पड़ोसन बनी दुल्हन-42

This story is part of the Padosan bani dulhan series

    शायद सुषमा ने कहीं पोर्न वीडियो में एक औरत की दुगुनी चुदाई के दृश्य देखे होंगे। आजकल तो यह आम हो गया है। हमारे देश की देसी पोर्न साइट पर भी अब ऐसे वीडियो खुल्लमखुल्ला चेहरा दिखाते हुए आते हैं और कई वीडियो में तो विदेशों में बनी पोर्न फिल्म जैसे प्रोडूसर, डिरेक्टर,अदाकार बगैरह के नाम भी आने लगे हैं।

    उनको देख शायद कहीं ना कहीं उसके मन में भी यह इच्छा जगी होगी की उसकी चुदाई भी एक बार तो ऐसे हो जिससे वह ऐसी चुदाई का अनुभव करे।

    साले साहब ने अपने लण्ड के उपर खूब तेल लगा कर उसे अच्छे से चिकनाहट से लथपथ किया। उस दरम्यान सुषमा मुझे बेतहाशा चोदे जा रही थी। फिर साले साहब ने सुषमा की गाँड़ पर हलकी सी चपेट मार कर उसे थमने का इशारा किया।

    सुषमा ने पीछे देखा और साले साहब का संकेत समझ कर रुक गयी तब उन्होंने सुषमा की गाँड़ के छिद्र में उंगली डालकर अंदर से अच्छी तरह से उस तेल को लगा कर उसे तेल से पूरा लथपथ चिकना कर दिया, जिससे सुषमा को गाँड़ मरवाते हुए दर्द कम हो। साले साहब का लण्ड अच्छा खासा मोटा और लंबा था।

    सुषमा की गाँड़ का छिद्र छोटा सा था। सुषमा को दर्द तो होना ही था। पर इंसान चुदाई के उन्मादक लुत्फ़ के आगे छोटा मोटा दर्द सह लेने से कहाँ रुकता है? शराब पिने वाला शराब की कड़वाहट के कारण शराब पिने से थोड़े ही रुकता है?

    अच्छी तरह चिकनाहट लगा कर साले साहब ने धीरे से अपना लण्ड सुषमा की गाँड़ पर टिकाया और एक हाथ से उसे पकड़ कर अपने पेंडू से हलका सा धक्का मार कर अपने लण्ड को सुषमा की गाँड़ में थोड़ा सा घुसेड़ा। सुषमा के पुरे बदन में साले साहब के लण्ड के घुसने से सिहरन फ़ैल गयी। मैंने भी सुषमा की चूतमें और उसके बदन में फैलती हुई सिहरन को महसूस किया।

    साले साहब ने जब अपना लण्ड थोड़ा और घुसेड़ा तब सुषमा दर्द के मारे चीख पड़ी। शायद सुषमा दर्द से कम और दर्द के डरके कारण ज्यादा आतंकित थी। सुषमा की पहले कभी हिम्मत नहीं हुई थी की वह सेठी साहब को गाँड़ मारने दे। पर हमारे लण्ड कम भयावह लगने के कारण सुषमा ने यह हिम्मत की।

    साले साहब का और मेरा लण्ड कुछ छोटा जरूर था पर वह इतने भी ज्यादा छोटे नहीं थे की सुषमा की गाँड़ में घुसे और उसे दर्द ना हो। साले साहब सुषमा के चीखने से कुछ देर रुक गए। शायद उन्हें सुषमा के चीखने का अंदेशा तो था ही। इस लिए वह सुषमा की चीख सुनकर घबराये नहीं।

    शायद उन्होंने पहले कुछ स्त्रियों की चीख निकलवाई होगी। जो भी हो। उन्होंने अपना लण्ड सुषमा की गाँड़ में से धीरे से निकाल दिया। वह कुछ देर थम गए फिर सुषमा की मुंदी हुई आँखों को देखते हुए उन्होंने एक धक्का और लगाया और इस बार अपना गाँड़ कुछ और सुषमा की गाँड़ में घुसेड़ा।

    इस बार सुषमा ने दबी हुई आवाज में चीख लगाई, “हाय माँ…. रे! संजयजी मुझे पता नहीं था यह गाँड़ मरवाने से इतना ज्यादा दर्द होगा।”

    “मैं इसे निकाल लूँ सुषमाजी?” साले साहब ने सुषमा से पूछा।

    सुषमा आँखें खोल कर साले साहब की और मुस्कुराते हुए देख कर बोली, “तुम मर्द लोग, इतनी रसीली मजेदार चूत छोड़ कर गाँड़ को चोदने के पीछे क्यों लगे रहते हो यह बात समझमें नहीं आती।”

    “पर हमने तो गाँड़ मारने की बात की ही नहीं आज?” साले साहब ने कुछ झिझकते हुए और कुछ उलझन भरी आवाज में कहा।

    “तुम लोगों ने बात तो नहीं की पर मुझे मालुम है की यह हो ही नहीं सकता की तुम लोगों ने इसके बारे में सोचा ना हो। तुम्हारे दिमाग में यह बात जरूर रही होगी। मेरी सहेली रूपा कह रही थी की मर्द लोग औरत की गाँड़ के पीछे पागल रहते हैं। वह औरत के बूब्स और गाँड़ ही सबसे ज्यादा देखते रहते हैं। रूपा को इन मामलों का काफी अनुभव है। उसके पति बड़े ही रंगीन मिजाज हैं। रूपा कई बार अपने पति के साथ दो मर्दों से एम.एम.एफ. करवा चुकी है।

    वह कहती है की शुरू शुरू में गाँड़ मरवाने में काफी दर्द होता है, पर बाद में ना सिर्फ इसकी आदत हो जाती है बल्कि गाँड़ मरवाने में काफी मजा भी आने लगता है। बच्चा होने के बाद औरत की चूत का छिद्र बड़ा हो जाता है। तो मर्द लोगों को और शायद औरतों को भी चूत चुदवाने में उतना मजा नहीं आता। गाँड़ का छिद्र छोटा होने से अगर उसे अच्छी तरह चिकनाहट से लथपथ किया जाए तो गाँड़ मारने और मरवाने में दोनों को बहुत मजा आता है।”

    मैं सुषमा की बात सुन कर सोच में पड़ गया। औरतें भी चुदाई के बारे में इतना ज्यादा सोचती हैं यह अक्सर हम मर्द लोग नहीं जानते। ज्यादातर औरतें घरके काम, बच्चे, भाई बहन पति को सम्हालना इत्यादि काम में ही व्यस्त रहतीं हैं। चुदाई का भूत तो मर्दों के दिमाग में ही छाया हुआ होता है यही हम मर्द लोग मानते हैं। पर यह बात सच नहीं है। औरतें भी चुदाई के मामले में काफी सजग होती हैं। वह भी चुदाई करवाने के लिए लालायित रहतीं हैं।

    बस वह अपने मन के भाव जाहिर नहीं करतीं। बल्कि जब चुदाई करवाने का मौक़ा होता है तो चुदाई के दरम्यान निकाले गए कपडे ठीक तरह तह लगा कर रखना, लण्ड और चूत को साफ़ करने के लिए कपडे तैयार रखना, चुदाई के बाद थक जाने पर पहले से ही कुछ खाने पिने की चीजों की व्यवस्था करना यह सब स्त्रियां चुदाई होने वाली है यह भनक लगते ही इंतजाम करके रखतीं हैं। वह मर्दों की तरह चुदाई का मौक़ा पाते ही आधी पागल या बाँवरी नहीं हो जातीं।

    अब चुदाई का सबसे रोमांचक वक्त शुरू हुआ था। मुझे भी उस रात तक अंदाजा नहीं था की एम.एम.एफ. चुदाई इतनी मजेदार होती होगी। दो लण्डों के एक साथ चोदने से सुषमा का पूरा बदन रोमांच से मचल रहा था। सुषमा बार बार “है राम! मर गयी रे! ओह…. आह… हूँ…. ओहो….. उफ़….” इत्यादि सिसकारियां और कराहटें निकाल रही थी।

    मैंने यह बखूबी महसूस किया की शायद उस रात की सुषमा की मेरे और साले साहब के लण्ड से हुई चुदाई सुषमा जिंदगी भर भूल नहीं पाएगी। जिस तरह सुषमा हम दोनों के बिच चिपकी हुई थी और जिस तरह वह बार बार हमें अपने बाहु पाश में जकड कर अपना प्यार जता रही थी, यह साफ़ जहीर होता था की वह उन्माद के चरम को छू रही थी।

    सुषमा की इस तरह की दुगुनी चुदाई उतनी तेज़ रफ़्तार वाली नहीं थी। रफ़्तार बढ़ाने पर अक्सर दोनों में से एक लण्ड चूत या गाँड़ में से निकल पड़ता था। उसे फिर से अंदर डालना पड़ता था, जिससे रफ़्तार धीमी हो जाती थी।

    पर वह धीमी रफ्तार में भी सुषमा उतनी ज्यादा उत्तेजित हो रही थी की चुदाई के दरम्यान मैंने किसी भी औरत को इतना ज्यादा उत्तेजक और उन्मादक हाल में नहीं देखा था। वह कभी काँपने लगती थी तो कभी कराहने लगती थी तो कभी सिसकारियां मारने लगती थी। मेरे ख्याल से सुषमा की कराहटें पूरी दुगुनी चुदाई के दरम्यान एक या दूसरे रूप में बगैर थमें चालु ही रही थीं।

    यह तो हमें अंदाज था की एम.एम.एफ. चुदाई रोमांचक और उत्तेजना भरी होगी। पर इतनी उत्तेजक और रोमांचक होगी वह हम तीनों में से किसी ने भी सोचा नहीं था। हालांकि पहले की चुदाई के मुकाबले एम.एम.एफ. चुदाई उतनी तेज रफ़्तार वाली नहीं थी। पर फिर भी मेरे लण्ड में मेरा वीर्य इस कदर फनफना रहा था और मेरा पूरा बदन ख़ास कर मेरा दिमाग भी उत्तेजना से इतने जोश में था जैसा मैंने पहले किसी चुदाई में महसूस नहीं किया था।

    मैं जल्द ही झड़ने के कगार पहुँच रहा था। मैंने महसूस किया की वही हाल साले साहब और सुषमा का भी था। साले साहब का बदन सख्त हो गया था और सुषमा मारे उत्तेजना से इतनी ज्यादा मचल रही थी की मुझे लगा की वह बार बार झड़ रही थी।

    धीरे धीरे सुषमा की चुदाई एक और झटके साथ धीमी पड़गयी। सुषमा का पूरा बदन कंपकपाने लगा। वह अपने चरम पर पहुँच चुकी थी। वह मुझे अपने बाहु पाश में जकड कर बोलने लगी, “राज चोदो मुझे और जोर से चोदो। मैं झड़ने वाली हूँ। संजू और जोर से गाँड़ मारो मेरी। गाँड़ में और जोर से डालो यार! आजकी रात मेरे लिए नहीं भूलने वाली रात बन जाएगी। आज तुम दोनों ने मुझे ऐसा बढ़िया तरीके से चोदा है की मैं इसे भूल नहीं पाउंगी।”

    यह कह कर सुषमा झड़ने लगी। साथ ही साथ में मेरे लण्ड में से फर्राटे मारता हुआ मेरा वीर्य सुषमा की चूत की नाली में गरमा गरम उष्मा देता हुआ जोरशोर से मौजों के उफान की तरह बहने लगा। मेरा सारा वीर्य खाली होते ही सुषमा शिथिल हो कर लुढ़क पड़ी।

    सुषमा के खिसक ने से मेरा ढीला हो चुका लण्ड अपने आप ही बाहर फिसल कर निकल पड़ा। साले साहब ने कब अपना वीर्य सुषमा की गाँड़ में खाली कर दिया और कब अपना लण्ड निकाल लिया और वह एक तरफ जा कर खड़े हो गए यह मुझे पता ही नहीं चला।

    करीब पंद्रह मिनट तक हम तीनों थके हुए ऐसे ही लेटे रहे। मुझे लगा की मैं तो सो ही गया होऊंगा। शायद हम तीनों कुछ देर के लिए या तो सो गए थे या फिर तंद्रा में थे। कुछ देर के बाद जब मैंने आँखें खोलीं तब रसोई घर में से बर्तनों की खटखटाहट सुनाई दी। सुषमा शायद हमारे लिए कुछ बना रही थी।

    कुछ ही देर में सुषमा हमारे लिए कॉफ़ी और बिस्किट्स ले कर हाजिर हुई। सुषमा ने नाइटी पहन ली थी। ढीलीढाली नाइटी सुषमा के नंगे बदन की सारी रूपरेखा उस ढीले कपडे में बयाँ कर रही थी। सुषमा की चूँचियाँ, और उसके सिरमौर दो निप्पलेँ मनमोहक लग रही थीं। सुषमा की गाँड़ पर एक मनहर आकार बनाती हुई नाइटी सुषमा के नंगे बदन से भी ज्यादा कामुकता के दर्शन करा रही थी।

    सुषमा ने मेरी लोलुप नज़रों को देखा और कुछ सहमते हुए मेरी और देख कर बोली, “ऐ मिस्टर रोमियो, अब कुछ देर के लिए रूमानी अंदाज और चुदाई बंद। अब आपके साले साहब हमें यह बताएँगे की अंजू को बच्चा कैसे और किसने दिया।” फिर संजू की और घूम कर सुषमा ने पूछा, “संजू, अब समय हो गया है की तुम उस राज़ पर से पर्दा उठाओ।”

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