रमेशजी के लण्ड के अंदर बाहर आने जाने से धीरे धीरे अपने आप को एडजस्ट करने लगी थी। हाँ चूत की दीवारों में सख्ताई थी जो रमेशजी के लण्ड को सख्ती से पकड़ कर रखे हुए थी। बल्कि वही सख्ताई धीरे धीरे अब आरती के और रमेशजी के उन्माद के अतिरेक का कारण बन रही थी।

    रमेशजी बड़े ही सलीके से आरती को चोद रहे थे जिससे आरती चुदाई का आनंद ले सके। चुदाई के मामले में रमेशजी काफी अनुभवी लग रहे थे। लेटी हुई आरती के ऊपर सवार रमेशजी ने दोनों हाथोँ में आरती के दोनों भरे हुए स्तन पकड़ कर रखे थे जिनको वह बार बार सहलाते, दबाते और मसलते रहते थे। पर उसके कारण रमेशजी की चुदाई में कोई गतिरोध नहीं हो रहा था।

    वह तो आइड्लिंग पर खड़ी हुई कार के इंजन की तरह अपने पेंडू से हलके हलके धक्के मार कर आरती की चूत को अपने तगड़े लण्ड को अंदर लेने के लिए और फूलने का मौक़ा देते हुए चोद रहे थे।

    जैसे जैसे आरती की चूत रमेशजी के लण्ड को एडजस्ट करने लगी ऐसे ऐसे आरती का दर्द कम हुआ पर आरती को अब वह दर्द दर्द नहीं लग रहा था। वह दर्द दवाई की तरह लग रहा था। आरती का मन कर रहा था की दर्द कम ना हो। रमेशजी भी बार बार झुक कर चोदते हुए आरती के दोनों गुम्बजों को अपने हाथों में पिचकते हुए आरती के होँठों को चूमते रहते थे और आरती को बार बार “मेरी प्यारी, मेरी डार्लिंग” कह कर अपना प्यार जताते रहते थे।

    आरती को रमेशजी की चुदाई में बहुत ज्यादा उत्तेजना और मादक आनंद आने लगा था। अब वह चाह रही थी रमेशजी पहले जितनी नरमाई ना दिखाएं। आरती को वह दर्द वापस चाहिए था। वह दर्द जैसे आरती को चुदाई का गजब सा आनंद दे रहा था। अब आरती का फर्ज था की वह रमेशजी को भी वही विस्फोटक आनंद दे जो रमेशजी आरती से चाहते थे। अब आरती को रमेशजी को जोरसे चोदने की इजाजत देनी होगी।

    आरती ने रमेशजी की पीठ में अपने नाख़ून घुसा कर इशारा किया की वह आरती की और देखें। रमेशजी का बदन आरती के नंगे बदन पर ऐसे छाया हुआ था की आरती की नजर तो सिर्फ रमेश जी की दाढ़ी तक ही पहुँच रही थी, रमेशजी की आँखें नहीं दिख रही थीं आरती को। जब रमेशजी ने कुछ ज्यादा झुक कर आरती की और देखा तो आरती ने रमेशजी की आँखों में आँखें डालकर मंद मंद मुस्काते हुए शर्म भरी नज़रों से कहा, “अब मत रोको अपने आपको। आपको जैसे ठीक लगे ऐसे करो।”

    रमेश ने उसी शरारत भरे स्वर में कहा, “क्यों नहीं कहती की अब जोर से चोदो मुझे।”

    आरती ने अपनी आँखें बंद कर कहा, “हाँ बाबा चोदो जोर से मुझे। मजा आ रहा है। जोर से चोदो।”

    रमेशजी को और क्या चाहिए था? नेकी और पूछ पूछ? आरती की मांग सुनते ही रमेशजी का लण्ड फुंफकारने लगा। अब उसकी मालकिन ने उसे अपना पूरा जलवा दिखाने का मौक़ा दे दिया था। रमेशजी फिर भी जानते थे की उन्हें धीरे से ही चुदाई को तेज करना पडेगा।

    रमेशजी ने जैसे चुदाई के एक्सेलरेटर पर पॉंव रखा और अपनी चोदने के लिए धक्के मारने की फुर्ती थोड़ी तेज की वैसे ही आरती के तोते उड़ने लगे। पर अब आरती पीछे हटने वाली नहीं थी। हाँ जैसे ही रमेशजी का एक धक्का लगता था तो बरबस ही आरती के मुंह से एक सिसकारी या यूँ कहो की एक कराहट निकल जाती थी जिसके ऊपर उसका कोई नियंत्रण नहीं था।

    धीरे धीरे धीरे रमेशजी ने चोदने की फुर्ती बढ़ाई। रमेशजी ने तय किया की अब आरती को उनका लण्ड झेलना ही पडेगा। नरमी कब तक चलेगी? इधर रमेशजी ने चुदाई की फुर्ती बढ़ाई उधर आरती की कराहटें बढ़ने लगीं। पर रमेशजी को ऐसा ना लगे की आरती उन्हें रुकने के लिए कह रही थी इस लिए आरती बिच बिच में रमेशजी से “और जोरसे रमेशजी, मजा आ रहा है।….” इत्यादि कह कर उकसा रही थी। पर हकीकत यह थी की आरती इतनी तेजी से हिल रही थी की रमेशजी के दबा कर रखने के बावजूद भी कई बार उनके हाथों से फिसल कर आरती की चूँचियाँ इधर उधर फ़ैल कर जैसे उड़ रहीं थीं।

    आरती पलंग पर रमेशजी के बड़े बदन के निचे दबी रहने पर भी अपनी गाँड़ इधर उधर खिसका कर अपनी जबरदस्त उत्तेजना को जाहिर कर रही थी। इतने महीनों से जिस लण्ड से चुदाई का आरती बेसब्री से इंतजार कर रही थी वह लण्ड के गजब के घर्षण से आरती के जहन में एक जबरदस्त सी हलचल हो रही थी और उसकी चूत में विस्दफोटक चरमराहट हो रही थी।

    रमेशजी का लण्ड आरती की चूत के सबसे अन्दरूनी भाग में तगड़ी ठोकर मार रहा था। आरती का मन, तन और दिमाग चुदाई के नशे में टुन्न हो गया था। आरती अपनी चूत में जैसे कोई सुनामी का उफान सा महसूस कर रही थी।

    रमेश के लण्ड के तगड़े धक्कों से आरती की कराहटें और बढ़ने लगीं। आरती ने अब अपनी सिसकारियां और कराहटों पर रोक लगाना बंद कर दिया। आरती जोर जोर से सिसकारियां मार रही थी।

    कई बार आरती, “रमेशजी, और चोदो मुझे, आह…. ओह……. उफ़…….” चिल्लाती हुई अपने उन्माद का अतिरेक जाहिर कर रही थी। यह साफ़ दिख रहा था की आरती झड़ने वाली थी। रमेशजी का लण्ड आरती की चूत में कहर ढा रहा था। एक एक धक्के के बाद आरती का उन्माद और बढ़ता ही जा रहा था।

    आरती ने रमेश जी का बाँहें कस कर पकड़ीं और जोर से बोल पड़ी, “रमेशजी रुको मत, जोर से चोदो मुझे, मैं झड़ने वाली हूँ। मत रुको, और जोर से चोदो। आज तुम्हारी इस रंडी को उस वैश्या की तरह चोदो।” यह कहते हुए आरती का बदन एकदम खिंच गया। आरती अपने उन्माद के चरम पर पहुंच चुकी थी।

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